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अयोध्या मामला : कोर्ट के बाहर मामला सुलझाने की एक और कोशिश- सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े ने सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थता पैनल को लिखा पत्र
Monday, September 16, 2019 11:25:05 AM - By सैयद सलमान

सांकेतिक तस्वीर- अयोध्या विवाद को हिंदू और मुस्लिम पक्षकार फिर से कोर्ट के बाहर बातचीत से मुद्दे को सुलझाना चाहते हैं
राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले में एक बार फिर एक नया मोड़ आ गया है। उच्चतम न्यायालय में इस समय राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले की पिछले 23 दिनों से नियमित सुनवाई हो रही है। इस सिलसिले में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा ने एक बार फिर मध्यस्थता की मांग की है और सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त मध्यस्थता पैनल के अध्यक्ष जस्टिस कलीफुल्ला को पत्र लिखा है। यह विवाद अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर है।सुन्नी वक्फ बोर्ड ने साल 1961 में विवादित जमीन के मालिकाना हक के लिए केस किया था। बोर्ड ने अदालत द्वारा नियुक्त मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखकर दोबारा बातचीत शुरू करने की मांग की है। इसी तरह की बात वाला पत्र निर्वाणी अखाड़े ने भी उच्चतम न्यायालय को लिखा है। यह अयोध्या के तीन रामआनंदी अखाड़े में से एक है जो हनुमान गढ़ी मंदिर का संचालन और देखरेख करता है।

गौरतलब है कि मध्यस्थता पैनल में शीर्ष अदालत के पूर्व जज एफएम कलीफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और मध्यस्थता के लिए मशहूर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू शामिल थे। इस पैनल की अध्यक्षता जज कलीफुल्ला कर रहे थे। पैनल ने 29 जुलाई को बातचीत बंद कर दी थी क्योंकि जमीयत उलेमा ए हिंद (मौलाना अरशद मदनी) ने कट्टरपंथी स्टैंड अपनाया और राम जन्मभूमि न्यास ने विवादित स्थल पर मंदिर बनाने की मांग की। जिसके बाद बात बिगड़ गई थी।

सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़े ने न्यायालय के मध्यस्थता पैनल में विश्वास जताया है और समझौते पर बातचीत करने की मांग की है। उलेमा ए हिंद और राम जन्मभूमि न्यास की वजह से बात बिगड़ने से पहले तक दोनों पक्ष लगभग अंतिम निर्णय पर आ गए थे लेकिन दो पक्षकारों के हार्ड स्टैंड के कारण यह कोशिश रुक गई थी। मध्यस्थता पैनल की प्रक्रिया आठ मार्च से शुरू हुई थी और 155 दिनों तक चली थी। अब रामआनंदी अखाड़े और निर्मोही अखाड़े ने मध्यस्थता की वकालत की है। 

जमात उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सुहैब कासमी ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा कि 2016 में अयोध्या वार्ता कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी एक बार फिर भूमि विवाद को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के प्रभावशाली लोगों को शामिल कर बातचीत करेगी। मध्यस्थता प्रक्रिया संभवत: अक्टूबर से शुरू होगी। 

वहीं दूसरी तरफ सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील इस बात से इनकार कर रहे हैं कि कोई पत्र भेजा गया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा है कि वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने हो सकता है कि अपनी पर्सनल कैपेसिटी में कुछ भेजा हो सकता है। वकीलों का कहना है एक बार सुनवाई शुरू होने के बाद मध्यस्थता पैनल को भंग कर दिया गया है। इसके अलावा, निर्वाणी अखाड़ा जिसका नाम मध्यस्थता के लिए सामने आया है, मामले का पक्षकार नहीं है। उसके जिम्मे हनुमानगढ़ी मंदिर का प्रभार है। बोर्ड के वकील ने कहा है कि हो सकता है निर्वाणी अखाड़े ने एक "अराधक" के रूप में एक हस्तक्षेप याचिका दायर की गई हो लेकिन राम जन्मभूमि विवाद में इसे आधिकारिक पक्षकार नहीं माना जा सकता।
ज्ञात हो कि रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का अदालत से बाहर समाधान निकालने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक पैनल बनाया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज एफएम कलीफुल्ला, सीनियर वकील श्रीराम पंचू और अध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर का नाम शामिल था। इस पैनल ने इस विवाद से जुड़े पक्षकारों से 155 दिनों तक बातकर मामले का समाधान निकालने की कोशिश की, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली। मध्यस्थता से निपटारे की कोशिश नाकाम होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई। फिलहाल हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलें पूरी कर ली है और मुस्लिम पक्ष अपनी दलीलें रख रहा है। पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है, जिसमें जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर भी शामिल हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई इसके अध्यक्ष हैं।

सुप्रीम कोर्ट में कुल 14 अपीलें, तीन रिट पीटिशन और एक अन्य याचिका लंबित है। सुनवाई की शुरूआत मूल वाद संख्या 3 और 5 से हुई। मूल वाद संख्या 3 निर्मोही अखाड़ा और मूल वाद संख्या पांच भगवान रामलला विराजमान का मुकदमा है। गौरतलब है कि साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। कोर्ट ने इस दौरान एक हिस्सा भगवान रामलला विराजमान, दूसरा निर्मोही अखाड़ा व तीसरा हिस्सा सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को देने का आदेश था। इस फैसले को  हिन्दू मुस्लिम सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट में ये अपीलें 2010 से लंबित हैं और कोर्ट के आदेश से फिलहाल अयोध्या में यथास्थिति कायम है।