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अधकचरे ज्ञान से कुचला जा रहा ,सामाजिक सौहार्द
Wednesday, April 22, 2020 10:14:21 PM - By सैयद फ़सिउल्लाह उर्फ़ रूमी निज़ामी

रूमी निज़ामी

वाह रे शोशल मीडिया के ज्ञानी-तूने तो पढ़े लिखे को पिला दिया पानी

फेसबुक,ट्विटर व व्हाट्सएप पर चल रही ज़हालत की यूनिवर्सिटी

आज शोशल मीडिया का ज़माना है जिसके माध्यम से हम एक दूसरे से अपने विचारों को लेकर जुड़े रहते हैं और देश विदेश की खबरें प्राप्त करते रहते हैं।आज आधुनिक युग मे हम व्हाट्सएप,फेसबुक,ट्विटर,इंस्टाग्राम और मैसेंजर पर अपनी बातों को एक दूसरे से शेयर करते रहते हैं क्योंकि इस माध्यम से सेकंडों में ही हम एक दूसरे से जुड़ जाते हैं।आइये अब असल मुद्दे की तरफ चलते हैं कि इस शोशल मीडिया का किस तरह दुरुपयोग हो रहा है जिस कारण लोगों को झूठी व साम्प्रदायिक भड़काऊ खबरें प्राप्त हो रही हैं और इस वजह से लोगों में एक दूसरे की प्रति नफ़रत पैदा रही है।ऐसा नहीं है कि इस पर सिर्फ फ़ेक व झूठी खबरें ही मिलती हैं बल्कि सारी दुनिया में घटने वाली घटनाओं का हमें अपडेट भी मिलता रहता है जिससे हम इन घटनाओं पर पल पल नज़र बनाये रखते हैं।पर इस शोशल मीडिया पर कुछ लोगों द्वारा अधिक ज्ञानी बनकर झूठ व बेवजह का अनर्गल ज्ञान भी परोसा जाता है जिनसे अपना बचाव करना भी एक कठिन इम्तेहान की तरह होता है।
ज़रा अफवाओं की एक बानगी तो देखिये कि माननीय मुख्यमंत्री योगी जी के पिता की मौत की ख़बर भी इस शोशल मीडिया पर खूब छाई रही जबकि असल खबरों में था कि वे अभी वेंटिलेटर पर हैं।किसी वीडियो या तस्वीर को एडिट कर बड़ी सफ़ाई से तैयार कर उसे फेसबुक आदि पर डाल दिया जाता है और फिर फेसबुकिया ज्ञानी लोग इस पर लड़ भिड़ कर अपना आपसी सम्बन्ध भी ख़राब करने से नहीं चूकते भले ही सच्चाई कुछ और हो।अब आजकल इस कोरोना बीमारी में भी कुछ फेसबुकिया ज्ञानी मज़हब ढूंढते नज़र आ रहे हैं तथा झूठी व बेवजह की पोस्ट डाल कर लोगों के दिमाग मे ज़हर भर रहे हैं।
अब अगर देखा जाए तो लोग सच्चाई का पता करने की बजाए उसी झूठी पोस्ट या एडिट की हुई पोस्ट पर घमासान शुरू कर देते हैं और इसका नतीजा यह होता है कि अगर किसी कवि या शायर ने अपनी कविता या शेर ओ शायरी में किसी समसामयिक घटना को दर्शा दिया तो बे वजह वह भी इनका कोपभाजन बन जाता है।आज सोशल मीडिया पर इसी अधकचरे व ज़बरदस्ती ठूंसे गए ज्ञान की वजह से सारा सामाजिक माहौल दूषित होने लगा है और लोग तथ्यों की सच्चाई जाने बिना ही एक दूसरे पर अपशब्द कहने से भी बाज नहीं आते लेकिन जो बुद्धिजीवि हैं वे अपने आपको इससे बचा ही ले जाते हैं।अब आखिरी में यह कहना क़त्तई गलत न होगा कि जागरूकता पैदा करने वाली इन्द्रियों के शिथिल होने के कारण कुछ जाहिल लोगों के लिए सोशल मीडिया पर परोसा गया अधकचरा,एडिट किया गया व झूठा ज्ञान ही पत्थर की लक़ीर होता है । जो कि चिंता का विषय ही नहीं बल्कि ख़तरनाक भी है।
घर घर में लगाएंगे तालीम का सज़र
तालिमयफ़्तों से जगमगायेगा शहर
हर हाथ में क़लम हो ये ख़्वाब हमारा
बहती रहे समाज में तहज़ीब की लहर
"रुमी निज़ामी"