Saturday, April 27, 2024

न्यूज़ अलर्ट
1) अक्षरा सिंह और अंशुमान राजपूत: भोजपुरी सिनेमा की मिली एक नयी जोड़ी .... 2) भारतीय मूल के मेयर उम्मीदवार लंदन को "अनुभवी सीईओ" की तरह चाहते हैं चलाना.... 3) अक्षय कुमार-टाइगर श्रॉफ की फिल्म का कलेक्शन पहुंचा 50 करोड़ रुपये के पार.... 4) यह कंपनी दे रही ‘दुखी’ होने पर 10 दिन की छुट्टी.... 5) 'अब तो आगे...', DC के खिलाफ जीत के बाद SRH कप्तान पैट कमिंस के बयान ने मचाया तूफान.... 6) गोलीबारी... ईवीएम में तोड़-फोड़ के बाद मणिपुर के 11 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान का फैसला.... 7) पीएम मोदी बोले- कांग्रेस ने "टेक सिटी" को "टैंकर सिटी" बनाया, सिद्धारमैया ने किया पलटवार....
सीएए पर गरमाई सियासत / सैयद सलमान
Saturday, March 16, 2024 - 11:41:13 AM - By सैयद सलमान

सीएए पर गरमाई सियासत / सैयद सलमान
सीएए का मुद्दा देश की जनता को बांटने और मुख्य मुद्दों से भटकाने का सोचा-समझा प्रयास है
साभार- दोपहर का सामना 15 03 2024

लोकसभा के चुनाव अप्रैल-मई में होने हैं। चुनावी वर्ष है सो शग़ूफ़े छोड़ने का सिलसिला भी जारी है। जैसी कि उम्मीद थी, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिक संशोधन क़ानून (सीएए) की अधिसूचना जारी कर दी है। अब इस नियम के तहत सरकार दिसंबर २०१४ तक तीन देशों के प्रताड़ित ग़ैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देना शुरू कर देगी। केंद्र सरकार द्वारा क़ानून लागू किये जाने के बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से आए प्रताड़ित ग़ैर-मुस्लिम प्रवासियों यानी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाइयों को इसका लाभ मिलना शुरू हो जाएगा। जब सीएए क़ानून पास हुआ था तब मुस्लिम समाज से जुड़े कई संगठनों ने जमकर हंगामा किया था। देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए। अब सीएए क़ानून लागू होने के बाद एक बार फिर मुस्लिम समाज और उनसे जुड़े कई संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। कई मुस्लिम नेताओं की ओर से इस क़ानून के ख़िलाफ़ बयान आने शुरू हो गए हैं। मुस्लिम समाज का मानना है कि इस क़ानून से मुस्लिमों को बाहर रखना, समानता के अधिकारों का उल्लंघन है। इससे देश की एकता और अखंडता को नुक़सान पहुंचेगा। मुस्लिम समाज को डर है कि सीएए के बहाने उन्हें प्रताड़ित किया जा सकता है।

ग़ौरतलब है कि सीएए क़ानून दिसंबर २०१९ में पारित हुआ था और इसे राष्ट्रपति की मंज़ूरी भी मिल गई थी। सरकार ने क़ानून पास करा लिया था तो इसे कभी न कभी तो लागू करना ही था। लेकिन सरकार ने अभी तक क़ानून को जानबूझकर अधिसूचित नहीं किया था। अब विपक्ष क़ानून को मंज़ूरी देने की टाइमिंग पर सवाल उठा रहा है, जो उचित भी है। दरअसल इस क़ानून पर जितना मुस्लिम समाज की तरफ़ से विरोध होगा, सरकार या यूँ कहा जाए कि भाजपा को फ़ायदा ही होगा। इस बात को भाजपा जानती है और यही उसकी रणनीति भी है। अब तो मामला देश की सबसे बड़ी अदालत तक पहुंच गया है। सीएए अधिसूचना के क्रियान्वयन के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में एआईएमएल की तरफ से याचिका दायर की गई है। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि धार्मिक पहचान के आधार पर वर्गीकरण करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद १४ और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का उल्लंघन है। इसके अलावा, अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली सुप्रीम कोर्ट में लंबित लगभग २५० याचिकाओं पर अभी तक निर्णय नहीं लिया गया है। सरकार चलाने की भी एक नैतिकता होती है। इस नैतिकता के अनुसार, अगर मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है तो सरकार को सीएए क़ानून को अधिसूचित करने से बचना चाहिए था। लेकिन सरकार से नैतिकता की उम्मीद करना बेमानी है। पिछले दस सालों में अनैतिकता के जो कीर्तिमान स्थापित हुए हैं, उनकी मिसाल शायद ही कहीं और मिले।

आख़िर वो कौन से कारण थे जिनकी वजह से सरकार ने ४ साल तक इस क़ानून को लागू करना ज़रूरी नहीं समझा? ध्रुवीकरण के लिहाज से यह मुद्दा चुनाव प्रचार के लिए सबसे मुफ़ीद था। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में सीएए लागू करने का वादा भाजपा के लिए बड़ा चुनावी मुद्दा था। भाजपा की सोच है कि सीएए उसके हिंदू राष्ट्रवाद के एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है और हिंदू मतदाताओं का पार्टी की ओर ध्रुवीकरण कर सकता है। मुसलमानों का विरोध इसमें और तड़का लगाएगा। विपक्ष भी जितना विरोध करेगा, भाजपा उतना प्रचार करेगी कि विपक्ष हिंदू विरोधी है और मुसलमानों को ख़ुश करने के लिए इस क़ानून का विरोध किया जा रहा है। हालांकि विपक्ष इस बात को ज़्यादा ज़ोरदार तरीक़े से उछाल सकती है कि तीन देशों के ग़ैर-मुस्लिमों को यहां की नागरिकता देने पर जितना ज़ोर सरकार दे रही है, उतना ज़ोर विदेशों में जाकर बसने वालों को रोकने में क्यों नहीं लगा रही? मोदी सरकार के २ कार्यकाल में लगभग १४ लाख लोगों ने यहाँ की नागरिकता छोड़ी है, और विदेशों में बसने को प्राथमिकता दी है। क्या सरकार से संतुष्ट व्यक्ति अपना देश छोड़कर कहीं अन्यत्र बसने की सोच भी सकता है? मुसलमानों को भी इस मुद्दे पर आक्रामकता से नहीं, हिकमत से काम लेना चाहिए। उनकी आक्रामकता ही भाजपा को खाद-पानी देती है। आक्रामकता से प्रचार तो भाजपा कर रही है। इस से समझ में आ जाना चाहिए कि उसके मन में सीएए का लाभ लेने की मंशा है। दूसरी पंक्ति के भाजपा नेताओं और पेड ट्रोलरों के लगातार दुष्प्रचार और भड़काऊ भाषणों की वजह से मुसलमानों में डर पैदा हो रहा है, लेकिन सच यह भी है कि इस देश का बड़ा वर्ग आज भी मुसलमानों के साथ खड़ा है। स्पष्ट है कि यह मुद्दा केवल देश की जनता को बांटने और मुख्य मुद्दों से भटकाने का सोचा-समझा प्रयास है।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)