कला के अनेक रूप हैं अनेक प्रकार हैं. चित्रकारी से लेकर मूर्तिकारी, नृत्य से लेकर संगीत तक कला के भिन्न भिन्न रूप हैं।
जहाँ समय के साथ साथ कुछ कलाएं विकसित होती गयीं वहीं कई कलाएं समय की धारा में या तो विलुप्त हो गयीं या विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गयीं। ऐसी ही विलुप्त होने की कगार पर पहुँच चुकी कलाओं में से एक है "सुलेख " यानि कैलीग्राफी।
प्राचीन काल में कैलीग्राफी का बहुत महत्व था चाहे वह शाही फरमान हो या इतिहास का वर्णन, कैलीग्राफी के ही माध्यम से किया जाता था। पत्थरों और पशुओं की खाल से होते हुवे कैलीग्राफी ने बहुत लम्बा सफर तय किया है।
इसकी शुरुवात १३०० ईसा पूर्व में हुवी पर भारत में सम्राट अशोक के ज़माने में हुई। खालों और धातु के पत्तरों से होती हुई यह कला जब कागज़ तक पहुंची तब एक अच्छा खासा ठहराव आ गया, सदियों तक कागज़ पर ही कैलीग्राफी का काम होता रहा और यह माना जाने लगा की कैलीग्राफी का यह अंतिम पड़ाव है, क्योंकि यह अतिसुविधजनक था और आसानी से संभल कर रखा जा सकता था, कागज़ पर पक्षियों के परों को निब की तरह उपयोग किया गया फिर ब्रश, कैलीग्राफी निब और पेन द्वारा, जैसे जैसे समय बदला इस में बदलाव आते रहे और कैलीग्राफी ने विकराल रूप धारण कर लिया, टाइपिंग, साइन बोर्ड, शादी कार्ड, विजिटिंग कार्ड जैसे अनेक क्षेत्र का मूल आधार था कैलीग्राफी, चाहे वह साइन बोर्ड हो या शादी कार्ड, कलाकार ब्रश से या कैलीग्राफी पेन की सहायता से सुन्दर सुन्दर अक्षरों को खूबसूरती से नित नए रंगों से सजा देता।
आज भले ही कैलीग्राफी का कुछ खास महत्व न हो पर इस ने एक स्वर्णिम युग भी देखा है। कैलीग्राफी के लिए बहुत सधे हुए हाथों की ज़रूरत होती है। क्योंकि यह अत्यधिक एकाग्रता एवं संयम का काम है। इस में ज़रा सी भी चूक के लिए कोई स्थान नहीं है। चाहे कितने ही छोटे अक्षरों में लिखना हो पूरी एक पुस्तक लिखने पर भी कहीं एक भी शब्द में ज़रा भी अंतर नहीं होना चाहिए। आज हमारे पास साधन हैं और हम गलतियों को मिटा कर तुरंत ठीक कर सकते हैं पर पहले ऐसा नहीं था। हर अक्षर हर शब्द को हर बार लिखना पड़ता था।
मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को कैलीग्राफी से बहुत लगाव था, वे अरबी भाषा में खुद अपने हाथों से पूरा पवित्र क़ुरआन लिखा करते थे। कैलीग्राफी के अगले चरण में आया टाइप राइटर जिस से लिखने का काम कई गुना तेज़ हो गया पर टाइप राइटर की कुछ सीमायें थीं जैसे उस में एक ही फॉन्ट होता था और साइज भी एक ही होता था।
तब तक यह माना जाता था की हाथ की कैलीग्राफी का स्थान कोई नहीं ले सकता लेकिन यह धारणा तब टूट गयी जब कंप्यूटर का अविष्कार हुवा, कंप्यूटर के द्वारा न केवल टाइपिंग ही की जा सकती थी बल्कि अलग अलग फॉन्ट अलग अलग साइज के साथ और एक बार कंप्यूटर में टाइप कर लिया तो आप कभी भी और कितना भी प्रिंट निकाल सकते हैं, कंप्यूटर हर वह काम कर सकता था जो एक कॉलिग्राफर करता जैसे साइन बोर्ड, शादी कार्ड, विजिटिंग कार्ड इत्यादि वह भी अति उत्तम गुणवत्ता के साथ, इस प्रकार एक कला तेज़ी से विलुप्त होने के कगार पर बढ़ने लगी। हमारी आने वाली पीढ़ी तक सब कुछ इतना डिजिटल हो चूका होगा की उनको शायद ही पता होगा की किसी ज़माने में कैलीग्राफी नाम की भी कोई कला होती थी।