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ग़ैर-इस्लामी और ग़ैर-इंसानी हैं आफ़ताब के कारनामे / सैयद सलमान
Friday, November 18, 2022 9:08:44 AM - By सैयद सलमान

जांच में हुए कई खुलासे
साभार- दोपहर का सामना 18 11 2022

इंसान कितना गिर सकता है इस बात का एक ताज़ा नमूना आफ़ताब की शक्ल में सामने है। घटना साउथ दिल्ली के महरौली इलाक़े की है। दिल दहलाने वाली इस वारदात से सभी आम-ओ-ख़ास के रोंगटे खड़े हो गए। दरअसल, आफ़ताब नामक एक व्यक्ति ने मुंबई से तक़रीबन १५०० किलोमीटर दूर दिल्ली में अपनी 'लिव इन' पार्टनर २६ वर्षीय श्रद्धा की बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी। इतना ही नहीं आफ़ताब ने शव के कई टुकड़े किए और दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में फेंक कर शव को ठिकाने लगा दिया। उसने लाश के उन टुकड़ों को फ़्रीज में रखने के लिए ३०० लीटर का फ़्रीज ख़रीद रखा था। पुलिस ने इस हत्या की गुत्थी को सुलझाते हुए पांच महीने बाद आफ़ताब को गिरफ़्तार कर लिया। अब मामला कथित प्रेम प्रसंग का न रहकर धार्मिक विद्वेष तक पहुंच गया है। जैसा कि इस तरह की घटनाओं में लड़का अगर मुस्लिम नामधारी निकलता है तो पूरे मुस्लिम समाज को गालियां देने का चलन शुरू हुआ है, उसी तर्ज़ पर आफ़ताब के बहाने पूरा मुस्लिम समाज अब निशाने पर है। लेकिन किया भी क्या जाए, जब अपने धर्म की बारीकियों से अनजान मुस्लिम युवा अपराध की राह पर चल पड़ते हैं तो समाज को उसका दंश तो भोगना ही पड़ेगा। हो सकता है यह अनुचित हो, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में यह हो रहा है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।

आफ़ताब नामी जिस शख़्स ने अपनी हवस, अपनी आपराधिक बुद्धि और अपने मानसिक असंतुलन के सहारे जो गुनाह किया है, वह कई स्तर पर ग़ैर-इस्लामी है। ऐसे में किसी भी प्रकार से मुस्लिम समाज की तरफ से उसकी तरफ़दारी हो ही नहीं सकती। उसने लड़कियों को जाल में फांसने के लिए कई ऐप का सहारा लिया, बिना निकाह के लिव-इन-रिलेशन में रहा, बेक़सूर की हत्या की और लाश को वीभत्स किया। यह सभी कृत्य सरासर ग़ैर-इस्लामी हैं। इन चारों कर्मों की वजह से क्या वह मुसलमान कहलाने का हक़ भी रखता है यह बड़ा सवाल है। हालांकि किसी के मुसलमान होने न होने की कोई गारंटी नहीं दे सकता, न ही किसी को यह हक़ हासिल है कि वह किसी को सर्टिफ़िकेट दे, लेकिन सत्य से आंख चुराना भी तो ग़ैर-इस्लामी है। श्रद्धा के क़त्ल के आरोपी आफ़ताब ने अपना गुनाह क़बूल करते हुए ख़ुद यह स्वीकार किया है कि, वह कई डेटिंग ऐप से जुड़ा हुआ था। श्रद्धा और आफ़ताब की मुलाक़ात भी एक डेटिंग ऐप पर ही हुई थी। अब यह कोई भी आसानी से बता सकता है कि, आफ़ताब डेटिंग ऐप का इस्तेमाल क्यों करता था। ग़ैर-महरम लड़कियों के संपर्क में बिना किसी कारण के रहना किसी सामान्य लड़के के लिए आख़िर क्यों ज़रूरी हो सकता है। प्रथम दृष्टया लगता है कि उसका स्वभाव ही ऐयाशी करने का था। इस्लाम क़त्तई इसकी इजाज़त नहीं देता। अगर आफ़ताब ऐसा करता था तो ज़ाहिर सी बात है इस्लामी नुक्ता-ए-नज़र से वह गुनाह कर रहा था।

आफ़ताब श्रद्धा के साथ लिव इन रिलेशन में रहता था। यानी उसने निकाह नहीं किया था। लिव इन यानी इस्लामी लिहाज़ से ज़िनाकारी। ज़िनाकारी यानी पर-स्त्री-गमन अथवा व्यभिचार। मुस्लिम समाज के दो बड़े धार्मिक संस्थान दारुल उलूम देवबंद और बरेलवी मरकज़ की दरगाह आला हज़रत ने समलैंगिकता और लिव-इन-रिलेशन के ख़िलाफ़ बहुत पहले ही फ़तवा जारी किया है। शरीयत का ज़िक्र करते हुए इस फ़तवे में इन दोनों संबंधों को हराम क़रार दिया गया है। जहां तक बात लिव-इन-रिलेशन की है तो फ़तवे में बिना शादी औरत-मर्द का साथ रहना भी हराम क़रार दिया गया है। फ़तवे के अनुसार ग़ैर-मनकूहा यानी ग़ैर-शादीशुदा को घर में नहीं रखा जा सकता। उसके साथ ख़िलवत यानी शारीरिक संबंध या फिर सोहबत ज़िना-ए-ख़ालिस यानी संतानोत्पत्ति के लिए संबंध बनाना दोनों हराम हैं। हदीस दुर्रे मुख़्तार के हवाले से कहा गया है कि, जो लोग इस कृत्य में लिप्त हैं, उनके लिए शरीयत में आग में जला देने, उन पर दीवार गिरा देने या उन्हें ऊंची जगह से गिरा देने और पत्थरों की बारिश करने जैसी सज़ाएं मुक़र्रर की गई हैं। अब शरीयत और इस्लाम की बात से इस बात को समझना होगा कि, क्या आफ़ताब का कृत्य किसी मुसलमान का कृत्य हो सकता है? यानी आफ़ताब कर्म से नहीं सिर्फ़ नाम से मुसलमान है।

बात नाहक़ और बेक़सूर के क़त्ल की अगर की जाए तो इस्लाम की इस बुनियाद पर नज़र डालनी होगी जिसमें कहा जाता है कि, “मुसलमान वह, जिसकी ज़ुबान और हाथ से लोग सुरक्षित हों।” इस्लाम में ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन और ज़ुल्म या किसी बेगुनाह की जान लेना मना है। “जो व्यक्ति जान-बूझकर नाहक़ किसी की हत्या करे, तो उसका बदला जहन्नम है, जिसमें वह हमेशा रहेगा; उस पर अल्लाह का प्रकोप और उसकी फटकार है और उस के लिए अल्लाह ने बड़ी यातना तैयार कर रखी है।” (अल-क़ुरआन- ४:९३) पैग़ंबर मोहम्मद साहब ने भी फ़रमाया है कि, “क़यामत के दिन सर्वप्रथम लोगों के बीच रक्तपात के प्रति न्याय किया जाएगा।” (हदीस- सही मुस्लिमः १६७८) अब क़ुरआन और हदीस के इन हवालों से कैसे माना जाए कि आफ़ताब ने मुसलमानों वाला काम किया है, जबकि उसने तो एक बेक़सूर का क़त्ल किया है। उसने श्रद्धा का क़त्ल किया है तो उसने पूरी इंसानियत का क़त्ल किया है, क्योंकि क़ुरआन में आया है कि, “जिसने किसी का क़त्ल किया या ज़मीन में फ़साद किया तो गोया उसने सब इंसानों का क़त्ल किया और जिसने एक जान को बचा लिया तो गोया उसने सब इंसानों को बचा लिया” (अल-क़ुरआन- ५:३२) यानी इस्लाम इंसानी जान की सुरक्षा की ओर सही मार्गदर्शन करता है और क़ातिल को दुनिया तथा आख़िरत में सख़्त यातना में ग्रस्त करने का आदेश देता है ताकि इंसानियत की सुरक्षा की जा सके। अब अगर कोई अरबी, फ़ारसी, उर्दू नामधारी ऐसा करे तो उसने सरासर इस्लाम का उल्लंघन किया, क़ुरआन का उल्लंघन किया और पैग़ंबर के हुक्म का अनादर किया तो आख़िर वह कैसा मुसलमान हुआ?

इस्लाम में लाशों का अनादर करने से भी मना किया गया है। हदीस में आया है कि, मोहम्मद साहब ने दुश्मनों की लाशों की काट-पीट या गत बिगाड़ने से मना फ़रमाया है। यह हुक्म जिस मौक़े पर दिया गया, वह भी बड़ा शिक्षाप्रद है। उहुद की जंग में दुश्मनों ने शहीदों की नाक-कान काट कर उनके हार बनाए और गलों में पहने। यहां तक कि मोहम्मद साहब के चचा हमज़ा का पेट चीर कर उनका कलेजा निकाला गया और उसे चबाने की कोशिश की गई। उस वक़्त मुसलमानों का ग़ुस्सा हद पार कर गया था। लेकिन मोहम्मद साहब ने फ़रमाया कि, ‘‘तुम दुश्मन क़ौम की लाशों के साथ ऐसा सुलूक न करना।’’ इंसानी जज़्बात का अगर ख़्याल न रखा गया होता तो उहुद जंग में यह दृश्य देखकर हुक्म दिया जाता कि तुम भी दुश्मनों की फ़ौजों की लाशों का इसी तरह अनादर करो। जब दुश्मनों की लाश के साथ अनादर से मना किया गया है तो कोई सच्चा मुसलमान अपनी महबूबा का क़त्ल कर ३५ टुकड़े करते हुए उसकी लाश की बेहुरमती कैसे कर सकता है। इसलिए कहा जा सकता है कि आफ़ताब ने ग़ैर इस्लामी कार्य किया है। कोई सच्चा मुसलमान ऐसा नहीं कर सकता। इसलिए आफ़ताब और उस जैसी मानसिकता की निंदा हर हाल में होनी चाहिए भले ही वह किसी भी धर्म का हो। लेकिन, आफ़ताब या उस जैसे किसी नाम के कारण आम मुसलमानों को ऐसी गुनहगार मानसिकता के लिए दोषी ठहराना उचित नहीं है।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)