किस क़दर इस ज़िंदगी के रास्ते दुश्वार है,
फूल से ज़्यादा हमारी ज़िंदगी में खार हैं ।
क्या कहेंगे आप इस बदले हुए हालात पर,
जो हमें बर्बाद करने पर यहां तैयार हैं ।
नफरतों की आग में झुलसा है जिनसे यह चमन,
जाके उनसे पूछिए क्या वोह कभी गमखोवार हैं ।
जो नेजाम ए हिन्द को अब कर रहे हैं तार तार,
हमको तो लगता है कि वोह ज़ेहन से बीमार हैं ।
नफसी नफसी का है आलम, सांस भी रुकने को है,
और, उसपे यह सितम कि हम यहां गद्दार हैं ।
दंग रह जायेंगी आंखें देखकर मंज़र, सलीम,
कैसे कैसे इस सियासत के यहां फनकार हैं ।