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हज, कोरोना और नीयत- संकट में साथ, सच्ची इबादत / सैयद सलमान
Friday, June 26, 2020 11:58:43 AM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 26 06 2020

आख़िरकार हज की प्रतीक्षा कर रहे लाखों मुस्लिम तीर्थयात्रियों को जिस बात का अंदेशा था, उसकी घोषणा सऊदी अरब सरकार की तरफ़ से कर दी गई। हर मुसलमान की तमन्ना हज करने की होती है, लेकिन कोविड-१९ के कारण इस साल यह मुमकिन नहीं हो सकेगा। सऊदी अरब ने घोषणा की है कि इस साल हज को रद्द तो नहीं किया जाएगा, लेकिन कुछ प्रतिबंध ज़रूर लगाए जाएंगे जिसके अंतर्गत केवल स्थानीय लोग ही हज अदा कर सकेंगे। सऊदी अरब सल्तनत ने घोषणा की है कि वह विभिन्न देशों के केवल उन्‍हीं लोगों को हज में शामिल होने की अनुमति मिलेगी जो पहले से ही मुल्‍क में रह रहे हैं। इसके लिए कुछ शर्तों को मानने के साथ ही नियमों का सही से पालन करना होगा। सऊदी अरब सरकार के इस बड़े ऐलान के बाद यह तय हो गया है कि भारत से भी कोई श्रद्धालु हज यात्रा पर सऊदी अरब नहीं जा सकेगा। इस साल हज जुलाई के आख़िर में शुरू होना था। भारत से इस वर्ष २,३०,००० से ज्यादा मुसलमानों ने हज यात्रा के लिए आवेदन किया है। केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने घोषणा की है कि सभी का पैसा बिना किसी कटौती के नकद हस्तांतरण के ज़रिए वापस कर दिया जाएगा। इस बीच भारत के अलावा कई ऐसे देश भी हैं जिन्होंने कोरोना के चलते अपने नागरिकों के हज पर प्रतिबंध लगा दिया है। इन देशों में इंडोनेशिया, मलेशिया, न्यूज़ीलैंड, कनाडा जैसे देश शामिल हैं। बता दें कि २०१९ में एक करोड़ नब्बे लाख मुसलमानों ने उमरा और छब्बीस लाख मुसलमानों ने हज अदा किया था।

सऊदी हुकूमत द्वारा इस प्रकार की घोषणा की इसलिए भी उम्मीद की जा रही थी क्योंकि वर्तमान में परिस्थितियां हज जैसे कर्तव्य को निभाने के लिए बिलकुल अनुकूल नहीं हैं। जहां दुनिया के हर क्षेत्र के लाखों लोग इकट्ठा होते हैं उस स्थान पर सोशल डिस्टेंसिंग रख पाना तक़रीबन नामुमकिन होगा जिस से संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाएगा। यह घटना मुस्लिम उम्मत के लिए कितनी ही दुःखद क्यों न हो, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब हज न हुआ हो या प्रतिबंधित नहीं किया गया हो। इतिहास के पन्नों की छानबीन करने पर यह तथ्य सामने आया कि इस से पहले भी हज यात्रा बाधित चुकी हैं। सऊदी अरब के अब्दुल अज़ीज़ केंद्र के अनुसार, इतिहास में कमोबेश ४० मौक़े ऐसे आए हैं जब हज प्रभावित हुआ है। इसके कारणों में महामारी, युद्ध और क्षेत्रीय अस्थिरता प्रमुख हैं।

सऊदी अरब के किंग अब्दुल अज़ीज़ सेंटर के अनुसार पहली घटना सन् ८६५ की है जब इस्माइल इब्न यूसुफ़ अलावी ने ऐन हज के दौरान तीर्थयात्रियों पर हमला कर सैकड़ों हाजियों का क़त्ल कर दिया था, जिसके कारण हज को रोक दिया गया था। घटना को ‘अराफ़ात नरसंहार’ के नाम से अब भी याद किया जाता है। एक घटना ९३० में घटित हुई थी जब क़रामतियों ने न केवल हज को जबरन रोका, बल्कि बड़ी संख्या में हजयात्रियों का क़त्ल-ए-आम किया और काबा शरीफ़ में रखे पवित्र पत्थर ‘हज्रे अस्वद’ को उखाड़ कर अपने वतन ले गए। इस घटना का विवरण दौरे उस्मानिया के एक प्रसिद्ध इतिहासकार क़ुतुबुद्दीन द्वारा बयान किया गया है। दरअसल उस दौर में क़रामती एक ऐसा संप्रदाय था जिनकी मान्यताएं केंद्रीय इस्लाम के दायरे से बहुत दूर थीं। क़रामती धार्मिक रूप से इस्माइली शिया थे जो अपने समय के आत्मघाती हमलावर थे और गुरिल्ला युद्ध में कुशल माने जाते थे। इस संप्रदाय से संबंधित एक सरदार अबू ताहिर अल-जनाबी ने बहरीन के शहर हजर जिसे अब ​क़तीफ़ नाम से जाना जाता है, वहां एक इमारत का निर्माण किया और उसका नाम दार-अल-हिजरा रखा। अबू ताहिर का उद्देश्य था कि लोग मक्का जाकर हज करना छोड़ दें और उसके बजाय दार-अल-हिजरा आना शुरू करें ताकि वह ​ख़ुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा शासक स्थापित कर सके। इस उद्देश्य के लिए उसने अपनी सेना के साथ मक्का की ओर कूच किया और हज के पहले ही दिन अपने सशस्त्र सैनिकों के साथ घोड़े पर सवार होकर हरम में प्रवेश किया और सैनिकों को आज्ञा दी कि वे परिक्रमा करते हुए हजयात्रियों को ​क़​त्ल कर दें। उसकी फ़ौज ने हजयात्रियों की लाशों से आब-ए-​ज़​म ​ज़​म का कुआं पाट दिया।

इतिहासकार लिखते हैं कि इस नरसंहार में लगभग ३०,००० हजयात्री मारे गए थे। ऐसे में कई वर्षों तक हजयात्रा निलंबित रही। उस दौर के उस दुर्दांत आतंकी अबू ताहिर का यह जुमला कुख्यात था कि, ‘​ख़ुदा पैदा करता है और मैं मारता हूं।’ अंत में, जब अबू ताहिर की चेचक से मृत्यु हो गई तब उसके उत्तराधिकारी, सनबर इब्न अल-हसन ​क़​रामती ने २० मई, ९५१ को हज्रे अस्वद को मक्का लाकर मक्का के शासक, जा​फ़​र मुहम्मद इब्न अब्दुल ​अज़ीज़ को सौंप दिया। ​हज़ारों लोगों की मौजूदगी में हसन इब्न अल-​मरज़ूक़ नामक एक वास्तुकार ने हज्रे अस्वद को उसके पुराने स्थान पर स्थापित कर दिया। सनबर ने तब कहा था ‘हम इसे ​ख़ुदा की ता​क़​त से ले गए थे और उसी की इच्छा से इसे वापस कर रहे हैं।’ २१ वर्षों तक हज्रे अस्वद अबू ताहिर के ​क़ब्ज़े में रहा। हालांकि अबू ताहिर को उम्मीद थी कि लोग हज करने के लिए उसके शहर में आएंगे लेकिन मुसलमानों ने ​ख़ाना-ए-काबा जाना जारी रखा और हज्रे अस्वद की खाली जगह को चूमकर ही हज के इस अहम ​फ़रीज़े को पूरा करते रहे।

मलिक अब्दुल अज़ीज़ सेंटर के अनुसार इन दो वा​क़​यों के अलावा ९६७ में सऊदी अरब के हिजाज़​ क्षेत्र में प्लेग फैला गया था जिससे बड़े पैमाने पर मौतें हुई थीं। फैलती माहमारी को देखते हुए उस वर्ष हज को रद्द करना पड़ा था। ९८३ से ९९१ के बीच अब्बासी और फ़ाति​मी​ ​ख़लीफ़ा के बीच लड़ाई के दौरान भी हज यात्रा निलंबित की जा चुकी है। अब्बासियों का इराक़​ और सीरिया पर शासन था जबकि फ़तिमियों ने मिस्र पर शासन किया था जिन्होंने ८ साल के लिए हज रोक दिया था। उसके बाद भी, सऊदी अरब में सरकारी अस्थिरता, हैजा, प्लेग, प्राकृतिक आपदा या फिर हुकूमत के आदेशों जैसी अनेक घटनाओं और कारणों से हज नहीं किया जा सका, या बहुत सीमित पैमाने पर हज की अनुमति दी गई।

इस साल जबकि दुनिया में कोरोना वायरस ने एक महामारी का रूप लेकर पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है तब सऊदी सरकार का यह ​फ़ैसला सही ही कहा जाएगा। पूरे विश्व के ९० लाख से अधिक लोग कोरोना वायरस की चपेट में हैं। सऊदी अरब भी इस महामारी से अछूता नहीं रहा है। सऊदी अरब में हर रोज कोरोना वायरस के नए ​मरीज़ों का ​इज़ाफ़ा हो रहा है। सऊदी अरब में अब तक १,६१,००० कोरोना ​मरीज़ों​ की पुष्टि हो चुकी है। यहां पर अब तक १३०७ लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है। सऊदी हुकूमत ने लॉकडाउन लगाकर संक्रमण रोकने का प्रयास किया जिसमें कुछ हद तक कामयाबी मिली थी। कुछ अरसे के लिए लॉकडाउन हटाया भी गया लेकिन अचानक से दोबारा संक्रमितों की संख्या बढ़ने से सऊदी अरब में फिर से कई इलाकों में लॉकडाउन लगाना पड़ा। ऐसे में हज यात्रा के लिए विश्व भर से आए हज यात्रियों में कोरोना वायरस बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किय जा सकता। अन्य देश भी नहीं चाहेंगे कि उनके देशवासी हजयात्रा पर जाकर संक्रमण फैलने का कारण बनें या वहां से संक्रमित होकर वापस लौटें। सबसे बड़ी बात कि दीन-ए-इस्लाम भी इसकी इजाज़त नहीं देता कि अवाम की ​ज़िंदगियों को मौत के मुंह में झोंका जाए। ​क़ुरआन​ की एक आयत का तर्जुमा है, ‘अपने हाथ अपनी जान हलाकत मे न डालो।’ (अल-​क़ुरआन २:१९५) ऐसे में हज यात्रा को निलंबित किया जाना इस्लामी नज़रिये से भी ​ग़​लत नहीं है। बस, इस बात को आम मुसलमानों को समझना होगा। वैसे भी इस्लाम में ‘नीयत कर लेने’ को महत्व दिया गया है। जिन मुसलमानों को हज पर जाने की ख़्वाहिश थी, उनकी नीयत ​क़ुबूल हुई होगी ऐसा दृढ़ विश्वास होना चाहिए। महामारी का यह ​वक़्त भी कभी न कभी बीत ही जाएगा। मुस्लिम समाज के लिए यह ​ज़​रूरी है कि उसे मायूस नहीं होना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले वर्ष फिर पूरे जोश और श्रद्धा के साथ श्रद्धालु हजयात्रा पर जा सकेंगे। तब तक घरों में रहकर अन्य इबादतें करते रहना ही समय की मांग है। मुस्लिम समाज को इस विषय पर पूरे विश्व के साथ खड़ा रहना ही होगा। संकट के समय परेशान हाल विश्व के साथ खड़ा होना भी किसी इबादत से कम नहीं है।