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मुस्लिम आरक्षण का नया शगूफ़ा / सैयद सलमान
Friday, May 3, 2024 - 12:01:23 PM - By सैयद सलमान

मुस्लिम आरक्षण का नया शगूफ़ा / सैयद सलमान
प्रधानमंत्री भेदभाव वाले बयान देकर मतों का ध्रुवीकरण करना चाहते हैं।
साभार - दोपहर का सामना 03 05 2024

लोकसभा चुनाव प्रचार अपने शबाब पर है। दो चरण के मतदान के बाद आकलन का दौर जारी है। लेकिन प्रधानमंत्री अब भी हिंदू-मुसलमान की राजनीति से बाहर नहीं आ रहे हैं। हर नए कोण से वह ध्रुवीकरण का एंगल ढूंढ़ ले आते हैं। घुसपैठिया, मंगलसूत्र जैसे अपने तरकश के तीर चलाने के बाद महाशय 'मुस्लिम आरक्षण' का शगूफ़ा लेकर आए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने आरक्षण के मुद्दे पर अपने तरकश से एक और तीर चलाया है, कि जब तक वे जीवित हैं, तब तक दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) का आरक्षण मुसलमानों को धर्म के आधार पर नहीं देने देंगे। प्रधानमंत्री पद पर बैठे किसी व्यक्ति से ऐसे सतही बयान की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आख़िर मुसलमान ख़ुद तो इस श्रेणी में आरक्षण मांग नहीं रहे, तो फिर इस नेरेटिव का अर्थ क्या है? इसका सीधा अर्थ है, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण। चूंकि विपक्ष सख़्ती से मूलभूत प्रश्नों को उठाकर भाजपा और उनके सहयोगी दलों को घेर रहा है, ऐसे में प्रधानमंत्री ख़ुद भेदभाव वाले बयान देकर मतों का ध्रुवीकरण करना चाहते हैं।

वैसे प्रधानमंत्री मोदी अपने ऊपर लगे 'ध्रुवीकरण वाले बयान देने' के आरोपों से साफ़ इनकार करते हैं। फिर भी वह अपने हालिया बयान पर क़ायम हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का बताया है। हालांकि, नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह के जिस १८ साल पुराने भाषण का ज़िक्र किया है, उसमें मुसलमानों को पहला हक देने की बात कही ही नहीं गई थी। हाँ, मनमोहन सिंह ने २००६ में तब यह ज़रूर कहा था कि, ''अनुसूचित जातियों और जनजातियों को पुनर्जीवित करने की ज़रूरत है। हमें नई योजनाएं लाकर ये सुनिश्चित करना होगा कि अल्पसंख्यकों का और ख़ासकर मुसलमानों का भी उत्थान हो सके, विकास का फ़ायदा मिल सके। इन सभी का संसाधनों पर पहला दावा होना चाहिए।'' मनमोहन सिंह ने अंग्रेज़ी में दिए गए भाषण में क्लेम अर्थात दावा शब्द का इस्तेमाल किया था। लेकिन मोदी ने उनके भाषण को अपने हिसाब से पेश कर इस मुद्दे को गरमाया। उन्होंने भाषण में शामिल अनुसूचित जातियों और जनजातियों को अलग किया और केवल मुसलमानों को आरक्षण देने का मुद्दा उठा कर पूरा माहौल ध्रुवीकरण वाला बना दिया। क्या उनका बयान मुसलमानों को बिना किसी ठोस मुद्दे के आहत करने वाला नहीं है?

दरअसल विपक्ष ने पिछले कुछ वर्षों से जाति जनगणना और ओबीसी आरक्षण पर सरकार को घेर रखा है। याद कीजिए, इसी मुद्दे पर नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव सहित बिहार और देश के कई पिछड़े नेताओं को गोलबंद किया था। तब वह खुलकर भाजपा के विरोध में आ गए थे। यहां तक कि एनडीए से अलग होकर आरजेडी के साथ सरकार बना ली थी। उसके बाद के घटनाक्रम में इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस सहित कई दलों ने जातिगत जनगणना की वकालत की थी। तब भाजपा को बैकफ़ुट पर आना पड़ा था, क्योंकि उसे अपने ओबीसी वोटों के बिदकने का ख़तरा था। २०१४ और २०१९ में जातिगत भावनाओं से ऊपर उठकर हिंदुत्व के नाम पर अस्तित्व में आए वोट बैंक ने भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। उस वोट बैंक में विपक्ष की जातिगत मतगणना की मांग से कई विरोधाभास जुड़ गए। उसी को बचाए रखना, अपने साथ जोड़े रखना, भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।

प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पिछले कुछ समय से मुस्लिम समाज के साथ संवाद बनाए रखने का स्वांग रच रहे थे। 'स्नेह यात्रा', 'न दूरी है न खाई है, मोदी हमारा भाई है' जैसे अभियानों के ज़रिए मुस्लिम समाज के बीच अपना राजनीतिक आधार बनाने की कोशिश हो रही थी। चुनाव प्रचार जैसे-जैसे ज़ोर पकड़ता गया, भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रणनीति बदल ली और खुलकर मुस्लिम विरोध पर उतर आए, क्योंकि मुसलमानों का विरोध ही उनकी सबसे बड़ी ताक़त है। बदलते माहौल में लोकसभा चुनाव ने मोदी को यह मौक़ा दे दिया कि वह खुलकर मुस्लिम विरोध की भूमिका लेकर ध्रुवीकरण का दांव खेल सकें। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा इसलिए उठाया है, ताकि विपक्ष की धार को कुंद किया जा सके। भाजपा जानती है कि चुनाव में मूल मुद्दों की तुलना में जातिगत पहचान और धार्मिक विवाद अधिक प्रभावी होते हैं। तो क्या देश के जागरूक नागरिक नहीं जानते कि कि मुस्लिम कार्ड खेलने वालों को कैसे जवाब देना है? मुसलमानों के साथ-साथ देश के सभी सुधि नागरिकों को भाजपा के ध्रुवीकरण वाले जाल में आने से बचना चाहिए। उसे विदेश नीति, आर्थिक नीति, देश की सुरक्षा, चीन की घुसपैठ और लद्दाख के साथ धोखे पर सत्तापक्ष का गिरेबान पकड़ना चाहिए। उसे सिर्फ़ शिक्षा, रोज़गार, उद्योग, स्वास्थ्य, चिकित्सा, विज्ञान, सुरक्षा, इंफ़्रास्ट्रक्चर जैसे मुद्दों पर १० साल वाली सरकार से जवाब मांगना चाहिए।



(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)