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पिता की विरासत में है मुस्लिम महिलाओं का भी हक़ / सैयद सलमान
Saturday, September 23, 2023 - 10:38:20 AM - By सैयद सलमान

पिता की विरासत में है मुस्लिम महिलाओं का भी हक़ / सैयद सलमान
शरिया कानून में बेटी को पिता की संपत्ति में जो निश्चित हिस्सा मिलने का प्रावधान
साभार- दोपहर का सामना  22 09 2023 

मुस्लिम महिलाओं से जुड़े एक अहम मसले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक देशव्यापी अभियान चलाने की योजना बनाई है। यह अभियान मुस्लिम महिलाओं को उनके पिता की संपत्ति में हिस्सा दिलाने के लिए चलाया जाएगा। इसके अलावा भी कई अन्य सुधारों को लेकर बड़ा अभियान चलाने का निर्णय लिया गया है। मुस्लिम बोर्ड (एआईएमपीएलबी) कार्यसमिति की बैठक में लिया गया यह फ़ैसला मुस्लिम महिलाओं के लिए दूरगामी नतीजे ला सकता है। विधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता पर गंभीर चर्चा के बीच मुस्लिम समाज की तरफ़ से की गई इस पहल पर चर्चा शुरू हो गई है। इस्लाम में शरीयत के मुताबिक़ बेटी को पैतृक संपत्ति में २५ फ़ीसद का पहले से ही हक़दार बताया गया है। लेकिन, अमूमन मुस्लिम महिलाएं इस हिस्से से महरूम ही रहती हैं। महिलाओं के इस शरई अधिकार पर शायद ही कोई परिवार अमल करता होगा। माना जा रहा है कि महिलाओं को लेकर समाज में व्यापक सुधार लाने का मुस्लिम समाज पर दबाव बढ़ता जा रहा है।

शरिया कानून में बेटी को पिता की संपत्ति में जो निश्चित हिस्सा मिलने का प्रावधान है, वह मुस्लिम समाज में न जाने कब से नहीं दिया जा रहा है। इसी तरह मां को बेटे की संपत्ति में और विधवा को पति की संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जा रहा है। शरीयत की बात करने वाले मुसलमान कभी इस पर मुखर होकर नहीं बोलते। इस्लामी कानून के अनुसार किसी व्यक्ति के जीवित रहते या मरने के बाद उसकी संपत्ति का बंटवारा पवित्र धर्मग्रंथ क़ुरआन शरीफ़ में बताए गए तरीक़े से करना चाहिए। क़ुरआन में स्पष्ट उल्लेख है कि, माता-पिता की संपत्ति में बेटियों का भी हक़ है। इस हक़ से उन्हें बेदख़ल करना गुनाह है। यही नहीं इस्लाम में यह आदेश दिया गया कि किसी को भी, चाहे वह पुरुष हो या महिला, कमज़ोर या शक्तिशाली, बीमार या स्वस्थ, परित्यक्त या क़ानूनी रूप से गोद लिया गया हो, अपने माता-पिता के निधन के बाद विरासत से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। क़ुरआन की ४थी सूरह अल-निसा में महिलाओं के कई अधिकारों का वर्णन किया गया है। अगर उसे ध्यान से पढ़ा जाए तो बहुत कुछ साफ़ हो जाता है। सूरह अल-निसा की आयत ११ और १२ में पीढ़ियों के बीच संपत्ति के उत्तराधिकार के अधिकारों और इसे क़ुरआन की प्रक्रियाओं के अनुसार कैसे आवंटित किया जाए, इसके बारे में एक व्यापक दिशा निर्देश प्रदान किया गया है। अल-निसा आयत क्रमांक ७ और ३३ में विरासत में मिले धन को बांटने के तरीक़े का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा, इन आयतों में न केवल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा का वर्णन है, बल्कि पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए विरासत के हस्तांतरण की व्यवस्था को भी परिभाषित किया गया है।

ख़ासकर इस्लामी समाज में एक व्यापक ग़लतफ़हमी है कि, पुरुषों को महिलाओं की तुलना में विरासत का बड़ा हिस्सा मिलता है। इसलिए जब भी विरासत की बात आती है, तो महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों से कमतर मान लिया जाता है। मुस्लिम उलेमा इसके लिए कमाई के ज़रिए और वित्तीय व्यय की अवधारणा के तहत तर्क देते हैं कि, एक पुरुष को अपनी पत्नी और बच्चों का ख़्याल रखना होता है. जिसमें उनके भविष्य के लिए भोजन, कपड़ा, आवास और अन्य ज़रूरतें शामिल हैं। इसके अलावा, विवाह समारोह में, घर की बच्चियों इत्यादि को दुल्हन के रूप में दहेज देने की ज़िम्मेदारी भी पुरुषों की होती है। हालांकि दहेज भी एक प्रकार की कुप्रथा ही है। एक पुरुष पर ख़ुद अपनी, अपनी पत्नी, बच्चों, बुजुर्ग माता-पिता और क़रीबी रिश्तेदारों की अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार देखभाल करने की भी ज़िम्मेदारी होती है। उलेमा के तर्कों के आधार को अगर मानें तो एक महिला के रूप में विरासत का दोगुना हिस्सा प्राप्त करने के बावजूद पुरुषों को कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलता है, न ही इसका मतलब यह है कि अधिक विरासत प्राप्त करने के मामले में पुरुष महिलाओं से बेहतर हैं। इस तर्क पर मुस्लिम महिलाओं को आपत्ति है। लेकिन मुद्दा यही है कि शरीयत जब महिलाओं को उनके हुक़ूक़ तय करती है तो मुसलमान वह हक़ उन्हें देता क्यों नहीं। क़ुरआन की बात को न मानना क्या उसकी नज़र में गुनाह नहीं है? या वह सुविधा अनुसार क़ुरआन की मानता है और सुविधानुसार क़ुरआन की बात को किनारे कर देता है? जो भी हो मुस्लिम महिलाओं को उनका हक़ हर हाल में मिलना चाहिए और इसके लिए हर मुसलमान को पूर्ण रूप से सहमत होना होगा।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)