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अमन का चश्मा यहीं से निकलेगा / सैयद सलमान
Friday, March 1, 2019 12:06:15 PM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 01 03 2019

शानदार..... ज़बरदस्त.... ज़िंदाबाद.... जय हिंद.... यह सिर्फ़ हमारी ही नहीं बल्कि यही प्रतिक्रिया लगभग पूरे देश की थी, जब मंगलवार सुबह नींद खुलते ही सोशल मीडिया और टीवी समाचारों के ज़रिये यह ख़बर देशवासियों तक पहुंची कि पुलवामा के शहीदों का बदला ले लिया गया है। भारतीय वायुसेना ने मंगलवार तड़के पाकिस्तान के बालाकोट में ‘एयर स्ट्राइक’ करते हुए और तक़रीबन असंभव से मिशन को बड़ी सफलतापूर्वक अंजाम देते हुए 'आतंकी ठिकानों' को 'ठिकाने' लगा दिया। जिसमें सरकारी दावों के अंदाज़े के मुताबिक़ लगभग ३०० आतंकी मारे जाने की सूचना है। यह होना ही था, यह होना ही चाहिए था और यह हुआ भी। पूरे देश की जनता और सभी राजनैतिक दल के नेताओं ने भारतीय सेना के जवानों की वीरता को सलाम किया। पुलवामा की कायराना हरकत के बाद आतंक की फ़ैक्ट्री के सर्वेसर्वा पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की मांग पूरे देश से उठ रही थी। और सरकार ने जनता का मूड भांपते हुए वही किया जिसकी उम्मीद सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानी अवाम को थी। वायुसेना के हमले में आतंकवादी, ट्रेनर्स, टॉप कमांडर और कथित जिहादी मारे गए। ठोस ख़ुफ़िया जानकारी के आधार पर भारतीय वायुसेना द्वारा किए गए हवाई हमलों को विदेश मंत्रालय ने इसलिए ज़रूरी बताया क्योंकि विश्वस्त जानकारी मिली थी कि जैश-ए-मोहम्मद देश के विभिन्न हिस्सों में अन्य आत्मघाती हमले की साज़िश रच रहा है और इस उद्देश्य के लिए फ़िदायीन जिहादी तैयार किए जा रहे हैं।

हालाँकि जैश-ए-मोहम्मद के कैंप पर हमले से बौखलाए पाकिस्तान ने बुधवार की सुबह हवाई सीमा का उल्लंघन किया लेकिन हमारी जांबाज़ फ़ौज ने मुस्तैदी से भारतीय वायुसेना के मिग-२१ का सफलतापूर्वक प्रयोग करते हुए पाक के लड़ाकू विमान एफ़-१६ को मार गिराया। इस दौरान हमें भी एक मिग-२१ विमान का नुकसान हुआ है। इस बीच पाकिस्‍तान ने भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन को उस वक्‍त हिरासत में ले लिया जब पाकिस्‍तानी वायुसेना के विमान ने भारत के सैन्‍य प्रतिष्‍ठानों को निशाना बनाने का प्रयास किया। सरकार उनकी सुरक्षित वापसी का प्रयास कर रही है। विंग कमांडर अभिनंदन की 'सुरक्षित' रिहाई की मांग सीमा पार भी उठ रही है। पाकिस्‍तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की भतीजी फ़ातिमा भुट्टो ने भी इमरान खान सरकार से यह मांग करते हुए कहा कि उनकी पीढ़ी के युवा पाकिस्‍तानी भारतीय उपमहाद्वीप में शांति चाहते हैं और इसलिए पाकिस्‍तान को चाहिए कि वह विंग कमांडर अभिनंदन की 'सुरक्षित' रिहाई सुनिश्चित करे। फ़ातिमा, बेनजीर के भाई मुर्तज़ा भुट्टो की बेटी और पाकिस्‍तान के पूर्व प्रधानमंत्री रहे ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो की पोती हैं। वह एक लेखिका हैं और विंग कमांडर की रिहाई को लेकर अपील उन्‍होंने 'न्‍यूयार्क टाइम्स' में लिखे एक लेख में की है। उन्‍होंने लिखा है, 'हमने युद्ध में जिंदगी गुज़ार दी। मैं पाकिस्‍तानी सैनिकों को मरते हुए नहीं देखना चाहती। मैं भारतीय सैनिकों को मरते हुए नहीं देखना चाहती। हम यतीमों के उपमहाद्वीप नहीं बन सकते।' उन्‍होंने साफ़ कहा कि उनकी तरह ही पाकिस्‍तान के अधिकांश लोग अपने पड़ोसी मुल्‍क के साथ तनाव नहीं चाहते। वैसे पाकिस्तान पर अभिनंदन को छोड़ने का अंतरराष्ट्रीय दबाव भी है। उसके पास शांति बहाली के लिए यह एक अच्छा मौक़ा भी है।

जो भी हो बात अगर वर्तमान तनाव की करें तो पुलवामा के ४० से अधिक शहीदों का बदला लेकर जैश-ए-मोहम्मद को सबक़ सिखाना बेहद ज़रुरी था। पाकिस्तान की सरपरस्ती में भारत को लगातार ज़ख़्म देने वाले आतंकी सरगना मौलाना मसूद अज़हर को अभी तक ऐसी करारी चोट नहीं मिली थी जैसी भारतीय सेना ने पहुंचाई है। पुलवामा आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की कमर उसी के ठिकाने पर जाकर तोड़ना बेहद ज़रूरी था। एक बात और, इस कार्रवाई के दौरान मसूद अज़हर के क़रीबी रिश्तेदार से लेकर उसके अहम सहयोगी भी मारे गए जिसके बाद उसे बख़ूबी अहसास हो गया होगा कि अब वह ख़ुद भी सुरक्षित नहीं है। इस बात को समझना होगा कि इंडियन एयर फ़ोर्स ने पाक आर्मी पर नहीं बल्कि आतंकवाद पर हमला किया है। अगर भारत के हमले से पाक में कुछ हुआ ही नहीं तो, पाकिस्तान को शांत रहना चाहिए था। अगर पाक कहता है कि वह ख़ुद भी आतंकवाद से पीड़ित है और आतंकवाद क़ाबू में नहीं आ रहा है, तो वह हमारी मदद ले सकता था। भारतीय सेना आतंकवाद के ख़ात्मे के लिए हमेशा तैयार है। लेकिन पाक ने ऐसा नहीं किया बल्कि आतंकी संगठनों को आईएसआई के ज़रिये मदद करता रहा। और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन इस्लाम को बदनाम करते रहे।

इसे भारतीय कूटनीतिक सफलता भी कहा जा सकता है कि हमला किसी सैन्य ठिकाने पर नहीं, केवल आतंकी ठिकाने पर किया गया और इसे 'हमलों को रोकने' के उद्देश्य से 'ऐहतियात' के तौर पर अंजाम दिया गया। सैन्य कार्रवाई का सीधे अर्थ जंग का ऐलान होता और इस स्थिति को सेना ने टाला। आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर भारतीय सेना और केंद्र की सरकार ने अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी हासिल किया। उस आतंकवाद का ख़ात्मा करने की ज़रुरत इसलिए भी बढ़ गई थी जिसे इस्लाम धर्म से जोड़ कर परवान चढ़ाया जा रहा था। पाकिस्तान जैसा इस्लामी देश ऐसे संगठनों की पुश्तपनाही करता रहा है यह बात कही जाती रही है, लेकिन ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान की धरती पर मारकर अमेरिका ने और पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर हिंदुस्तान ने इस बात को साबित कर दिया। अमेरिका और इज़राइल के बाद भारत दूसरे देश में घुसकर कार्रवाई करने वाला तीसरा देश बन गया यह भी क्या गर्व की बात नहीं है? आतंक की फ़ैक्ट्री के अहम औज़ार जैश-ए-मोहम्मद को भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, यूएई ने आतंकी संगठन की सूची में डाला हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान ने भी उस पर पाबंदी लगाई है। इसके बावजूद जब कभी भारत मौलाना मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वैश्विक आतंकी घोषित करने की मांग करता है, किसी न किसी बहाने पाकिस्तान मुकरता रहा है। और पाकिस्तान से दोस्ती निभाते हुए चीन भी उसे बचाता रहा है।

पुलवामा में जवानों की शहादत पर देश के हर नागरिक में ग़म और ग़ुस्सा था। हर एक की निगाह सरकार और फ़ौज पर टिकी थी। देश के वीर सपूतों को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश किए जाने का सिलसिला जारी था। जब पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर बमबारी की ख़बरें लोगों को मिली तो चेहरों पर जवाबी हमले की ख़ुशी झलक रही थी। महत्वपूर्ण यह रहा कि मुस्लिम उलेमा, राजनेता और आम मुस्लिम जनता ने भी आतंकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई होने पर ख़ुशी का इजहार किया है। हाथों में तिरंगा और नगाड़े के साथ मिठाई बांटी गई। शहर और देहात क्षेत्रों के अनेक उलेमा भारतीय सेना का शुक्रिया अदा करते हुए सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे। अमूमन कट्टर छवि रखने वाले सपा विधायक अबू आसिम आज़मी ने तो महाराष्ट्र विधानभवन के प्रांगण में तिरंगा लहराकर और मिठाइयां बांटकर अपने विरोधियों तक को चकित कर दिया। सच कहा जाए तो मुस्लिम समाज पाकिस्तान और आतंकवादियों की करतूतों से तंग आ चुका है। उनकी हर नापाक करतूत का जब भारतीय मुसलमानों से जवाब मांगा जाता है तो वह ठगा सा रह जाता है। हर भारतीय मुसलमान के आबा-ओ-अजदाद अपनी इच्छा और देशप्रेम की भावना से आज़ादी के बाद यहीं रुके रहे। उन्होंने पाकिस्तान को कभी अपना नहीं समझा। लेकिन उनपर हमेशा इल्ज़ाम लगते रहे। इसी की आड़ में चंद मुस्लिम कट्टरवादी संगठन मुसलमानों के मन में ज़हर घोलने का प्रयास करते रहे। ऐसा नहीं है कि वे सफल नहीं हुए। जैश-ए-मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहिदीन, इंडियन मुजाहिदीन, आईएसआईएस जैसे संगठनों से अक्सर मुस्लिम नौजवानों के जुड़ने की खबरें आती रहीं, सबूत मिलते रहे, कार्रवाई होती रही। विश्व के अनेक ठिकानों पर हुए आतंकी हमले में मुस्लिम नामधारी संगठनों का नाम आता रहा। तभी तो आम जनता भारतीय मुसलमानों को शक़ के दायरे में रखती रही। ऐसे में भारतीय सेना की कार्रवाई मुस्लिम समाज के लिए भी संजीवनी बनकर आई है। दरअसल मुस्लिम समाज का भी मानना है कि पाकिस्तान को सबक़ सिखाना ज़रूरी हो गया था। रोज़-रोज़ रोने से एक बार रो लेना बेहतर है। तभी तो पुलवामा हमले के शहीदों को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करते हुए पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हुए हमलों पर ख़ुशी का इज़हार किया जा रहा है और विंग कमांडर अभिनंदन की सुरक्षित रिहाई के लिए दुआएं मांगी जा रही हैं। पाकिस्तान, आतंकी संगठन और आतंकियों के ख़िलाफ़ मुस्लिम समाज का इस तरह मुखर होना सराहनीय और स्वागतयोग्य है। अमन का चश्मा यहीं से निकलेगा इस बात का अब यक़ीन हो चला है।