Saturday, April 20, 2024

न्यूज़ अलर्ट
1) मल्टी टैलेंटेड स्टार : पंकज रैना .... 2) राहुल गांधी की न्याय यात्रा में शामिल होंगे अखिलेश, खरगे की तरफ से मिले निमंत्रण को स्वीकारा.... 3) 8 फरवरी को मतदान के दिन इंटरनेट सेवा निलंबित कर सकती है पाक सरकार.... 4) तरुण छाबड़ा को नोकिया इंडिया का नया प्रमुख नियुक्त किया गया.... 5) बिल गेट्स को पछाड़ जुकरबर्ग बने दुनिया के चौथे सबसे अमीर इंसान.... 6) नकदी संकट के बीच बायजू ने फुटबॉलर लियोनेल मेस्सी के साथ सस्पेंड की डील.... 7) विवादों में फंसी फाइटर, विंग कमांडर ने भेजा नोटिस....
अक्षय तृतीया, ईद और लाउडस्पीकर- तनाव नहीं, सद्भाव ज़रूरी / सैयद सलमान
Friday, April 29, 2022 - 2:24:24 PM - By सैयद सलमान

अक्षय तृतीया, ईद और लाउडस्पीकर- तनाव नहीं, सद्भाव ज़रूरी / सैयद सलमान
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए ध्यान रखें कि लाउडस्पीकर की आवाज़ बाहर न जाने पाए
साभार- दोपहर का सामना 29 04 2022

अगले सप्ताह दो त्योहार एक साथ आ रहे हैं। ३ मई को इन दोनों त्योहारों का एक साथ आना बेहद ख़ूबसूरत एहसास होगा। हिंदू-मुस्लिम एकता की यह एक बड़ी मिसाल होगी। एक पर्व है 'अक्षय तृतीया' और दूसरा है 'ईद-उल-फ़ित्र' जिसे आम बोलचाल में रमज़ान ईद कहा जाता है। अक्षय तृतीया एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जिसे घरों में सौभाग्य लाने के लिए मनाया जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषण, घर, भूखंड, वाहन वग़ैरह की ख़रीदारी से संबंधित कार्य किए जा सकता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिलकर मनाते है और ख़ुदा से सुख-शांति और बरकत के लिए दुआएं मांगते हैं। रमज़ान में पूरे महीने रोज़े रखने के बाद ईद-उल-फ़ित्र अल्लाह से इनाम लेने का दिन है। दोनों त्योहारों की विशेषता है कि यह आला दर्जे की रूहानियत और सकारात्मकता का संदेश देते हैं।

लेकिन इस बार यह दो त्योहार कुछ लोगों की ओछी राजनीति के कारण जोश से नहीं बल्कि तनाव में रहते हुए मनाए जाएंगे। रमज़ान और ईद के मौके पर लाउडस्पीकर का मुद्दा अपने चरम पर है। ईद ही के दिन अक्षय तृतीया भी है। लाउडस्पीकर मुद्दे पर आम जनों की यह शंका स्वाभाविक है कि इस से तनाव हो सकता है। लेकिन जो सचमुच धर्मभीरु हैं वह जानते हैं कि दो पर्वों का एक साथ आना ईश्वर का एक अपरोक्ष संदेश है कि आप कितना भी लड़-झगड़ लें, वह किसी न किसी बहाने आपको एक जगह इकट्ठा करने की कोई न कोई तरकीब निकाल ही लेगा। ऐसा कई बार हुआ है कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या अन्य किसी भी दो मज़हब के त्योहार एक ही दिन आए हैं। यह अपने आप में बड़ा ही ख़ूबसूरत संयोग होता है। ख़ास कर उनके लिए जो मोहब्बत पर यक़ीन रखते हैं। जिन्हें इस बहाने भी भेद पैदा करना हो उनके लिए तो सौहार्द बिगाड़ने का यह सबसे बेहतरीन मौक़ा होता है। इस बार कुछ स्वार्थी राजनैतिक दलों द्वारा धमकी दी गई है कि, अगर ३ मई तक प्रदेश की मस्जिदों से लाउडस्पीकर नहीं हटाए गए, तो वह मस्जिदों के सामने लाउडस्पीकर पर ही हनुमान चालीसा पढ़ेंगे। ऐसे में राज्य में घटित किसी भी अप्रिय घटना के लिए वे नहीं बल्कि सरकार ज़िम्मेदार होगी। देश के लोकतांत्रिक इतिहास में किसी अपरिपक्व, निराश, असंवेदनशील और भ्रमित नेता का किसी प्रादेशिक सरकार को सरेआम धमकाने का यह मामला निंदनीय है। इसे केंद्र में बैठे कुछ बड़े नेताओं की शह मिली हुई है। कुछ मियां-बीवी ऐसे भी हैं जो आज़ाद न रहकर किसी दल की छांव ढूंढ़ते हुए इन्हीं शक्तियों का खिलौना बन गए हैं। यह लोग न सिर्फ़ संविधान की धज्जियां उड़ा रहे हैं बल्कि देश में घृणा का माहौल बना रहे हैं।

बात अगर इस मुद्दे के क़ानूनी पहलू की है तो यह सच है कि, सरकार ऐसा कर तो सकती है कि मस्जिदों से जबरन लाउडस्पीकर हटा दिया जाए। लेकिन उस से वही होगा जो राज्य सरकार के विरोध में इस आग को हवा देने वाले चाहते हैं। सरकार अगर ऐसा क़दम उठाए तो सांप्रदायिक तनाव होने की प्रबल संभावना बनी रहेगी। क़ानूनविदों का मानना है कि अगर मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाया जाता है, तो फिर मंदिर, गुरुद्वारे, चर्च समेत हर तरह के धार्मिक स्थलों से भी उन्हें हटाना होगा क्योंकि संविधान के मुताबिक़ कोई भी सरकार किसी एक धर्म के साथ भेदभाव नहीं कर सकती। उनकी बात सच भी है क्योंकि इसका सबसे बड़ा सबूत है उत्तर प्रदेश की कथित हिंदू रक्षक कही जाने वाली योगी सरकार, जिसने न सिर्फ़ मस्जिदों से बल्कि मंदिरों से भी लाउडस्पीकर उतरवाना शुरू कर दिया है या फिर कोर्ट और सरकार द्वारा निर्धारित डेसिबल के आधार पर उनकी आवाज़ कम कर दी गई है। यहां तक कि गोरखनाथ मंदिर के लाउडस्पीकर की आवाज़ भी धीमी कर दी गई। जहां लाउडस्पीकर सरकार से अनुमति लेकर इस्तेमाल हो रहे हैं वहां उन्हें निर्धारित डेसिबल तक आवाज़ में अज़ान, आरती या अन्य धार्मिक अनुष्ठान करने की छूट है। हाँ, सुप्रीम कोर्ट द्वारा २००५ में पारित आदेश के मुताबिक़ रात्रि १० बजे से सुबह ६ बजे तक लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर पाबंदी बरक़रार रहेगी। इस विवाद को देखते हुए यह ज़रूर हो सकता है कि केंद्र के दबाव में कुछ राज्य सरकारें धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने के लिए नया क़ानून लेकर आएं और उसे लागू कर दें। भाजपा शासित राज्यों तक ने इसमें कोई बहुत अधिक रूचि नहीं दिखाई है। अगर कोई सरकार किसी भी विशेष समुदाय के ख़िलाफ़ ऐसी कार्रवाई करती भी है तो उसे न्यायपालिका में चुनौती दी जा सकती है। न्यायपालिका फैसले को पलट भी सकती है। इस सत्य को जानते हुए भी ज़ाहिर है सबसे ज़्यादा बवाल उस राज्य में किया जा रहा है जहां पर एक अति आत्मविश्वास या यूं कहें आत्ममुग्धता में 'मैं फिर आऊंगा' का नारा देने वाला व्यक्ति अपनी भड़ास निकालने और सरकार न बना पाने की कुंठा निकालने के लिए इस तरह के मुद्दों को कुछ अन्य नाकाम नेताओं और संगठनों के माध्यम से आगे बढ़ाकर सरकार को बदनाम करने में लगा हुआ है।

ख़ैर, इस विवाद को देखते हुए मुसलमानों की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे अपने आप पर हर तरह से क़ाबू रखें और समझदारी का मुज़ाहिरा करें। रमज़ान का महीना यूं भी सब्र का महीना है। आत्मा पर नियंत्रण रखने का महीना है। अपने ग़ुस्से और भावनाओं पर क़ाबू रखने का महीना है। मुसलमानों के लिए यह जान लेना ज़रूरी है कि प्रदेश में तनाव निर्माण करने वाली कोई भी शक्ति आपको किसी सूरत में बरग़लाने में कामयाब न होने पाए। हर तरह से तनाव फैलाने में इस्तेमाल करना, हिंसा फैलाना, दंगा कराना, तोड़फोड़ करने-कराने के लिए उकसाना ही विरोधियों की असल मंशा है। ऐसी शक्तियां हर हाल में धार्मिक भेद फैलाकर अराजकता को बढ़ावा देना चाहती हैं। मुसलमानों की असल परीक्षा की यही घड़ी है, जिसके लिए उन्हें तैयार रहना होगा। उन्हें यह साबित करना होगा कि वह अमन परस्त हैं। वह देश की समृद्धि में ही मुसलमानों और अपने हमवतन भाइयों का भविष्य देखते हैं। अड़ोस-पड़ोस या फिर किसी मोहल्ले के दो गुटों में होने वाले मामूली से झगड़े में दोनों पक्षों का आर्थिक, सामाजिक नुकसान होते तो हर किसी ने देखा ही होगा। अंदाजा लगाइये कि अगर दो धार्मिक समूहों में जब हिंसा होगी तो किस कदर नुकसान होगा। लोकतंत्र में विपक्ष को अपनी राजनीति करने और सरकार की किसी भी गलत नीति के खिलाफ पुरजोर तरीके से आवाज़ उठाने का पूरा हक़ है, लेकिन उसके लिए तीज-त्योहारों पर तनाव पैदा करना बिलकुल ग़लत है। ऐसी शक्तियों से सावधान रहना और उनकी साज़िशों को नाकाम करना बहुत ज़रूरी है। मुसलमानों से उम्मीद की जाती है कि वे बेहद शांतिपूर्ण तरीक़े से ईद मनाकर सद्भाव बिगाड़ने वालों को शांति से जवाब दें। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए ध्यान रखें कि लाउडस्पीकर की आवाज़ बाहर न जाने पाए। सरकार और पुलिस प्रशासन को हर संभव सहयोग करें। सभी धर्म शांति का पैग़ाम देते हैं और उसी के अनुरूप सभी अपना आचरण रखें। ईद और अक्षय तृतीया पर तनाव नहीं, सद्भाव हो इसके लिए हर जतन करें। मुस्लिम समाज अलविदा जुमा और ईद की नमाज़ में भी देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता और भाईचारे की दुआएं मांगे और यह भी प्रार्थना करे कि ईश्वर नकारात्मक मानसिकता से भरी शक्तियों को सद्बुद्धि दें।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)