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मुसाफ़िर, नमाज़ और मुसलमानों की ज़िम्मेदारियां / सैयद सलमान
Friday, November 4, 2022 - 10:03:50 AM - By सैयद सलमान

मुसाफ़िर, नमाज़ और मुसलमानों की ज़िम्मेदारियां / सैयद सलमान
नमाज़ के लिए यह हुक्म है कि नमाज़ हमेशा विनम्रता और समर्पण के साथ अदा की जाए।
साभार- दोपहर का सामना 04 11 2022

विवाद और मुसलमान एक दूसरे के पर्याय हो गए हैं। अभी कुछ महीनों पहले लखनऊ के लूलू मॉल में नमाज़ पढ़ने का मामला गरमाया था। याद होगा, ७-८ लोगों के गुट ने तब बाक़ायदा जमात से वहां नमाज़ पढ़ी थी। सबसे पहले इन सबने लुलु मॉल के ग्राउंड फ़्लोर पर नमाज़ अदा करने की कोशिश की थी, लेकिन सिक्योरिटी गार्ड के मना करने के बाद दूसरी मंज़िल के कोने में ख़ाली जगह पर उन्होंने नमाज़ अदा की। फिर सभी मॉल से बाहर चले गए। इन युवकों ने मॉल से किसी भी तरह की कोई ख़रीदारी नहीं की। यानी वह बस नमाज़ के लिए आए थे। पुलिस ने एक्शन लिया और गिरफ़्तारियां हुईं। कुछ दिन बाद लूलू मॉल में ही एक महिला ने नमाज़ पढ़ी, जिसका वीडियो तेज़ी से वायरल हुआ। इन घटनाओं के कारण मुस्लिम समाज के ख़िलाफ़ बोलने का लोगों को मौक़ा मिला और उन्हें जमकर कोसा गया। मामला यहां तक बढ़ा कि उसी मॉल में विरोधस्वरुप हनुमान चालीसा पढ़कर जवाब दिया गया।

ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कुशीनगर रेलवे स्टेशन से वायरल हुए वीडियो में सामने आया, जिसमें दिखा कि कुछ लोग ट्रेन के स्लीपर कोच में चादर बिछाकर नमाज़ पढ़ रहे हैं। इस दौरान गलियारे से अन्य यात्रियों के आने-जाने पर रोक लगी हुई है। नमाज़ पढ़ रहे लोगों के साथ बर्थ पर बैठा हुआ एक व्यक्ति, आने-जाने वालों को हाथ से रुकने का इशारा कर रहा है। रास्ता अवरुद्ध होने की वजह से कुछ यात्री किनारे खड़े हैं। सवाल उठना शुरू हुआ कि आख़िर लोगों का रास्ता रोककर नमाज़ पढ़ना कहां तक जायज़ है? ट्रेन में इस तरह नमाज़ पढ़ना सही है या ग़लत? स्लीपर कोच में कुछ लोगों द्वारा नमाज़ पढ़ने पर यात्रियों को आने-जाने में असुविधा हुई। लोगों को नमाज़ ख़त्म होने का इंतज़ार करना पड़ा। इस घटना के बाद नमाज़ पढ़ने वालों के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर प्रशसन पर दबाव डालने वाले मैसेजेस से सोशल मीडिया भर गया।

नमाज़ पढ़ने को लेकर कुछ अहकामात हैं जिनका पालन किया जाना चाहिए। सफ़र में नमाज़ पढ़ने को लेकर काफ़ी छूट दी गई है। मुसाफ़िरों को नमाज़ छोटी करने यानी क़स्र (संक्षिप्त) नमाज़ पढ़ने को कहा गया है। क़ुरआन में एक जगह आया है कि, 'जब तुम ज़मीन में सफ़र करो तो तुम पर इसका गुनाह नहीं कि नमाज़ क़स्र करो, अगर ख़ौफ़ हो कि तुम फ़ितने में डाले जाओगे- (अल-क़ुरआन- ४:१०१) यह उन परिस्थितियों के लिए कहा गया है जबकि आप किसी ऐसे सफ़र पर हों जहां आपके दुश्मन हों, आप जंग में सिपाही हों, या फिर किसी ऐसे रास्ते से गुज़र रहे हों जहां चोर-डकैतों का ख़तरा हो। ९२.५ किलोमीटर से ज़्यादा लंबी दूरी के मुसाफ़िर पर यह वाजिब कर दिया गया कि वह चार रकअत वाली फ़र्ज़ नमाज़ को बस दो ही रकअत पढ़े। उलेमा यहां तक कहते हैं कि जानबूझ कर चार रकअत पढ़ी तो गुनाहगार हुआ, क्योंकि उसके हक में दो ही रकअतें पूरी नमाज़ है। इस्लाम में अनिवार्य प्रार्थना को जानबूझकर छोड़ना गुनाह है। इबादत का परित्याग व्यभिचार, चोरी और शराब पीने से बड़ा पाप है। इसलिए हर मुसलमान चाहता कि वह हर नमाज़ को समय पर अदा करने की व्यवस्था करे। हालांकि अगर वह समय पर कोई नमाज़ अदा न कर पाए तो उसे पहले उपलब्ध मौक़े पर क़ज़ा नमाज़ पढ़ने की छूट भी है।

पैग़ंबर मोहम्मद साहब और उनके साथियों का समय बीतने के बाद भी नमाज़ अदा करने का उदाहरण मौजूद है। सहाबी अबू हुरैरा की एक हदीस है कि मोहम्मद साहब अपने साथियों के साथ ख़ैबर से लौट रहे थे। हज़रत बिलाल की रखवाली में वह एक मक़ाम पर लेट गए और उन्हें नींद आ गई। इसी क्रम में उनके साथी सहाबी भी सो गए। यहां तक कि हज़रत बिलाल को भी नींद आ गई। थकान से नींद ऐसी आई कि सूर्योदय तक किसी की आंख न खुली। जब सूरज निकला और उसकी किरणें गिरीं तो सबसे पहले मोहम्मद साहब जागे। फ़जर की नमाज़ का वक़्त निकल गया था। हज़रत बिलाल ख़ौफ़ज़दा गए कि मोहम्मद साहब नाराज़ न हो जाएं। लेकिन उन्होंने बिना किसी नाराज़गी के अपने साथियों को आगे बढ़ने का आदेश दिया। एक स्थान पर रुक कर जहां पानी का इंतज़ाम था, मोहम्मद साहब और सहाबा ने वज़ू किया और मोहम्मद साहब ने सभी को नमाज़ पढ़ाई। उन्होंने नमाज़ बाद अपने साथियों से कहा कि, 'जो कोई नमाज़ भूल जाए, उसे याद आने पर पढ़ लेना चाहिए'- (सहीह मुस्लिम)। हालांकि यह भूल जाने का मसला है, लेकिन है तो नमाज़ छूटने का मामला ही, वह भी ख़ुद मोहम्मद साहब का। लेकिन उन्होंने किसी को भी इसके लिए न ही डांटा, न नाराज़ हुए। बस छूटी हुई नमाज़ को अदा करने का आदेश दिया।

नमाज़ के लिए यह हुक्म है कि नमाज़ हमेशा विनम्रता और समर्पण के साथ अदा की जाए। आपा-धापी में या केवल दिखाने वाली नमाज़ अदा करने से सवाब तो मिलने से ही रहा, अलबत्ता गुनाह है कि आपने नमाज़ को पूरे समर्पण से अदा नहीं किया। अब बात अगर ट्रेन, बस या हवाई जहाज़ पर पढ़ने की करें तो मुसलमान दिल पर हाथ रखकर बताएं कि क्या इन सवारियों पर सफ़र के दौरान वह शांत चित्त रहते हैं। क्या सफ़र का दबाव उन पर नहीं रहता? क्या वह अपने सामान, अपने परिवार, सवारी के समय इत्यादी को लेकर तनाव में नहीं रहते? फिर ऐसे में वह शांत चित्त होकर भला नमाज़ कैसे अदा कर पाएंगे? ट्रेन के गलियारे में जगह ही कितनी होती है कि वहां नमाज़ पढ़ी भी जाए और कोई आसानी से अगल-बगल से गुज़र भी जाए। इस्लाम में तो कठिन परिस्थितियों में इशारे से भी नमाज़ पढ़ने की छूट है। अगर नमाज़ छूटने का इतना ही डर हो तो इशारे से भी तो पढ़ी जा सकती है। किसी दौर में ट्रेन में अमूमन बिना अनुमति के ही नमाज़ पढ़ी जाती रही होगी। वह दौर अलग था, अब दौर अलग है। अब अगर किन्हीं कारणों से सामाजिक सहिष्णुता में कमी आई है तो उसे बढ़ाना चाहिए या कम करने का प्रयास होना चाहिए?

हालांकि हमारे देश के संविधान का अनुच्छेद २५, सभी नागरिकों को अंतःकरण की आज़ादी देता है और अपने धर्म को मानने, उसका आचरण करने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है। लेकिन किसी सार्वजनिक स्थान पर प्रार्थना करने के लिए अनुमति का प्रावधान है। प्रशासन जहां तक संभव हो, अनुमति भी प्रदान करता है। हां, तब ज़रूर इनकार किया जाता है जब कहीं मामला तनावपूर्ण हो। जिस तरह से ट्रेन में नमाज़ पढ़ी जा रही थी, क्या शिष्टाचारवाश किसी सहयात्री से पूछ गया था कि, उन्हें कोई दिक़्क़त तो नहीं होगी? पूरे डिब्बे में अगर केवल मुसलमान भी होते, तो हो सकता है कुछ लोग तब भी दिक़्क़त की बात करते, लेकिन यहां तो अन्य हमवतन भाई-बहन भी यात्रा कर रहे थे। जिस इस्लाम में राह से कंकर हटाने को भी सवाब माना गया हो, उसके मानने वाले रास्ता अवरुद्ध कर लोगों को तकलीफ़ दें तो विचार करना होगा कि क्या वह सही इस्लाम की रहनुमाई कर रहे हैं? जिस इस्लाम ने बिना किसी को तकलीफ़ दिए जीवन जीने की सीख दी हो, वही इस्लाम अपनी सबसे महत्वपूर्ण प्रार्थना नमाज़ को किसी को तकलीफ़ देकर पढ़ने की बात कहेगा? हमेशा इस बात का ध्यान रखने की ज़रूरत है कि किसी एक समुदाय की धार्मिक गतिविधि से दूसरे समुदाय में अविश्वास, भय या असुरक्षा का भाव उत्पन्न न हो और सार्वजनिक रूप से की जाने वाली कोई भी धार्मिक गतिविधि शांति और बिना किसी मतभेद के संपन्न हो सके।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)