'सहारा समय मुंबई' में बहैसियत संपादक कार्य करते हुए सड़कों पर उतरकर शो करने का अपना अलग ही मज़ा था। स्टूडियो का आकर्षण अलग लेकिन खुली हवा में किया गया शो अलग ही ऊर्जा भर देता था। खासकर सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रम करना हो तो ऊर्जा दुगुनी हो जाती थी।
ये उन दिनों की बात है जब भाई प्रेम शुक्ल 'विश्व भोजपुरी सम्मलेन' के आयोजनों के माध्यम से उत्तर भारतीयों को ज़बरदस्त तरीके से जोड़ रहे थे। चारों तरफ़ उनकी चर्चा थी। आईएएस अधिकारी रहे आदरणीय सतीश त्रिपाठी जी भी बढ़-चढ़कर सम्मलेन को सफल बनाने में लगे थे। भाई ज़ाकिर अहमद, भाई अमरजीत मिश्र और प्रेम भाई की टीम कार्यक्रम को सफल बनाने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाए हुए थी।
ठाणे में यह आयोजन तीन दिन तक चलना था और तीन दिनों तक हमने अपनी ओबी वैन ठाणे में लगा दी थी। कार्यक्रम को हर बुलेटिन में लाइव दिखाया जाता था। ऐसे में मन में विचार आया कि क्यों न 'ऑन लोकेशन' एक भोजपुरी बुलेटिन निकाली जाए। अब ये कार्य करे कौन? 'भैया' बोली बोलने से बहुतेरे उत्तर भारतीय पत्रकार यूँ भी न जाने क्यों बहुत शर्माते हैं। एकदम टूटी-फूटी रफ़ हिंदी बोलेंगे, लेकिन 'अपनी बोली' बोलने से शायद सम्मान खोने का उन्हें डर होता है। हालांकि अपनी ज़ुबान भी भोजपुरी और अवधी के मामले में कच्ची है लेकिन कुछ अलग हटकर न किया तो अपन 'सलमान' कैसे? मुश्किल थी आदरणीय राजीव कुंवर बजाज साहब को राज़ी करना। लेकिन यह क्या, वह तो मानो उछल ही पड़े। फ़ौरन शाबासी देते हुए अनुमति दे दी। नाचीज़ ने यह बीड़ा उठाया और पूरे तामझाम के साथ पहुँच गया ठाणे भोजपुरी बुलेटिन निकालने का प्रयोग करने। बजाज साहब तो पूरे शो के दौरान पीसीआर को निर्देश देते रहे। उनके निर्देशानुसार केवल सहारा समय मुंबई ही नहीं 'अपना शहर' उस दिन सहारा समय राष्ट्रीय, सहारा समय उत्तरप्रदेश, सहारा समय एनसीआर सहित सहारा के सभी क्षेत्रीय चैनलों पर लाइव प्रसारित किया गया।
संभवतः सेटेलाइट चैनल पर प्रसारित की गई वह पहली भोजपुरी बुलेटिन थी। आधे घंटे का शो एक घंटे तक चलाया गया। भोजपुरिया और पूर्वांचल के अनेक सम्मानित राजनेताओं, अभिनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, साहित्यकारों और पत्रकारों का बधाई संदेश आया। सतीश त्रिपाठी जी, भाई प्रेम शुक्ल और उनकी टीम ने मिलकर विश्व भोजपुरी सम्मलेन का एक नया इतिहास रच दिया था। मैं आज भी यह सोचकर रोमांचित हो जाता हूँ कि सूट-बूट पहनकर स्टूडियो में और आम जनों के बीच कैजुअल ड्रेस में हिंदी-उर्दू की मिली जुली भाषा में बुलेटिन पढ़ने और कार्यक्रम करने वाला 'सलमान' कैसे और किस जोश से करोड़ों दर्शकों के बीच 'भैया एंकर' बनकर भी बेहद खुश था।
कार्यक्रम के दौरान सभी मेहमान केवल भोजपुरी/अवधी का ही प्रयोग कर रहे थे। यहाँ तक कि हमारे संवाददाता हरीश तिवारी भी। साथ ही कार्यक्रम के बीच में चलने वाली स्टोरीज़ भी भोजपुरी में ही बनाई गई थीं। और हाँ कार्यक्रम के बीच में कृपाशंकर सिंह जी का फोनों भी है जो ज़ाहिर है अपनी बोली में ही है।
भोजपुरी की पहली बुलेटिन पढ़ने के आधार पर अगले वर्ष 'काशी विद्यापीठ' में भाई प्रेम शुक्ल की पहल पर अपना सत्कार भी हुआ था। वह कहानी फिर कभी।
लिंक पर जाएँ
https://www.youtube.com/watch?v=PfB1n67jMt4&t=911s