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मोदी का मुसलमानों पर मशवरा ! / सैयद सलमान
Friday, January 20, 2023 10:17:49 AM - By सैयद सलमान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को सख़्त निर्देश दिया है कि मुस्लिम समाज के बारे में ग़लत बयानबाज़ी ना करें
साभार- दोपहर का सामना 20 01 2023

इस वर्ष आयोजित भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक काफ़ी महत्वपूर्ण थी। एक तो राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यकाल को बढ़ाना था, दूसरे कुछ नीतियां ऐसी भी तय करनी थीं जिनसे आने वाले चुनाव में पार्टी को लाभ हो सके। सियासी नज़रिए से साल २०२३ और २०२४ बहुत महत्वपूर्ण रहेगा, क्योंकि वर्तमान वर्ष में ९ राज्यों के और अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा सहित सभी पार्टियां चुनावों की तैयारी में जुट गई हैं। इस बीच मुस्लिम समाज से जुड़ी एक महत्वपूर्ण बात राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकल कर सामने आई। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख़ुद भाजपा कार्यकर्ताओं को सख़्त निर्देश दिया कि मुस्लिम समाज के बारे में ग़लत बयानबाज़ी ना करें। यही नहीं, बल्कि उन्होंने ताक़ीद की है कि, भाजपा नेता और कार्यकर्ता देशभर में मुसलमानों के पास जाएं और उनसे बात करें। उन्होंने बोहरा और पसमांदा मुसलमानों से ख़ास तौर पर बातचीत करने के लिए कहा है। पीएम मोदी ने भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को नसीहत दी है कि कोई वोट दे या ना दे लेकिन उससे ज़रूर मिलें। मोदी ने इशारों-इशारों में एक और बड़ी बात कही है। उन्होंने अपनी पार्टी के कई बयानबाज़ नेताओं से साफ़-साफ़ कहा है कि, उन्हें मर्यादित भाषा बोलने की ज़रूरत है। पीएम मोदी फ़िल्मों के अनावश्यक विरोध को लेकर भी सख़्त हुए हैं। उनका इशारा शायद 'पठान' फ़िल्म के विरोध में आ रहे कई भाजपा नेताओं के बयान की तरफ़ था। यह बात अलग है कि पीएम मोदी ने ख़ुद 'द कश्मीर फ़ाइल्स' फ़िल्म विवाद के दौरान भाजपा संसदीय दल की बैठक में फ़िल्म की तारीफ़ की थी और सभी को फ़िल्म देखने के लिए प्रेरित किया था। तब बड़ा विवाद भी हुआ था कि, क्या प्रधानमंत्री को किसी फ़िल्म का प्रचार ख़ुद करना चाहिए? वही प्रधानमंत्री अब फ़िल्मों के विवाद पर दामन बचाने की बात कह रहे हैं। वह भी शायद समझ गए हैं कि, इस तरह के फ़िल्मी विवाद से भले ही तात्कालिक राजनीतिक लाभ होता हो, लेकिन कुल मिलाकर केवल सामाजिक वातावरण ही बिगड़ता है।

ख़ैर, जहां तक बात पसमांदा मुसलमानों की है, यह मुद्दा भाजपा के एजेंडे में उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान भी था। गुजरात चुनाव में अलग से बोहरा मुसलमानों को अपने पक्ष में रखने के हर जतन किये गए थे। अब चूंकि लोकसभा चुनाव की तैयारियों का दौर है, तो मोदी ने पसमांदा मुसलमानों, बोहरा समुदाय, मुस्लिम पेशेवरों और शिक्षित मुसलमानों से बिना वोट की उम्मीद किए मेल-मिलाप बढ़ाने का मशवरा दिया है। मोदी जानते हैं कि, उनके कार्यकाल में हुए कई फ़ैसलों से जनता में नाराज़गी है। हर बार आज़माया गया हिंदू-मुस्लिम कार्ड नहीं चलाया जा सकता। लोग अगर मूलभूत सुविधाओं और मुद्दों पर वोट देंगे तो नुक़सान उठाना पड़ सकता है। ऐसे में जो सॉफ़्ट टारगेट हैं उन्हें अपने पाले में किया जा सकता है। ज़मीनी हक़ीक़त से वाक़िफ़ मोदी जानते हैं कि सामाजिक समरसता के लिए हर गांव, हर शहर, हर गली में हर एक मतदाता तक पहुंचना बहुत ज़रूरी है। वैसे मोदी ने पहली बार पसमांदा और बोहरा मुसलमानों को पार्टी में लाने पर ज़ोर नहीं दिया है। गुजरात में मुख्यमंत्री का पद संभालने के दौरान उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश शुरू कर दी थी। लेकिन २००२ के भयानक दंगों के दौरान मुस्लिमों की नाराज़गी के चलते मोदी ने तब मुसलमानों को दरकिनार किया। बाद में एक ख़ास रणनीति के तहत उन्होंने पूरे मुस्लिम समाज को एक करने के बजाय पिछड़ों और बोहरा मुसलमानों पर ध्यान केंद्रित किया। क्योंकि, वह जानते थे कि पूरा मुस्लिम समुदाय साथ आने से रहा, इसलिए दाल में नमक बराबर भी मुसलमान उनसे जुड़े तो यह लाभ ही कहा जाएगा। अपनी सुरक्षा की गारंटी पर तब बड़ी संख्या में व्यापारी वर्ग के मुसलमानों ने भाजपा का साथ दिया था। मुस्लिम समुदाय में बोहरा बिरादरी अपने व्यापार कौशल के लिए जानी जाती है। इस रणनीति का फ़ायदा गुजरात में भाजपा को मिला। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी मोदी मुसलमानों के इस तबक़े को साथ लेने के लिए हमेशा ज़ोर देते रहे।

पीएम मोदी का यह मुस्लिम प्रेम बीच-बीच में जागता रहता है। खाड़ी देशों के दौरे के दौरान की उनकी अनेक तस्वीरें इसका सबूत हैं। ट्रोलर्स तब किसी को टारगेट नहीं करते। उलटे इसका बखान करते हैं। ज़ाहिर सी बात है जब भाजपा की महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यकारिणी में नरेंद्र मोदी मुसलमानों को लेकर कोई बयान देंगे तो मुसलमानों की तरफ़ से प्रतिक्रियाएं भी आएंगी। उनका दृष्टिकोण भी चयनात्मक ही होगा। किसी ग़ैर-भाजपा दल से उनके बयान के समर्थन की उम्मीद सियासी नज़रिये से उचित भी नहीं है। हां, कुछ मुस्लिम धर्मगुरु ज़रूर उनकी भूमिका का स्वागत कर रहे हैं। शिया धर्म गुरु कल्बे जव्वाद, सुन्नी धर्मगुरु मौलाना ख़ालिद रशीद फ़रंगी महली सहित कुछ धर्मगुरुओं के बयान सामने आए हैं जो मोदी के बयान को खुले दिल वाले नेता की हैसियत से दिया गया बयान बताते हैं। मुस्लिम धर्मगुरुओं को उम्मीद है कि मोदी के बयान के बाद लोग इसे गंभीरता से लेंगे और जो भाजपा नेता मुसलमानों के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी करते हैं उस पर रोक लगेगी। हालांकि इन धर्मगुरुओं को शुरू से शिकायत है कि मोदी कुछ भी कह लें, कुछ भी कर लें लेकिन भाजपा के कुछ छुटभैये नेता माहौल ख़राब करते रहते हैं और विपक्ष को इस पर बहाना मिल जाता है। वह चाहते हैं कि पीएम हेट स्पीच देने वालों को सिर्फ़ नसीहत न करें, बल्कि उन पर सख़्ती से रोक लगाएं। लेकिन यह शायद मोदी या पूरी भाजपा के लिए कर पाना कठिन है। इसके अलग सियासी गुणा-भाग हैं, जिसे हल करने में ख़ुद भाजपा ही प्रश्न बन जाएगी।

वैसे सपा सांसद डॉ एस. टी. हसन जैसे कुछ नेताओं ने भी अपने नेताओं को मुस्लिम समाज के बीच जाने के निर्देश देने वाली प्रधानमंत्री की भूमिका का स्वागत किया है। लेकिन उनका कहना है कि चुनाव क़रीब आ रहे हैं इसलिए इस दौरान ये बात कहना पूरी तरह से सियासी क़दम है। जो भी हो भाजपा के अपने सर्वे और कार्यकर्ताओं के फ़ीडबैक यह बताते हैं कि हर चुनाव में भाजपा के पक्ष में मुसलमानों के वोटों की तादाद पिछले चुनाव से ज़्यादा होती जा रही है। अख़बारी आंकड़ों के मुताबिक़ साल २००९ के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात्र ४ फ़ीसद मुस्लिम वोट मिले थे। जबकि अगले चुनाव यानी २०१४ में यह तादाद दोगुने से भी ज़्यादा हो गई। यही वह वक़्त था जब मोदी को विकासपुरुष बताते हुए पूरा चुनावी तंत्र उनके इर्द-गिर्द रखा गया था। आंकड़े कहते हैं २०१४ में भाजपा को ९ फ़ीसद मुस्लिम वोट मिले। सरकार बनने के बाद ट्रिपल तलाक़ जैसे क़ानून बनने से मुस्लिम महिलाएं प्रभावित हुईं और उन्होंने कहीं खुले तौर पर, कहीं ढंके तौर पर भाजपा के पक्ष में मतदान किया। इसका नतीजा यह हुआ कि २०१९ में यह तादाद २० फ़ीसद पहुंच गई। यही वजह है कि भाजपा अब मुस्लिम समुदाय को लेकर अपनी छवि और ज़्यादा सुधारना चाहेगी और २० फ़ीसद से ज़्यादा मुस्लिम वोट हासिल करना चाहेगी। भाजपा के लिए यह इतना आसान नहीं है। क्योंकि मॉब लिंचिंग और अन्य मुद्दों पर मोदी की कई नसीहतों पर वक़्ती ख़ामोशी तो रहती है, लेकिन फिर वही हेट स्पीच का सिलसिला शुरू होता रहा है। मोदी का अपनी ही एक सांसद को दिल से माफ़ न करने वाला बयान भी लोगों के सामने है। वह अब भी उसी अंदाज़ में बयान देती रहती हैं। देखना यह है कि इस बार मोदी की नसीहत और उनका मशवरा उनकी अपनी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता कितना मानते हैं।







(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)