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‘शुभ दीपावली’- हर सिम्त है पुरनूर चिराग़ों की क़तारें.....​/ सैयद सलमान ​
Friday, November 5, 2021 9:31:37 AM - By सैयद सलमान

दीपावली को मुस्लिम भाई जश्न-ए-चराग़ां के नाम से भी याद करते हैं
साभार- दोपहर का सामना 05 11 2021

दीपावली की सभी राष्ट्रप्रेमी हिंदू-मुस्लिम सहित सभी बिरादरान-ए-वतन को दिल से मुबारकबाद। हमारा देश विविधताओं से भरा देश है और यही हमारा गौरव भी है। सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता का माहौल क़ायम रखने में और ‘मिल-जुलकर रहने की तहज़ीब’ को बढ़ावा देने में अनेक पर्वों का बड़ा योगदान है। दशहरा, दीवाली, होली, ईद, क्रिसमस, गुरुपर्व, नवरोज़ जैसे विविध पर्व न केवल एक-दूसरे से जोड़ते हैं, बल्कि देश की शान को विश्व पटल पर बढ़ाते भी हैं। इनमें से एक दीपों का पर्व है दीपावली। आध्यात्मिक रूप से दीपावली 'अंधकार पर प्रकाश की विजय' को दर्शाने वाला पर्व है। मुस्लिम समाज भी देश के कई कोनों में इस पर्व को अपने हिंदू भाइयों के साथ धूम-धाम से मनाते हैं। जो मुस्लिम भाई नहीं जानते उन्हें बता दें कि दीपावली शरद ऋतु में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन सनातन त्यौहार है। दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। दीपावली भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दीपावली का संबंध मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से है इसलिए भी त्यौहार की बड़ी महत्ता है। बुद्धिजीवी मुसलमानों का हमेशा से मानना रहा है कि श्रीराम अगर हिन्दुओं की आस्था का केंद्र हैं तो मुसलमानों का अख़लाक़ी फ़र्ज़ है कि वह उन्हें हर तरह से सम्मान दें।

अनेकता में एकता के उदाहरण को अगर साक्षात देखना हो तो राजस्थान के जैसलमेर में मांगणियार और लंगा समुदाय के मुस्लिम परिवारों से मिलना चाहिए। मांगणियार और लंगा समाज के लोग ईद के साथ-साथ दिवाली और होली जैसे हिंदू त्यौहारों को भी पूरे जोश से मनाते हैं। दीपावली पर इनके घर सजावट से लेकर हर वो रस्म निभाई जाती है जो हिंदू परिवार निभाते हैं। जैसलमेर के हिंदू इनके जजमान होते हैं। मांगणियार और लंगा समाज थार रेगिस्तान के लोक संगीतकार के रूप में प्रसिद्ध हैं और वे अल्लाह, श्री गणेश, श्री राम और स्थानीय महाराजाओं तथा पिछली लड़ाइयों के बारे में गीत गाते हैं जिन्हें हिंदू भाइयों द्वारा ख़ूब सराहा जाता है। इसी तरह बिहार प्रांत के सीतामढ़ी में हिंदू भाइयों के घर में दीपावली का पूजा-पाठ मुसलमानों के हाथों से बनी मिट्टी की पूजन सामग्री से ही संपन्न होता है। इन्हीं दीपों से यहां दीपावली का जश्न मनाए जाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। हमारे अपने मुंबई शहर के बाज़ारों में भी आपको हज़ारों ऐसी दुकानें मिल जाएंगी, जहां से दीपावली की ख़रीदारी होती है और वे दुकानें मुस्लिम समाज की होती हैं।

राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर हिंदू-मुस्लिम के बीच चर्चित अयोध्या का भी एक दिलचस्प पहलु है। अयोध्या में रहने वाले हिंदुओं के अलावा मुस्लिम समाज के लोग भी अयोध्या में राम के वजूद से इनकार नहीं करते। इतना ही नहीं अयोध्या में रहने वाले कई मुस्लिम परिवार हिंदू परिवारों की तरह न सिर्फ़ दीपावली का पर्व मनाते हैं बल्कि अपने घरों के सामने दीपक जलाकर १४ वर्षों तक वनवास काटकर लौटने वाले अयोध्या के राजा श्री राम का इस्तक़बाल करते हैं ख़ैर मक़दम करते हैं। इस्लाम में मूर्ति पूजा की मनाही के कारण यहां के मुसलमान भले ही लक्ष्मी और गणेश की पूजा नहीं करते लेकिन अपनी भाषा में ख़ुदा से ये दुआ ज़रूर मांगते हैं कि दीवाली के मुक़द्दस मौके पर उनके घर परिवार और अयोध्या में अमन, चैन, कामयाबी और तरक़्क़ी आए। हर साल इनके बच्चे आतिशबाज़ी भी करते हैं और मिठाइयाँ भी खाई जाती हैं। एक दिलचस्प संयोग यह भी है कि अयोध्या में रहने वाले अनेक मुस्लिम परिवार कई ऐसे कारोबार से जुड़े हैं जिसका सीधा संबंध हिंदू धर्म और उनकी पूजा पद्धति से है। अयोध्या का खड़ाऊं उद्योग, मंदिरों में चढ़ने वाली फूल-मालाएं, मेले में ख़रीदे जाने वाले सौन्दर्य प्रसाधन और कपड़ों जैसे अनेक कारोबार में मुस्लिम समाज का बड़ा तबक़ा शामिल है। साधू संतों के लिए खड़ाऊं बनाने वालों की कई पुश्त इसी कारोबार से जुड़ी है। अयोध्या के मुसलमान जैसे ईद और अन्य मुस्लिम त्योहार मनाते हैं वैसे ही उन्हें दीपावली का भी इंतज़ार रहता है। उनका मानना है कि राजा तो सबका होता है। जब श्री राम अयोध्या के राजा थे, तो हमारे भी राजा हुए। इसलिए हम भी अपने राजा का दीपावली के दिन दीप जलाकर स्वागत करते हैं।

दीपावली को मुस्लिम भाई जश्न-ए-चराग़ां के नाम से भी याद करते हैं। आम मुसलमान तो इस त्योहार से ख़ुद को जोड़ता है, लेकिन प्रबुद्ध तबक़ा भी दीपावली से ख़ुद को अलग नहीं करता। मध्य युग से लेकर अब तक के कई मुस्लिम कवियों ने भी दीपावली पर अपनी क़लम चलते हुए अपने बेहतरीन कलाम से इस त्योहार की महिमा का बखान किया है। ऐसा ही एक नाम है नज़ीर अकबराबादी का जिन्होंने हिंदू भाइयों के विभिन्न त्योहारों पर जिस मस्ती से क़लम चलाई है उसका कोई सानी नहीं मिलता।

नज़ीर अकबराबादी दीपावली पर लिखते हैं;

हर एक मकां में जला फिर दीया दिवाली का
हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का
सभी के दिल में समां भा गया दिवाली का
किसी के दिल को मज़ा ख़ुश लगा दिवाली का
अजब बहार का दिन है बना दिवाली का
हर एक मौक़ों में जला फिर दिया दिवाली का
हर एक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का
सभी के दिल में समां भा गया दिवाली का
किसी के दिल में मज़ा खुश लगा दिवाली का
अजब बहार का है दिन बना दिवाली का

उमर अंसारी ने दीपावली पर अपनी भावनाओं का इज़हार कुछ यूँ किया है;

रात आई है यों दिवाली की
जाग उट्ठी हो ज़िंदगी जैसे
जगमगाता हुआ हर एक आँगन
मुस्कुराती हुई कली जैसे
यह दुकानें यह कूच-ओ-बाज़ार
दुलहनों-सी बनी-सजीं जैसे
मन-ही-मन में यह मन की हर आशा
अपने मंदिर में मूर्ति जैसे

नाज़िश प्रतापगढ़ी दीपावली पर लिखते हैं;

बरस-बरस पे जो दीपावली मनाते हैं
क़दम-क़दम पर हज़ारों दीये जलाते हैं
हमारे उजड़े दरोबाम जगमगाते हैं
हमारे देश के इंसान जाग जाते हैं
बरस-बरस पे सफ़ीराने नूर आते हैं
बरस-बरस पे हम अपना सुराग़ पाते हैं
बरस-बरस पे दुआ माँगते हैं तमसो मा
बरस-बरस पे उभरती है साज़े-ज़ीस्त की लय
बस एक रोज़ ही कहते हैं ज्योतिर्गमय

महबूब राही का दीपावली पर यह कलाम ग़ौर करें;

दिवाली लिए आई उजालों की बहारें
हर सिम्त है पुरनूर चिराग़ों की क़तारें
सच्चाई हुई झूठ से जब बरसरे पैकार
अब ज़ुल्म की गर्दन पे पड़ी अदल की तलवार
नेकी की हुई जीत बुराई की हुई हार
उस जीत का यह जश्न है उस फ़तह का त्योहार
हर कूचा व बाज़ार चिराग़ों से निखारे
दिवाली लिए आई उजालों की बहारें

समाज में एक प्रकार का मिथ है कि दीपावली सिर्फ़ किसी एक मज़हब का त्योहार है। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के बुद्धिजीवियों को इस मिथ को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। जो लोग दूरियां फैला रहे हैं, समाज बांटने की कोशिश कर रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ लोगों को जोड़ने की कोशिश की जानी चाहिए। दीपावली तो रोशनी का त्योहार है। यह असत्य को पराजित कर श्रीराम के घर वापस आने का त्योहार है। श्रीराम सबके लिए पुरुषोत्तम हैं। धर्म अथवा मज़हब की दकियानूसी सोच को दरकिनार कर यह संदेश देने की ज़रूरत है कि इस मुल्क की संस्कृति, रीति-रिवाज, मान्यताएं अलग-अलग हो सकती हैं लेकिन ईश्वर के अस्तित्व की समझ सभी की एक है। चूंकि दीपावली का पर्व सबके जीवन में रोशनी लाने का संदेश देता है, इसलिए त्योहारों के बहाने किसी भी प्रकार के आपसी द्वेष को छोड़कर सभी मज़हब के लोगों को एक साथ आकर देश को तरक़्क़ी की राह पर ले जाने का प्रयास करना चाहिए। ईद, दीपावली, गुरुपर्व और क्रिसमस सहित विभिन्न पर्व तभी सार्थक होंगे, अन्यथा एक दिन का दस्तूर बनकर अगले दिन भुला दिए जाएंगे।



(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)