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अपनी ऊर्जा सकारात्मक और रचनात्मक कार्यों में लगाए मुस्लिम समाज / सैयद सलमान
Friday, March 19, 2021 10:06:13 AM - By सैयद सलमान

एक व्यक्ति अपने मनमुताबिक़ कोई बात मनवाने की पूरे समाज से ज़िद करे और हार जाने की बात पर ख़ुदकुशी की बात कहे तो ज़ाहिर है कि वह तथ्यों पर नहीं अपनी नकारात्मक सोच को अपने ज़ेहन में गांठ मारकर समाज से लड़ने निकला है।
साभार- दोपहर का सामना 19 03 2021

मुस्लिम समाज में कई ऐसी शख़्सियात हैं, जिनके बयानों से कोई और नहीं बल्कि मुस्लिम समाज ही ज़्यादा आहत होता है। मुस्लिम नामधारी ऐसे लोग अपनी लेखनी या बयानों से मुस्लिम समाज को कटघरे में खड़ा करना चाहते हैं। कभी सलमान रश्दी, कभी तस्लीमा नसरीन, कभी तारिक़ फ़तेह जैसे लोग ऐसी हरकतों से मुस्लिम समाज के ग़ुस्से और नफ़रत का शिकार हो चुके हैं। सलमान रश्दी और तस्लीमा नसरीन की किताबों के विरोध में जुलूस निकले हैं। सलमान रश्दी की किताब सैटेनिक वर्सेज़ के ख़िलाफ़ हुए आंदोलन में कई जानें चली गई थीं। अब एक नया नाम इसी शृंखला में जुड़ गया है, वह है शिया सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिज़वी का। अपने ऊलजुलूल बयानों के लिए प्रसिद्ध वसीम रिज़वी ने सुप्रीम कोर्ट में मांग की है कि क़ुरआन शरीफ़ से २६ आयतें निकाल दी जाएं, क्योंकि उक्त आयतें आतंकवाद की शिक्षा देती हैं। ज़ाहिर है, वसीम रिज़वी की याचिका को लेकर मुस्लिम समुदाय में आक्रोश गहराना ही था। इस मामले में शिया-सुन्नी दोनों उलेमा एक मंच पर आ गए। उलेमा ने उन्हें दीन से ख़ारिज क़रार देते हुए इस्लाम का दुश्मन और आतंकवादी बता दिया।

अब तो यह आरोप लगना भी शुरू हो गया है कि अरबों रुपए का वक़्फ़ घोटाला करने वाले रिज़वी ने सीबीआई की कार्रवाई से बचने के लिए ऐसा शर्मनाक हथकंडा अपनाया है। दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार की सिफ़ारिश पर सीबीआई ने वसीम रिज़वी पर सूबे की शिया वक़्फ़ संपत्तियों को ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से बेचने, ख़रीदने और हस्तांतरित करने के आरोप में यह मामला दर्ज किया है। अपने आपको केंद्रीय जांच एजेंसियों के प्रकोप से बचाने के लिए कई लोगों को सरकार के सामने दुम हिलाते पाया गया है, हो सकता है वसीम रिज़वी भी वही कर रहे हों। मुस्लिम धर्मगुरुओं का एक बड़ा तबक़ा अब यहां तक कहने लगा है कि वसीम रिज़वी ऐसे लोगों की जमात में शामिल हैं, जो अपने वजूद तक को झुठलाते हैं और अपने ही मज़हब से ग़द्दारी करते हैं। वे क़ौम के ख़िलाफ़ गंभीर हरकतें पहले भी करते आए हैं, लेकिन इस बार उन्होंने क़ुरआन शरीफ़ पर उंगली उठाकर सारी सीमाएं पार कर दी हैं। मुस्लिम समुदाय का यह स्पष्ट मानना है कि क़ुरआन शरीफ़ दुनिया की निर्विवाद किताब है और यह किसी और का नहीं बल्कि खुद अल्लाह का कलाम है। उसमें बदलाव करना तो दूर, इसके बारे में सोचना भी बहुत बड़ा गुनाह है। सच जो भी हो मगर मुस्लिम समाज को लगता है कि मज़हब के दुश्मनों के हाथों अपना ज़मीर और ईमान बेच चुके रिज़वी के लिए यह बात अब मायने नहीं रखती और वह धार्मिक विवाद पैदा कर चर्चा में रहना और बड़ा नेता बनना चाहते हैं।

वहीं दूसरी तरफ़ मुस्लिम समुदाय में गहराते आक्रोश को देखते हुए भी वसीम रिज़वी झुकने को तैयार नहीं हैं। खुद वसीम रिज़वी ने माना है कि उनकी इस मांग के बाद उनके घरवाले, यहां तक कि उनके बीवी-बच्चे भी उन्हें छोड़ कर चले गए हैं। वसीम रिज़वी के छोटे भाई ज़हीर रिज़वी का एक बयान सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि वसीम रिज़वी पागल हो गए हैं और अब हमारा उनसे कोई रिश्ता नहीं है। ज़हीर रिज़वी के मुताबिक़ न उनका, न उनकी बहन का और न ही उनकी मां का वसीम से कोई रिश्ता बाक़ी है। ज़हीर का दावा है कि ३ साल पहले ही वसीम के साथ रिश्ते ख़त्म हो चुके हैं। लेकिन वसीम अपनी ज़िद पर क़ायम हैं और उन्होंने दावा किया है कि वह आख़िरी दम तक इस मुद्दे पर लड़ेंगे और जब उन्हें लगेगा कि वो हार रहे हैं तो ख़ुदकुशी कर लेंगे।

एक व्यक्ति अपने मनमुताबिक़ कोई बात मनवाने की पूरे समाज से ज़िद करे और हार जाने की बात पर ख़ुदकुशी की बात कहे तो ज़ाहिर है कि वह तथ्यों पर नहीं अपनी नकारात्मक सोच को अपने ज़ेहन में गांठ मारकर समाज से लड़ने निकला है। मुस्लिम उलेमा ने न सिर्फ़ उन्हें इस्लाम का दुश्मन क़रार दिया है बल्कि उनके मुताबिक वसीम अब मुसलमान ही नहीं हैं। इस लिहाज़ से मरने के बाद उन्हें किसी मुस्लिम क़ब्रिस्तान में भी नहीं दफ़नाया जा सकता। कोई भी आलिम अब उनके जनाज़े की नमाज़ नहीं पढ़ाएगा। मुस्लिम उलेमा ने सरकार से भी गुज़ारिश की है कि वसीम को अब किसी मुस्लिम संगठन या बोर्ड का सदस्य न बनाएं। मुश्किल ही लगता है कि कोई सरकार मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने का मन बनाएगी। यह इस बात से ज़ाहिर होता है, जब भाजपा का मुस्लिम चेहरा माने जानेवाले और बिहार सरकार में मंत्री शाहनवाज़ हुसैन ने वसीम रिज़वी की याचिका का विरोध कर दिया। शाहनवाज़ के मुताबिक़ उनकी पार्टी किसी भी धार्मिक पुस्तक की बेअदबी के ख़िलाफ़ है। शाहनवाज़ हुसैन ने नसीहत दी है कि रिज़वी को इस तरह का कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे देश का माहौल ख़राब हो। मुस्लिम समाज की दुश्मन पार्टी कही जानेवाली भाजपा के सबसे बड़े मुस्लिम नेता का यह बयान क्या यह साबित नहीं करता कि वसीम अकेले पड़ गए हैं?

जानकारी के लिए बता दें कि यह पहली बार नहीं हुआ है जब कुरआन पर विवाद हुआ है। मार्च १९८५ में भी क़ुरआन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कोलकाता उच्च न्यायालय का रुख़ किया गया था। मुस्लिम समूहों ने तब इस याचिका का विरोध किया था। जमात-ए-इस्लामी और केरल मुस्लिम एसोसिएशन ऑफ़ कोलकाता जैसे इस्लामी संगठनों ने ‘कुरआन रक्षा समिति’ की स्थापना तो की, लेकिन क़ानून-व्यवस्था बिगड़ने के डर से मामले में प्रतिवादी नहीं बनने का फ़ैसला किया। जबकि दूसरी ओर तब की पश्चिम बंगाल सरकार ने कोलकाता उच्च न्यायालय में याचिका को लेकर कड़ा रुख़ दिखाया। सरकारी हलफ़नामे में तब कहा गया था कि अदालत के पास कुरआन पर फ़ैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं है। दुनियाभर के मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ और उसके प्रत्येक शब्द इस्लामी मान्यता के अनुसार अटल हैं। काफ़ी उठापटक और न्यायिक प्रक्रिया से गुज़रते हुए उसी वर्ष १७ मई १९८५ को याचिका ख़ारिज कर दी गई थी। इस घटना से सबक़ लेते हुए मुसलमानों को चाहिए कि सब्र और क़ानून का दामन न छोड़ें। गाली-गलौज़ और नकारात्मक संदेशों से कोई लाभ नहीं होना है। साथ ही इतना ध्यान रखा जाए कि इस मुद्दे की आड़ में सामाजिक समरसता न बिगड़ने पाए।

जहां तक बात २६ आयतों की है तो क़ुरआन के बारे में दुष्प्रचार फैलाने का यह तरीक़ा बहुत ही पुराना है। क़ुरआन की जिन आयतों में जंग के मैदान में अत्याचारियों के प्रति युद्ध का उल्लेख है, उन आयतों को अलग-अलग अध्यायों, पाठों में से और अलग-अलग जगह से संदर्भ के बाहर निकाल कर ऐसा दिखाने का कुप्रयास किया जाता रहा है कि क़ुरआन हिंसा के लिए प्रेरित करता है। उदाहरण के तौर पर क़ुरआन (९:५) का हवाला देकर यह कहा जाता है कि क़ुरआन गैर-मुस्लिमों को मारने का हुक्म देता है। जबकि इसकी अगली और पिछली आयत यानी ९:४ और ९:६ ही पढ़ लेने से इसका संदर्भ पता चल जाता है कि यह युद्ध के मैदान की आयत है और उसमें भी हुक्म यह है कि अगर इस युद्ध के दौरान भी कोई पनाह मांगे तो उसे पनाह दी जाए। दरअसल सिर्फ़ क़ुरआन ही नहीं बल्कि विश्व के हर प्रमुख धर्मग्रंथ में युद्ध के मैदान, अत्याचार और अत्याचारियों के विरोध की बातें मौजूद हैं। लेकिन अगर इसी तरह इन ग्रंथों से इन श्लोकों, आयतों और वर्सेज़ को संदर्भ के विपरीत यानी ‘आउट ऑफ़ कॉन्टेक्स्ट’ अलग-अलग निकाल कर एक जगह इकट्ठा कर भ्रमित किया जाएगा तो विश्व का हर धर्मग्रंथ हिंसा को बढ़ावा देता दिखाई देगा। इसलिए क़ुरआन का मुतालआ और पैग़ंबर मोहम्मद साहब की जीवनी का अध्ययन किया जाए तभी सच सामने आएगा। ऐसा न करने पर और अधकचरे ज्ञान पर सिवाय बदनामी, गालियां और परिवार तक का तिरस्कार मिलेगा, जैसा वसीम रिज़वी के साथ हो रहा है। इसलिए बजाय वसीम रिज़वी के, मुस्लिम समाज अपनी ऊर्जा सकारात्मक और रचनात्मक कार्यों में लगाए ताकि मुस्लिम समाज के संपूर्ण उत्थान का मार्ग प्रशस्त हो।

(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)