लखनऊ में सआदतगंज के गुलाब नगर में तीन सफाईकर्मी सीवर में उतरे थे। इनमें से दो की मौत हो गई। एक की हालत गंभीर है। बताया जाता है कि इन कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा के सीवर में सफाई के लिए उतार दिया गया था। इनके पास न तो कोई सुरक्षा उपकरण थे, न कोई अन्य सामान। ऑक्सिजन की कमी के चलते इन दो कर्मचारियों की मौत हो गई। ज्यादा देर तक सीवर टैंक में रहना दोनों युवकों की मौत की वजह बना।
मंगलवार को ही लखनऊ की इस घटना से पहले रायबरेली शहर में मनिका रोड पर अमृत योजना के तहत निर्मित सीवर लाइन की सफाई के दौरान दो श्रमिकों की मौत हो गई। ये मैनहोल में सफाई करने के लिए उतरे थे। इस दौरान जहरीली गैस से वो बेहोश हो गए। सीवर से जब तक इन्हें निकाला गया तब तक इनकी मौत हो गई थी।
यह संयोग ही है कि दिल्ली में भी इसी दिन कुछ ऐसी ही घटना सामने आई। रोहिणी के सेक्टर १६ में सीवर लाइन में चार लोग फंस गए। ये चारों लापता हैं। माना जाता है कि इनमें से कोई भी जिंदा नहीं बचा है। ये दूरसंचार कंपनी के लिए वायरवर्क कर रहे थे। इस दौरान वो सीवर में फंस गए थे। बीते कुछ सालों में हाथ से नालों की सफाई करते हुए सैकड़ों लोगों ने जान गंवाई है।
मामले से जुड़े लोगों का मानना है कि सफाई के लिए आधुनिक मशीनों की सुविधाएं नहीं होने और ज्यादातर जगहों पर अनुबंध की व्यवस्था होने से सफाईकर्मियों की मौतें हो रही हैं। अनुबंध की स्थिति में सरकारें सफाईकर्मियों के हितों का उचित ध्यान नहीं रखती हैं। दिल्ली और हरियाणा जैसे कुछ राज्यों ने सीवर की सफाई के लिए मशीनों का इस्तेमाल शुरू किया है। हालांकि, ऐसी व्यवस्था पूरे देश में नहीं है। कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर केंद्र सरकार को फटकार भी लगाई थी। मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट २०१३ के तहत सीवर में सफाई के लिए किसी भी व्यक्ति को उतारना पूरी तरह गैर-कानूनी है। एक्ट में इस पर रोक का प्रावधान है। किसी खास स्थिति में अगर व्यक्ति को सीवर में उतारना ही पड़ जाए तो उसके लिए कई तरह के नियमों का पालन जरूरी है। मसलन, जो व्यक्ति सीवर की सफाई के लिए उतर रहा है, उसे ऑक्सिजन सिलेंडर, स्पेशल सूट, मास्क, सेफ्टी उपकरण इत्यादि देना जरूरी है। लेकिन इन नियमों को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया जाता है।