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हज के नाम पर बंद हो सियासत ! / सैयद सलमान
Friday, July 22, 2022 8:58:30 AM - By सैयद सलमान

हज मुस्लिम समुदाय के पांच फ़र्ज़ में से एक है जिसकी अहमियत से हर कोई वाक़िफ़ है
साभार- दोपहर का सामना 22 07 2022

ईद-उल-अज़हा पर हज के लिए गए हाजियों का आख़िरी जत्था अभी लौटा नहीं है। हज का सफ़र लगभग ४० दिन का होता है। बड़ी संख्या में हाजी हज़रात अभी भी सऊदी अरब में हैं। कुछ मक्का में तो कुछ मदीना में हज के अपने बचे हुए अरकान पूरे कर रहे हैं। हज मुस्लिम समुदाय के पांच फ़र्ज़ में से एक है जिसकी अहमियत से हर कोई वाक़िफ़ है। पूरे विश्व की सरकारें बेहद संवेदनशीलता से हाजियों के इस वार्षिक कार्यक्रम पर अपनी नज़र रखती हैं और हर तरह की सेवाएं उपलब्ध करवाती हैं। हमारे देश की लोकतांत्रिक सरकारें भी इस मामले में बेहद सहिष्णुता से काम लेती रही हैं। लेकिन अभी जबकि हज यात्रा समाप्त भी नहीं हुई है वहीं दूसरी तरफ़ केंद्रीय हज कमिटी और हाजियों की समस्याओं को लेकर केंद्र सरकार पर उंगलियां उठनी शुरू हो गई हैं। हज कमिटी की अनियमितताओं और उसकी कार्यशैली को लेकर पिछले दिनों बड़े पैमाने पर आवाज़ उठाई गई। सवाल लगभग ३ साल बाद २०२२ में बनी राष्ट्रीय हज कमिटी पर भी उठ रहे हैं। उसे पूरी तरह से अनैतिक और अवैध बताया जा रहा है। हज अधिनियम, २००२ के अनुसार जल्द से जल्द राष्ट्रीय हज कमिटी का पूर्ण गठन किये जाने की मांग उठ रही है। सवालों के घेरे में केंद्र सरकार है, क्योंकि जिस हज कमिटी के १९ सदस्यों को वोट देने और चुनाव लड़ने का अधिकार है, वहां मनमर्ज़ी करते हुए पिछले दिनों केवल ८ सदस्यों में ही चुनाव करा लिया गया। पदाधिकारियों का ग़लत चयन भी एक विषय है। यह चुनाव नियमों के ख़िलाफ़ है। इसके अलावा नामित किये गए सदस्यों की योग्यता और अर्हता पर भी सवाल उठ रहे हैं।

हज यात्रियों की सुविधा के लिए कई संघर्ष किये गए। इन मुद्दों से जुड़े उत्तर प्रदेश राज्य हज कमिटी से राष्ट्रीय हज कमिटी के दो बार निर्वाचित सदस्य रहे और आल इंडिया सेवा समिति के पूर्व अध्यक्ष हाफ़िज़ नौशाद अहमद आज़मी ने इस सिलसिले में आवाज़ उठाई है। मुस्लिम समाज की तरफ़ से उसका स्वागत किया जा रहा है। दरअसल अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रहे मुख़्तार अब्बास नक़वी के इस्तीफ़े के बाद उनकी जगह अतिरिक्त पदभार संभाल रही स्मृति ईरानी को हज कमिटी से संबंधित कई मांगों से अवगत कराया गया है। पूर्व मंत्री की देखरेख में हुए कई निर्णय भी विवादित रहे हैं, जिन पर कार्रवाई की मांग उठ रही है। पूर्व मंत्री के पसंदीदा सदस्यों पर भी इल्ज़ाम लग रहे हैं। सुनियोजित षडयंत्र के तहत नागपुर, औरंगाबाद, कालीकट, इंदौर, भोपाल, जयपुर, रांची, गया, वाराणसी सहित १० शहरों से हज उड़ानें रद्द करने की बात भी सामने आई है। इस निर्णय से इन क्षेत्रों से हज को जाने वाले यात्रियों को भारी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में हज समिति के पुनर्गठन पर ज़ोर दिया जा रहा है, साथ ही जिन अच्छी परंपराओं को नष्ट कर दिया गया है, उन्हें हज यात्रियों के हित में शुरू करने पर जोर देने की मांग उठ रही है।

अब तक की यह परंपरा रही है कि देश के तीर्थयात्रियों का हज प्रशिक्षण कम से कम ८ अलग-अलग शहरों में होता था। यहां ज़िला स्तर के हज प्रशिक्षक लगभग शत-प्रतिशत भाग लेते थे, लेकिन अब उसमें कमी कर उसे केवल मुंबई तक सीमित कर दिया गया है। हज यात्रियों की समस्याओं पर हज कार्य योजना के तहत दिल्ली में अखिल भारतीय हज सम्मेलन होता था, जिसमें राज्य के अध्यक्ष, अधिकारी और संसद के मुस्लिम सदस्य अक्सर भाग लेते थे और समस्याओं पर खुली चर्चा होती थी। हज यात्रियों के लिए सभी प्रांतीय सरकारों का एक गेस्ट हाउस है, जिसमें उनके रहने के लिए भी कोई समस्या नहीं थी। इन सब सुविधाओं को भी रोक दिया गया है। यह भी आश्चर्य की बात है कि २००५ में प्रत्येक हाजी की ३ लाख रुपये की जो दुर्घटना बीमा योजना शुरू की गई थी वह आज १७ साल बाद भी केवल ३ लाख रुपये ही बरक़रार है। कम से कम इसे १० लाख तो किया ही जाना चाहिए। हज फ़ॉर्म को ऑनलाइन भरने का पिछली सरकार और पूर्व मंत्री द्वारा जमकर ढिंढोरा पीटा गया था। लेकिन विचारणीय प्रश्न यह है कि जब ज़मीनी स्तर पर देश की ६५ % आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, तो उन्हें इसके लिए मजबूर करना कितना सही है? ग्रामीण इलाकों में ऑफ़लाइन सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। देश भर से हजरों तीर्थयात्री ऐसे भी हैं, जिनके रिश्तेदार मक्का और जेद्दाह में रहते हैं। पहले, उन्हें भारत की हज कमिटी से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद अपना कवर नंबर भेजने की सुविधा थी। इस सुविधा से इन तीर्थयात्रियों को हज के दौरान रहने के लिए घर का भुगतान नहीं करना पड़ता था। यह सुविधा भी बंद कर दी गई है। अगर अभी से इन जैसी समस्याओं पर ध्यान दिया जाए तो २०२३ का हज प्रवास आरामदायक और सस्ता किया जा सकता है।

सवाल पूर्व मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी के कार्यकाल पर ज़्यादा उठ रहे हैं। उनके द्वारा हज कमिटी में नामित सदस्यों को भी ग़लत कोटे से नामित करने के आरोप लग रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला था कि हज सब्सिडी को २०२२ तक धीरे-धीरे समाप्त किया जाना चाहिए, लेकिन उसे अचानक २०१७ में समाप्त कर दिया गया। २०११ में ६८५ करोड़ रुपये की हज सब्सिडी का इस्तेमाल मुसलमानों की शिक्षा और सामाजिक कल्याण पर ख़र्च किया जा सकता था लेकिन उसकी कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई। यह स्पष्ट है कि देश का मुसलमान जानना चाहता है कि उनकी एक विशुद्ध धार्मिक संस्था का पैसा कैसे और कहां खर्च हुआ। हर दौर में हज हाउस जीर्णोद्धार का काम होता रहा है। लेकिन यह पूरी की पूरी सरकार अपनी ही प्रशंसा करने के रोग से ग्रस्त नज़र आती है। हज हाउस में जिस भी कमरे का जीर्णोद्धार किया गया, उसमें एक-दो पत्थर नहीं बल्कि कई पत्थर इस तरह रखे गए जहां मंत्री महोदय का नाम अंकित है। यही नहीं अफ़सोस की बात तो यह भी है कि मस्जिद के द्वार पर भी उन्हीं का नाम लिखा हुआ है। अगर यह परंपरा जारी रही तो एक दिन पूरे हज हाउस में मंत्रियों के नाम का पत्थर ही पत्थर होगा। कहां तो हज को पवित्र तीर्थ यात्रा और हाजियों की सेवा को पुण्य माना जाता है, कहां उसे अपने प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

हज सब्सिडी धीरे-धीरे ख़त्म किये जाने का निर्णय सुप्रीम कोर्ट का था। साथ ही यह भी तय हुआ था कि जब हज सब्सिडी पूरी तरह समाप्त हो जाएगी तब निधि का उपयोग शैक्षिक कार्यक्रमों पर, विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों और बच्चों के लिए किया जाएगा। सवाल यह है कि क्या इस दिशा में कोई ठोस शुरुआत हुई है? लगता तो नहीं है। राजनीतिक लाभ के लिये जनता के टैक्स के पैसे को तीर्थयात्रा में लुटाने का सिलसिला वैसे भी हर स्तर पर बंद होना चाहिए। उस पैसे को बुनियादी विकास, शिक्षा और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिये किया जाना देश के हित में ही होगा। मुस्लिम समाज को इससे शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में प्रगति मिलेगी। वैसे सब्सिडी के खेल को जब ख़त्म ही कर दिया गया है तो अब सरकार मुसलमानों की हज यात्रा को सुगम करने के लिये तमाम विकल्प मुहैया कराए ताकि वे सम्मानजनक ढंग से हज यात्रा को अंजाम दे सकें। राजनैतिक पदों पर बैठे व्यक्ति अगर इसके आड़े आते हों तो उसकी मुख़ालिफ़त हर स्तर पर होनी चाहिए।




(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)