इज़रायल ने अब तक लाखों फ़िलिस्तीनी नागरिकों की जान ली है जिनमें मासूम बच्चे, बूढ़े और महिलाएं शामिल हैं
साभार- दोपहर का सामना 13 10 2023
इज़रायल और हमास के बीच शुरू हुए युद्ध में दोनों पक्षों के हज़ारों से ज़्यादा लोगों के मारे जा चुके है। संघर्ष के एक तरफ़ इज़रायली सेना है और दूसरी तरफ़ हमास है, जो फ़िलिस्तीन का पक्षधर है। दोनों के इस टकराव को लेकर दुनिया के देश भी अलग-अलग समूह में बंट गए हैं। अमेरिका सहित कई यूरोपीय देश इज़रायल का समर्थन कर रहे हैं, जबकि रूस, चीन, तुर्की, लेबनान और चीन जैसे कई देश का समर्थन फ़िलिस्तीन के साथ बताया जा रहा है। हालांकि, इसमें से किसी ने सीधे हमास का समर्थन नहीं किया है, सभी ने फ़िलिस्तीन के नागरिकों की बात कही है। लेकिन, चूंकि हमला हमास की तरफ़ से है तो यह एक तरह से अपरोक्ष उसी की हिमायत मानी जा रही है। हमास ने जो किया वह क़त्तई सही नहीं है, लेकिन इजराइल भी वर्षों से फ़िलिस्तीनियों पर ज़ुल्म करता रहा है, अगर इस सत्य से आंख चुराई जाए तो यह ग़लत होगा। धर्म, भूमि और युद्ध का यह घालमेल पूरी दुनिया को परेशान कर रहा है।
मोटे-मोटे तौर पर देखा जाए तो यहूदियों का प्रतिनिधित्व इज़रायल जबकि फ़िलिस्तीन मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता है। दोनों के बीच संघर्ष का लंबा इतिहास है। इज़रायली यहूदियों और फ़िलिस्तीनी अरबों दोनों की पहचान, संस्कृति और इतिहास यरूशलेम से जुड़ा हुआ है। दोनों इसे अपना मानते हैं। यहां की यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित अल-अक़्सा मस्जिद, दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण और पवित्र है। यहूदी इस पवित्र स्थान को 'टेंपल माउंट' कहते हैं जबकि मुसलमानों के लिए यह 'अल-हरम अल-शरीफ़' है। इसलिए यह लड़ाई मात्र राजनीति, देश की सीमा या ज़मीन के टुकड़े की न होकर धर्म और आस्था से जुड़ गई है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इज़रायल और फ़िलिस्तीन के बीच संघर्ष शुरू हुआ। उस्मानिया सल्तनत की हार के बाद ब्रिटेन ने फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़ा कर लिया। फिलिस्तीन में यहूदी शरणार्थी थे। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ग्रेट ब्रिटेन को फ़िलिस्तीन में यहूदियों को बसाने की ज़िम्मेदारी सौंपी। फ़िलिस्तीनियों ने इसे स्वीकार नहीं किया और यहूदियों के साथ उनका संघर्ष शुरू हुआ। फ़िलिस्तीन में बसाए गए यहूदियों ने फ़िलिस्तीन पर धीरे-धीरे क़ब्ज़ा करना शुरू कर दिया। ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों का साथ था ही, धीरे-धीरे फ़िलिस्तीनी विस्थापित होते गए और एक समय ऐसा आया कि उन्हें अपने ही देश के लिए जंग लड़नी पड़ी, जो आज तक जारी है। इज़रायल ने अब तक लाखों फ़िलिस्तीनी नागरिकों की जान ली है जिनमें मासूम बच्चे, बूढ़े और महिलाएं शामिल हैं।
इसी बीच हमास द्वारा की गई एक घटना ने दुनिया भर के मुसलमानों को निशाना बनाने का मौक़ा दे दिया। एक वायरल वीडियो में दिखता है कि हमास ने इज़रायल पर हमले के बाद एक महिला के नग्न शरीर को एक ट्रक पर रखा और उसे शहर में घुमाया। यह सरासर गै़र-इस्लामी कृत्य है। फ़िलिस्तीन स्वतंत्रता की लड़ाई का इस से कोई संबंध नहीं हो सकता। जिस इस्लाम के धर्मग्रंथ अल-कु़रआन में मां हव्वा, हज़रत मूसा की मां, ज़ालिम फ़िरऔन की नेक बीवी आसिया, ईसा मसीह की मां मरियम का बेहद सम्मान से ज़िक्र हुआ हो, उस इस्लाम के मानने वाले ऐसा नहीं करेंगे। हज़रत मरियम के नाम पर पूरी एक सूरह है। एक और सूरह अल-निसा तो पूरी तरह से महिलाओं के हक़ को लेकर समर्पित है। इस्लाम में नग्नता को गुनाह बताया गया है। फिर किसी महिला को नग्न करना कैसे जायज़ हो सकता है? इस्लाम में दुश्मन सैनिकों या किसी अन्य के शव तक का अपमान करना मना है। लेकिन हमास के इस कृत्य को लेकर आम मुसलमानों को टारगेट जा रहा है।
हज़ारों मील दूर इज़रायल-फ़िलिस्तीन संघर्ष के बीच राजनीति और धर्म के मिश्रण से पैदा हुए ज़हर से अब हमारे देश की राजनीति भी अछूती नहीं रही। भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने इज़रायल के समर्थन की घोषणा की, जबकि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने फ़िलिस्तीनी नागरिकों के ज़मीन, स्वशासन और आत्म-सम्मान के साथ जीने के अधिकारों के लिए अपने दीर्घकालिक समर्थन को दोहराया। मणिपुर की हिंसा और महिला को नग्न घुमाने, मॉब लिंचिंग, बलात्कारियों और हत्यारों के समर्थन और उनके सत्कार पर चुप रहने वालों की ज़ुबान के ताले भी खुल गए। गोया, गूंगे भी बोल पड़े। हमास की घटना से पहले के इज़रायली ज़ुल्म पर भी यह चुप ही थे। यह दोग़लापन ही तो है जो अपने देश के मुद्दों पर चुप रहने को प्राथमिकता देता है। अपने देश के मज़लूमों पर चुप्पी, लेकिन धर्म और छद्म राष्ट्रवाद की आड़ में विदेशी मुद्दों पर मुखरता आपको वहशी और शातिर ही नहीं कायर भी साबित करती है। बेकसूरों की जान किसी भी देश के नागरिक की जाए, अगर आपका दिल धर्म देखकर पसीजता है या फिर खून खौलता है तो आप इंसान कहलाने के हकदार नहीं हैं।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)