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एनडीए में मुस्लिम आरक्षण का पेच / सैयद सलमान
Sunday, June 30, 2024 9:58:41 AM - By सैयद सलमान

मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा भाजपा के लिए आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में परेशानी का सबब बन रहा है
साभार - दोपहर का सामना 29 06 2024, शनिवार 

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र ने एनडीए को बुरी तरह झटका दिया। भाजपा की मुश्किलें अभी भी कम नहीं हुई हैं। ऐसा नहीं है कि केंद्र में सब कुछ ठीक चल रहा है। ४०० पार का नारा देकर २४० सीटों पर आ गई भाजपा को विपक्ष कड़ी चुनौती दे रहा है। प्रोटेम स्पीकर, स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर लोकतांत्रिक मर्यादाओं और परंपराओं को ठेंगा दिखाकर मनमानी कर ले गई भाजपा की छवि, जनता के बीच ख़राब हुई है। उस पर तुर्रा यह कि विपक्ष हर मुद्दे पर इस बार मुखर होकर अपनी आवाज़ उठा रहा है। मुस्लिम मुद्दों पर भी सरकार की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं। मुस्लिम विहीन मंत्रिमंडल के गठन के बाद इस सरकार पर मुसलमान चाहें भी तो भरोसा करने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन भाजपा की शर्मिंदगी मुसलमान नहीं, अब उसके सहयोगी ही बन सकते हैं। चंद्रबाबू नायडू और अजित पवार जैसे सहयोगी मुस्लिम मुद्दे पर अलग लाइन लेकर भाजपा को शर्मिंदगी पहुंचा रहे हैं।

मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा भाजपा के लिए आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में परेशानी का सबब बन रहा है। चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी का रुख़ साफ़ है कि आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण जारी रहेगा। चंद्रबाबू नायडू ने चुनाव में वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो मुसलमानों को ४ फ़ीसदी आरक्षण दिया जाएगा। महाराष्ट्र में भी मुस्लिम आरक्षण को लेकर चर्चा गर्म है। भाजपा के लिए यह मुद्दा परेशानी का कारण इसलिए है, क्योंकि उसने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मुस्लिम आरक्षण का खुलकर विरोध किया था। पीएम नरेंद्र मोदी ने भी विपक्ष पर मुस्लिम आरक्षण को लेकर लगभग हर रैली में हमला बोला था। उन्होंने यहां तक कहा था कि जब तक वह हैं, देश में मुसलमानों को आरक्षण नहीं देने देंगे। उन्होंने इसे ग़ैर क़ानूनी भी बताया था। अब जब टीडीपी ने एनडीए का समर्थन किया है और मुस्लिम आरक्षण जारी रखने की घोषणा की है, तो इस मुद्दे पर भाजपा की किरकिरी होना स्वाभाविक है। भाजपा को सत्ता के लिए स्वार्थी बताया जा रहा है। सत्ता में बने रहने के लिए टीडीपी उसकी मजबूरी है। अगर भाजपा अपने पिछले बयानों पर क़ायम रहती है, तो सहयोगी दलों से टकराव हो सकता है। वहीं अगर समझौता करके मुस्लिम आरक्षण को स्वीकार करती है तो अपने वोट बैंक को नाराज़ कर सकती है।

मुस्लिम आरक्षण को लेकर नीतीश कुमार ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन एक सांसद वाले भाजपा के सहयोगी अजित पवार ने मुस्लिम आरक्षण को लेकर अलग रुख़ अपनाया है। अजित पवार वाली एनसीपी की भूमिका साफ़ है, कि महाराष्ट्र में मुसलमानों को अलग से आरक्षण मिलना चाहिए। इससे पहले भी इस मुद्दे पर महायुति गठबंधन के अन्य नेताओं के बीच तीखी नोकझोंक हो चुकी है। माना जा रहा है कि अब इस मुद्दे पर अजित पवार और भाजपा के बीच मतभेद बढ़ सकते हैं। हालांकि इससे भाजपा की सेहत पर कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, लेकिन कोई सहयोगी अगर भाजपा से अलग लाइन लेता है तो यह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की छवि को धूमिल करेगा। अकाली दल, उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, तृणमूल कांग्रेस जैसी कई पार्टियां भाजपा के धोखे का शिकार हो चुकी हैं। इनमें से अधिकांश अब भाजपा के विरोध में हैं। हाल-फ़िलहाल में बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस भी भाजपा से धोखा खा चुकी हैं। अगला नंबर अजित पवार की एनसीपी का हो सकता है। ज़िद और अहंकार का यही आलम रहा तो नीतीश भी ठिकाने लगाए जा सकते हैं। क्योंकि नीतीश को भी उनकी पुरानी सोशलिस्ट छवि के कारण आज भी मुसलमानों के अच्छे-ख़ासे वोट मिलते हैं, इसलिए वह भी मुस्लिम मुद्दा ज़्यादा गर्म होने पर पलटी मार सकते हैं या भाजपा ख़ुद उनसे किनारा कर सकती है।

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव सर पर हैं। इस बीच मराठा आंदोलन का चेहरा बन चुके मनोज जरांगे पाटिल ने ख़ुद मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे को हवा दी है। मनोज जरांगे पाटिल की मांग है कि मुसलमानों को भी ओबीसी कोटा के तहत आरक्षण दिया जाना चाहिए। अपने दावों के समर्थन में पाटिल का तर्क है कि महाराष्ट्र में बहुत से ऐसे मुसलमान हैं जिनका उल्लेख कुनबी समुदाय के दस्तावेज़ों में है, इसलिए इन मुस्लिम किसानों को ओबीसी आरक्षण के तहत रखा जाए और उन्हें उनका जायज़ अधिकार मिले। जरांगे पाटिल का यह बयान मराठा आंदोलन के बीच ओबीसी समुदाय के लिए भी परेशानी का सबब माना जा रहा है। अब मुस्लिम आरक्षण की उठी अतिरिक्त मांग को लेकर मराठा, ओबीसी और मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ेगा जो वर्तमान धोखे से स्थापित महायुति सरकार को तो रुलाएगा ही, भाजपा के लिए भी बड़ा सर दर्द साबित होगा।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)