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अदालतों के अंदर व बाहर भ्रष्टाचार देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है- पूर्व जज दीप्ति सुतारिया
Tuesday, February 2, 2016 - 7:00:11 PM - By सुमीता केशवा

अदालतों  के अंदर व बाहर भ्रष्टाचार देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है- पूर्व जज दीप्ति सुतारिया
हिन्दुस्तान की पहली महिला साइबर एक्सपर्ट पूर्व जज श्रीमती दीप्ति सुतारिया


हमारे यहां पर साइबर क्राइम एक्सपर्ट करीब छह से सात हैं। मैं लंदन से डिग्री लेकर हिन्दुस्तान आई तो यहां मैं मैरिट पर जज चुनी गई। कई सालों तक मैंने अपनी नौकरी ईमानदारी से की। मेरी शादी हो गयी…. बिटिया हो गई। मैंने जॉब छोड़ दी क्योंकि मेरी ज़िंदगी में ज्यादा महत्वपूर्ण मेरी बिटिया थी। दूसरा बड़ा कारण यह भी था कि जुडिशरी के अंदर बाहर करप्शन बहुत हो गया है। जहां बाबू से लेकर जज को पैसा दिया जाता है। मुझे लगा मैं इस तारतम्य में कहीं भी फ़िट नहीं बैठती हूं। क्योंकि जब आपको अचानक एक रात फ़ोन आ जाये कि या तो आप जिस तरह से हम कह रहे हैं उस तरह का फ़ैसला सुनायें या फ़िर इतनी रिश्वत आपके घर भिजवा दी जायेगी आप अपना मुंह बन्द रखें। जैसा हम कहते हैं वैसा करें। जहां एक ओर हमारे चीफ़ जज जस्टिस टी.एस.ठाकुर साहब जो अभी नियुक्त हुये हैं, कहते हैं जुडीशरी एक स्वतंत्र बॉडी है । जबकि इसके उलट पोलिटिशियन की दखल अंदाज़ी होती है। तो जुडीशरी स्वतंत्र बॉडी किस तरह से हुई? ये दोनों ही कंट्रोवर्सल स्टेटमेंट हैं। वहीं अखबारों में ये बयान दिया जाये कि उन्होंने ये बात पर्सनली पत्रकारों को कही है। जब मैं प्रैक्टिस कर रही थी उस दौरान मैंने तीन किताबें लिखीं । ‘साइबर कॉप्स साइबर क्रिमिनल एंड इंटरनेट ’ साइबर क्राइम एक्सपर्ट होने के नाते मैंने बच्चों की सेफ़्टी को लेकर लिखा था। ‘मॉम आई डोन्ट वान ए हॉम हार्लिक्स एनीमोर’ । आजकल हमारे बच्चे दूध नहीं पीते बल्कि ये इंटरनेट चैट वाले हो गये हैं। उन्हें ये पता है कि स्पेस की से लेकर के स्टेगेनोग्रॉफ़ी क्या होती है? पोर्नोग्रॉफ़ी क्या होती है? बकायदा एक साल का बच्चा आपको बता सकता है कि उन तस्वीरों को कैसे स्वाइप कर सकता है? ये सब देखते हुये हमारे बच्चे सेफ़ नहीं हैं। उनके लिये कोई सुरक्षा या बन्दोबस्त नहीं उपर से हम ये कहें कि हमारी न्याय व्यवस्था स्वतंत्र है महज लफ़्फ़ाजी है। मैं इस बात से कत्तई सहमत नहीं हूं।

अभी मैं इंटरनेट सेफ़्टी एडवाइज़र हूं। मैंने USA के लिये काम किया है। अमेरिकी सरकार के लिये काफ़ी साल काम किया है। इसी तरह ऑन लाइन अब्यूज़ होता है और ये अब्यूज़ कई तरह से किया जाता है। अभी हाल ही में जेटली साहब डेफ़र्मेशन सूट कर रहे हैं अरविंद केजरीवाल के खिलाफ़ व कीर्ती आज़ाद के खिलाफ़, जोकि ऑनलाइन अब्यूज़ के अंतर्गत आता है। हालांकि जेटली जी मेरे गुरु रह चुके हैं लेकिन यहां मैं उनसे एक सवाल करना चाहूंगी कि पिछले साल उनकी पार्टी के कई लोगों ने अपशब्दों का इस्तेमाल लिया था ऑनलाइन जाकर या किसी अन्य नेता के खिलाफ़ कोई भी अब्यूज़ शुरु कर देता है उनके खिलाफ़ एक्शन क्यों नहीं लिये गये? इसी तरह महिलाओं के खिलाफ़ मैंने कई अब्यूज़ देखे हैं। जैसे कोई पुरुष महिला के साथ इन्वाल्व होना चाहता है अगर वो महिला उसे ढील नहीं देती है तो वह उसे अब्यूज़ करना शुरु कर देता है। वहीं दूसरी ओर तेरह- चौदह साल की बच्चियां जो बड़े-बड़े ब्रान्डस पहनने और बड़े-बड़े लोगों से मिलने के चक्कर में अपनी पोर्नोग्राफ़िक क्लिपिंग्स बनवाती हैं। तब इनका देह शोषण होता है। जिसे ऑनलाइन फ़्लैश ट्रेड कहते हैं। जहां बार डांसर आपको जीवंत नाचती हुई दिखलाई पड़ती हैं और उनके साथ एक आध घटनायें हुई होंगी वर्ना नहीं के बराबर है। वहीं ऑनलाइन देह व्यापार हिन्दुस्तान की सरहद से लेकर पाकिस्तान और दुबई आदि अरब देशों में धीरे-धीरे फ़ैलता जा रहा है। इसी फ़्लैश ट्रेड के तहत नौकरानियां भी एक जगह से दूसरी जगह पहंचाई जाती हैं या शादी करके एन आर आईज़ ले जाते हैं। इंटरनेट सेफ़्टी एडवाइज़र के तौर पर हमारा काम ये रहता है कि हम ऐसे लोगों पर नज़र रखते हैं और जहां हमें शक हो जाता है कि ये इस काम में लिप्त है तो हम उनकी धर-पकड़ करते हैं।और उन्हें साइबर सेल को सौंप देते हैं। आगे वे उन अपराधियों पर कारवाई करते हैं। इसके बरक्स हमारा हिन्दुस्तान साइबर एक्ट के मामले में सोया हुआ है। हम अभी चार्ल्स बैबेज़ की एज़ में हैं। क्योंकि हमारा जो साइबर क्राइम का काम है अभी जन्मा है। हम जहां से शुरु हुये थे वहीं अटके हुये हैं अबतक। सन 2000 से 2002 तक कई योजनायें बनती रहीं । उस समय देवांग मेहता जो नेस्कॉम आई टी हेड थे। उन्होंने और प्रमोद महाजन जी ने उस वक्त रातों रात इन्फ़ोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट बनाया और उसे लागू करते हुये कहा कि ई कॉमर्स और ई सिग्नेच्रर से आदमी को हिन्दुस्तान से जर्मनी नहीं जाना पड़ेगा। एग्रीमेंट साइन करो ई कॉमर्स के जरिये वह बिजनेस शुरु हो जायेगा। देश के जितने भी बड़े व्यापारी हैं जो ई कॉमर्स और इंटरनेट के द्वारा बिजनेस करना चाहते हैं उन्हें रोज रोज ट्रेवल नहीं करना पड़ेगा। ऐसे मसलों को देखते हुये ये साइबर एक्ट जो बना वो अभी भी पूर्ण रूप से अंधा और बहरा है। अभी श्रेया सिंघल जी ने सुप्रीम कोर्ट के कहने पर 66 A को आई टी एक्ट में से निकाल दिया । उनका कहना था कि किसी ने किसी को अपशब्द कह दिया तो लोग तुरंत आई टी एक्ट के अंतर्गत साइबर क्राइम सेल में डिफ़र्मेशन का मुकदमा दायर कर देते हैं। हालांकि फ़्रीडम ऑफ़ स्पीच संविधान से हमें प्राप्त है। किन्तु बोलने की आज़ादी हमें कितनी हो उसकी क्या सीमायें हों ये अभी तक किसी ने मुकर्रर नहीं किया है। साइबर क्राइम एक्ट के अनुसार जहां पर एक गाली तुरंत ऑनलाइन दूसरे व्यक्ति तक पहंच जाती है वहीं अपने मुंह से दी हुई गाली का कोई सबूत नहीं रहेगा। इसीलिये इन दिनों मोदी भक्त टाइप लोग सोशल मीडिया में गाली गलौज़ करते रहते हैं। मालूम है उन्हें कोई कुछ नहीं कर सकता चाहें वे फ़िर पत्रकार को गाली दें या बड़े नामी-गिरामी लोग को दें। मैं समझती हूं कि अब साइबर अपराध अब सरहदें पार कर चुका है। एक इंसान जो कंप्यूटर पर बैठा क्राइम कर रहा है वह पाकिस्तान में बैठा है या आयरलैंड या अमेरिका से तो उसकी कोई पहचान नहीं है। आप कभी भी ये जांच नहीं सकते। क्योंकि या तो वह प्रॉक्ज़ी सर्वर से घुस जाता है मतलब दस दरवाजों को भेदता हुआ वह कहीं भी घुस जायेगा। आखिर ऐसे एब्यूज़ को कैसे रोका जाये? जब तक इसका कोई निराकरण नहीं निकलता तब तक हम अपने को सेफ़ नहीं मान सकते।
इन्फ़ोर्मेशन टेक्नॉलाज़ी को लेकर मेरी बात डॉ.सुब्रमण्यम स्वामी जी से भी हुई थी। उन्होंने कहा कि वे इस वक्त नेशनल हेरॉल्ड के केस में बिज़ी हैं केस खत्म होते ही वे इस पर विचार करेंगे। बीजेपी के लीगल सेल में कई तरह के केस आते हैं। मैं राघवेन्द्र जी के साथ केस देखती रहती हूं। इस वक्त हमारे लॉ मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद जी हैं जिन्हें इन्फ़ोर्मेशन टेक्नोलॉजी का एबीसी भी नहीं पता। मैं माफ़ी चाहती हूं ये बोलते हुये …….जब इन्फ़ोर्मेशन टेक्नोलॉजी का रातों रात बिल पास कर दिया गया और उन्हें पता ही नहीं चला कि एन्क्रिप्शन लॉ कब पास हो गया? एन्क्रिप्शन लॉ के अनुसार सरकार ने कहा कि आम आदमी से लेकर बाबू, ब्यूरोक्रेट्स सभी अपने वाटसएप और ईमेल दस दिनों तक डिलीट नहीं कर सकते। पुलिस कभी भी आपकी जानकारी ले सकती है। अब आम आदमी अपनी निजी बातों को पुलिस को दिखाने के लिये क्यों बाध्य हो? सोशल मीडिया में इस बात पर काफ़ी हल्ला हुआ सरकार की खूब किरकिरी हुई तब कहीं जाकर रविशंकर जी के कान खड़े हुये और उन्होंने पब्लिक से माफ़ी मांगी। इसका मतलब सरकार जासूसी कराना चाहती है। कि कौन क्या कहता है क्या करता है? इस तरह का बिल स्पेशल बिल होता है जो USA और UK में है। जिसमें सेना के अंदर के टॉप सीक्रेट्स कहीं लीक न हो जायें इसलिये पेश किया जाता है। इसके लिये योग्य हैकर्स होते हैं जो पता कर लेते हैं कि रातों रात कम्प्यूटर में से कितना डेटा चुराया जा चुका है। एनक्रिप्टिंग बिल और डीक्रिप्टिंग बिल जिसे हम एन्कोडिंग और डीकोडिंग कहते हैं। ये सब स्पेशल डिपार्मेंट के लिये होता है न कि आम जनता के लिये। ये देश का दुर्भाग्य है कि हमारे यहां साइबर अपराध के लिये कोर्ट नहीं हैं। फ़ैमिली कोर्ट, डिस्ट्रिक कोर्ट,कन्ज्युमर कोर्ट,क्रिमिनल कोर्ट हैं लेकिन साइबर कोर्ट नहीं है। आज लोग साइबर के केस नॉर्मल क्रिमिनल कोर्ट में जमा करते हैं। जहां पर बैठा हुआ जज जिसे साइबर अपराध या इन्फ़ोर्मेशन टेक्नॉलाजी का ज्ञान नहीं होता। जब तक वह एक्ट मंगाता नहीं देखता नहीं, समझता नहीं तब तक वह निर्णय देने की स्थिति में नहीं होता। सरकार डिजीटल इंडिया की बात तो करती है लेकिन जब तक वह एक व्यवस्थित साइबर एक्ट नहीं बनायेगी तब तक सारी बातें बेमानी हैं। जैसे IPS के साथ CRPC चलता है। अलग अलग अपराध की अलग- अलग धारायें हैं। उन धाराओं को कैसे लागू किया जाये इसके लिये साइबर कोर्ट होने बेहद ज़रूरी हैं। जैसे साइबर स्टॉकर्स लॉ हैं, विदेशों में हॉकर्स लॉ अलग हैं। हैकिंग अपराध है। उसी हैकिंग को हमने एथिकल हैकिंग के रूप में परिभाषित कर दिया है। अभी हम इस मामले में विदेशों से बहुत पीछे हैं। अभी अखलाक की दादरी में जो ह्त्या हुई या एक मुस्लिम लड़के की सोशल मीडिया में एक दूसरे को धमकी देते हुये ह्त्या हुई। वह ऑनलाइन होता है, जो सड़क पर आकर ऑफ़लाइन मामला बन जाता है। इसलिए सोशल मीडिया में ये रोक अवश्य लगनी चाहिये कि अभिव्यक्ति की आज़ादी कितनी हो?

देखिये डिज़ीटल इंडिया मोदी जी की नहीं है इसकी की जो नींव है वो राजीव गांधी जी ने रखी थी। और मोदी जी इस योजना को आगे बढ़ा रहे हैं। एक आम नागरिक होने के नाते ये कहना चाहूंगी कि इस सपने को तरीके से लागू करें तो बेहतर होगा। नहीं तो पता चला कि कुछ दिनों बाद हम लोगों के उपर स्वच्छ भारत अभियान के बाद ये वाला सेस भी लगना शुरु न हो जाये। ऐसा कुछ न करते हुये जितनी गंदगी समाज में है उसे साफ़ किया जाये। साथ ही फ़्रीडम ऑफ़ स्पीच पर एक सीमा निर्धारित की जाये ताकि बहुत सारे मुकदमें कोर्ट में पैंडिंग न रहें। इस वक्त अदालतों में पांच बिलियन केस पैंडिंग पड़े हैं। कौन देखेगा उनको कोर्ट में? अकेले साइबर मुकदमें ही रोज इतने एकत्र हो जाते हैं कि आप इन्हें क्रिमिनल कोर्ट में बहुत लंबा नहीं चला सकते । इसलिये आपको मैट्रो सिटीज़ में साइबर कोर्ट बनाने चाहिये। जैसे दिल्ली के आसपास के क्षेत्र के मामले दिल्ली की साइबर कोर्ट में मुंबई में महाराष्ट्र के मामले देखे जायें। इतना तो हम उम्मीद करते हैं सरकार से कि इन मुद्दों का निराकरण किया जाये। खासकर महिलाओं को जो नेता हैं उन्हें भी साथी पुरुष नेता अब्यूज़ करने से नहीं चूकता। और तो और स्मृति ईरानी और मधु किश्वर जैसी स्थापित महिलाओं को तक नहीं बख्शा जाता फ़िर आम महिलाओं की क्या हालत होती होगी। इसलिये बोलने की आज़ादी पर कंट्रोल होना चाहिये ताकि लोग किसी की अवहेलना करने से बाज आयें। वर्ना मामला डेफ़ेर्मेशन में चला जायेगा। मैं साइबर क्राइम में अभी लीगल कन्सलटेंट इंटरनेट सेफ़्टी एडवाइज़र के तौर पर काम करती हूं। मैं चाहूंगी कि हमारी बच्चियां सेफ़ रहें। मैं इस बात से बेहद खुश हूं कि CBSC ने साइबर क्राइम को देखते हुये अब ये निर्धारित कर दिया है कि स्कूल में साइबर बुलिंग नहीं होगी। मतलब लड़के लड़कियों की इंटरनेट पर तस्वीर बदल देते हैं यहां तक कि झगडे होने पर टीचर प्रिंसिपल की फ़ोटोज़ डाल देते हैं। ये फ़ंडा हमारे यहां वेस्ट से आया है। हम न तो पूरे हिन्दुस्तानी रह गये ना ही विदेशी रहे। अधर में लटकी हुए हैं हम। इसलिये CBSC ने तय किया है कि बच्चों के लिये भी एक स्पेशल साइबर क्राइम जुवेनाइल एक्ट होना चाहिये जैसा कि अन्य देशों में है। दूसरे देशों में साइबर क्राइम के ही बहुत सारे कानून हैं जबकि हमारे यहां केवल 99 धारायें ही हैं। जिसमें कुछ भी डिफ़ाइन नहीं है। बहुत सारी चीज़ें जिन्हें चेंज़ करने की ज़रूरत है। अभी मोदी जी कहते हैं कि सभी अपनी बात ट्विटर के जरिये कहें मीडिया से नहीं। सोशल मीडिया में लिख दें। पर उस लिखने के उपर भी आपको दस बार सोचना पड़ेगा कि क्या लिखा जा रहा है? और वो किस तरह से हानि पहुंचा रहा है किसी समाज को या फ़िर किसी संप्रदाय को धर्म को? ये सब देखते सोचते हुये कानून बनने चाहिये।


(प्रस्तुति- सुमीता केशवा)




-इंटरव्यू अथवा लेख से संपादक सहमत हों यह ज़रूरी नहीं है.