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"मुश्किल" से मिला वरदान
Sunday, August 4, 2019 3:55:10 AM - By जावेद अहमद

वरदान सिंह संगीतकार
बात है, 1983 की, उत्तर प्रदेश के जौनपुर में एक व्यवसायी परिवार रहता था,खुशहाल परिवार था, 19 मई को इस परिवार में एक पुत्र का जन्म हुआ, नाम रखा गया, वरदान सिंह.
कहते है, दूध के पावँ पालने में ही दिख जाते है,बच्चा जब सिर्फ दो साल का था, तभी संगीत की धुन जैसे ही उसके कान में पड़ती, वो खिल उठता था, मानो दुनियां की सारी खुशियाँ उसे मिल गयीं, परिवार को लगा, बच्चों में संगीत का आकर्षण होता है, शायद उसका असर है, लेकिन ऐसा नही था, जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता गया, संगीत का जादू उसके सर चढ़ कर बोलने लगा, और वरदान गाने भी लगा, हर वक़्त गुनगुनाता रहता था, आवाज़ अच्छी थी, लेकिन परिवार को उम्मीद थीं की बेटा पढ़ लिख कर बिजनेस संभालेगा या फिर कोई सरकारी अफसर बनेगा...लेकिन वरदान में ऐसे कोई लक्षण नही दिख रहे थे।समझाया गया की "बेटा ये अपने खानदान का काम नही है"
लेकिन वरदान को कहां समझ आने वाला था, उसे संगीत से प्यार हो गया था, परिवार ने वरदान को लखनऊ भेजने का फैसला किया, फूफा जी के पास, फूफा जी का लाडला भी था, परिवार को लगा लखनऊ का माहौल और फूफा जी का सानिध्य शायद वरदान के सर पर चढ़ा जुनून खत्म कर दे।
वरदान लखनऊ आ गया, फूफा मशहूर हस्ती थे, फूफा ने सोचा वरदान को पढ़ा लिखा कर बड़ा वकील बनाऊंगा...लेकिन फूफा थे, समझदार, भांप गए....संगीत ही वरदान के कैरियर के लिए बेहतर है भारतेंदु अकादमी में एडमिशन दिला दिया, पण्डित गणेश प्रसाद मिश्रा बने वरदान के गुरु...सेहरा की तपिश के प्यासे को दरिया मिल गया, वरदान दिन रात एक करके संगीत को रगों में समा लेने के लिए उतावला हो गया।
कुछ सालों बाद वरदान को लगा कि अब उसे संगीत को कैरियर बनाने के लिए मुम्बई जाना होगा, तभी उसकी प्रतिभा दुनियां के सामने आ सकेगी, वरना जो सीखा है, वो जाया हो जाएगा।
लेकिन मुम्बई जा कर फिल्मो में संगीत देना, ज़मज़म के पानी से खेत सींचने जैसा मुश्किल काम है, ये बात भी वरदान को मालूम थी, पर हौसला बुलंद था, आ गया मुम्बई...
मुंबई आते ही भाग्य धूमकेतु की तरह चमका, हंसल मेहता की फ़िल्म में संगीत देने का मौका मिल गया, फ़िल्म थी, अनजान...लेकिन भाग्य जितनी तेजी से चमका था, धूमकेतु की तरह वैसे ही लुप्त हो गया, फ़िल्म बनने के बाद विवाद में आ गई और रिलीज नही हो सकी।
वैसे भी सिनेमा इतनी आसानी से किसी को स्वीकार नही लेता, तो भला वरदान को कैसे स्वीकार लेता,सिनेमा लगन, जुनून,हौसला और सब्र का इम्तेहान लेता है, फिर किसी को अपनी आगोश में लेता है।
वरदान की परीक्षा शुरू हुई, जल्दी ही वरदान को समझ आ गया कि फिल्मों में संगीत देने के लिए कम्पटीशन बहुत है, निर्माताओं के ऑफिस के चक्कर काट कर वक़्त के बर्बादी के सिवा कुछ नही होने वाला, लिहाज़ा वरदान ने अक्लमंदी से पासा फेंका और संजोय चौधरी का असिस्टेंट बन कर बैक ग्राउंड म्यूजिक करने लगा, जान पहचान बड़ी, जिंगल गाने लगा, क्योंकि पेट भी पालना था।
यहां परिवार से मिले संस्कार काम आए,और अपनी तमीज़ तहज़ीब भरी मृदुभाषा से उसने लोगों का दिल जीत लिया, फ़िल्म वालों से रिश्ते बनते चले गए, और कई सालों बाद एक मौका आया, जब राम गोपाल वर्मा की फ़िल्म "रक्त चरित्र" में उसने प्लेबैक किया, फ़िल्म नही चली, लेकिन वरदान को अमिताभ बच्चन स्टारर फ़िल्म "रण" में और जावेद जाफरी स्टारर फ़िल्म "वार छोड़ ना यार" में प्लेबैक का मौका मिला, ये दोनों फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी।
वरदान ने सोच लिया कि म्यूजिक डायरेक्टर बनने आया हूँ, प्लेबैक तो उसका सिर्फ शौक है, राह भटकना ठीक नही, तभी उसके हिस्से आयी एक फ़िल्म, इश्क़ जुनून...एक गाना कम्पोज़ करने और प्लेबैक करने का मौका मिला...गाने के बोल थे, कभी यूं भी...वरदान की इस पहली फ़िल्म का गाना मशहूर हो गया, लेकिन फिर वही, फ़िल्म नही चली तो कामयाबी हिस्से नही आयीं।लेकिन काम के प्रस्ताव आने लगे,वरदान ने सोच रखा था, जब तक फ़िल्म में अच्छे एक्टर नही होंगे, और निर्माता दिल खोल कर आज़ादी से काम करने का मौका नही देगा, फ़िल्म नही करूँगा।
एक साल का सफर एक अच्छे मौके की तलाश में गुज़र गया, तभी एक मौका दिया, निर्देशक राजीव रुईया ने...फ़िल्म का नाम है, मुश्किल...निर्माता वरदान के मर्जी के मुताबिक मिला, म्यूजिक की समझ वाला, और कला को आज़ादी देने वाला, रविन्द्र आर दारीया।
वरदान ने मुश्किल के गाने कम्पोज़ करने में जी जान लगा दिया, उसे एहसास हो गया था कि ये फ़िल्म उसके कैरियर के लिए, भाग्यशाली हो सकती है।
फ़िल्म बनी और 9 अगस्त को रिलीज के लिए तैयार है, आर दारीया ने फ़िल्म के पहले गाने को शानदार तरीके से लांच किया, "एक तेरे सिवा मैं क्या सोचूं" ये गाना लांच होते ही हिट हो गया, तारीफें मिलने लगी, फिर कुछ दिनों पहले वरदान का कम्पोज़ किया हुआ एक और गाना रिलीज हुआ, "यूं ही नही" इस गाने को भी एक दिन में लाखों लोगों ने देखा और लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया। वरदान ने जो सोचा था, वो सच हो गया, "मुश्किल" से वरदान को कामयाबी का वरदान मिल गया।
"मुश्किल" 9 अगस्त को रिलीज है, और आज सिर्फ एक हफ्ते में मुश्किल के दोनों गानो की कामयाबी के बदौलत वरदान को दो बड़ी फिल्में मिल गयी है।
https://Class='iframenews'youtu.be/UJkrDum6dsU