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मुसलमानों की मंशा- तरक़्क़ी का रास्ता / सैयद सलमान
Friday, June 21, 2019 4:57:41 AM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
​साभार- दोपहर का सामना 21 06 2019

दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ बनी एनडीए सरकार के मुखिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मिज़ाज कुछ बदले-बदले से हैं। कड़वाहट से भरे चुनाव अभियान के बाद जब सरकार बनाने की बारी आई तब मोदी सरकार का यह बदला रुख़ साफ़ नज़र आया। चुनाव जीतने के बाद संसद के सेंट्रल हॉल में अपने सांसदों को दिया गया प्रधानमंत्री का भाषण मुस्लिम समाज के लिए अच्छे संकेत लेकर आया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में दूसरी बार भारी बहुमत से सरकार बना लेने का आत्मविश्वास और संतोष भी साफ़ नज़र आया। उनके भाषण में आगामी सरकार के भविष्य की संभावनाएं भी दिखाई दीं। अपने भाषण में उन्होंने अल्पसंख्यकों का भी ज़िक्र किया और सांसदों को नसीहत भी दी। उन्होंने सभी नवनिर्वाचित सांसदों से बिना भेदभाव के काम करने को भी कहा। बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए का नेता चुने जाने के बाद के अपने नपे-तुले भाषण में मोदी ने अल्पसंख्यकों का भी विश्वास जीतने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। वोट बैंक की राजनीति में भरोसा रखने वालों पर उन्होंने सीधे-सीधे आरोप लगाया कि ऐसी ताक़तों ने अल्पसंख्यकों को डर में जीने पर मजबूर किया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि, हमें इस छल को समाप्त कर सबको साथ लेकर चलना होगा। उनके कुछ सांसद इसे कितनी गंभीरता से लेंगे यह बात दावे से अभी तो नहीं कही जा सकती, लेकिन सरकार बनते ही सरकार और प्रधानमंत्री के बयान पर शक़ करना प्रधानमंत्री के साथ ज़्यादती होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से सभी के प्रति समान रवैया रखने और अल्पसंख्यकों की और उपेक्षा न होने देने की बात कही, उससे यह संकेत मिलता है कि देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक उनकी नज़र में है और वो उसे साथ लेकर चलना चाहते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने पार्टी के लोगों को अहंकार में नहीं आने की नसीहत देकर भी मुसलमानों को छुपा संदेश दिया है। अब तक कट्टरपंथी नेताओं की तरफ़ से जितने भी बयान आए लगभग सभी को मुस्लिम समाज के विरोध से ही जोड़ा गया। देश के बड़े तबक़े ने इसे सरकार में बैठे लोगों का अहंकार माना। ऐसे में मोदी ने सांसदों और पार्टी के लोगों से अहंकार नहीं आने देने के लिए जब कहा, तब मुस्लिम समाज ने कुछ हद तक राहत की सांस ली और उसे सकारात्मक रूप में लिया। प्रधानमंत्री के 'अहंकार आयेगा तो सेवा भाव चला जाएगा' वाले बयान ने तो रही कसर पूरी कर दी। ठेठ राजनेताओं और वोट बैंक की राजनीति करने वाले मुस्लिम नेताओं से उलट आम मुसलमानों के लिए नई सरकार का यह रुख़ 'सहरा में ठंडी हवा के झोंके' की तरह आया है। कहां तो चुनाव प्रचार के दौरान आम मुसलमानों को धमकाया जा रहा था कि अगर मोदी सरकार की वापसी हुई तो मुसलमानों को या तो पाकिस्तान जाना होगा या ज़बरदस्त मारकाट मचेगी, और कहां अब मुसलमानों को साथ लेकर चलने की बात प्रधानमंत्री ख़ुद कर रहे हैं। फ़िलहाल उंगली पर गिने जाने भर के लोग सरकार की नीयत पर भले शक़ करें, लेकिन आम मुसलमानों में मोदी सरकार की इस भूमिका को सराहना मिल रही है।

मोदी के बयान के बाद की स्थिति भी कुछ ऐसा ही इशारा कर रही है। सरकार की तरफ से हाल के दिनों में कई ऐसी घोषणाएं हुई हैं जो मोदी की मुस्लिम विरोधी छवि रखने वालों को हैरानी में डाल रही हैं। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने भी मोदी सरकार में अल्पसंख्यकों का रोड मैप सामने रख कर इस बात को और पुख़्ता कर दिया है। मुस्लिम समाज के स्कूल ड्रॉप-आउट बच्चों को ब्रिज कोर्स करवा कर मुख्यधारा की शिक्षा में लाए जाने को इस रोड मैप में प्राथमिकता दी जा रही है। मदरसों को मुख्यधारा में लाने के लिए वहां हिंदी, अंग्रेज़ी, गणित और विज्ञान की शिक्षा दिए जाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। यही नहीं, अल्पसंख्यक वर्ग के पांच करोड़ छात्रों को अगले पांच साल में छात्रवृत्तियां दी जाने की घोषणा भी की गई है। शैक्षिक संस्थानों में इंफ़्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करने की भी योजना है। मदरसों, मदरसे के छात्रों और शिक्षकों के लिए मोदी सरकार ने '3E-T' प्लान बनाया है। दरअसल मोदी की मंशा है कि मदरसे में 3E प्लान अर्थात एजुकेशन (शिक्षा), एम्प्लॉयमेंट (रोज़गार के मौके) और एम्पावरमेंट (सामाजिक-आर्थिक-सशक्तिकरण) लागू हो, जिससे मदरसे की पढ़ाई मुस्लिम छात्रों को मुख्यधारा से जोड़ने वाली बनाई जा सके। इसी के साथ-साथ अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही करीब आधा दर्जन से अधिक योजनाओं में सरकार और तेज़ी लाने जा रही है। मुसलमानों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न रहे वक़्फ़ प्रॉपर्टी का विकास भी किए जाने की योजना है। इन प्रॉपर्टीज़ पर स्कूल, कॉलेज, सामुदायिक भवन इत्यादि खोलने के लिए १०० फ़ीसदी फ़ंडिंग की व्यवस्था भी सरकार करने जा रही है। इस दिशा में सबसे ज़्यादा ज़ोर ज़रूरतमंद मुस्लिम वर्ग के लोगों को रोज़गार से जोड़ने पर दिया जाएगा। यानि अब 'मोदी की सरकार' पिछली भ्रांतियों को दूर करते हुए मुस्लिम समाज के उत्थान पर काम करने लगी है।

इस बीच मुस्लिम समाज में पैठ बनाने की दिशा में उन क्षेत्रों में मंडलवार व्यवस्था बनाने का काम हो रहा है जहां मुस्लिम आबादी का प्रतिशत अच्छा-ख़ासा है। भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के पदाधिकारियों की ज़िम्मेदारियां बढ़ाई जा रही हैं। ज़िम्मेदार पदाधिकारी और जनप्रतिनिधि अल्पसंख्यक मोर्चे के सभी प्रमुख पदाधिकारियों से विशेष मुलाक़ातें कर प्रधानमंत्री मोदी का मुस्लिमों को लेकर चिंता जताने वाला संदेश पहुंचा रहे हैं। कहा जा रहा है कि जिस तरह कुछ वर्षों से भाजपा अनुसूचित जातियों-जनजातियों के बीच सक्रिय है, उसी तरह अब मुस्लिम क्षेत्रों में सक्रियता बढ़ा रही है। भाजपा के थिंक टैंक यह मान रहे हैं कि इस बार के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम क्षेत्रों से भी कुछ मात्रा में वोट हासिल हुए हैं। आगे के चुनाव में यह प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश है। मोदी की छवि को या तो सांप्रदायिक या फिर एक कठोर और भावनाओं से दूर व्यक्ति की बनाई गई है। संसद के सेंट्रल हॉल में उनके भाषण से उनकी बेहतर छवि बनने की उम्मीद जगी है। मुस्लिम समाज सहित पूरे देश को उनके भाषण से अगर सही रास्ता देखने में मदद मिल सके तो बहुत अच्छी बात है, क्योंकि बांटने की राजनीति ने देश में अविश्वास का माहौल बना दिया है। ऐसे में विश्वास पाना और उसे क़ायम रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। मोदी ने इस दिशा में पहल की है। अब बारी मुस्लिम समाज की है। मुस्लिम समाज ने हमेशा कहा है कि कोई अगर उनकी तरफ़ एक क़दम बढ़ाता है तो वे उसकी तरफ दस क़दम बढ़ते हैं। अब उनका इम्तिहान है। क्योंकि अपनी बनी-बनाई वोट बैंक और भेड़चाल वाली इमेज से बाहर निकलने का यही सबसे सही समय है। सरकार ने उनकी तरफ़ कदम बढ़ा दिए हैं। ऐसे में उम्मीद तो की ही जा सकती है कि सरकार से हाथ मिला लेने से कई भ्रांतियां और ग़लतफ़हमियां दूर होंगी और विवादित मुद्दे पीछे छूटेंगे।

चुनावी राजनीतिक उठापटक में अक्सर समाज को बांटने की कोशिश होती है, क्योंकि यह भी राजनितिक पार्टियों की रणनीति का हिस्सा है। चुनाव के दौरान पूरे देश ने यह महसूस किया है कि राजनैतिक दलों और उनके कार्यकर्ताओं के बीच बहुत बड़े स्तर पर कड़वाहट थी। लेकिन चुनावी नतीजों के बाद मोदी के पहले भाषण के साथ ही उस कड़वाहट में कमी आई है। प्रांत, भाषा जाति, धर्म, संप्रदाय वग़ैरह से ऊपर उठने की संभावना ने पंख पसारे हैं। इन संभावनाओं को अब खुला आसमान मिले इस दिशा में सरकार को गंभीरता से प्रयास करना होगा। देश ने बहुमत से एक पार्टी को चुना है और उसके साथी दलों को भी भरपूर समर्थन मिला है। अब यदि एनडीए सरकार अपने कार्यक्रमों और योजनाओं में जनहित, समाजहित और अंतिम छोर पर खड़े आम नागरिक के हितों को अपनी प्राथमिकता में शामिल करेगी तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। अब इसका मतलब यह भी नहीं कि मुस्लिम समाज तुष्टिकरण करने का आरोप झेल रहे दलों के साए से निकलकर पूरी तरह सरकार के क़दमों में बिछ जाए। लेकिन सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने की भूमिका में तो अब मुसलमानों को आना ही होगा। किसी भी दल का पिछलग्गू बनने का ख़ामियाज़ा तो भुगत चुके हैं, अब मुख्यधारा में आकर आने वाली नस्लों के लिए तरक़्क़ी का रास्ता खोलने की ज़रूरत है।