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सियासत-ए-पाकिस्तान - पाकिस्तान में सिर्फ़ सत्ता बदली है, उसकी फ़ितरत नहीं / सैयद सलमान
Friday, April 15, 2022 - 9:20:08 AM - By सैयद सलमान

सियासत-ए-पाकिस्तान - पाकिस्तान में सिर्फ़ सत्ता बदली है, उसकी फ़ितरत नहीं / सैयद सलमान
पाकिस्तान की सियासी नीतियां या तो वहां की फ़ौज तय करती है या फिर कट्टरपंथी संगठन
साभार- दोपहर का सामना 15 04 2022

पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान की विदाई के बाद से सभी की निगाहें नए प्रधानमंत्री पर टिक गई हैं। नई सरकार का नेतृत्व पाकिस्तान के तीन बार प्रधानमंत्री रहे नवाज़ शरीफ़ के छोटे भाई शहबाज़ शरीफ़ के हाथों में आ गया है। लेकिन, किसी को भी उन्हें लेकर कोई ख़ास उत्साह नहीं है क्योंकि इमरान खान को अपदस्थ कर बनी यह सरकार कामचलाऊ ही कही जाएगी। जनवरी २०२३ में क़ानूनी तौर पर इस सरकार का भी कार्यकाल ख़त्म होना है। जिस प्रकार से हमारे यहां गठबंधन की सरकारों के नए-नए प्रयोग हुए हैं, वही पाकिस्तान में हुआ है। भुट्टो और शरीफ़ परिवार की ख़ानदानी दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है। फिर भी यह वह गठजोड़ है जो इमरान को सत्ता से बेदख़ल करने के लिए बना है। हालांकि यह सब उस देश का अंदरूनी मसला है। भारत के लिए यह मायने रखता है कि, वर्तमान सरकार के साथ उसे कैसे रिश्ते बनाने हैं या नई सरकार के साथ कैसे पेश आना है। हमारे देश की वर्तमान सरकार की विदेश नीति पर यूं भी पहले से सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में स्थापित दुश्मन समझे जाने वाले पाकिस्तान की हर हरकत पर नज़र रखना वर्तमान सरकार की प्राथमिकता होना ज़रूरी है। यह वही पाकिस्तान है जिसने हमारी पीठ में हमेशा ख़ंजर घोंपने का काम किया है। पाकिस्तान के साथ उम्मीद बांधना मूर्खता ही होगी लेकिन विदेश मामलों में कूटनीति भी ज़रूरी होती है, इसलिए नई सरकार बनने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शहबाज़ शरीफ़ को बधाई देना भी औपचारिकता के दृष्टिकोण से सही है। वैसे जब मोदी ने पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री बनने पर शहबाज़ शरीफ़ को बधाई दी तो उन्होंने जवाब में शांति के आह्वान का ज़िक्र करने के साथ ही जम्मू-कश्मीर सहित बाक़ी विवादों का भी मुद्दा उठाया। उन्होंने इन विवादित मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान को ज़रूरी तो बताया लेकिन साथ ही साथ जवाब देने के बहाने भारत के प्रति मन में समाई मैल को भी प्रकट कर दिया।

एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि पाकिस्तान में किसी की भी सरकार बने, भारत और पाकिस्तान के रिश्ते में कोई बड़ा बदलाव नहीं आ सकता। दोनों देशों के रिश्तों में मूल रूप से आज़ादी के वक़्त से ही समस्या थी जो आज भी बरक़रार है। चाहे वो परवेज़ मुशर्रफ़ रहे हों, बेनज़ीर भुट्टो रही हों, नवाज़ शरीफ़ रहे हों या बदलाव की बयार लेकर सत्ता में आकर बेआबरू होकर सत्ताच्युत हुए इमरान खान हों, सभी का रुख़ दोमुंहा रहा है। अब शहबाज़ शरीफ भी भारत के लिए एक अलग चेहरा मात्र होंगे। इससे ज़्यादा और कुछ हो भी नहीं सकते क्योंकि शहबाज़ शरीफ़ ने भी पद संभालते ही वही बातें शुरू कर दी हैं, जो उनके पहले के शासक कहा करते थे। पाकिस्तान की हर समस्या कश्मीर मुद्दे से शुरू होती है। पाकिस्तान में किसी भी पार्टी की सरकार आए वह भारत के साथ सुलह की कोशिश करने का स्वांग करती है और फिर मुकर जाती है। हर आती-जाती सरकारों ने संयुक्त राष्ट्र सहित सार्क और अन्य क्षेत्रीय देशों के सामने कश्मीर समस्या का रोना रोया है। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि पाकिस्तानी सरकारों ने समय-समय पर कश्मीर मुद्दे को उठाकर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की है। कश्मीर में जिस दौर में कश्मीरी पंडितों के ख़िलाफ़ हिंसा अपने चरम पर थी, उस दौरान बेनज़ीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री थीं। उन्होंने अपने कार्यकाल में कश्मीर मुद्दे पर ज़बरदस्त ज़हर उगला था। नवाज़ शरीफ़ भी बेनज़ीर भुट्टो की ही तरह कश्मीर राग अलापते रहे हैं। कश्मीर घाटी में आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद नवाज़ ने न केवल उसे शहीद बताया था बल्कि कश्मीर संघर्ष को स्वतंत्रता संग्राम तक क़रार दे दिया था। कश्मीर में आतंकवाद का समर्थन करने वाले नवाज़ के कार्यकाल में मोदी की औचक पाकिस्तान यात्रा खूब चर्चित हुई थी। नतीजा सिफ़र रहा। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद ३७० हटने से पहले तक इमरान खान का रुख़ भारत के प्रति काफ़ी नरम था। चुनाव जीतने के बाद करतारपुर कॉरिडोर की शुरुआत करते हुए इमरान खान ने भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने की भी कोशिश की थी। लेकिन १४ फरवरी २०१९ को कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के यह बनते रिश्ते फिर से बिगड़ते चले गए। हालांकि सत्ता से बेदख़ल होने से पहले इमरान ने भारत की भरपूर तारीफ़ की, लेकिन तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी।

शहबाज़ शरीफ़ के आने से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर जमी बर्फ़ के पिघलने की आस बनना स्वाभाविक है। शहबाज़ शरीफ़ भले ही सबसे अलग होने, मेहनती होने या कुशल प्रशासक होने का दावा करें लेकिन इन्हीं शहबाज़ ने संसद में विपक्ष के नेता की भूमिका निभाते हुए कश्मीर पर विवादित बयान दिया था। शहबाज़ ने कहा था कि, पाकिस्तान का हमेशा से कश्मीर पर एक ही रुख़ रहा है और वह है जनमत संग्रह। शहबाज़ ने कश्मीर मुद्दे को इमरान की कूटनीतिक असफलता तक क़रार दिया था। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ की क़द्दावर नेता और नवाज़ शरीफ़ की बेटी मरियम नवाज़ भी बीते सालों में कश्मीर को लेकर काफ़ी मुखर रही हैं। परवेज़ मुशर्रफ़ ने भी हर मोड़ पर कश्मीर मुद्दे को उछाला है। ऐसे में इन नेताओं के रुख़ को देख कर कहा जा सकता है कि दोनों देशों के रिश्ते इतनी जल्दी सामान्य होने की उम्मीद करना बेमानी है। हालांकि विदेश मामलों के जानकारों को उम्मीद है कि पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक रिश्ते फिर सुधरेंगे। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि पाकिस्तान में हुआ सत्ता परिवर्तन दोनों देशों के बीच के संबंधों को नए सिरे से शुरू करने का सुनहरा अवसर हो सकता है। हालांकि दीर्घकालिक संदर्भ में दोनों पक्षों में वास्तविक बदलाव की संभावना फ़िलहाल क्षीण है। ।

एक बात शीशे की तरह साफ़ है कि पाकिस्तान की सियासी नीतियां या तो वहां की फ़ौज तय करती है या फिर कट्टरपंथी संगठन। यह तबक़ा न सिर्फ़ सरकार की नीतियां तय करता है, बल्कि उसको आगे भी बढ़ाता है। पाकिस्तान के भीतर की कट्टरपंथी सोच वहां के जनमानस पर पूरी तरह हावी है। हमारे साथ समस्या यह भी है कि हम अब तक पाकिस्तान को लेकर कोई समग्र नीति नहीं बना पाए हैं। पाकिस्तान की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सैन्य जैसी तमाम समस्याओं को हमने हमेशा अनदेखा किया है, जबकि चाहिए यह था कि हम उसका गंभीरता से अध्ययन करते। हमें उसकी हर नाज़ुक नस पर गंभीर चोट करने की ज़रूरत थी। पाकिस्तान के मुद्दे को उठाकर हमारे यहां भी सियासत होती रही है। पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठनों ने हम पर अनेकों बार देश के विभिन्न हिस्सों पर हमला किया है। कई बार हमारे नेता महज़ कठोर निंदा करके फिर चुप हो जाते हैं। हमें पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने की ज़रूरत है। पहले की तरह ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति पर काम करते रहना ज़्यादा उचित होगा। नए प्रधानमंत्री से भी हमें किसी प्रकार की कोई उम्मीद नहीं पालनी चाहिए। हमें इस बात को क़त्तई नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रहते हुए इन्हीं शहबाज़ शरीफ़ पर आतंकी हाफ़िज़ सईद के आतंकी संगठन जमात-उल-दावा को करोड़ों रुपए देने के आरोप लग चुके हैं। ऐसे दाग़दार व्यक्ति से आख़िर क्या उम्मीद की जा सकती है। ऐसी परिस्थितियों में हमारी विदेश नीति को कड़ी परीक्षा के दौर से गुज़र कर कामयाब होना होगा। यह बात ज़ेहन नशीन रहे कि, पाकिस्तान में सिर्फ़ सत्ता बदली है, उसकी फ़ितरत नहीं ।



(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)