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मथुराः हेमा मालिनी को क्या जाट वोट इस बार मिलेंगे, उनकी गैरमौजूदगी है मुद्दा
Sunday, April 21, 2024 - 1:53:59 AM - By News Desk

मथुराः हेमा मालिनी को क्या जाट वोट इस बार मिलेंगे, उनकी गैरमौजूदगी है मुद्दा
Hema Malini
फिल्म एक्ट्रेस रही हेमा मालिनी को इस बार जाट बहू का सहारा नहीं मिला। इस बार वो कह रही हैं कि मैं तो एक गोपिका की तरह हूं। हेमा मालिनी तीसरी बार भाजपा टिकट पर वोट मांग रही हैं। 2014 में पहला चुनाव उन्होंने ड्रीम गर्ल छवि के कारण जीता तो दूसरे चुनाव 2019 में वो यहां जाट बहू बन गईं क्योंकि मथुरा में जाट मतदाता भारी तादाद में हैं। लेकिन वो इस बार खुद को कृष्ण की गोपी बता रही हैं। मथुरा और आसपास का इलाका बृज क्षेत्र कहलाता है, जहां कृष्ण से जुड़ी कहानियां चप्पे-चप्पे पर बिखरी हुई हैं।

यह लोकसभा क्षेत्र मथुरा जिले के पांच विधानसभा क्षेत्रों से बना है और फिलहाल भाजपा का गढ़ बना हुआ है। भाजपा ने 2014 और 2019 के चुनावों में यह सीट जीती है। दोनों चुनावों में, भाजपा की हेमा मालिनी के मुकाबले राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी), कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और समाजवादी पार्टी (एसपी) के प्रमुख लोग उम्मीदवार रहे लेकिन सफलता भाजपा की हेमा को ही मिली।
मथुरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में दूसरे चरण के दौरान 26 अप्रैल, को वोट डाले जाएंगे। इस चुनाव में बीजेपी से हेमा मालिनी का मुकाबला कांग्रेस पार्टी के मुकेश धनगर और बीएसपी के सुरेश सिंह से होगा। यह चुनावी प्रतियोगिता क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण घटना को जन्म देती है, जिसमें मतदाता राजनीतिक परिणाम निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं।

1977 के लोकसभा चुनावों से पहले, इस सीट पर स्वतंत्र उम्मीदवार राजा गिरिराज शरण सिंह (1952) और स्वतंत्रता सेनानी और 1915 में निर्वासन में भारत सरकार के राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप (1957) का कब्जा था। उस वर्ष प्रताप ने भारतीय जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी को हराया था।

मार्च 2010 में राज्यसभा के मनोनीत सदस्य से लेकर भाजपा महासचिव बनने तक, हेमा मालिनी ने 2014 में चुनावी राजनीति में कदम रखा। उन्होंने मथुरा निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ा और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के जयंत चौधरी के खिलाफ विजयी हुईं। हेमा ने 3,30,743 वोटों के भारी अंतर से आरएलडी को हराया था।

इसी तरह, 2019 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा की हेमा मालिनी ने राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के उम्मीदवार, कुंवर नरेंद्र सिंह, जिन्हें 34.26% वोट मिले, और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के खिलाफ 60.88% वोट हासिल करके विजयी हुईं। (कांग्रेस) उम्मीदवार, महेश पाठक को 2.55% वोट मिले।

मुकेश धनगर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश के मथुरा लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हेमा मालिनी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस उम्मीदवार हैं। धनगर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के सदस्य हैं। धनगर का पूरा फोकस मथुरा जिले के गांवों पर हैं। हेमा मालिनी का शोर शहरी इलाके में ज्यादाा है। इस सीट पर जाट मतदाताओं का तादाद सबसे ज्यादा है, बल्कि यह कहा जाए कि मथुरा में जाट मतदाता ही फैसला करते हैं। इस बार हेमा मालिनी गोपी के अवतार में हैं। कभी वो किसान भी बनकर गांवों में गेंहूं काटने पहुंत जाती हैं। हालांकि जाट प्रतीक के रूप में पश्चिमी यूपी में चर्चित जयंत चौधरी का इस बार भाजपा से समझौता है लेकिन जाटों की नाराजगी की वजह से हेमा मालिनी को खासी मशक्कत करना पड़ रही है।

कांग्रेस पहली बार इस सीट पर सत्ता में आई जब किसान नेता चौधरी दिगंबर सिंह ने 1962 में प्रताप को हराकर इस सीट पर जीत हासिल की। उनकी जगह एक अन्य कांग्रेस नेता चकलेश्वर सिंह ने ली। चौधरी दिगंबर सिंह 1980 में जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा में लौटे। वह 1969 में चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल (बाद में भारतीय लोक दल) में शामिल हो गए थे। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस सत्ता में लौट आए जब मानवेंद्र सिंह ने सीट जीती। हालाँकि, वह जनता दल में शामिल हो गए। सिंह जनता दल के टिकट पर दोबारा चुनाव जीते। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। आरएलडी का भाजपा से इस बार समझौता जरूर है लेकिन आरएलडी वोट का ट्रांसफर भाजपा को नहीं करा पा रही है। पहले चरण में जाट बहुल मुजफ्फरनगर में यही देखने को मिला।

भारतीय जनसंघ जब भाजपा में बदला तो भाजपा पहली बार 1991 में मथुरा में सत्ता में आई जब स्वामी सच्चिदानंद हरि साक्षी महाराज जो अब अपने विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं, सत्ता में आए। इस जीत में साक्षी महाराज जाट बहुल निर्वाचन क्षेत्र से जीतने वाले पहले ओबीसी नेता बन गए। अगले तीन चुनावों, 1996, 1998 और 1999 में, चौधरी तेजवीर सिंह (अब राज्यसभा सदस्य) ने मथुरा सीट जीती।