साभार- दोपहर का सामना 26 04 2024
पहले चरण के मतदान के बाद चुनाव में रोचकता तो आई है, लेकिन उसमें कटुता भी बढ़ाने का प्रयास किया गया है। माना जा रहा है कि पहले चरण में जनता ने भाजपा को वह अहमियत नहीं दी, जिसका उसने ढिंढोरा पीट रखा था। सियासी जानकारों, पत्रकारों और विभिन्न दलों के नेताओं ने यह आशंका जताई, कि पहले चरण के मतदान में भाजपा पिछड़ती दिख रही है और उसका ४०० पार का नारा महज़ नारा बनकर रह जाएगा। उसके बाद ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमान संभाली और वही किया जो उनकी विशेषता रही है। कपड़ों से पहचानो, श्मशान-क़ब्रस्तान जैसे बयान देने वाले पीएम मोदी ने मुसलमान, घुसपैठिया जैसे बयान देने की शुरुआत की। इस से पहले उन्होंने कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र की तुलना मुस्लिम लीग से करते हुए उसे 'झूठ का पुलिंदा' 'हर पन्ने से भारत के टुकड़े-टुकड़े करने की बू आने वाला' और न जाने क्या-क्या कहकर मुसलमानों को निशाना बनाया था। मतलब साफ़ निकला कि वह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण चाहते हैं। पहले चरण में पिछड़ने की संभावनाओं से घबराए पीएम मोदी ने इसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के संसाधनों वाले बयान को अपनी शब्दावली में गढ़कर और उसी को आधार बनाकर मुसलमानों को कोसा। हालांकि उनकी इस हताशा भरी शैली और नफ़रत भरे बयान की सोशल मीडिया सहित हर मंच पर काफ़ी आलोचना भी हुई। लोगों ने स्पष्ट कहा कि, मुस्लिम समाज को लेकर घुसपैठिया और जमाख़ोरी का उनका दिया गया संदर्भ अपमानजनक है और उनके निम्न वैचारिक दृष्टिकोण का हिस्सा है।
मामला बिगड़ता देख पीएम मोदी अपने बयान के दूसरे ही दिन मुसलमानों को फुसलाने का प्रयास करने लगे। उन्होंने तीन तलाक़ और हज कोटा के मुद्दे पर मुसलमानों से वोट मांगने का स्वांग रचा। पीएम मोदी ने तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ क़ानून बनाने को लेकर मुस्लिम महिलाओं की सहानुभूति बटोरनी चाही, साथ ही हज कोटा बढ़ाने के लिए अपनी सरकार की सराहना की। यह सऊदी सरकार का विशेषाधिकार था और सऊदी सरकार के हमारे देश से यूं भी हमेशा ही बेहतरीन संबंध रहे हैं, इसलिए कोटा मोदी ने बढ़ाया यह मात्र झूठ और वहम के सिवा कुछ नहीं है। बिलकुल उसी तरह जैसे उन्होंने फ़ोन पर रूस-यूक्रेन का युद्ध रुकवाया था। पहले मुस्लिम महिलाओं को अकेले हज पर बिना 'महरम' के जाने पर प्रतिबंध था। अब उसमें ढील दी गई है। उसका क्रेडिट भी पीएम मोदी ख़ुद लेने लगे। उनके इस बयान को हास्यास्पद इसलिए माना गया, क्योंकि यह फ़ैसला सऊदी अरब सरकार ने अपनी उदारवादी नीति को बढ़ावा देते हुए विश्व के सभी देश की महिलाओं के लिए लिया था। देश के प्रधानमंत्री के कई झूठ, जुमले और आश्वासनों का अंबार लोगों के आर्काइव में पड़ा हुआ है। लेकिन वह तब भी अपनी 'झूठ की डफ़ली' पर मुस्लिम राग गाने-बजाने से बाज़ क्यों नहीं आते, यह बात समझ से परे है।
एक प्रधानमंत्री से अपेक्षा की जाती है कि वह लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व में अपनी पार्टी के प्रमुख चेहरे के रूप में जब चुनावी समर में उतरेगा तो भविष्य की योजनाओं पर बात करेगा। वह बात करेगा अपने पिछले कार्यकाल में किये गए कार्यों की। वह देश की खुशहाली और सर्वहित की बात करेगा। वह बेरोज़गारी और महंगाई से मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लोग कैसे प्रभावित हुए हैं, उस पर बात करते हुए उसके निवारण की योजनाओं पर बात करेगा। वह ग़रीब, किसान, मज़दूर, युवा, पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक, महिलाओं, आदिवासियों और दु:खी-पीड़ित अगड़ों की बात करेगा। वह शिक्षा, रोज़गार, उद्यम, स्वास्थ्य, चिकित्सा, विज्ञान, सुरक्षा, इंफ़्रास्ट्रक्चर की बात करेगा। जबकि हमारा प्रधानमंत्री एक समुदाय विशेष के बारे में नाम लेकर और ग़लत बात कह कर पूरी दुनिया में फैले उस समुदाय का अपमान करने में व्यस्त है। अपने सहयोगी दलों को तोड़-फोड़कर ख़त्म करना, दूसरे दलों के नेताओं को केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से डराकर अपने पाले में करना, सांसदों-विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त करना जिस प्रधानमंत्री के १० साल के कार्यकाल का सबसे बड़ा कारनामा रहा हो, उस से देश के भविष्य की बात करने की उम्मीद बेमानी है। ऐसे निराशाजनक और सड़कछाप बयान केवल बयान नहीं, बल्कि देश से भाजपा सरकार की विदाई का रुझान भी हैं। कम से कम यह प्रधानमंत्री पद के स्तर के बयान तो नहीं हैं। दर-हक़ीक़त, मोदी और भाजपा के ऐसे बयानों से उनके अपने समर्थक भी नाराज़ हैं। यह भाजपा की अपनी हार की स्वीकारोक्ति के सामान है। ऐसी असंवैधानिक भाषा का प्रयोग केवल वे लोग ही कर सकते हैं जो संविधान को नष्ट करने का इरादा रखते हैं। ऐसे में मुसलमानों को ख़ासकर सजग रहने की ज़रूरत है। उकसावे में आकर बयानबाज़ी न करना और संविधान की रक्षा के लिए चुनावी समर में उतरे अपने हमवतन हिंदू भाइयों का हिकमत से साथ देना ही समय की मांग है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)