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मोहब्बत के फूल, फुलवारी की साज़िश और राष्ट्रवाद का मार्ग / सैयद सलमान
Friday, July 29, 2022 8:32:26 AM - By सैयद सलमान

मुस्लिम समाज के लोगों ने कांवड़ियों को गोद में उठाकर 'हिंदुस्तान ज़िंदाबाद' के नारे लगाए
साभार- दोपहर का सामना 29 07 2022

भोले शिव शंकर को समर्पित सावन का महीना चल रहा है। चारों ओर भक्तिमय माहौल बना हुआ है। शिवभक्त शिवालयों में जाकर महादेव का जलाभिषेक और पूजा कर रहे हैं। कांवड़ यात्रा भी जारी है। जगह-जगह से कांवड़ यात्रियों के साथ मुस्लिम समाज के जुड़ाव की ख़बरें आ रही हैं। कानपुर देहात स्थित डेरापुर तहसील के बीहड़ और प्रकृति के सुरम्य वातावरण में मौजूद ‘कपालेश्वर महादेव’ व ‘पीर पहलवान’ के नाम से मशहूर मंदिर भी चर्चा में है। यह मंदिर वर्षों से हिंदू-मुसलमान दोनों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है। साल १८९४ में यह मंदिर जंगलों में पाया गया था। खुदाई के समय पाया गया कि शिवलिंग के साथ एक मज़ार भी थी। मज़ार की सूचना पर बड़ी संख्या में मुस्लिम भी वहां इबादत के लिए पहुंचने लगे। तब से हिंदू और मुस्लिम दोनों की आस्था इस अनोखे मंदिर से जुड़ी हुई है।

इस सावन में देश की राजधानी दिल्ली से हिंदू-मुस्लिम एकता की फुहारें भी बरसीं, जब पिछले शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के बाद पूर्वी दिल्ली के जाफ़राबाद में मुस्लिम समाज के लोगों ने शिवभक्त कांवड़ियों पर फूल बरसाए। गुलाब का फूल देकर उनका स्वागत किया। इस बात से कांवड़िए भी बेहद ख़ुश नज़र आए। ताजनगरी आगरा के मुस्लिम युवाओं ने भी शिवभक्तों का पुष्प वर्षा कर स्वागत किया, साथ ही उनके लिए पीने के पानी की व्यवस्था भी की। उत्तर प्रदेश के नोएडा सेक्टर-१२ में भी मुसलमानों ने एकता की ऐसी ही मिसाल पेश की। मुस्लिम समाज के लोगों ने कांवड़ियों को गोद में उठाकर 'हिंदुस्तान ज़िंदाबाद' के नारे लगाए। यह तो कुछ चंद मिसालें हैं। देश के कई हिस्सों से ऐसी ख़बरें आ रही हैं जो धर्मांधता को मुंह चिढ़ाती हैं।

हालांकि कई स्थान से मन मे कड़वाहट घोलने वाली ख़बरें भी आईं। यह इस बात का सबूत है कि देश को मानसिक स्तर पर किस क़दर बांटने की कोशिशें हो रही हैं। समाज में भेद पैदा करने का काम करने वाले विभिन्न समूहों के आईटी सेल, मोहब्बतों में ज़हर घोलने की ज़िद पाले हुए हैं। यह लोग किसी भी हद तक जा रहे हैं। उन्हें दोनों समाज के जाहिलों का समर्थन भी मिल रहा है। उदाहरण के लिए उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद की घटना को ही लें। यहां बिलारी स्थित इब्राहिमपुर गांव में जल लेकर पहुंचे कांवड़ियों का कुछ मुस्लिम महिलाओं ने रास्ता ही रोक दिया। महिलाओं ने रास्ते में बड़ी-बड़ी चारपाई लगा दी और ख़ुद उसके पीछे खड़ी हो गईं। मुस्लिम महिलाओं ने ऐसा इसलिए किया ताकि कांवड़िये उस रास्ते से निकल ना सकें। इस मामले को लेकर दोनों पक्षों के बीच काफ़ी बहस हुई और काफ़ी देर तक हंगामा होता रहा। मुस्लिम महिलाओं का आरोप था कि कांवड़ यात्री तय रूट से नहीं जा रहे हैं, वहीं कांवड़िये मुस्लिम महिलाओं की बात मानने को तैयार नहीं थे। दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात को सही साबित करने में जुटे रहे। ऐसी घटनाएं बताती हैं कि ज़हर अपना काम कर रहा है।

बिजनौर की एक घटना ने तो रोंगटे ही खड़े कर दिए। यहां तीन अलग-अलग स्थानों पर मज़ार में तोड़फोड़ कर चादर में आग लगाने की घटना से लोग स्तब्ध रह गए। आनन-फ़ानन में कार्रवाई हुई और तोड़फोड़ के आरोपित दो मुस्लिम युवकों को गिरफ़्तार कर लिया गया। आश्चर्यजनक बात यह कि दोनों सगे भाई हैं। मुख्य आरोपी ने भगवा पगड़ी पहनकर घटना को अंजाम दिया। यानी, शक किसी और पर जाए। प्रारंभिक जांच में सामने आया कि शिवरात्रि के मौके पर धार्मिक भावना भड़काने की यह साज़िश थी। साथ ही जांच में यह भी सामने आया कि आरोपी २०१० से अब तक तीन बार सऊदी और दो बार कुवैत जा चुका है। एक माह पूर्व वह कुवैत गया था। जांच विदेशी फ़ंडिंग के एंगल से भी की जा रही है। यह काम केवल कोई बहुत ही गिरा हुआ व्यक्ति कर सकता है जो बुज़ुर्गों की मज़ारों की चादर जलाने जैसा घृणित कार्य करे। यह कैसे मुसलमान हैं, समझ से परे है। आख़िर समाज जा कहां रहा है। एक तरफ़ देश में अमन की चाहत रखने वाला मुसलमान अपने धर्मभीरु बिरादरान-ए-वतन की राहों में फूल बरसा रहा है, तो दूसरी तरफ जाहिल उनका रास्ता रोक कर तनाव बढ़ा रहे हैं। मुसलमान होकर भी मज़ारों की चादर जलाकर देश को हिंसा की ओर ले जा रहे हैं। ऐसे मुसलमान शायद यह बात भूल गए कि पैग़म्बर मोहम्मद साहब ने राह में अड़चन पैदा करने वाले कंकड़ हटाने को भी सदक़ा और इबादत का दर्जा दिया। मज़ारों के बहाने क़ब्रस्तान जाते रहने का मशवरा दिया, ताकि इंसान मौत को याद करे और केवल नेकी का मार्ग चुने।

मुस्लिम समाज के लिए मुरादाबाद और बिजनौर से भी बड़ी शर्मिंदगी बिहार में पीएफ़आई के मामले से हुई। आरोप है कि पीएफ़आई साल २०४७ तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहता है। इसके लिए मुस्लिम युवाओं को हथियार चलाने, धार्मिक उन्माद फैलाने और हिंसा भड़काने की ट्रेनिंग दी जा रही है। खुफ़िया एजेंसियों के इनपुट के आधार पर बिहार के फुलवारी शरीफ़ इलाक़े में पीएफ़आई के दफ़्तर में छापेमारी की गई। इस दौरान वहां से कई संदिग्ध और आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई। इसमें पीएफ़आई के मिशन-२०४७ से जुड़ा एक गोपनीय दस्तावेज़ भी मिला, जिसमें भारत को अगले २५ सालों में इस्लामिक राष्ट्र बनाने की साज़िश का ज़िक्र है। पीएफ़आई के चर्चा में आने से पहले सिमी और इंडियन मुजाहिदीन नकारात्मक कारणों से चर्चा में थे। सिमी के आतंकी संगठन घोषित और प्रतिबंधित होने के बाद इंडियन मुजाहिदीन का गठन किया गया था। २०१३ में यासीन भटकल की गिरफ़्तारी से इंडियन मुजाहिदीन की कमर ही टूट गई। खुफ़िया एजेंसियों के मुताबिक़ इंडियन मुजाहिदीन के पतन के बाद देश के विभिन्न राज्यों में पीएफ़आई और उसकी सहयोगी संस्था सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया को मज़बूत करने का काम किया जा रहा है। केरल की दो और कर्नाटक की एक संस्था को मिलाकर पीएफ़आई का गठन किया गया था। बीते कुछ महीनों में हुई कई सांप्रदायिक हिंसाओं में पीएफ़आई का नाम आ चुका है। इसकी जांच जारी है।

फुलवारी शरीफ़ मामले में कई गिरफ़्तारियां हुई हैं। इस मामले में टेरर मॉड्यूल को लेकर भी नए-नए ख़ुलासे हो रहे हैं। जांच में ये भी सामने आया है कि तुर्की समेत कई मुस्लिम देशों से पीएफ़आई को फ़ंड मिल रहा था। आरोप है कि पकड़े गए संदिग्ध उसी ग़ज़वा-ए-हिंद का हिस्सा हैं, जिसमें आतंकी संगठन आईएस ख़ुरासान भी शामिल है। पाकिस्तान के तहरीक-ए-तालिबान संगठन से पैदा हुआ यह युवाओं का वह सशस्त्र गुट है, जिसका मक़सद एक ऐसा विशाल इस्लामिक ख़ुरासान देश बनाना है जिसमें पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, ईरान, उज़्बेकिस्तान से लेकर चीन और भारत का एक बहुत बड़ा इलाक़ा शामिल है। संदिग्ध आतंकियों का पाकिस्तान के एक संगठन तहरीक-ए-लब्बैक-पाकिस्तान से भी कनेक्शन है। हालांकि पीएफ़आई को अभी तक देश में प्रतिबंधित नहीं किया गया है। लेकिन अगर यह बात सत्य है कि पीएफ़आई द्वारा ग़लत कार्यों और हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है तो उसपर प्रतिबंध लगाना अनुचित नहीं होगा। क्योंकि, इस्लाम में अमन की सीख है। इस्लाम में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। मुसलमानों को कांवड़ियों सहित तमाम बिरादरान-ए-वतन पर मोहब्बतों के फूल बरसाते हुए, फुलवारी शरीफ़ के आतंक सहित तमाम हिंसक गतिविधियों को नकारते हुए, किसी मुस्लिम राष्ट्र की राह पर नहीं, बल्कि इस्लाम के राष्ट्रप्रेम पर आधारित 'अपने वतन से मोहब्बत' वाले असल राष्ट्रवाद की राह पर चलने को तरजीह देनी होगी। देश में अमन और चैन लाने और देश को प्रगति पथ पर ले जाने का यही एक मार्ग है।



(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)