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अध्यात्म की धारा
Thursday, March 14, 2019 - 11:30:10 AM - By न्यूज़ डेस्क

अध्यात्म की धारा
प्रतीकात्मक तस्वीर

आज के तकनीकी और विकासशील युग में 'अध्यात्म' की क्या सार्थकता है? अध्यात्म शब्द का प्रयोग मुख्यत: दर्शन शास्त्र, धर्म विज्ञान, तंत्र शास्त्र और ब्रह्मविद्या जैसे ज्ञान क्षेत्रों में अधिक किया जाता है, जो भौतिक विज्ञान की तुलना में अधिक गूढ़, अस्पष्ट व रहस्यमय माने जाते हैं। अध्यात्म मानव का स्वरूप बदल रहा है वह दरिंदा बनाता जा रहा है। लोभ, भ्रष्टाचार तथा पाप इसी लिए बढ़ रहा है क्योंकि मनुष्य अपने कर्तव्यों से विमुख हो रहा है। रोज-रोज जो घटनाएं सुनने को मिल रही हैं उसका कारण यही है कि लोग धर्म से दूर हो रहे हैं। अध्यात्म की शरण में आने से ही मानव का कल्याण हो सकता है।

समाज में हो रही दरिंदगी की घटनाएं मानव के ओछी मानसिकता का परिचायक हैं। अगर हमारे देश में धर्म पर आधारित संस्कृति और परंपराओं को लागू किया जाय तो मानव में परिवर्तन हो सकता है। आज के समय में हर ओर धर्म की स्थापना करना आवश्यक हो गया है। समाज में परिवर्तन के लिए धार्मिक लोगों की जरूरत है। व्यक्ति के अंदर अध्यात्म आ जाने के बाद वह समभाव हो जाता है। इस तत्व को जान लेने के बाद मानव के भीतर सोई सकारात्मक उर्जा जाती है। इसके बाद फिर उसकी सीरत ही बदल जाती है। इस संसार से मोक्षदायी मुक्ति ही मानव जीवन का उद्देश्य है। इसके लिए एक मात्र साधन है अपने एकात्म इष्ट के सामने संपूर्ण समर्पण। गीता में भगवान ने अर्जुन से कहा है कि मुझे प्राप्त हो कर मानव का फिर से जन्म नहीं होता। वह शाश्वत, सदा रहने वाला स्थान परमधाम को पा जाता है।

प्रश्न है कि आध्यात्मिक शक्ति अर्थात ब्रह्म को समझ में आने योग्य कैसे बनाया जा सकता है तथा इस अव्यक्त अंतरमुखी अध्यात्म भाव को सरल सहज और जनसाधारण के व्यवहार के लायक एवं बहिर्मुखी किस प्रकार बनाया जा सकता है। यों तो यह दुष्कर कार्य है इसीलिए सूरदास कहते हैं कि इस अव्यक्त की गति कहने में नहीं आती।