साभार- दोपहर का सामना 08 10 2021
सिने अभिनेता शाहरुख़ ख़ान के बेटे आर्यन खान इन दिनों चर्चा में हैं। चर्चा का कारण है उनका मुंबई में एक क्रूज़ पर मौजूद रहना और एनसीबी की टीम की छापेमारी में गिरफ़्तार होना। छापेमारी में एनसीबी अधिकारियों को एमडीएमए, मेफेड्रोन, कोकीन और हशीश जैसे ४ तरह के ड्रग्स मिले। लग्ज़री क्रूज़ की इस ड्रग्स पार्टी में आर्यन ख़ान शामिल थे इसलिए एनसीबी ने पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। आर्यन यानी शाहरुख़ ख़ान का बेटा। शाहरुख़ ख़ान यानी फ़िल्म इंडस्ट्री का कथित बादशाह। शाहरुख़ ख़ान यानी सुविधानुसार मुसलमान और सुविधानुसार सेक्युलर। जैसे शाहरुख़ ख़ान सुविधानुसार ख़ुद को पेश करते हैं उसी तरह मीडिया और सोशल मीडिया भी उनकी छवि गढ़ता है। किसी समय शाहरुख़ ख़ान हर नौजवान दिल की धड़कन हुआ करते थे। उन्हें रुमानियत का बादशाह कहा जाता था। लेकिन इधर कुछ वर्षों से शाहरुख़ ख़ान पर ख़ान कंपनी का ठप्पा लगा और वह मुसलमानों की टोली में धकेल दिए गए। हालांकि शाहरुख़ ख़ान की भरसक यह कोशिश रहती है कि उन पर किसी प्रकार का लेबल न चिपकने पाए लेकिन नाम का असर तो होगा ही। तिस पर 'माय नेम इज़ ख़ान एंड आई एम नॉट अ टेररिस्ट' जैसे संवाद बोलेंगे तो कहां तक बचेंगे। अब अपने बेटे की वजह से वह फिर से कठघरे में हैं। उनसे ख़ार खाए लोग उन पर ज़बरदस्त हमलावर हैं।
आर्यन प्रकरण के बीच कई बड़ी शख़्सियात ने शाहरुख़ की तरफ़दारी में ज़मीन-आसमान के सारे क़ुलाबे मिला दिए हैं। उन्हें मुस्लिम होने के नाते परेशान किए जाने के आरोप लग रहे हैं। जवाब में शाहरुख़ को मुस्लिमपरस्त बताकर उनके बहाने मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। ड्रग्स के कारोबार में बड़ी संख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी को केंद्र में रखकर आर्यन को घेरा जा रहा है। बात अब ड्रग्स की न रहकर मुस्लिम विरोध की हो रही है। इस गंभीर मसले पर लोगों के जिस तरह से बेतुके तर्क सामने आ रहे हैं वह न सिर्फ़ असामाजिक बल्कि अफ़सोसजनक भी हैं। आर्यन की गिरफ़्तारी का अपने-अपने हिसाब से आकलन किया जा रहा है। कोई उनकी गिरफ़्तारी को सही बता रहा है तो कोई सरकारी एजेंसी को धार्मिक भेदभाव के आधार पर कार्य करने वाला बता कर सोशल मीडिया पर आर्यन का पक्ष ले रहा है। शाहरुख़ के पक्ष-विपक्ष में ट्रेंड चलाया जाना इस बात का सबूत है कि एक गंभीर मसले को लोगों ने अपने-अपने एजेंडे के तहत हाईजैक कर लिया है। आर्यन पर लगे आरोपों का साबित होना अभी बाक़ी है और दोष के सिद्ध होने से पहले उन्हें अपराधी कहना ठीक भी नहीं है। लेकिन कोई यह क्यों नहीं पूछता कि वह क्रूज़ पर गए क्यों थे। उन्हें धर्म का सहारा लेकर जिस तरह निर्दोष बताने की कोशिश हो रही है वह चिंता की बात है। क्योंकि, अगर धर्म के आधार पर सताए जाने का आरोप लगता है तो आम मुसलमानों में व्यवस्था के ख़िलाफ़ अविश्वास और नाराज़गी बढ़ेगी।
लेकिन क्या आर्यन या शाहरुख़ कभी मुसलमानों की तरह व्यवहार करते नज़र आए हैं? सार्वजनिक मंचों से इंशाअल्लाह, माशाअल्लाह कह देने से क्या मुसलमान होना सिद्ध हो जाता है? एक हदीस के अनुसार पैग़म्बर मोहम्मद साहब ने अपने साथी से एक बार कहा था कि, ‘एक सच्चा मुसलमान वह है जिसके साथ अन्य लोग सुरक्षित महसूस करते हैं।’ जो इंसानों के लिए वर्जित हो उस काम का करना फ़रमान-ए-इलाही और मोहम्मद साहब की सीख के अनुसार ग़ैर इंसानी कर्म है। इस्लाम में बाक़ायदा इसकी सज़ा मुक़र्रर की गई है। हिंसा या फ़साद बरपा करना, नशा करना जैसे काम ना सिर्फ़ ख़ुद के जीवन से खेलना है, बल्कि दूसरों के जीवन को भी ख़तरे में डालना है। शाहरुख़ जैसे लोग नशा करते भी हैं और छुपाते भी नहीं हैं। हाथों में सिगरेट या शराब लिए उनकी तस्वीरें बड़े अभिमान से खींची जाती हैं और छपती हैं। आर्यन भी पेज थ्री की नई पौध हैं। क्या वह पेज थ्री पार्टीज़ में शर्बत, दूध कॉफ़ी या चाय पीने जाते हैं? ऐसा सोचना भी हास्यास्पद है। फिलहाल आर्यन का नशेड़ियों के साथ गिरफ़्तार होना उनके शौक़ की कहानी बयान करने के लिए काफ़ी है। जब वह नशे का सेवन करते हैं तो आख़िर किस प्रकार के मुसलमान हुए? हालांकि उनके मुसलमान होने या न होने से आम मुसलमानों का कोई संबंध भी नहीं है।
पवित्र धर्मग्रंथ क़ुरआन के अनुसार, ‘शैतान की तो बस यही तमन्ना है कि शराब और जुए की बदौलत तुममें शत्रुता और द्वेष पैदा कर दे और ख़ुदा की याद और नमाज़ से बाज़ रखे तो क्या तुम उससे बाज़ आने वाले हो’ (अल-क़ुरआन ५:९१) क़ुरआन की कई आयतों में शराब अथवा नशे के लिए ‘ख़म्र' शब्द का प्रयोग विशेष रूप से विचारणीय है, क्योंकि अरबी भाषा में ख़म्र से अभिप्राय हर वह चीज़ है जो बुद्धि पर परदा डाल दे। ज़रा ग़ौर करें, किसी भी प्रकार के ड्रग्स किस क़दर इंसान की बुद्धि पर पर्दा डालते हैं। अमूमन यह माना जाता है कि क़ुरआन के दृष्टिकोण से शराब हराम है और वह बुद्धि को भंग करने का माद्दा रखती है। लेकिन इसी से जुड़ा सत्य यह भी है कि इस्लाम ने किसी विशेष प्रकार की शराब ही को हराम नहीं कहा है, बल्कि इस के अंतर्गत हर वह चीज़ आ जाती है जिस से नशा तारी हो जाए और इंसान की सोचने-समझने की शक्ति को नष्ट कर दे या उसे हानि पहुंचाए। एक बात महत्वपूर्ण है और इसे समझने की ज़रूरत है कि इंसान को जिस चीज़ के कारण समस्त प्राणियों में विशिष्ट, प्रतिष्ठित और केंद्रीय स्थान दिया गया है, वह वास्तव में उसकी सोचने-समझने की, सत्य-असत्य और भले-बुरे में अंतर करने की क्षमता है। ऐसे में स्वाभविक रूप से जिस चीज़ से या काम करने से मनुष्य की इस क्षमता और योग्यता को आघात पहुंचे या किसी काम के पूर्ण रूप से क्रियाशील होने में बाधा उत्पन्न होती हो उसको इस्लाम में इंसान का बदतरीन दुश्मन माना गया है। किसी भी प्रकार का नशा मस्तिष्क को स्वाभाविक रूप से कार्य करने में रुकावट डालता है। उसकी तर्क-शक्ति को शिथिल कर इंसान को इंसानियत से ही वंचित कर देता है। तो आख़िर क्यों कोई मुसलमान इसे अपनाना चाहेगा।
जिन हालात में आर्यन पकड़े गए हैं वह परिस्थितियां उनके खिलाफ हैं। क़ानून की नज़र में आगे जाकर हो सकता है आर्यन बेक़सूर साबित हो जाएं। लेकिन उन पर की गई कार्रवाई को धार्मिक आधार पर भेदभावपूर्ण बताना न सिर्फ़ दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि ऐसे मामलों में शामिल रहने वालों के लिए उत्साहजनक भी। उत्साहजनक इसलिए कि ऐसे लोगों को यह लगेगा कि नशे की लत लगने और उस गिरोह का हिस्सा बनने के बाद भी समाज साथ खड़ा होता है। नशेड़ियों को समर्थन देना दरअसल उनका मनोबल बढ़ाना होता है। ऐसे मामलों को हिंदू-मुस्लिम एंगल देना भी निंदनीय है। क्योंकि अपराध का कोई धर्म नहीं होता और आर्यन के साथ लगभग हर वर्ग के आरोपी गिरफ़्तार हुए हैं। आर्यन या शाहरुख़ को न उनके समर्थक, न ही उनके विरोधी मात्र मुसलमान नाम होने के कारण मुसलमान मानें। वह जिस किसी भी अपराध में शामिल हों उनके ख़िलाफ़ क़ानूनन कार्रवाई हो। वही क्यों हर अपराधी पर क़ानूनन कार्रवाई को संविधान ने अगर इजाज़त दी है तो कार्रवाई होनी चाहिए। शाहरुख़ मुसलमानों के मसीहा क़त्तई नहीं हैं इसलिए उनका केवल मुसलमान होना मुसलमानों के लिए आदर्श नहीं है। वह आला दर्जे के अभिनेता हो सकते हैं लेकिन उनके या उनके बेटे के कुकृत्यों से उनके फैंस या मुसलमानों को जोड़ना बिल्कुल ग़लत है। शाहरुख़ के समर्थक भी शाहरुख़ या उनके बेटे की रुपहले पर्दे की या निजी ज़िंदगी को अपना आदर्श बनाने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन उसको मुसलमानों से जोड़कर सच्चे मुसलमानों का अपमान न करें। क्या नशे का सेवन करने वाला मुसलमान कहलाने का हक़ रखता है?
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)