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इस्लाम में इंसान की जान की ख़ास अहमियत
Friday, April 9, 2021 9:34:02 AM - By सैयद सलमान

देश भर के अनेक उलेमा, शहर क़ाज़ी, मुफ़्ती, हाफ़िज़ हज़रात मुस्लिम समाज में वैक्सीन को लेकर जागरूकता लाने के लिए टीका लगवाने की पहल कर रहे हैं
साभार- दोपहर का सामना 09 04 2021

कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों ने पूरे देश की चिंता बढ़ा दी है। देश में सामने आ रहे कोविड के कुल नए मामलों में आधे से अधिक मामले अकेले महाराष्ट्र से ही हैं। आख़िर महाराष्ट्र कैबिनेट को राज्य में बढ़ते कोरोना के मद्देनज़र सख़्त दिशा-निर्देशों को लागू करने का निर्णय लेना पड़ा। इसे कोरोना से लड़ने के लिए 'ब्रेक द चेन' अभियान कहा जा रहा है। इस बीच पूरे राज्य में वीक-एंड पर लॉकडाउन जारी रहेगा। फ़िलहाल राज्य में संपूर्ण लॉकडाउन तो नहीं लगाया गया है, लेकिन सख़्ती लॉकडाउन से कम भी नहीं है। इस बीच देशभर में टीकाकरण अभियान भी जारी है। इससे पहले जनवरी में कोरोना वैक्सीन को लेकर मुस्लिम समाज के एक गुट का विवादित रवैया सामने आया था। कोरोना रोधी वैक्सीन पर तमाम अटकलों और विवादों के बीच उसके ‘हराम’ और ‘हलाल’ होने के सवालों ने महामारी को लेकर मुस्लिम समाज को भ्रमित कर दिया था। वैक्सीन पर सियासी दलों की सियासत को धार देने में मुस्लिम समाज के इस रवैये ने अहम योगदान दिया था। वैक्सीन के हलाल सर्टिफिकेट की मांग उठने लगी थी। अभी भी अनेक पढ़े-लिखे मुसलमान वैक्सीन को लेकर भ्रमित हैं और टीकाकरण अभियान से ख़ुद को बचाते फिर रहे हैं।  

इस बीच ऐसे कई उलेमा सामने आए जिन्होंने ऐलान किया कि इस्लाम में इंसान की जान की ख़ास अहमियत है, ऐसे में वैक्सीन ज़रूर लगवाएं और किसी भी अफ़वाह पर ध्यान न दें। ऐसे प्रगतिशील उलेमा ने मुस्लिम समुदाय से परिवार, समाज और देशहित में बढ़ चढ़कर बिना किसी भय के टीका लगवाने का आह्वान किया। जब पिछले वर्ष इसी प्रकार की अफ़वाह फैली थी तब कोराेना वायरस से बचाव में लापरवाही को मुस्लिम वर्ग से संबंधित अनेक आइएएस और आइपीएस अधिकारियों ने इस्लाम के ख़िलाफ़ बताया था। उन्‍होंने तब इस्लाम के नज़रिए का स्पष्टीकरण देते हुए कहा था कि कोरोना से अपना और दूसरों का बचाव नहीं करना इस्‍लाम के उसूलों के विपरीत है। मुस्लिम धर्मगुरुओं के अनुसार कोरोना से बचाव के लिए पूरी एहतियात बरतना भी इस्लामी लिहाज़ से पूरी तरह जायज़ है। वैसे भी किसी लाइलाज बीमारी के प्रति लापरवाही बरतना इस्लाम में गुनाह माना गया है। इसलिए मुस्लिम समाज के लोगों को चाहिए कि बिरादरान-ए-वतन के साथ इस महामारी से बचाव के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय सहित विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मापदंड का पूरी तरह पालन करें और इस संक्रमण से बचने का हर संभव प्रयास करें। वैसे स्वागतयोग्य बात यह भी है कि लोगों की शंका को दूर करने के लिए देश भर के अनेक उलेमा, शहर क़ाज़ी, मुफ़्ती, हाफ़िज़ हज़रात मुस्लिम समाज में वैक्सीन को लेकर जागरूकता लाने के लिए टीका लगवाने की पहल कर रहे हैं। इन ख़बरों को प्रमुखता से प्रकाशित करने का असर यह हुआ है कि वैक्सीनेशन सेंटर पर बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के लोग टीका लगवाने पहुंच रहे हैं।

इसी बीच आगामी १२ अप्रैल से मुस्लिम समाज की बोहरा बिरादरी और १४ अप्रैल से शेष मुस्लिम समाज में रमज़ान माह के रोज़ों का आगाज़ होने जा रहा है। पिछले साल की तरह ही इस बार भी पूरे रमज़ान पर कोरोना का साया रहने का अंदेशा है। ऐसे में कोरोना के संक्रमण के साये में रमजान का पूरा मुबारक महीना इस बार भी फंसता नजर आ रहा है। मुस्लिम समाज के लिए रमज़ान का महीना काफ़ी महत्वपूर्ण माना जाता है। रमज़ान के इस पवित्र महीने में मुस्लिम समाज के लोग पूरे महीने ख़ुदा की इबादत करते हैं। दिन में पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ते हैं, क़ुरआन की तिलावत करते हैं, रात में पंजवक़्ता नमाज के अलावा तरावीह की अलग से नमाज़ अदा करते हैं और दिन में रोज़ा अर्थात उपवास रखते हैं। सूर्योदय से पहले एकदम तड़के सेहरी और दिन भर रोज़ा रख कर सूर्यास्त के बाद इफ़्तार करते हैं। पिछले साल लंबे लाकडाउन के बीच और कोरोना वायरस जैसी संकट की घड़ी में मुस्लिम समाज के लोगों ने पहली बार रमज़ान की इबादत के साथ ही ईद भी घर पर रहते हुए ही मनाई थी। हर वक़्त की नमाज़ से पहले अज़ान घरों से हुई थी। लोगों ने ऐसा रमज़ान में पहली बार देखा था। इस बार भी संकट की उसी घड़ी ने दस्तक दी है।

इस बार मुस्लिम समाज की ज़िम्मेदारी बढ़ गई है। प्रशासन का सहयोग ज़रूरी है। मुस्लिम समाज को यह समझना होगा कि कोराेना वायरस सिर्फ़ उस व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, जिसने इसे मूखर्तापूर्ण कार्य के माध्यम से या फिर किसी अन्य कारण से अपने शरीर को संक्रमित करवा लिया हो, बल्कि यह उस व्यक्ति के संपर्क में आने वाले परिवार और समाज में भी पहुंच जाता है। इससे तेज़ी से निर्दोषों की मौत होती है। क़ुरआन के अनुसार अगर कोई एक निर्दोष इंसान को मारता है या दूसरे शब्दों में मारने का कारण भी बनता है तो मानो उसने इंसानियत का क़त्ल कर दिया। और अगर किसी ने किसी एक इंसान की जान बचाई तो मानो उसने समस्त मानव जाति का जीवन बचा लिया। ज़ाहिर है यह बीमारी किसी धर्म या संप्रदाय को देखकर नहीं लगती। ऐसे वायरस को जिसका अभी पुख़्ता इलाज भी न हो, उस से बचाव में लापरवाही करना भी इस्लाम धर्म के ख़िलाफ़ है। देखा गया है कि हर साल रमज़ान शुरू होते ही मुस्लिम बस्तियों में मेलों सा माहौल बन जाता है, लेकिन तय है कि लॉकडाउन के कारण इस बार मुस्लिम इलाकों में सन्नाटा पसरा रहेगा। भले ही ऐसी स्थिति बन रही हो लेकिन कोरोना संकट के चलते मुस्लिम धर्म गुरुओं को चाहिए कि मुसलमानों को मानसिक रूप से तैयार करें कि वे अपने-अपने घरों में नमाज़ पढ़ें, रोज़ा इफ़्तार करें और क़ुरआन की तिलावत करें। इबादत करें, लेकिन ग़ैर-ज़रूरी तौर पर बाहर का रुख़ न करें।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जहां एक तरफ़ देश कोरोना से बेहाल है, वहीं सरकारी गाइडलाइन को दरकिनार करने की वकालत भी कुछ मुस्लिम संगठनों ने शुरू कर दी है। रमज़ान के महीने में पाबंदियों में ढील देने के लिए राज्य के कई मुस्लिम नेताओं ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। पत्र का संक्षेप में भावार्थ यह है कि कि रमजान के दौरान मुस्लिम समाज को रियायत दी जाए और कोरोना के नाम पर पाबंदियां न थोपी जाएं। इन संगठनों और मुस्लिम नेताओं को शायद कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता का अंदाज़ा नहीं है। मुस्लिम समाज को यह जानना ज़रूरी है कि तेजी से बढ़ते संक्रमण के कारण कोरोना वायरस की दूसरी लहर हर दिन नया रिकॉर्ड बना रही है। बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस का अनुमान है कि अगर कोरोना का मौजूदा ट्रेंड जारी रहा तो मई के अंत तक को‍रोना केसों की संख्या १.४ करोड़ को पार कर सकती है। रिसर्च के मुताबिक़ अप्रैल के मध्य का वक्त संक्रमण का पीक हो सकता है। यानी यही वह समय होगा जब रमज़ान शुरू होंगे और बाजारों में इफ़्तार से जुड़ी चीजों की ख़रीदारी के लिए भीड़ बढ़ रही होगी। लोग तरावीह के लिए बड़ी संख्या में मस्जिदों का रुख़ कर रहे होंगे। मई के मध्य में ईद का पर्व आएगा और तब भी बाजारों में भीड़ को कंट्रोल करना भरी पड़ जाएगा। ऐसे में मुसलामानों को समझना होगा कि जान है तो जहान है और अगर जान है तो रमजान आगे भी आएंगे। मुस्लिम समाज को यह समझाया जाना जरूरी है कि वे रोजा रखकर जी भरकर अल्लाह की इबादत करें। इस दौरान कोरोना वायरस से मुक्ति के लिए दुआएं मांगें और और जनजागरण में सहयोग करें। यहां सवाल सिर्फ़ अपनी जान का ही नहीं, समाज, शहर और देश की जान का भी है। क्योंकि किसी को नहीं पता कि कौन किस अवस्था या परिस्थिति में कोरोना का कैरियर बनकर संक्रमण फैला रहा है।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)