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'प्रॉफ़ेट फ़ॉर ऑल'- पैग़ंबर सबके लिए / डॉ. सैयद सलमान
Friday, September 13, 2024 11:52:13 AM - By सैयद सलमान

'प्रॉफ़ेट फ़ॉर ऑल' अभियान का उद्देश्य अपने हमवतन भाइयों तक मोहम्मद साहब के सही संदेशों को पहुंचाना है
साभार- दोपहर का सामना 13 04 2024

इस समय पूरे देश में गणेश उत्सव की धूम है। गणेश विसर्जन और ईद-ए-मिलाद-उन-नबी की तारीख़ों का लगभग एक साथ आना प्रशासन के लिए तनाव का कारण बना हुआ था। मुसलमानों ने गणेश भक्त हमवतन भाइयों की भावनाओं का ख़्याल रखते हुए ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के जुलुस की तारीख़ दो दिन बढ़ा दी। यानी १७ सितंबर को विसर्जन के अगले दिन १८ सितंबर को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का जुलुस विभिन्न क्षेत्रों में निकाला जाएगा। गणेश भक्तों सहित अनेक गणेश मंडलों और प्रशासन ने मुसलमानों की इस पहल को सकारात्मक क़दम बताते हुए इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। दरअसल यही पैग़ंबर मोहम्मद साहब की शिक्षा का सार है कि पूरे समाज की भावनाओं की क़द्र की जाए। पिछले कुछ वर्षों से मुस्लिम समाज के अनेक बुद्धिजीवी, उलेमा इस दिशा में काम कर रहे हैं। 'प्रॉफे़ट फ़ॉर ऑल' नाम से एक मुहिम चलाई जा रही है। पिछले दिनों उसकी एक महत्वपूर्ण बैठक में नाचीज़ भी आमंत्रित था, लेकिन किन्हीं अपरिहार्य कारणों से उपस्थिति दर्ज न करा पाने का अफ़सोस है। हां, यह देख-सुनकर ख़ुशी ज़रूर हुई कि सभी धर्मों के कई प्रतिष्ठित व्यक्ति इस बैठक में शामिल थे और पैग़ंबर मोहम्मद साहब के जीवन से जुड़ी बातों पर खुलकर चर्चा हुई। यहां उन नामों का उल्लेख टाल रहा हूँ। जब काम बड़ा हो तो नाम की कोई अहमियत नहीं रह जाती। एक अंदेशा यह भी होता कि किसी का नाम छूट जाए तो नाराज़गी होती है, और जिस पैग़ंबर मोहम्मद साहब के संदर्भ में यह मुहिम चल रही है, उनकी शख़्सियत में उच्च नैतिकता, सहिष्णुता, विनम्रता और दयालुता जैसी कई विशेषताएँ थीं। ऐसे में, परिवर्तन की शुरुआत अपने भीतर से होनी चाहिए।

'प्रॉफ़ेट फ़ॉर ऑल' अभियान का उद्देश्य अपने हमवतन भाइयों तक मोहम्मद साहब के सही संदेशों को पहुंचाना है। अर्थात उनके जीवन के व्यक्तिगत, सामूहिक और सामाजिक पहलुओं पर प्रकाश डाला जाए। उन्हें तथ्यों के साथ बताया जाए कि पैग़ंबर के आदेशों और निर्देशों का संबंध किसी जाति, रंग, नस्ल या धर्म की परवाह किए बिना संपूर्ण मानव समाज से है। अपने देश के मिश्रित समाज में सदियों से मुस्लिम समाज अपने हमवतन भाइयों के साथ मिलकर रह रहा है, लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि पैग़ंबर मोहम्मद साहब के जीवन के विभिन्न पहलुओं से उन्हें अवगत नहीं कराया गया। जबकि पैग़ंबर साहब को 'रहमतुल लिल आलमीन' (पूरी दुनिया के लिए रहमत) के रूप में संदर्भित करने का आधार पवित्र क़ुरआन की कई आयतों में मिलता है। उदाहरण के लिए, सूरह अल-अंबिया (अल-क़ुरआन- २१:१०७) "और हमने तुम्हें सारी दुनिया के लिए रहमत अर्थात दयालु बनाकर भेजा।" यह आयत स्पष्ट रूप से बताती है कि पैग़ंबर का उद्देश्य सभी मानव जाति में दया और करुणा फैलाना था। मोहम्मद साहब का संदेश पूरी मानवता के लिए था, न कि केवल अरब या मुसलमानों के लिए। उन्होंने एकेश्वरवाद और नैतिक जीवन जीने का संदेश दिया। यानी ईश्वर सबका एक है। उन्होंने अपने जीवन में सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता और सम्मान का उदाहरण पेश किया। उन्होंने ग़ैर-मुस्लिमों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व बनाए रखा। उनकी बैठकें मस्जिदों के अहाते में हुआ करती थीं। यानी मोहम्मद साहब ने मानवता के कल्याण के लिए अल्लाह द्वारा भेजा गया सार्वभौमिक संदेश दिया।

क़ुरआन और इस्लामी शिक्षा के आधार पर कहा जा सकता है कि मोहम्मद साहब के संदेश आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने ग़रीबों, कमज़ोरों और पीड़ितों के प्रति दया और सहानुभूति का संदेश देते हुए जाति, वर्ण और धर्म के भेदभाव को ख़त्म करके समानता का आदर्श स्थापित किया। समाज में सौहार्द और सद्भाव बना रहे इसके लिए उन्होंने नैतिक और आध्यात्मिक जीवन जीने का संदेश दिया। उन्होंने सच्चाई, ईमानदारी और त्याग जैसे मूल्यों पर ज़ोर दिया। इंसानियत ज़िंदा रखने के लिए आज के भौतिकवादी युग में इन मूल्यों का पालन करना महत्वपूर्ण है। मोहम्मद साहब ने शिक्षा को बहुत महत्व दिया। उन्होंने कहा कि ज्ञान हासिल करना प्रत्येक मुस्लिम पर फ़र्ज़ है। आज के युग में शिक्षा का महत्व और भी बढ़ गया है। उन्होंने सामाजिक न्याय स्थापित करने पर ज़ोर दिया। आज भी दुनिया में असमानता और अन्याय का सामना करना पड़ता है। एकता, नैतिकता, शिक्षा और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में मोहम्मद साहब की शिक्षा के मूल्यों को अपनाकर हम एक बेहतर और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।

आज के दौर में सांप्रदायिक शक्तियों ने सामाजिक समरसता बिगाड़ने की पूरी कोशिश की है, लेकिन बहुसंख्यक और मुस्लिम समाज के बीच प्रेम और भाईचारा बड़े पैमाने पर आज भी क़ायम है। हालांकि, युवाओं में बढ़ती नफ़रत चिंता का विषय है। मोहम्मद साहब के प्रति मनगढ़ंत कहानियों और झूठी अफ़वाहें फैलाकर उनकी छवि ख़राब करने की तमाम कोशिशों को नाकाम करने का यही तरीक़ा है कि, ग़ैर-मुस्लिमों को यह एहसास कराया जाए कि पैग़ंबर साहब उनके भी हैं। न सिर्फ़ उनके बल्कि सबके हैं। मुसलमानों ने क़ुरआन और मोहम्मद साहब को केवल अपने तक सीमित कर लिया है। जबकि, युवाओं के बीच विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं की शिक्षा का आदान-प्रदान होना चाहिए। इससे छात्रों के बीच विभिन्न पृष्ठभूमियों के प्रति सम्मान और सहनशीलता विकसित करने में मदद मिलेगी। समावेशी और सहिष्णु समाज का निर्माण करने के लिए बहुसांस्कृतिक सिद्धांतों के साथ मिलकर मोहम्मद साहब के संदेश को विभिन्न कार्यशालाओं के माध्यम से प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है। 'प्रॉफ़ेट फ़ॉर ऑल' अभियान के माध्यम से जीवन के सभी क्षेत्रों से मुसलमानों और ग़ैर-मुसलमानों को जोड़ने का प्रयास किया जा है। इस पहल का स्वागत होना चाहिए। ईद-ए-मिलाद-उन-नबी तभी सार्थक पर्व के रूप में उभर का सामने आएगा, वरना यह केवल एक राजनीतिक संतुष्टि का ज़रिया मात्र कहलाएगा।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)