क्या देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को भी नफ़रत की आग में झोंकने की तैयारी है?
साभार- दोपहर का सामना 18 08 2023
अभी-अभी देश ने आज़ादी का जश्न मनाया है, लेकिन इस बीच नफ़रत फैलाने वाली ख़बरें जब भी नज़र के सामने आती हैं तो दिल बेचैन हो उठता है। एक ख़बर मुंबई से आई है। मुंबई के बांद्रा इलाके में एक युवक की बेरहमी से सिर्फ़ इसलिए पिटाई की गई, क्योंकि वह एक दूसरे धर्म की लड़की के साथ घूम रहा था। रेलवे स्टेशन पर आठ-दस लोग इकट्ठा हो गए और उसे खींचकर ले गए, मुक्के मारे और थप्पड़ों की बरसात कर दी। भीड़ में शामिल लोग आरोप लगा रहे थे कि ठाणे जिले के अंबरनाथ में रहनेवाला उक्त युवक नाबालिग़ लड़की को उसके परिजनों की रज़ामंदी के बग़ैर बरग़ला कर अपने साथ कहीं बाहर ले जाने के लिए बांद्रा टर्मिनस पहुंचा था। नाबालिग़ लड़की के भाई ने उसके अपहरण की शिकायत अंबरनाथ पुलिस थाने में दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें एक पुलिस अधिकारी भी नज़र आ रहा है। लेकिन उसने भी पीट रहे लड़कों को रोकने की कोशिश नहीं की। सवाल उठता है कि क्या यह देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को भी नफ़रत की आग में झोंकने की तैयारी तो नहीं है? एक तबक़ा इस पिटाई को ‘लव जिहाद' का नाम देकर पीटने वालों के समर्थन में घटना को उचित बता रहा है, जबकि कुछ लोगों की राय है कि अगर कोई ग़लती करता है तो उसके लिए क़ानून है और क़ानून हाथ में लेने का अधिकार किसी के पास नहीं है।
पिछले दिनों हरियाणा का हिंसाग्रस्त नूंह इलाक़ा भी ख़ासा चर्चित रहा। नूंह में हुई हिंसा के बाद गुरुग्राम, फ़रीदाबाद, पलवल और ग़ाज़ियाबाद जैसे शहरों में तनाव देखा गया था। उसी तनाव के बीच हिसार ज़िले का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। इस वीडियो में कुछ लोग पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में दुकानदारों को चेतावनी दे रहे हैं कि अगर किसी मुस्लिम व्यक्ति को काम पर रखा है तो उसे नौकरी से हटा दिया जाए, नहीं तो इन विक्रेताओं का बहिष्कार किया जाएगा। इसके अलावा ग़ाज़ियाबाद के नंदग्राम इलाके में भी कुछ पोस्टर लगाए गए, जिसमें मुस्लिमों के बहिष्कार की अपील की गई थी। यही नहीं हिंसा और सांप्रदायिक तनाव के बाद हरियाणा के रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और झज्जर की ५० से ज़्यादा पंचायतों की ओर से पत्र जारी किए गए, जिनमें इन इलाक़ों में मुस्लिम व्यापारियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई थी। कुछ जगहों पर पत्र केवल इसलिए भी जारी किए गए कि अन्य पंचायतें जारी कर रही थीं। कहीं-कहीं तो मुस्लिम आबादी भी नहीं थी, तब भी पत्र जारी हुए। हालांकि, कुछ स्थानों पर समझदार क़ानूनी सलाहकारों द्वारा यह समझाने के बाद कि किसी समुदाय को धर्म के आधार पर अलग करना क़ानून के ख़िलाफ़ है, कुछ लोगों ने पत्र वापस ले लिया। क्या यह विभाजन की राजनीति का संदेश नहीं है, जिसे केंद्र और हरियाणा की राज्य सरकार मौन सहमति दे रही है?
मुंबई और नूंह की इन घटनाओं के अलावा मध्य प्रदेश के सागर में विश्व हिंदू परिषद के एक नेता ने मुस्लिम बहिष्कार का एलान किया था, वहीं पिछले दिनों बजरंग दल के एक नेता ने पंजाब के फ़ाज़िल्का में नसीर और जुनैद की हत्या को सही ठहराने वाला बयान दिया था। इसी तरह के नफ़रत भरे बयानों और घटनाओं से धीरे-धीरे नफ़रत का ज़हर मस्तिष्क पर चढ़ जाता है। तभी कोई किसी को कार में ज़िंदा जला देता है, कभी किसी को ज़िंदा जलाकर अपने समर्थकों से कोर्ट में तिरंगा हटाकर संगठन विशेष का झंडा फहरवाता है, कभी मॉब लिंचिंग होती है, कभी बच्चियों का बलात्कार होता है, कभी कोई ऐसी ही बातों के प्रभाव में आकर ख़ाकी वर्दी को लज्जित करते हुए ट्रेन में सफ़र करते बेक़सूरों को भून देता है और शर्म की बात तो यह कि इस तरह के आरोपियों को नैतिक, सामाजिक और आर्थिक मदद देकर उनका सार्वजनिक सत्कार कर ऐसी विचारधारा को प्रोत्साहन दिया जाता है।
किसी भी तरह हिंसा को जायज़ ठहराना, क़ानून का मख़ौल उड़ाना होगा। जैसे धर्म की आड़ में, जिहाद के नाम पर मुस्लिम आतंकी संगठन बेक़सूरों को बम और गोलियों से उड़ाते हैं, क्या यह भी उसी का रूप नहीं है? एक बात तो तय है कि हिंसा का कोई धर्म नहीं होता, जैसे कि आतंकवादियों का कोई मज़हब नहीं होता, इसी तरह मुंबई, नूंह, सागर, फ़ाज़िल्का जैसी घटनाएं और बयानात भी किसी ख़ास धर्म के पैरोकारों के नहीं हैं। इस्लाम शांति का और हिंदुत्व सहिष्णुता का धर्म है। दोनों का संगम ही असल हिंदुस्तान है। लेकिन दोनों तरफ़ के लोगों के कुछ नफ़रती तत्व धर्म की आड़ में ख़ुद को धर्म का ठेकेदार बताने की कुंठित मानसिकता पाल बैठे हैं। अफ़सोस कि सरकार इस पर गंभीर नहीं लग रही है। यह हिंसा और नफ़रत उसे रास आ रही है। शायद इसी हिंसा और नफ़रत की आग में वह अपनी सियासी रोटी सेंकते हुए और अधिक बलशाली होने के ख़्वाब बुन रही है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)
इस्लाम की बात