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बहुत दिन बाद ------ कविता / डॉ . वागीश सारस्वत
Friday, December 2, 2016 - 6:15:59 PM - By डॉ . वागीश सारस्वत

बहुत दिन बाद ------ कविता / डॉ . वागीश सारस्वत
डॉ . वागीश सारस्वत
बहुत दिन बाद आज फिर
शब्द फड़फड़ाने लगे
होंठ बुदबुदाने लगे
कसमसाने लगी ख्वाहिश
उड़ने लगा मन आकाश में
खुशियों का समंदर लहराने लगा
तुम्हारे स्पर्श ने हर ली सारी उदासी
बहुत दिन बाद तुमने पलकों पर उठा लिया मुझे

सुनो! याद है ना तुमको, अक्टूबर की वो दोपहर
जब तुमने पहली बार आँखों में भर लिया था मुझे
और वो शाम ....
जब तुमने इज़हार किया था अपने प्यार का
तब तो तुम्हें ये भी नहीं पता था
कि मैं भी उतना ही चाहता हूँ तुम्हें जितना तुम

सुनो! वो रात तो तुम भूल ही नहीं सकतीं
जब तुमने बिस्तर की सिलवटों को ठीक करते हुए
कहा था मुझसे -
"मुझे अपने सिरहाने रखना सदा"

अगली सुबह
जब सरेआम मुनादी पीट दी गयी थी हमारे सम्बंधों की
तब भी तुम अडिग थी
अब भी तुम कायम हो अपने वचन पर

सुनो!
बहुत दिन बाद आज लगा कि
तुमने मुझे जिया है अभी- अभी
मुझे पता है तुम कहोगी-
हम जुदा ही कब हुए थे कभी

बहुत दिन बाद लगा आज कि
हम अब भी वहीं हैं जहाँ थे कभी
देखो! तुम्हें अब भी सर्दी हो जाती है अक्सर
तुमने अब भी नहीं छोड़ा खुद को कोसना
तुम अब भी डरती हो सामाजिक प्रपंचों से उतना ही
तुम अब भी विरोध करती हो दिखावों का

बहुत दिन बाद अभी-अभी लगा ऐसा
कि तुम डांट कर कह रही हो मुझसे -
"तुमको कोई हक़ नहीं है बीमार होने का"
और मैं बुखार की तपिश को झटक देता हूँ
तुम्हारी आवाज के साथ ही
रफूचक्कर हो जाता है बदन का दर्द
तुम रोक देती हो मुझे वो सब करने से
जो नहीं करना चाहिए मुझे
बहुत दिन बाद आज तुमने मुझे आँखें मीड़ने से रोका

बहुत दिन बाद आज
तुमने दिलासा दिया
विश्वास दिया
देखो ना ...
तुम देख रही हो ना ...
बहुत दिन बाद आज मैं मुस्करा रहा हूँ
और
मेरी आँखें बरस रही हैं ।।