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हराम की कमाई से मस्जिद कैसे बनाई / सैयद सलमान
Friday, October 19, 2018 11:19:42 AM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 19102018

एनआईए की जांच में पिछले दिनों सामने आई एक बात भारतीय मुसलमानों के लिए चिंताजनक है। जांच में पाया गया है कि हरियाणा के पलवल में बनी ख़ुलफ़-ए-राशिदीन मस्जिद में अंतरराष्ट्रीय आतंकी हाफ़िज़ सईद के संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का पैसा लगा हुआ है। बताया जाता है कि मस्जिद जिस ज़मीन पर बनी है वह पहले से ही विवादों में है। विश्वभर में वैसे भी आतंकवादियों की अमानवीय करतूतों ने आम मुसलमानों को शर्मिंदा कर रखा है ऐसे में साझा संस्कृति के सबसे बड़े संवाहक मुल्क का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी से मिले चंदे के नाम पर एक बार फिर शक़ और विवाद के दायरे में आ गया है। भले ही पलवल की मस्जिद या उसके ज़िम्मेदारों से देश के आम मुसलमानों का सीधा कोई वास्ता न हो लेकिन जवाब हर मुसलमान से मांगा जाएगा। वैसे इस टेरर फंडिंग से जुड़े मामले में एनआईए द्वारा इससे पहले नई दिल्ली में मस्जिद के इमाम मोहम्मद सलमान सहित तीन लोग गिरफ़्तार किए जा चुके हैं। एनआईए की जांच में पाया गया है कि सलमान ने कथित रूप से पलवल में मस्जिद बनाने के लिए फ़लाह-ए-इंसानियायत फ़ाउंडेशन (एफआईएफ) का धन लगाया। मस्जिद के बाकी पदाधिकारी भी एनआईए के राडार पर हैं और वह उनसे पूछताछ कर रही है। मस्जिद से जुड़े दान, आय-व्यय का बही खाता और अन्य दस्तावेज भी जांच के दायरे में हैं जो ज़ब्त किए जा चुके हैं। यहाँ यह बताना जरुरी है कि फ़लाह-ए-इंसानियायत फाउंडेशन की स्थापना हाफ़िज़ सईद के जमात-उद-दावा द्वारा की गई थी। विवादों में आई पलवल की यह मस्जिद इतनी बड़ी है कि आस पास के गावों के लगभग १५ हज़ार मुसलमान एक साथ अंदर नमाज़ अदा कर सकते हैं। ख़ुलफ़-ए-राशिदीन में मदरसा भी चलता है।

मदरसों और मस्जिदों के लिए मुस्लिम मुल्कों में चंदा माँगना और वहां से चंदा आना आम बात है। हालाँकि कई स्थानीय और राष्ट्रीय अख़बारों की रिपोर्ट में स्थानीय लोगों के आधार पर दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान से या पाकिस्तानी संस्था से बिलकुल चंदा नहीं लिया गया है। स्थानीय मुसलमानों का तर्क है कि हाफ़िज़ सईद अगर एक अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी है तो उससे पैसे लेने की हिमाकत भला कौन कर सकता है। बताया यह भी जा रहा है कि मस्जिद को स्थानीय हिंदुओं ने भी खुलकर चंदा दिया है। कई हिंदुओं ने बिल्डिंग मटेरियल देकर इसकी मदद की है। ख़ुलफ़-ए-राशिदीन मस्जिद एक इस्लामी मरकज़ भी है जिसे आस-पास के ८४ गांवों की मदद से बनाया गया है। तामीरी काम अभी भी अधूरा है। दस्तावेज़ बताते हैं कि इसकी पूरी ज़मीन दस एकड़ है जो पंचायत ने दान की थी। लेकिन १०० के क़रीब परिवारों और दुकानदारों ने ज़मीन के एक बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा कर कर रखा है। इनकी क़ीमत करोड़ों में है। मस्जिद के पदाधिकारी उन कब्ज़ेदारों को वहां से हटाना चाहते हैं।

लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू कुछ और ही कह रहा है। इस बात की जांच चल रही है कि सलमान जब दुबई में था, तब एलईटी से जुड़े लोगों के संपर्क में कैसे और क्यों आया? जांच तो इस बात की भी हो ही रही होगी कि एफआईएफ से धन प्राप्त करने की आख़िर उसे क्यों सूझी और उसका बिचौलिया कौन था? आख़िर क्या सोचकर हाफ़िज़ सईद के संगठन ने उसे मस्जिद बनाने के लिए ७० लाख रुपए दिए? यह कोई छोटी रक़म नहीं है। यही नहीं, पता तो यहां तक चला है कि उसकी बेटियों के विवाह के लिए भी फ़लाह-ए-इंसानियत संगठन ने पैसा दिया। इस घनिष्टता का क्या अर्थ लगाया जाए? सवाल यह है कि ख़ुलफ़-ए-राशिदीन मस्जिद की तामीर के लिए अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन ने दान क्यों दिया? और यह पैसा कैसे और कहाँ इस्तेमाल किया जा रहा है? मस्जिद तामीर के नाम पर आतंकवादी संगठन से जुड़े किसी अन्य संगठन के इस दान के पीछे किसी साज़िश की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। चूँकि पाकिस्तान और उसके पालतू आतंकवादियों की लिस्ट में भारत सबसे बड़ी हिटलिस्ट में है जहाँ अव्यवस्था का निर्माण करना, सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ना और आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देना उनकी प्राथमिकता है, इसलिए इस संभावना को बल मिलता है।

यहाँ यह जान लेना भी ज़रुरी है कि दरअसल मस्जिद कहते किसे हैं। मुसलमान जिस स्थान पर प्रतिदिन ५ वक़्त के साथ ही प्रत्येक जुमा के दिन इकठ्ठा होकर ईश्वर की उपासना करते हैं उसे मस्जिद कहा जाता है। ईदगाह के साथ ही ईदुल फ़ित्र और ईदुल अज़हा की नमाज़ भी मस्जिद में पढ़ी जाती है। मुसलमानों में मस्जिद को ईश्वर के घर के नाम से भी जाना जाता है। पवित्र क़ुरआन में स्वयं ईश्वर ने भी अनेक स्थान पर इसे अपने घर के नाम से ही संबोधित किया है। उपासना स्थल के रूप में प्रयोग होने के साथ-साथ मस्जिदें शुरू से ही शिक्षा का महत्वपूर्ण केन्द्र भी रही हैं। इस्लाम के उदय के आरंभिक काल में मक्के में अत्यधिक कठिन परिस्थतियों के बावजूद पैग़म्बर मोहम्मद साहब काबे शरीफ में जाकर लोगों को एकत्रित कर उन्हें शिक्षित करते थे, उनके लिए क़ुरआन पढ़ते थे और सत्यमार्ग पर चलने की नसीहत करते थे। तब मस्जिदें साधारण हुआ करती थीं लेकिन मस्जिदों के ज़िम्मेदारान और नमाज़ी असाधारण हुआ करते थे। लेकिन अब वही मस्जिदें आलीशान तो होती जा रही हैं मगर नमाज़ियों में वो साधारण सा जज़्बा, समर्पण, दयानतदारी और तक़वा नहीं रहा।

हर कोई ऐरा-ग़ैरा व्यक्ति या संगठन उठकर यूँ ही मस्जिद का निर्माण नहीं कर सकता। मस्जिदों के निर्माण में हलाल रोज़ी का महत्व है। हराम की कमाई से मस्जिद के निर्माण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आम मुसलमान भी इस बात से वाक़िफ़ है कि उसे अगर किसी मस्जिद में चंदा देना भी है तो अपने ख़ून पसीने की गाढ़ी कमाई से देना है। ज़कात, फ़ितरा जैसे दान भी हलाल रोज़ी से ही दिए जाते हैं। आज बहुत सी जगहों पर आलीशान मस्जिदें निर्मित हैं लेकिन उसके लिए चंदा किस तरह इकठ्ठा किया गया है इस बात से आम नमाज़ी महरूम है। उसे नमाज़ पढ़ने से सरोकार है। वह कभी मस्जिदों के ट्रस्टियों से यह नहीं पूछता कि आलीशान मस्जिदों के लिए चंदा कहाँ से इकठ्ठा किया गया है। यह जानकारी निहायत ज़रूरी है। आज केवल रसीदें छापकर मस्जिद से जुड़े पेश इमाम या बांगी हज़रात को चंदा इकठ्ठा करने के काम पर लगा दिया जाता है। मस्जिद के निर्माण के लिए असरदार, रसूख़दार व्यक्तियों के यहाँ पहुंचकर चंदा इकठ्ठा करने के लिए गिड़गिड़ाया जाता है। लेकिन सामने वाले की आयस्रोत पर कोई सवाल नहीं उठाता। धनपशुओं को इस बहाने दान-दक्षिणा कर तथाकथित 'जन्नत' पाने का सीधा मार्ग मुहैया करवा दिया जाता है। पैग़म्बर मोहम्मद साहब ने हराम के पैसों से मस्जिदों के निर्माण को सख़्ती से मना किया है। लेकिन क्या आज आने वाले दान या चंदे को उस कसौटी पर मस्जिदों के ज़िम्मेदारान सही पाते हैं? पलवल का मामला भी कुछ कुछ ऐसा ही है। चंदे की रकम लेने से पहले अगर चंदा देने वाले व्यक्ति या संगठन के बारे में जानकारी ले ली जाती तो इल्ज़ामों और शर्मिंदगी से बचा जा सकता था।

पूरा मामला अब जांच एजेंसियों के सामने है। अब तक प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार अगर एनआईए की जांच सही है तो एक आतंकवादी संगठन के रहमोकरम और उसके दान से बनी मस्जिद में नमाज़ किस हद तक और कैसे जायज़ करार दी जा सकती है। बेक़सूरों का ख़ून बहाने और लाशों की तिजारत करने वाले आतंकवादी के चंदे को स्वीकार करना न सिर्फ ग़ैर इस्लामी है, बल्कि ग़ैर इंसानी भी है। नमाज़ तो ख़ैर सादी मस्जिदों में भी क़ुबूल हो जाएगी लेकिन हराम माल से बने धर्मस्थल पर उपासना सरासर धार्मिक दृष्टिकोण से पाप ही कहा जाएगा। पलवल की मस्जिद के बहाने देशभर की मस्जिदों का अगर मुसलमान जायज़ा ले तो अनेक जगहों से हरामख़ोरी करने वालों का पर्दाफ़ाश किया जा सकेगा। वक़्त की मांग भी यही है कि केवल तन ही नहीं बल्कि मुसलमान अपना मन और धन भी पवित्र रखें क्योंकि सफ़ाई को आधा ईमान कहा गया है।