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फ़िल्मकार से अधिक चतुर व्यवसायी हैं भंसाली/ सैयद सलमान
Monday, November 13, 2017 11:51:04 PM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
साभार- दो बजे दोपहर 13 11 2017

संजय लीला भंसाली और उनकी फिल्मों का विवादों से पुराना नाता है। उनकी आने वाली फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर लगातार विरोध बढ़ता जा रहा है। महारष्ट्र में भाजपा के विधायक मंगलप्रभात लोढ़ा ने इस फिल्म के महाराष्ट्र में प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग की है। वहीं भाजपा विधायक राज पुरोहित ने भी फिल्म को मुंबई में रिलीज न होने देने की धमकी दी है।

लोढ़ा ने मुख्यमंत्री को दिए ज्ञापन में 'पद्मावती' फिल्म में भारतीय संस्कृति और इतिहास के तथ्यों को गलत तरीके से पेश किए जाने का आरोप लगाया है। लोढ़ा और पुरोहित दोनों को लगता है कि भंसाली अपनी फिल्म के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक विरासत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। पद्मावती फिल्म के निर्माण की घोषणा के समय से ही इस फिल्म को लेकर धर्मप्रेमी एवं संस्कृति प्रेमी हिंदु समाज में काफी रोष है। भाजपा से जुड़े नेता और कट्टर हिंदूवादी संगठन मानते हैं कि इस फिल्म के प्रदर्शन से सामाजिक समरसता बिगड़ सकती है। आशंका यह भी जताई जा रही है कि फिल्म के प्रदर्शित होने से महाराष्ट्र सहित देश के अनेक प्रदेशों में सांप्रदायिक और जातीय माहौल खराब हो सकता है। इसलिए महाराष्ट्र में फिल्म पर तत्काल रोक लगाने की मांग जोर पकड़ रही है। भाजपा, करणी सेना और कट्टर संगठनों की राय में फिल्मों एवं मनोरंजन के नाम पर इतिहास एवं संस्कृति को गलत तरीके से पेश किए जाने की बढ़ती जा रही प्रवृत्ति पर रोक लगाए जाने की सख्त ज़रुरत है।

भाजपा नेताओं, राजस्‍थान के राजघरानों और करणी सेना के विरोध के बीच फिल्म के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली ने चुप्पी तोड़ते हुए अपनी तरफ से सफाई दी है। उनका कहना है कि जैसा प्रचारित किया जा रहा है कि रानी पद्मिनी और खिलजी के बीच कोई ड्रीम सीक्वेंस फिल्माया गया है, ऐसा कुछ नहीं है। भंसाली ने कहा है कि, हम रानी पद्मावती का बहुत सम्मान करते हैं और उनकी कहानी से हमेशा से प्रभावित हुए हैं। ये फिल्म उनकी वीरता और उनके बलिदान को नमन करती है। पर कुछ अफवाहों की वजह से ये फिल्म विवादों का मुद्दा बन चुकी है। अफवाह ये है कि फिल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच ड्रीम सीक्वेंस दर्शाया गया है और हमने इस बात को पहले भी नकारा है, लिखित प्रमाण भी दिया है कि हमारी फिल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच ऐसा कोई सीन नहीं है जो किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए या उनके जज्बातों को तकलीफ दे। हमने इस फिल्म को बहुत जिम्मेदारी से बनाया है, राजपूत मान और मर्यादा का ख्याल रखा है।

साफ़ है, अपना स्पष्टीकरण देकर भंसाली सभी अफवाहों पर विराम लगाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि पद्मावती बहुत ही ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ बनाई गई फिल्म है।

लेकिन क्या उनके इस स्पष्टीकरण से विवाद थम जाएगा? संजय लीला भंसाली की सभी फिल्में विवाद में क्यों आती हैं इस पर भी खुलकर चर्चा होनी चाहिए। फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ को लेकर भी भंसाली विवादों में आये थे। फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' के समय के विवाद से सबक लेकर भंसाली 'ब्लैक', 'देवदास' ‘सांवरिया’ या फिर ‘हम दिल दे चुके सनम’ जैसी शुद्ध प्रेम पर आधारित फिल्मों का रास्ता चुन सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने एक बार फिर 'बाजीराव मस्तानी' जैसी फिल्म के विरोध से उपजे कटु अनुभव के बावजूद पद्मावती जैसे विवादित विषय को चुना तो इसे केवल उनकी रचनात्मक फिल्म बनाने की ललक तो नहीं कहा जा सकता। विवादों द्वारा अपनी फिल्म को चर्चित करवाकर भंसाली एक संवेदनशील फिल्मकार से अधिक चतुर व्यवसायी नज़र आते हैं।

कई फिल्म समीक्षक इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि भंसाली की फ़िल्में विवादित होकर भी बड़ा कारोबार इसलिए कर पाती हैं क्योंकि उन्हें मुफ्त की पब्लिसिटी मिल जाती है। क्या इसे भंसाली का स्टंट मैनेजमेंट माना जाए जिसके सहारे वे हर बार अपनी फिल्म की मुफ्त पब्लिसिटी करवा ले जाते हैं? कुछ समीक्षकों की राय में भंसाली का यह सारा खेल प्री-प्लान होता है। इन आरोपों में कितनी सच्चाई है यह तो भंसाली ही जानें, लेकिन विवादित फिल्मों का निर्माण कर अपनी जेब भरने वाले फिल्मकारों को सुर्ख़ियों में लाने वाले वह नेता भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं जिन्हें जब कोई पूछ न रहा हो तो वे खुद विवाद को हवा देकर चर्चा में आ जाते हैं। फिल्म पद्मावती ने भंसाली और चुके हुए नेताओं को अफवाहों चर्चाओं और विवादों द्वारा संजीवनी तो प्रदान कर दी है, लेकिन दर्शक फिल्म न देखकर इनकी नूरा कुश्ती की धज्जियाँ उड़ाने का दम रखते हैं।