शिक्षिका ने वीडियो के साथ छेड़छाड़ से लेकर अपने दिव्यांग होने और सभी समाज के प्रति सम्मान रखने जैसी सफ़ाई पेश की
साभार- दोपहर का सामना 01 09 2023
हर दिन किसी न किसी ऐसी ख़बर से मन विचलित हो जाता है जिसका समाज में असर नकारात्मक पड़ता हो। ख़ासकर दो समाजों के बीच के भेदभाव और उसके पड़ने वाले असर को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल हो जाता है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फ़रनगर की एक ऐसी ही घटना ने देश में बढ़ती जा रही विभाजनकारी शक्तियों का ऐसा रूप दिखाया, जिसमें शिक्षक जैसा पवित्र पेशा भी बदनाम हुआ। मुज़फ्फ़रनगर से एक शर्मनाक और चौंकाने वाला वीडियो वायरल होता दिखाई देता है, जिसमें एक शिक्षिका एक छात्र को क्लास के बाक़ी सदस्यों से पिटाई करवा रही है। महिला शिक्षिका धर्म विशेष को लेकर कुछ टिप्पणी भी करती नज़र आ रही है। वीडियो वायरल होने के बाद इसे सांप्रदायिक रंग देने की भरपूर कोशिश हुई। हालांकि प्रशासन ने मामले को संज्ञान में लेते हुए जांच के आदेश दिए और ख़बर आई कि विद्यालय सील कर दिया गया। जिस विद्यार्थी की पिटाई हुई उसके अभिभावकों ने बच्चे का नाम स्कूल से निकलवा लिया। ज़िला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने बच्चे का नाम गांव के ही सरकारी स्कूल में लिखवाने के लिए परिवार को राज़ी करने की कोशिश की। बच्चे की पढ़ाई सुचारु रूप से जारी रखना ज़रूरी था, लेकिन बच्चे के पिता ने इस बारे में फ़िलहाल कोई फ़ैसला नहीं लिया।
पहले मामले पर सहयोगात्मक रवैया रखने वाले पिता ने बाद में शिक्षिका के ख़िलाफ़ तहरीर दर्ज करवाई। एफ़आईआर दर्ज होने के बाद भी गांव के बड़े बुज़ुर्गों ने बच्चों को गले मिलाकर एक तरह से मामला ख़त्म करने की अच्छी पहल की। यह भी एक संयोग रहा कि इस मामले में शिक्षिका और विद्यार्थी दोनों त्यागी समुदाय से ही थे। दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों में त्यागी जाति के लोग रहते हैं। यही वजह है कि मामला तूल पकड़ने से पहले ही शांत होता नज़र आया। लेकिन सियासत से जुड़े लोगों की बड़ी मंशा थी कि इस मुद्दे पर ध्रुवीकरण का खेल खेला जाए। सियासत जिस मुद्दे में घुस जाए वह मुद्दा फिर निजी न होकर नाक का मसला बन जाता है। हालांकि, ग्रामीणों की सूझबूझ और भाईचारा देखकर कई सांप्रदायिक शक्तियों को अपने हाथ पीछे खींचने पड़े।
बात केवल बच्चे को अन्य बच्चों से पिटवाने की नहीं थी। वीडियो में एक समुदाय को लेकर की गई टिप्पणी पर ज़्यादा नाराज़गी दिखी। हालांकि शिक्षिका ने वीडियो के साथ छेड़छाड़ से लेकर अपने दिव्यांग होने और सभी समाज के प्रति सम्मान रखने जैसी सफ़ाई पेश की। यही नहीं उसने माफ़ी मांगने वाला वीडियो भी बनाया। शिक्षिका का जो हो सो हो, स्कूल अगर बंद होता है तो यह अन्य बच्चों के साथ अन्याय होगा। अपने सहपाठी को अपनी शिक्षिका की शह पर पीटने वाले बच्चों में हिंसा की भावना हमेशा के लिए घर कर सकती है। किसी अन्य धर्म के बच्चों या कमज़ोरों पर हाथ उठाना उनके लिए सामान्य हो जाएगा, क्योंकि एक गुरु ने इसकी शिक्षा दी है। शिक्षिका के एक जाने-अनजाने क़दम ने इतने सारे बच्चों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। जिस बच्चे की अन्य बच्चों ने पिटाई की, बताया जाता है कि उसके मन-मस्तिष्क पर इस घटना का गहरा प्रभाव पड़ा है। वह सदमे में है। उसकी काउंसलिंग की जा रही है।
लेकिन सवाल यह है कि, वह क्या चीज़ है जो लोगों के ज़ेहन में ज़हर बनकर घर करती जा रही है। कैसे सार्वजनिक रूप से धर्म विशेष के लोगों की मॉब लिंचिंग हो रही है। कैसे ख़ाकी वर्दीधारी चलती ट्रेन में ढूंढ़-ढूंढ़ कर धर्म विशेष के लोगों को मार रहा है। कैसे एक शिक्षिका अपने ही विद्यार्थी के साथ धार्मिक वैमनस्य रख सकती है। मासूम बच्चियों के बलात्कारियों, मॉब लिंचिंग करने वालों, धर्म की आड़ में हिंसा फैलाने वालों को जब तक नैतिक, आर्थिक और सामाजिक समर्थन मिलता रहेगा, उनका सार्वजनिक सत्कार होता रहेगा तब तक यह सिलसिला नहीं रुकेगा। देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को विपक्ष की सरकारें गिराने, केंद्रीय एजेंसियों को पार्टी विशेष के हित में काम पर लगाने या प्रचार सभाओं से फ़ुर्सत मिले तब न ऐसे गंभीर मुद्दों पर ध्यान दें। समाजों का यह विभाजन उन्हें भी रास ही आता होगा, तभी तो इन ज़िम्मेदारों का एक भी बयान नहीं आता। पीड़ित बच्चे के पिता को इस बात को समझना होगा कि अगर बच्चे की पढ़ाई छूटती है तो एक पूरी नस्ल अशिक्षित रह जाएगी। उन्हें समाज में मिलजुलकर रहने वाली नीति और अपने बड़े लोगों की पंचायत पर भरोसा करना होगा। उन राजनेताओं से दूर रहना होगा जो उनकी पीड़ा और बच्चे के सदमे की बुनियाद पर सियासी मैदान फ़तह करना चाहते हैं। सामाजिक सौहार्द हर हाल में जीतना चाहिए। ऐसे में सियासत हार जाए, कोई ग़म नहीं।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)