मार्च के आखिर से ही श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में प्रदर्शन जारी है। आजाद होने के बाद श्रीलंका में इस तरह की भीषण संकट पहली बार सामने आयी है। वहाँ के आम नागरिक परेशान होकर सड़कों पर उतर चुके हैं। बुनियादी जरूरतों के लिए भी लोगों को जंग लड़नी पड़ रही है। पेट्रोल डीजल की किल्लत ने सीधे तौर पर देश की अर्थव्यवस्था पर वार किया है। यहां के अधिकांश पेट्रोल पंपों में पेट्रोल-डीजल उपलब्ध नहीं है। आपको बात दें कि श्रीलंका के बाजार में लंका आईओसी की हिस्सेदारी एक तिहाई है, बाकी दो-तिहाई मार्केट पर सीलोन पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन का कब्जा है। श्रीलंका में पेट्रोल की कीमत में ९० फीसदी और डीजल की कीमत १३८ फीसदी बढ़ोत्तरी हो चुकी है।
श्रीलंका सरकारी आंकड़ों के मुताबिक में महंगाई की दर १७ फीसदी को भी पार कर चुकी है। ये पूरे दक्षिण एशिया के महंगाई का सबसे भयानक स्तर है। मार्च में श्रीलंका में १ डॉलर की कीमत २०१ श्रीलंकाई रुपये थी जो अब १६० श्रीलंकाई रुपये पर आ चुकी है। देश के सामने इस समय सबसे बड़ा मुद्दा आर्थिक संकट का है। लोगों सामान्य चीजें जैसे- तेल, गैस, दवाइयां, अंडे, चावल, आटा नहीं मिल रहे हैं। इन सभी के लिए वहाँ के आम नागरिक दूसरे देशों पर निर्भर है। इस आर्थिक संकट को लेकर लोगों में काफी निराशा है।
राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने ट्विटर पर प्रदर्शनकारियों से अपील करते हुए कहा की आप लोग जिस भी पार्टी के हों लेकिन शांत रहें और हिंसा रोक दें। उन्होंने कहा कि संवैधानिक जनादेश और आम सहमति के जरिए आर्थिक संकट को दूर करने के लिए सभी प्रयास किए जा रहा है।
श्रीलंका में कर्फ्यू लागू होने के बाद भी हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। मंगलवार को कोलंबो में प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास के पास कुछ आम लोगों ने एक शीर्ष श्रीलंकाई पुलिस अधिकारी के साथ मारपीट की और उनके वाहन में आग लगा दी थी। जिसके बाद भीड़ को तितर-बितर करने के लिए अधिकारी ने हवाई फायरिंग की थी.।
श्रीलंका में सोमवार को प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे द्वारा इस्तीफा दिए गया बावजूद इसके विरोध प्रदर्शन जारी है। सड़कों पर जारी हिंसक प्रदर्शन को रोकने के लिए रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को शूट ऑन साइट (देखते ही गोली मार देना) का आदेश जारी कर दिया है। खबर हैं कि इस भारी हिंसा में ८ लोगों की मौत हो गई है, जिसमें एक राजपक्षे की पार्टी के सांसद भी शामिल थे। श्रीलंका के इस बेहद खराब हालात को देखते हुए अब गृहयुद्ध की आशंका बढ़ती जा रही है। सरकार की मनमाने आर्थिक फैसले, सस्ते लोन, मुफ्त की स्कीम और करीब ५० बिलियन डॉलर के विदेशी कर्ज ने श्रीलंका को इस कगार पर पहुंचाया है। अब ये मुल्क कैसे उभरेगा, ये तो आने वाला वक्त ही बताएंगा।