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नफ़रत भरी फ़िज़ा नहीं, प्यार की बयार हो / सैयद सलमान
Friday, July 15, 2022 9:14:57 AM - By सैयद सलमान

देश की साझा संस्कृति एक-दूसरे के सुख-दुःख में हमेशा शामिल होना सिखाती है
साभार- दोपहर का सामना  15 07 2022 

देश भर में सांप्रदायिक तनाव से भरी ख़बरों की कोई कमी नहीं है। हर दिन कहीं ना कहीं से नफ़रत भरी ख़बरों का फ़्लैश होना जारी रहता है। अगर अख़बारों और टीवी मीडिया से ख़बर छूट गई तो सोशल मीडिया वाले ख़बरची तो ऐसी ख़बरों को मसालेदार बनाकर परोसने के लिए तैयार ही बैठे रहते हैं। लेकिन कुछ ख़बरों को पढ़कर-देखकर दिली सुकून मिलता है कि, अभी भी इंसानियत ने दम नहीं तोड़ा है। हर धर्म के मानने वालों में अब भी सहिष्णुता क़ायम है। उदाहरणतः सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए देशभर में मशहूर गुलाबी नगरी जयपुर से ऐसी ही एक ख़बर आई है। ईद-उल-अज़हा के दिन यहां मुस्लिम बहुल इलाके में एक ग़रीब हिंदू भाई की मौत हो गई थी। मुस्लिम समाज के लोगों तक कुछ दिनों से बीमार चल रहे शेखरपाल सिंह की मौत की सूचना पहुंची तो उन्होंने ईद की नमाज़ अदा करने के फ़ौरन बाद उनके अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू कर दीं। अपने त्योहार के सभी अहम काम छोड़कर लोग अर्थी को कंधा देने पहुंचे। क़ुर्बानी छोड़ श्मशान गए। वहां चिता पर लकड़ियां तक सजाईं और फिर हिंदू रीति-रिवाजों से उनका अंतिम संस्कार किया गया। क़रीब २ किलोमीटर की शवयात्रा में हिंदू-मुस्लिम की इस एकता को जिसने भी देखा, उसने तारीफ़ की। शेखरपाल सिंह का कोई रिश्तेदार वहां नहीं पहुंच पाया था, इसलिए कॉलोनी के लोगों ने ही पैसा जुटाकर शेखरपाल सिंह का अंतिम संस्कार कराया। यह ईद, ईद-उल-अज़हा या क़ुर्बानी वाली ईद के रूप में मनाई जाती है। इस्लाम में इस दिन क़ुर्बानी देना सुन्नत है। मुस्लिम समाज से जुड़े लोगों ने अपने हिंदू भाई के ग़म में शरीक होकर अपनी ख़ुशियों को क़ुर्बान कर त्योहार के मूल तत्व को सार्थक कर दिखाया। उन्होंने क़ुर्बानी से पहले इंसानियत और भाईचारे का कर्तव्य निभाया। इससे पहले भी जयपुर में कोविड के दौरान मुस्लिम समाज के लोगों ने बहुत से लोगों का अंतिम संस्कार करवाया था।

इस से मिलता जुलता वाक़या पटना स्थित राजा बाजार के समनपुरा में रहने वाले मोहम्मद अरमान के परिवार से जुड़ा है। इस परिवार ने कई सालों पहले एक हिंदू शख़्स रामदेव को अपने यहां नौकरी पर रखा था। रामदेव की उम्र तक़रीबन ७५ वर्ष थी और पिछले हफ़्ते उनकी मौत हो गई। मृतक का इस दुनिया में कोई सहारा नहीं था। ऐसे में उन्हें अपने घर पर रखकर इस मुस्लिम परिवार ने उन्हें सहारा भी दिया था। अब रामदेव को सहारा देने वाले इसी मुस्लिम समाज के परिवार ने उनकी मृत्यु पर हिंदू रीति-रिवाज से उनकी अर्थी को सजाया, कंधा दिया और फिर अंतिम संस्कार के लिए राम नाम सत्य बोलते हुए पटना के गंगा घाट तक ले गए। पटना के इस मुस्लिम परिवार ने पूरे विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार किया। देश के कुछ हिस्सों में जहां एक तरफ़ क़ौमी एकता को खंडित करने और माहौल बिगाड़ने की लगातार कोशिश हो रही है, वहीं जयपुर और पटना में आपसी एकता की इन घटनाओं ने पूरे देश के अमनपसंद लोगों का दिल जीत लिया।

श्रीराम की नगरी अयोध्या भी वर्षों विवादित रही। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर तेज़ी से तैयार हो रहा है। उसी राममंदिर निर्माण में अपरोक्ष रूप से हिंदू-मुस्लिम एकता की झलक देखने को मिलेगी। मंदिर निर्माण की ऐसी संरचना की गई है कि मंदिर के गर्भगृह में १४ दरवाज़े होंगे। ये दरवाज़े लकड़ियों के होंगे। इसके लिए बहराइच और गोंडा के मनकापुर से शीशम, सागौन और साखू की लकड़ियां मंगाई गई हैं। इन्हीं दरवाज़ों पर मकराना मार्बल से चौखट और बाज़ू बनाए जा रहे हैं। ख़ास बात ये है कि इनकी नक़्क़ाशी मुस्लिम कारीगर कर रहे हैं। मंदिर के चौखट राममंदिर कार्यशाला में लाए जा चुके हैं। इन्हीं पत्थरों से मंदिर के गर्भग्रह के सभी द्वार की चौखट बाज़ू बनाए जाएंगे। मकराना के मार्बल पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। अयोध्या ही नहीं देश के अलग-अलग कोनों में निर्माणाधीन अनेक मंदिरों में लगने वाले पत्थरों की कारीगरी मुस्लिम समाज के कारीगर करते आए हैं। पत्थरों की नक़्क़ाशी और कारीगरी में उन्हें महारत हासिल है। मकराना के जिन पत्थरों की नक़्क़ाशी का काम जिस फ़र्म को दिया गया है वो मुस्लिम फ़र्म है। बताते हैं जब इस मुस्लिम फ़र्म को मंदिर की नक़्क़ाशी का काम मिला तो फ़र्म के मालिक और कारीगर बेहद ख़ुश हुए। यह एक संकेत है कि, बीती बातें भूलकर देश आगे बढ़ने की वकालत कर रहा है। देश का नया तबक़ा विवादों को परे रखकर नए राष्ट्र का निर्माण करना चाहता है।

आइए अब बात कर लेते हैं मेरठ की, जहां 'सावन महोत्सव २०२२' को लेकर सामाजिक सौहार्द्र का अनोखा उदाहरण देखने को मिल रहा है। यहां पर हिंदू और मुस्लिम समाज के युवा मिलकर कांवड़ तैयार कर रहे हैं। पिछले कई सालों से मेरठ के कई इलाक़ों में दोनों संप्रदाय के युवकों की ओर से मिल-जुलकर कांवड़ बनाई जाती है। यह कांवड़ पूरे मोहल्ले की होती है। मोहल्ले वालों का कहना है कि कांवड़ बनाना उनके लिए आस्था का मामला है, इसलिए इसके निर्माण के लिए क़ीमत नहीं देखी जाती। सभी लोग आपस में मिलजुल कर इसके लिए ज़रूरी सामान एकत्रित कर लेते हैं। कांवड़ का ढांचा तैयार करने के लिए बांस और लोहे के तार का इस्तेमाल किया जाता है। इस बार भी बांस की सजावट के लिए गुलाबी कपड़ा, गोटा, किरन और रंग बिरंगी लेस का प्रयोग किया जाएगा। इस काम में मुस्लिम कारीगरों के काम का लोहा हर कोई मानता है। मुस्लिम बिरादरी के लोग भी इसे बिना किसी भेदभाव के तैयार करते हैं। यह उनके लिए अपनी तरफ़ से हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देने का बेहतरीन ज़रिया बन जाता है। हिंदू भाई भी बिना किसी भेदभाव के मुस्लिम भाइयों की कारीगरी को सम्मान देते हुए उनसे कांवड़ बनवाने में नहीं हिचकिचाते। मेरठ ही क्यों देश के कई कोनों से निकलने वाली कांवड़ के निर्माण में मुस्लिम हाथ बंटाते हैं।

अब शायद ऐसी बातों को महत्व देने की ज़रूरत है। पिछले दिनों सत्तारूढ़ भाजपा के प्रवक्ताओं द्वारा पैग़ंबर मोहम्मद साहब के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने के बाद भारत को अंतरराष्ट्रीय आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ा था। खाड़ी देशों सहित अनेक मुस्लिम देशों ने उन बयानों की निंदा करते हुए सरकार से आधिकारिक माफ़ी की मांग की थी। भाजपा ने पार्टी के अपने दोनों प्रवक्ताओं से ख़ुद को अलग करते हुए उन्हें 'फ्रिंज तत्व' कहा था। उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की गई। इन ख़बरों को खूब उछाला गया लेकिन न जाने क्यों जयपुर, पटना, अयोध्या और मेरठ जैसी एकता से लबरेज़ ख़बरें सोशल मीडिया की ज़ीनत नहीं बन पातीं ना राष्ट्रीय चैनलों में इन्हें प्राथमिकता दी जाती है। वहां तो बस लड़ने-लड़ाने को ही प्राथमिकता दी जाती है। देश की साझा संस्कृति एक-दूसरे के सुख-दुःख में हमेशा शामिल होना सिखाती है। देश और कई प्रदेश के बिगड़े हालात के बीच जयपुर, पटना, अयोध्या और मेरठ यह संदेश देना चाहता है कि देश में एकता और भाईचारा से बढ़कर कोई चीज़ नहीं है। सामाजिक व्यवस्था के साथ-साथ देश को मज़बूत करना और गंगा-जमुनी तहज़ीब को ज़िंदा रखना इस देश का मूल स्वभाव है। हमारा देश पूरे विश्व में अनेकता में एकता की शक्तिशाली मिसाल है। उसे क़ायम रखना सबकी ज़िम्मेदारी है। समाज में जिन लोगों का भी बड़ा सम्मान है और लोगों पर उनका भरोसा अटल है, उन्हें आगे आना चाहिए और नफ़रत फैलाने वालों पर अंकुश लगाना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले इंटरनेट मीडिया पर अनावश्यक पोस्ट से दूर रहना होगा। यह प्रण लेना होगा कि न ही अफ़वाह फैलाएंगे और न ही फैलने देंगे। फिर देखिए, देश की नफ़रत भरी फ़िज़ा कैसे तेज़ी से बदलकर प्यार की बयार में तब्दील होती है।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)