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फिर विवादों में तबलीग़ी जमात / सैयद सलमान
Friday, December 31, 2021 - 9:12:24 AM - By सैयद सलमान

फिर विवादों में तबलीग़ी जमात / सैयद सलमान
तबलीग़ी जमात का काम ख़ासकर इस्लाम को मानने वालों को धार्मिक उपदेश देना होता है।
साभार- दोपहर का सामना 31 12 2021

इस्लाम के सभी अनुयायी एकेश्वरवाद का सबसे बड़ा नुमाइंदा होने का दावा करते हुए ख़ुद को मुसलमान कहते हैं। अक्सर मुफ़्ती और उलेमा भी इसकी नसीहत करते हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि इस्लामिक क़ानून, इस्लामी फ़िक़ह और इस्लामिक इतिहास की अपनी-अपनी समझ के आधार पर मुसलमान कई फ़िरक़ों अथवा पंथों में बंटे हुए हैं। इसका ताज़ा उदहारण तब सामने आया जब सऊदी अरब में धार्मिक मामलों के मंत्री डॉ. अब्दुल लतीफ़ अलशेख़ ने मुस्लिम समाज के एक समूह तबलीग़ी जमात को एक प्रतिबंधित संगठन बताने वाला ट्वीट कर दिया। उनकी तरफ़ से सऊदी की सभी मस्जिदों के इमामों से जुमे के ख़ुत्बे में इस विचारधारा का पर्दाफ़ाश करने और इसकी कारगुज़ारियां गिनाने का भी फ़रमान जारी हुआ। उन्होंने दिशानिर्देश जारी किया कि जुमा के ख़ुत्बे के दौरान दी जानी वाली तक़रीरों में यह ऐलान किया जाए कि तबलीग़ी जमात पथभ्रष्ट, भ्रमित, ख़तरनाक विचारधारा और 'आतंक के दरवाज़ों में से एक' है। तबलीग़ी जमात के हर दावे को ख़ारिज किया जाए, उनकी बड़ी ग़लतियों का ज़िक्र किया जाए, समाज से उनको क्या ख़तरा है, ये बताया जाए। साथ ही मुसलमानों को यह भी बताया जाए कि तबलीग़ी जमात और दावा जैसे समूह सऊदी अरब किंगडम में प्रतिबंधित हैं। तबलीग़ी जमात का पहले भी विवादों से नाता रहा है। कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान दिल्ली में तबलीग़ी जमात के जलसों को लेकर काफ़ी बवाल हुआ था। तब इस जमात पर कोरोना वायरस फैलाने के आरोप लगे थे।

सऊदी अरब में इस्लाम से जुड़ी सभी गतिविधियों पर नियंत्रण रखने के लिए मिनिस्ट्री ऑफ़ इस्लामिक अफ़ेयर्स नाम का एक विशेष मंत्रालय है। इसी विभाग के मंत्री डॉ. अब्दुल लतीफ़ अलशेख़ ने ट्वीट कर तबलीगी जमात को निशाने पर लिया था। सऊदी अरब के नए निर्देश में भी एक पेंच है। सऊदी सरकार के आदेश में जिस तबलीग़ी और दावा ग्रुप का ज़िक्र किया गया है, इन दोनों में बुनियादी फ़र्क़ है। यह फ़र्क़ दोनों की कार्यशैली को लेकर है। तबलीग़ी जमात का काम है मुस्लिमों को इस्लाम के क़रीब रखना और इस्लाम से जुड़ी बातें बताना और दावा का काम ग़ैर-मुस्लिमों के बीच इस्लाम की पहुंच बढ़ाना है। आश्चर्य की बात यह है कि यह दोनों कार्य ख़ुद सऊदी अरब की सरकार से वरदहस्त प्राप्त कई संगठन पहले से ही कर रहे हैं। इनमें से एक वहाबी पंथ भी है जिसे भारतीय बरेलवी मसलक ने तो चरमपंथी तक घोषित कर दिया है। बरेलवी मसलक से जुड़े उलेमा ने सूफ़ियों की एक कांफ्रेंस में वहाबी विचारधारा को दहशतगर्दी का ज़िम्मेदार ठहराया था और साफ़-साफ़ कहा था कि बरेलवी मसलक दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ है। एक तथ्य यह भी है कि सऊदी अरब ने १९८१ से ही तबलीग़ी जमात की गतिविधियों पर पाबंदी लगा रखी है। १९८७ में सऊदी अरब ने जमात के सभी मरकज़ को पूरी तरह बंद करते हुए जमात से जुड़े तमाम लोगों को देश छोड़ने का भी आदेश दे दिया था। इस घटनाक्रम का सबसे रोचक पहलू यह है कि सऊदी अरब के तबलीग़ी जमात पर पाबंदी के रुख से भारत और पाकिस्तान के तबलीग़ी जमात से जुड़े उलेमा ज़्यादा नाराज़ हैं। हालांकि सऊदी सरकार द्वारा किये गए ट्वीट में भारतीय तबलीग़ी जमात का कहीं ज़िक्र नहीं था। यहां यह जानना भी ज़रूरी है कि, इस्लाम का प्रचार करने वाले सभी अपने प्रचार कार्य को तबलीग़ का नाम देते हैं।
आख़िर तबलीग़ी जमात है क्या, इसे समझने की ज़रूरत है। तबलीग़ी जमात का काम ख़ासकर इस्लाम को मानने वालों को धार्मिक उपदेश देना होता है। पूरी तरह से ग़ैर-राजनीतिक इस जमात का मक़सद पैग़म्बर मोहम्मद साहब के बताए गए इस्लाम के पांच बुनियादी सिद्धांतों का प्रचार करना होता है। तबलीग़ी जमात की शुरुआत भारत में हुई। सुधारवादी धार्मिक आंदोलन से जुड़े और देवबंदी विचारधारा को मानने वाले मौलाना मोहम्मद इलियास कांधलवी ने १९२६ में हरियाणा के मेवात से इसकी शुरुआत की थी। इन ९५ वर्षों में धीरे-धीरे बढ़ते हुए लगभग १९० देशों में तबलीग़ी जमात का फैलाव हुआ और उसके करीब ४० करोड़ सदस्य बन गए। एक अनुमान के मुताबिक अकेले अमेरिका में तबलीग़ी जमात के ५० से ज़्यादा मरकज़ हैं। यहां तक कि इस्लाम दुश्मनी के लिए मशहूर इज़राइल में भी जमात का मरकज़ है। ऐसे में सऊदी अरब के एक ज़िम्मेदार प्रतिनिधि का इस तरह तबलीग़ी जमात पर सख़्त होना एक तरह से सऊदी विचारधारा की व्यापकता और अन्य विचारों की कमतरता को साबित करने का बड़ा प्रयास हो सकता है। इसके पीछे की वजह राजनीतिक भी हो सकती है, क्योंकि तबलीग़ी जमात की शुरुआत सऊदी अरब से दूर भारत से हुई और वैश्विक स्तर पर उसकी पहचान बन गई। जबकि, सऊदी अरब ख़ुद को इस्लाम का सबसे बड़ा केंद्र बताता है। ऐसे में शायद सऊदी अरब को यह लगता हो कि सऊदी अरब के साथ-साथ मुसलमानों की आने वाली पीढ़ी को यही लगेगा कि इस्लाम का सबसे बड़ा समूह सऊदी से नहीं बल्कि किसी अन्य देश से संचालित होता है, तो उसकी साख़ कम होगी। शायद प्रतिबंध के बहाने तबलीग़ी जमात को विवादित करना आसान हो जाएगा।

यहां यह जान लेना भी ज़रूरी है कि बड़े पैमाने पर मुसलमानों को दो हिस्सों, यानी सुन्नी और शिया में बांटा जा सकता है। वैसे शिया और सुन्नी भी कई फ़िरक़ों या पंथों में बंटे हुए हैं। उदाहरणतः हनफ़ी, शाफ़ई, हंबली, मालिकी, देवबंदी, बरेलवी, तबलीग़ी जमात, सल्फ़ी, वहाबी, अहले हदीस, सुन्नी बोहरा, शिया दाऊदी बोहरा, इस्ना अशरी, ज़ैदिया, इस्माइली शिया, खोजा, नुसैरी वग़ैरह-वग़ैरह। बात अगर फ़िरक़े से हटकर सभी मुसलमानों की करें तो इस बात पर सभी एकमत और सहमत हैं कि अल्लाह एक है, मोहम्मद साहब उनके दूत हैं और क़ुरआन शरीफ़ अल्लाह की भेजी हुई किताब है। इस्लामी शोधकर्ताओं के अनुसार मध्य-पूर्व देशों के अधिकांश इस्लामिक विद्वान सल्फ़ी या वहाबी विचारधारा से ज़्यादा प्रभावित हैं। इस समूह के बारे में एक बात बड़ी मशहूर है कि यह सांप्रदायिक और धार्मिक तौर पर बेहद कट्टरपंथी विचारधारा है। तबलीग़ी जमात को भी उसी सिक्के का दूसरा पहलू माना जाता है। हालांकि दोनों की कार्यशैली में बड़ा अंतर है। सऊदी अरब के मौजूदा शासक वहाबी या सल्फ़ी विचारधारा को मानते हैं। आश्चर्यजनक तौर पर अलक़ायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन का संबंध भी सल्फ़ी विचारधारा से ही था। लेकिन एक बात जिसने पूरे विश्व का ध्यान खींचा है वह यह कि, सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अपने देश की कट्टरपंथी छवि को बदलने में जुटे हैं। सल्फ़ी, वहाबी या अहले हदीस पर प्रतिबंध लगाना प्रिंस के बूते से बाहर है, सो प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सभी धर्मों को सम्मान देने के बहाने तबलीग़ी जमात पर बैन लगाकर अपनी बात को सच साबित करना चाहते हैं।

तबलीग़ का अर्थ ही होता है उपदेश देना, प्रचार करना। सऊदी में बरेलवी मसलक के मानने वालों पर भी जब-तब शिकंजा कसता रहता है। ख़ुद सऊदी अरब पर भी काफ़ी पहले से वहाबी विचारधारा को फैलाने का आरोप लगता रहा है। वहाबी यानी एक ऐसा समूह जिसका कहना है कि शरीयत को समझने और उसका सही ढंग से पालन करने के लिए सीधे क़ुरआन और पैग़म्बर मोहम्मद साहब के कहे हुए शब्दों का ही अध्ययन करना चाहिए। जबकि बरेलवी मसलक के लोग पीर-ओ-मुर्शिद, वलियों और दरगाहों पर काफ़ी आस्था रखते हैं। यूं तो देवबंदी, बरेलवी और तबलीग़ी सभी हनफ़ी मसलक के हैं, लेकिन एक दूसरे से काफ़ी भिन्न विचारधारा रखते हैं। ऐसे में हमेशा विवादों में आने वाली तबलीग़ी जमात को नए सिरे से सोचना होगा कि क्यों उस पर आतंकवाद का दरवाज़ा होने का आरोप लग रहा है। कहीं उसे अपनी कार्यशैली बदलने की ज़रूरत तो नहीं है?



(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

@सैयद सलमान