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फूहड़ मनोरंजन की उम्र कम होती है
Tuesday, September 22, 2020 - 8:00:06 PM - By आसिफ अली

फूहड़ मनोरंजन की उम्र कम होती है
कंगना

बकबक बंद कर अब दफा हो जाओ, थोड़ा तो बाज आओ....

वो तो सॉफ्ट पोर्न स्टॉर है....यह कहते हुए जुबान एक बार भी कांपी ना होगी। कांपनी भी क्यों चाहिए...आप तो बहनपना बढ़ा रही हैं। किसी के काम-धाम-पेशे को सार्वजनिक रूप से रुसवा करना ही तो फेमिनिज्म है। पक्का वाला स्त्रीवाद। मैं...मैं...मैं....मैं....मेरी थाली....मेरा काम.....बाकी सब तो किसी दूसरे के कांधे पर चढ़कर ही आगे बढ़े हैं। कोई दूसरा ना मिला तो कंगना जी..जी...जीजी को भी वही पुराना राग मिला... उर्मिला मातोंडकर....महिला है ना ...अपना शरीर सामने किया...चढ़ गई चार सीढ़ी ऊपर। हिरोइन को रोल सोने के बाद मिलता है। शर्म आनी चाहिए....यह कहकर खुद को कितना नीचे गिरा दिया .....उस पर भी तुर्रा यह कि मैं पक्की वाली फैमिनिस्ट हूं। फैमिनिज्म मैं लाई हूं इंडस्ट्री में। उफ्फ....किसी ने मैं...मैं...मैं...में बकरी को भी हरा दिया। बकरी की तो बोली ही मैंsss है...यहां यह मैं मानसिक अवसाद का जीता-जागता उदाहरण है। आगे बढ़कर खुद को जिबह करवाने की तैयारी है।

बुरा यह भी लग रहा कि इस मानसिक अवसाद-उन्माद को अभी सराहा जा रहा है....दो-चार दिन नहीं तो दो-चार साल बाद। याद रखिए कंगना जी...जीजी...फूहड़ मनोरंजन की उम्र कम होती है। जिस तरह से न्यूज मीडिया में भूत-प्रेत वाली खबरें खत्म हो गईं..क्राइम सिमट गया। एक ना एक दिन चीखना-चिल्लाना भी खत्म हो ही जाएगा....फिर...

आपकी यह चिल्ल-पौ कहीं से कहीं तक आपको स्व. सुषमा स्वराज के समकक्ष खड़ी नहीं करती। सुषमा जी को छोड़िए, स्मृति इरानी के आस-पास भी नहीं फटकती। आपने इतनी निर्लज्ज भाषा का इस्तेमाल कर स्त्री गरिमा को खासी चोट पहुंचाई है।

इसलिए वाहियात बातें करनी की जगह यदि आप चुप्पी साध लेंगी तो आपका ही भला होगा...फेमिनिज्म का तो खैर आप से कोई लेना-देना ही नहीं है।