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जंग क्या मसअलों का हल देगी ! / सैयद सलमान
Saturday, October 21, 2023 11:41:03 AM - By सैयद सलमान

यरूशलम में फ़िलिस्तीन और इज़रायल के बीच युद्ध होता रहा है, जो मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों के लिए एक पवित्र और पैग़ंबरों का शहर माना जाता है
साभार - दोपहर का सामना 20 10 2023

फ़िलिस्तीन और इज़रायल के बीच जारी तनाव से पूरी दुनिया के मुसलमानों पर आरोपों, कटाक्ष और नफ़रत की बौछारें जारी हैं। हमास की इज़रायल के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई का मुसलमानों द्वारा किया गया विरोध भी ताक़ पर रखकर पूरी क़ौम को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। इज़रायल की गाज़ा के एक अस्पताल पर हुई बमबारी में सैकड़ों मरीज़ों, बूढ़ों, डॉक्टरों इत्यादि की मौत पर जश्न मनाया जा रहा है। सवाल उठा कि, आखिर क्यों इज़रायल के ख़िलाफ़ हमास ने ऐसा अमानवीय क़दम उठाया। जिस तरह से हथियारों का ज़ख़ीरा हमास के पास पहुंचा, यह सब बताता है कि यह युद्ध हमास को आगे रखकर हथियारों के सौदागरों ने फ़िलिस्तीन और इज़रायल पर थोपा है। महाशक्तियां कहलाने वाले देश इस में शामिल न हों ऐसा हो ही नहीं सकता। अब तक दोनों देश के हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं। यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है।

संयुक्त राष्ट्र हो या कोई अन्य अंतरराष्ट्रीय मंच, भारत आज़ादी के बाद से ही फ़िलिस्तीन के लोगों के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आवाज़ उठाता रहा है। १९७४ में, फ़िलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) को फ़िलिस्तीनी लोगों के एकमात्र वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला ग़ैर-अरब देश भारत ही था। १९८८ में, फ़िलिस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने वाला दुनिया का पहला देश भी भारत ही था। पीएलओ नेता यासिर अराफ़ात के साथ भारत के रिश्ते हमेशा ही अच्छे रहे। लेकिन पहली बार विदेश नीति में कूटनीतिक परिवर्तन हुआ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इज़रायल को समर्थन देने की घोषणा की। हालांकि विदेश मंत्रालय ने अगले दिन स्पष्ट किया कि भारत ने हमेशा से ही एक अलग और स्वतंत्र फ़िलिस्तीन राज्य का समर्थन किया है।

यह केवल हमारे देश की बात नहीं है, इज़रायल और हमास के बीच चल रहा संघर्ष वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था की एक ऐसी घटना है जिसका असर पूरी दुनिया पर दिख रहा है। हालांकि इस संघर्ष में सीधे तौर पर इज़रायल, हमास और फ़िलिस्तीन शामिल हैं, लेकिन इस मुद्दे को लेकर दुनिया के सभी देश की विदेश नीति प्रभावित हुई। गत ७ अक्टूबर को हमास ने जो किया वह एक बर्बरतापूर्ण कृत्य था, जिसमें बड़ी संख्या में निर्दोष इज़रायली नागरिक मारे गए थे। इज़रायल इस से पहले यही फ़िलिस्तीन के साथ करता रहा है। फिर भी इस आधार पर हमास की कार्रवाई को सही नहीं ठहराया जा सकता। हमास की कार्रवाई पर इज़रायल ने भी वही सब किया जो हमास ने किया। हमास को ख़त्म करने के लिए इज़रायल ने गाज़ा को मिलने वाली बिजली, पानी और अन्य सभी ज़रूरी सामानों की आपूर्ति बंद कर दी। अस्पतालों को नेस्तो नाबूद किया। बेक़सूर आम नागरिकों की जानें गईं। दोनों तरफ़ की इस हिंसा और युद्ध में जानी-माली नुक़सान हुआ और उसका ख़ामियाज़ा आम जनता को भुगतना पड़ा।

हालांकि यह अफ़सोसनाक है कि उस यरूशलम में फ़िलिस्तीन और इज़रायल के बीच युद्ध होता रहा है, जो मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों के लिए एक पवित्र और पैग़ंबरों का शहर माना जाता है। यहूदियों का मानना है कि यहीं दुनिया का निर्माण हुआ। ईसाइयों का मानना है कि इसी स्थान पर ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। मुसलमानों के लिए यही वह स्थान है जहां से पैग़ंबर मोहम्मद साहब स्वर्ग गए थे। यरुशलम में ही प्राचीन अल-अक़्सा है। यहूदी हज़रत मूसा को, ईसाई हज़रत ईसा को और मुसलमान मोहम्मद साहब को अपना पैग़ंबर मानते हैं। तौरेत, इंजील (बाइबिल) और क़ुरआन क्रमशः तीनों के पवित्र धर्मग्रंथ हैं। चूंकि क़ुरआन में हज़रत मूसा और हज़रत ईसा का ज़िक्र बार-बार पैग़ंबर के रूप में आया है, इसलिए मुसलमान मोहम्मद साहब सहित उन दोनों को भी अपना पैग़ंबर मानते हैं। फिर भी यह मार काट समझ से परे है। दरअसल जब-जब हिंसा के सहारे धर्म को न्यायसंगत बताया जाएगा, उसका औचित्य सिद्ध किया जाएगा तब-तब इंसानियत दम तोड़ेगी। हमारे देश में भले ही आज नफ़रत का माहौल हो, उसे बढ़ावा दिया जा रहा हो, फ़िलिस्तीन-इज़रायल जंग के बहाने मुसलमानों को कोसा जा रहा हो, लेकिन यहां का आम मुसलमान भी मानता है कि हमारे देश की मिट्टी में, उसकी आत्मा में सबका मालिक एक और 'वसुधैव कुटुम्बकम' (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) की धारणा गहरे तक समाई हुई है। यह एक ऐसी सनातनी दार्शनिक अवधारणा है, जो सार्वभौमिक भाईचारे और सभी प्राणियों के परस्पर जुड़ाव की अवधारणा को बढ़ावा देती है। पैग़ंबरों की भी सीख यही रही है। हिंसा और आतंक का किसी तरह भी समर्थन नहीं किया जा सकता। जंग किसी मसले का हल हो ही नहीं सकती। यह भूख देगी और भिक्षुक बना देगी। बक़ौल साहिर लुधियानवी,

जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
आग और ख़ून आज बख़्शेगी
भूख और एहतियाज कल देगी



(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)