Wednesday, May 8, 2024

न्यूज़ अलर्ट
1) अक्षरा सिंह और अंशुमान राजपूत: भोजपुरी सिनेमा की मिली एक नयी जोड़ी .... 2) भारतीय मूल के मेयर उम्मीदवार लंदन को "अनुभवी सीईओ" की तरह चाहते हैं चलाना.... 3) अक्षय कुमार-टाइगर श्रॉफ की फिल्म का कलेक्शन पहुंचा 50 करोड़ रुपये के पार.... 4) यह कंपनी दे रही ‘दुखी’ होने पर 10 दिन की छुट्टी.... 5) 'अब तो आगे...', DC के खिलाफ जीत के बाद SRH कप्तान पैट कमिंस के बयान ने मचाया तूफान.... 6) गोलीबारी... ईवीएम में तोड़-फोड़ के बाद मणिपुर के 11 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान का फैसला.... 7) पीएम मोदी बोले- कांग्रेस ने "टेक सिटी" को "टैंकर सिटी" बनाया, सिद्धारमैया ने किया पलटवार....
आओ कुछ नया रचें
Thursday, September 17, 2015 - 12:00:00 AM - By लता सेठ

आओ कुछ नया रचें
लता सेठ
आओ कुछ नया रचें

'आओ कुछ नया रचें' इस शीर्षक को पढ़ कर आपके दिलो-दिमाग में अवश्य ये बात कौंध रही होगी कि ऐसा क्या है जिसे मैं या आप या हम सब मिलकर रच सकतें हैं?
चलिए इस सवाल का उत्तर देने से पहले कुछ सवाल -
क्या आप थक नहीं चुके हैं वही घिसे-पिटे लेख पढ़ कर जो मात्र विवादास्पद और साम्प्रदायिकता की बात करते हैं। लोग तो मनोरंजन संचार माध्यम, चलचित्र, धारावाहिक, इत्यादि को भी नहीं बख्श रहे।
क्या हमें कुछ नया पड़ने के लिए नहीं चाहिए जो जातीय रंगों की गंदगी से परे हो।
जिसमें एक गैंगरेप पीड़िता या एक बेटी के कत्ल पर सियासी रोटियां न सेंकी जाएँ। जिसमें किसी की सजाय-मौत पर आपके या मेरे नज़रिये पर चाट-मसाला डालकर चटकारे न लिए जाएँ।
इस प्रतिसपर्धात्मक संसार में अपने लक्ष्य को पाने की लालसा में अपने ही प्रियजनों पर कीचड़ उछालते हैं। अपनी छवि धूमिल न हो इसलिए अपनी ही बातों में विरोधाभास रखते हैं।
इन सबसे मेरा तात्पर्य ये कतई नहीं है कि हम भूल जाएँ देश में हो रहे अत्याचारों को, त्रासदियों को…
मत भूलिए, आवाज़ बुलंद कीजिये - किन्तु सकारात्मकता लाइए अपने विचारों में। जो पहले से ही पीड़ित है, आहत है, और कुरेद कर आप उसके ज़ख्मों पर मरहम नहीं लगा रहे, उन्हें सहला नहीं रहे बल्कि पल-पल याद दिला रहे हैं कि आप पीड़ित हैं।
एक-दूसरे पर कीचड मत फेंकिए, यह समस्याओं का हल नहीं। क्या सब मिलकर एक नयी राह नहीं ढूंढ सकते।
जानिये, तथाकथित आधुनिकता आपको कहाँ ले जा रही है - मात्र अराजकता की ओर। हृदय से आधुनिक बनें, विचारों में शालीनता लाएं - शुरुआत स्वयं से करें। स्वयं और मैं मिलकर 'हम' हो जाएँ। न पुरुष प्रधान, न नारी दीन - सभी समान, सबके समानाधिकार। अत्याचार को देख आँखें न मूंदें, जागृत रहें।
मात्र डिग्री हासिल कर पढे-लिखे न कहलायें, सही मायने में सुशिक्षित, सभ्य बनें। राजनीति, धर्म, लिंग-भेद, ऊँच-नीच इन सभी विचारों से हटकर एक बार सोचकर देखें आज हमारी आवश्यकता क्या है? इक्कीसवीं सदी में भी हम अपनी ज़रूरत के अनुसार आधुनिक हो रहे हैं।
अपने घर की बेटी छोटे वस्त्र पहने तो आधुनिक समाज और पड़ोसी की बेटी पहने तो अश्लील। आप सड़क पर चलते हुए कोल्ड-ड्रिंक की बोतल खाली कर के फेंक दें तो ' फिर क्या हुआ… चलता है… कोई और करे तो अनपढ़, गंवार, या फिर ब्लडी-इंडियन (कृपया मेरे कटु शब्दों को माफ़ करें) । कोई उस बोतल को उठकर कूड़े-दान में फेंक दे तो - इसी ने ‘’स्वच्छ भारत’’ का ठेका ले लिया है।
कितने विरोधाभास…
कितने मुखौटे…
ज़रूरत के अनुसार जो चेहरे पर फिट बैठे पहन लो। परन्तु, इन सब में आपका 'स्व' (खुद का) चेहरा कहाँ है। इन मुखौटों के पीछे कहीं वह लुप्त तो नहीं हो गया या यूँ कहें कि वह अपना अस्तित्व ही छोड़ कर चला गया हो। कहाँ ले जाएंगे ये मुखौटे हमें और इन मुखौटों पर ओढ़ी हुयी झूठी मुस्काने। कौन कब तक बहलेगा इनसे।
अपने नेताओं के विषय में बात मैं यहां करना नहीं चाहती, क्योंकि फिर कोई अंत नहीं…
सिलसिला चलता रहेगा।
बस अब गुज़ारिश है, सबसे पहले स्वयं से, फिर आप सबसे जागरूक बने, किन्तु कीचड़ न उछालें। बाहरी गंदगी को साफ़ करने से पहले भीतर की गंदगी को साफ़ करें। अपना अंतःकरण स्वच्छ करें। मिलकर चलें।
कभी-कभी छोटे-छोटे से किये हुए कर्म ही नया इतिहास रच देतें हैं।
सो आओ कुछ नया रचें।

- लता सेठ
दिल्ली
लेखिका ड्रीमलैंड पब्लिकेशन्स की सम्पादिका हैं