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कुछ सीखें पाकिस्तान परस्त मुसलमान / सैयद सलमान
Friday, December 28, 2018 11:17:00 AM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 28 12 2018

देश में पिछले दिनों मुस्लिम समाज काफ़ी चर्चा में रहा। ख़ासकर मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों के बयानों ने माहौल को गर्म रखा तो दुसरी तरफ़ मुसलमानों ने ही इस देश की मिट्टी को सर्वोपरि मानते हुए नकारात्मक टिप्पणियों को बेअसर कर दिया। जिन नामों की वजह से देश में चर्चा छिड़ी और जिस तरह से विवाद का माहौल बना वह नकारात्मक सोच रखने वाले मुसलमानों के लिए सबक़ है। एक तरफ़ फ़िल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह हैं जिनके भीतर आज के भारत में अपने बच्चों को लेकर बहुत डर बसा हुआ है। नसीरुद्दीन कहते हैं, ''मुझे इस बात का डर लगता है कि कहीं मेरे बच्चों को भीड़ ने घेर लिया और उनसे पूछा कि तुम हिंदू हो या मुसलमान? मेरे बच्चों के पास इसका कोई जवाब नहीं होगा। क्योंकि मैंने मेरे बच्चों को मज़हबी तालीम नहीं दी है। अच्छाई और बुराई का मज़हब से कोई लेना-देना नहीं है।" नसीरुद्दीन शाह ने बुलंदशहर हिंसा का ज़िक्र करते हुए कहा कि, "हाल ही में हमने देखा है कि एक पुलिस अधिकारी की मौत गाय की मौत से अधिक महत्व रखने लगी है।" वहीँ दूसरी तरफ़ पाकिस्तान से लौटे हामिद अंसारी हैं जो पाकिस्तान के ज़ुल्मो सितम सहकर देश लौटते हैं तो तो उन्हें 'मेरा भारत महान' लगता है। हरियाणा के ग़रीब परिवार के सलमान अली भी हैं जिनको इसी देश की जनता जी भरकर प्यार देती है और ऑनलाइन वोट देकर 'इंडियन आइडल' बनती है।

बात पहले नसीरुद्दीन शाह के डर की। अमूमन अपने अभिनय में रमे रहने वाले एक मंझे हुए अभिनेता का अचानक आया डर का बयान विवादों में आएगा ही। चारों तरफ़ से उनकी छीछालेदर हुई। हर किसी ने उन्हें पाकिस्तान जाने की सलाह दे दी। उनके साथी अभिनेता अनुपम खेर तक ने उन्हें नहीं बख़्शा। हालाँकि आशुतोष राणा जैसे चंद अभिनेताओं ने उनकी तरफ़दारी की लेकिन नसीरुद्दीन शाह को देश की अधिकांश जनता ने ग़द्दार ही बताया। अपनी टिप्पणी पर मचे बवाल को लेकर बाद में नसीरुद्दीन शाह ने सफ़ाई देते हुए कहा, "मैंने जो भी कहा था, वह एक चिंतित भारतीय के तौर पर कहा था। इस बार मैंने ऐसा क्या कह दिया, जिस पर मुझे ग़द्दार कहा जा रहा है? मैंने उस देश के बारे में अपनी चिंता ज़ाहिर की, जिसे मैं प्यार करता हूं। वह देश जो मेरा घर है। यह आख़िर अपराध कैसे हो गया?" हालाँकि सफ़ाई देने में नसीर से देर हो चुकी थी।

नसीरुद्दीन के बयान के बाद क्रिकेटर से राजनेता बने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत को अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर नसीहत देने की जुर्रत की और पाकिस्तान से अल्पसंख्यकों की रक्षा का हुनर सीखने की नसीहत कर डाली। उस पकिस्तान में जहाँ ख़ुद मुस्लिम देश होते हुए मुस्लिम ख़ुद सुरक्षित नहीं हैं। जहाँ स्कूल के बच्चों तक को नहीं बख़्शा जाता और बम, गोली से उड़ा दिया जाता है। जहाँ मुसलमानों की यह स्थिति हो वहां हिंदू, सिख, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों की स्थिति को आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन मौक़ा नसीर ने ही दिया जो इमरान यहाँ के मुसलमानों की हिमायत में उतरने की हिमाक़त कर बैठे। हालाँकि इसी बवाल के बीच नसीर को इमरान के बहाने फिर से अपने आपको सुधारने का मौक़ा जरूर मिल गया और उन्होंने इमरान खान को जवाब दिया कि वह पहले अपना घर संभालें और भारत के अल्‍पसंख्‍यकों की चिंता छोड़ दें। इस बार नसीरुद्दीन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि इमरान को सिर्फ़ अपने देश से जुड़े मुद्दों पर ही बात करनी चाहिए। जिन मुद्दों से उनका वास्ता ही नहीं है, उन पर न बोलें। हम ७० साल से लोकतंत्र हैं और जानते हैं कि अपनी देखभाल कैसे करनी है।’ इस एक बयान से नसीरुद्दीन ने अपनी खोई प्रतिष्ठा को कुछ हद तक वापस पाने की कोशिश की है। अमूमन विवादित बयानों से वास्ता रखने वाले एमआईएम सुप्रीमो अकबरुद्दीन ओवैसी ने भी इमरान को लताड़ा। इस से पहले परवेज़ मुशर्रफ़ के दौर में मौलाना महमूद मदनी भी उनके सामने ही अनेक पाकिस्तानियों के बीच भारतीय मुसलमानों की हालत पर चिंता जाहिर करने के लिए करारा जवाब दे चुके हैं। अब तो क्रिकेटर बिरादरी के मोहम्मद कैफ़ ने भी इमरान खान को आइना दिखाया है। मोहम्मद कैफ़ ने इमरान को लताड़ते हुए कहा है कि 'बंटवारे के वक़्त पाकिस्तान में क़रीब २० प्रतिशत अल्पसंख्यक थे। लेकिन अब दो प्रतिशत बचे हैं। वहीं दूसरे हाथ भारत में आज़ादी के बाद अल्पसंख्यकों की संख्या बढ़ी है। पाकिस्तान आख़िरी देश होगा जो लेक्चर दे कि अल्पसंख्यकों से कैसा व्यव्हार किया जाए।'

इसके अलावा प्रेम प्रकरण में चर्चित हुए और हाल ही में लंबे प्रयासों के बाद पाकिस्तान से देश वापसी करने वाले हामिद अंसारी की दास्तान भी बहुत कुछ कहती है। जासूसी और बिना दस्तावेज़ों के पाकिस्तान यात्रा के अपराध में जेल में क़ैद रहे भारतीय नागरिक हामिद निहाल अंसारी ने पाकिस्तान की जेल से छूट कर भारत लौटते ही भावुक होते हुए अपनी मां के साथ कहा था,"मेरा भारत महान"। क्योंकि उसने पाकिस्तान देखा था। पाकिस्तान परस्त मुसलमानों के लिए हामिद अंसारी आँख खोलने वाला एक बेहतरीन उदहारण है। ऐसे में पाकिस्तान के अच्छे लोगों की भी तारीफ़ ज़रुरी है। भारत वापसी में वहां हामिद की कई लोगों ने मदद की। इन लोगों में पाकिस्तान की मानवाधिकारों की वक़ील रख़्शंदा नाज़ भी शामिल रहीं। साथ ही एक पाकिस्तानी पत्रकार और समाजसेवी ज़ीनत शहज़ादी की कोशिशें भी कम महत्वपूर्ण नहीं रहीं। ज़ीनत शहज़ादी ने ही हामिद अंसारी के केस के लिए कोर्ट में अपील की थी। हामिद की कस्टडी की सारी जानकारी उन्होंने ही जुटाई थी। पाकिस्तान के एक और सीनियर एडवोकेट काज़ी मोहम्मद अनवर भी तारीफ़ के मुस्तहिक़ हैं जिन्होंने इस केस पर मानवीय आधार पर गंभीरता से काम किया।

पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की हालत का अंदाज़ा लगाने के लिए आसिया बीबी का हालिया उदहारण दिया जा सकता है। पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में ८ सालों से जेल में बंद ईसाई महिला आसिया बीबी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषमुक्त करार दिए जाने के बाद भी हिरासत में ही क्रिसमस मनाने को मजबूर होना पड़ा क्योंकि वहां के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को न मानते हुए लोग आसिया की हत्या करना चाहते हैं। क्या यही है अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, जिसकी बात इमरान खान कर रहे हैं? इसलिए पाकिस्तान की तरफ़ से जब भी यहाँ के अल्पसंख्यकों का रोना रोया जाता है तो यहाँ के मुसलमान उसे जमकर लताड़ते हैं। लेकिन बात जब अपनी आती है तो आमिर और नसीर जैसे लोग अपने देश में ही ख़ुद को असुरक्षित बताते हैं। यह स्थिति आम मुसलमानों के लिए बड़ी चिंताजनक हो जाती है क्योंकि तब इन जैसे अभिनेताओं की तरफ़ से दिए गए बयानों के कारण वे भी शक़ के दायरे में आ जाते हैं। ऐसे में कैफ़ जैसे भारतीय नायक की तरह उभरते हैं जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए।

पिछले दिनों समाप्त हुए एक रियलिटी सिंगिंग शो के विजेता की जीत भी बहुत कुछ कहती है। इस शो एक प्रतिभागी सलमान अली ने ऑनलाइन वोटों के आधार पर हुई गिनती में सभी कंटेस्टेंट को पीछे छोड़ते हुए 'इंडियन आइडल' का ख़िताब अपने नाम किया। सलमान को सबसे ज़्यदा वोट मिले। उनसे पीछे चार कंटेस्टेंट थे। चार पीढ़ियां से शादियों में गाना बजाना कर अपना पेट पालने वाले सलमान के परिजनों ने कभी सोचा भी नहीं रहा होगा कि उनका बेटा एक दिन 'ओपन वोटिंग' में अव्वल आएगा, जहाँ सलमान अली का समुदाय अल्पसंख्यक बताया जाता है। क्या जिस डर की बात की जा रही है उस आधार पर सलमान की जीत संभव थी? सलमान अली तो ताज़ा उदहारण हैं, इस से पहले यूसुफ़ खान (दिलीप कुमार), आमिर खान, सलमान खान और शाहरुख खान जैसे कई भारतीय कलाकारों को इस देश ने सराहा है। नसीरुद्दीन शाह भी उसी कड़ी में आते हैं। इरफ़ान खान और नवाज़ुद्दीन शेख़ भी भारतीय सिने दर्शकों की आँखों का तारा बने हुए हैं। क्या पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान एक भी ऐसे कलाकार का नाम बता सकते हैं जो अल्पसंख्यक समुदाय से हो और उनकी ऐसी ही लोकप्रियता हो जितनी इन मुस्लिम कलाकारों की भारत में है? ऐसे में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण के बाद धर्मनिरपेक्ष लोगों के डर के माहौल में जीने की बात करने वाली कथित अनेक राजनैतिक पार्टियों को नए सिरे से सोचना होगा। नसीरुद्दीन शाह को भी अगली बार कुछ बोलने से पहले सलमान अली और हामिद अंसारी पर नज़र डाल लेनी चाहिए। लोकतंत्र के नाम पर कुछ भी बोलने की आज़ादी का मतलब यह तो क़त्तई नहीं है कि अपने बयानों की वजह से आम मुसलमानों को शर्मिंदा किया जाए।