Friday, April 26, 2024

न्यूज़ अलर्ट
1) अक्षरा सिंह और अंशुमान राजपूत: भोजपुरी सिनेमा की मिली एक नयी जोड़ी .... 2) भारतीय मूल के मेयर उम्मीदवार लंदन को "अनुभवी सीईओ" की तरह चाहते हैं चलाना.... 3) अक्षय कुमार-टाइगर श्रॉफ की फिल्म का कलेक्शन पहुंचा 50 करोड़ रुपये के पार.... 4) यह कंपनी दे रही ‘दुखी’ होने पर 10 दिन की छुट्टी.... 5) 'अब तो आगे...', DC के खिलाफ जीत के बाद SRH कप्तान पैट कमिंस के बयान ने मचाया तूफान.... 6) गोलीबारी... ईवीएम में तोड़-फोड़ के बाद मणिपुर के 11 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान का फैसला.... 7) पीएम मोदी बोले- कांग्रेस ने "टेक सिटी" को "टैंकर सिटी" बनाया, सिद्धारमैया ने किया पलटवार....
इस्लाम, मुसलमान और क़ुरआन...... / सैयद सलमान
Friday, September 10, 2021 - 9:48:23 AM - By सैयद सलमान

इस्लाम, मुसलमान और क़ुरआन...... / सैयद सलमान
इस्लाम की स्पष्ट भूमिका है कि उसने हव्वा की बेटी को सम्मान के योग्य समझा और उसको मर्द के समान अधिकार दिए
साभार- दोपहर का सामना 10 09 2021

मुस्लिम बच्चियों की शिक्षा को लेकर वैसे भी बहुत कुछ अच्छा नहीं हो रहा है। उस पर अगर थोड़ा बहुत पढ़-लिखकर वह आगे बढ़ती हैं तो समाज के कुछ नराधम इस कोशिश में रोड़ा बन जाते हैं। अभी पिछले दिनों की एक घटना ने इस बात पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि क्या मुस्लिम बच्चियों के साथ होते हादसे मुस्लिम समाज के ठेकेदारों को यह मौक़ा नहीं देंगे कि वह उनकी शिक्षा में अड़ंगे डालें? उदाहरण है दिल्ली का एक एक ऐसा मामला जिसमें एक युवती का बलात्कार कर हत्या कर दी जाती है। मामला है संगम विहार, दिल्ली में रहने वाली २१ साल की रज़िया (काल्पनिक नाम) का जिसके साथ फ़रीदाबाद में कुछ लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया और उसके बाद बाद बर्बरता पूर्वक उस पर चाकू के ५० वार कर और प्राइवेट पार्ट काट कर बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी। जैसा कि अमूमन होता है रज़िया की हत्‍या को लेकर सोशल मीड‍िया पर लोगों का ग़ुस्सा फूट पड़ा। सोशल मीडिया 'जस्‍ट‍ि‍स फ़ॉर रज़िया' के ट्रेंड से भर गया। इस घटना पर अब राजनीति भी हो रही है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने इस घटना के बाद सड़कों पर उतर कर निषेध व्यक्त किया। कुछ सामाजिक संगठनों ने दिल्ली में आक्रोश जताते हुए कैंडल मार्च निकाला। जब यह कहा जाता है कि लड़कियों के साथ उनके पिछड़े परिवेश या अशिक्षा के कारण अन्याय होता है तो इसका क्या किया जाए कि रज़िया तो देश की राजधानी दिल्ली की रहने वाली थी और वो सिविल डिफ़ेंस जैसे प्रतिष्ठित विभाग में काम करती थी।

इस घटना पर प्रकाश डालने के पीछे का मकसद यह है कि रज़िया के साथ दुष्‍कर्म और हत्‍या का एक आरोपी रियाज़ुद्दीन (काल्पनिक नाम) है, जो मुस्लिम समाज से आता है। रियाज़ुद्दीन ने आत्मसमर्पण करते हुए क़ुबूल किया कि उसने रज़िया की हत्या कर शव को सूरजकुंड पाली रोड पर फेंक दिया था। ऐसा नहीं है कि इस से पहले किसी मुस्लिम ने किसी मुस्लिम की हत्या न की हो। लेकिन कल्पना कीजिए कि आरोपी किसी अन्य मज़हब का होता तो इस पर कितना बवाल मचता और इस घटना को कैसी दिशा दी जाती। एक शिक्षित मुस्लिम महिला जो सिविल डिफ़ेंस में कार्य कर रही हो और उसका क़ातिल भी उसी क़ौम का हो तो मुस्लिम समाज के लिए चिंतित होने और चिंतन-मनन करने का समय है। वैसे भी मुस्लिम समाज अनेक कारणों से विवादों में घेरा ही जाता है। एक और तथ्य ग़ौरतलब है कि रियाज़ुद्दीन भी सिविल डिफ़ेंस में ही कार्यरत था। एक व्यक्ति इतना निर्मम कैसे हो सकता है कि वह अपनी महिला सहकर्मी की इतनी वीभत्स हत्या कर दे। क्या उसने इस्लाम के आदाब नहीं पढ़े? क्या मुस्लिम समाज में महिलाओं के सम्मान पर उसने एक प्रतिशत भी पढ़ाई नहीं की? क्या कभी अपने घर की महिलाओं को उसने सम्मान दिया होगा? रियाज़ुद्दीन का दावा है कि रज़िया उसकी पत्नी थी। तो क्या कभी उसने क़ुरआन का वह अंश पढ़ा नहीं जिसमें पत्नी के प्रति पति को साफ़ संदेश है कि, “और उनके साथ भले तरीक़े से रहो-सहो।” –अल-क़ुरआन (४:१९)

ऐसी घटनाओं के लिए कुछ लोग इस्लाम में महिलाओं के बाहर निकलने, काम करने, व्यापार करने या सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने को ज़िम्मेदार मानते हैं। लेकिन इस्लाम की स्पष्ट भूमिका है कि उसने हव्वा की बेटी को सम्मान के योग्य समझा और उसको मर्द के समान अधिकार दिए। इस्लाम की तो शिक्षा है, “महिलाओं के लिए भी सामान्य नियम के अनुसार वैसे ही अधिकार हैं जैसे मर्दों के अधिकार उन पर हैं।” –अल-क़ुरआन (२:२२८) इस्लाम कहता है कि ईश्वर की दृष्टि में पुरुषों और महिलाओं को समान होना चाहिए और उन्हें समान भूमिकाएं निभाने की अनुमति दी जानी चाहिए। मुस्लिम महिलाओं को एक मुस्लिम उपासक के तौर पर इस्लाम में बताए गए सभी कर्तव्यों को पूरा करने की भी आवश्यकता होती है, जिसमें धार्मिक परंपराओं को पूरा करना भी शामिल है। इस्लाम ने महिलाओं को अपने जीवन के हर भाग में महत्व प्रदान किया है। इस्लाम में महिलाओं को मां के रूप में, पत्नी के रूप में, बेटी के रूप में, बहन के रूप में, ख़ाला के रूप में सम्मान देने की ताक़ीद की गई है। यहां तक कि विधवा के रूप में भी उसे बेहद सम्मान प्रदान किया गया है। रिश्तों और विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार सम्मान देने के अनेक उदाहरण क़ुरआन और हदीस में मौजूद हैं। महिला के रूप में माता के सम्मान को लेकर एक हदीस में आता है कि, एक व्यक्ति मोहम्मद साहब के पास आया और पूछा, “मेरे अच्छे व्यवहार का सब से ज़्यादा अधिकारी कौन है?” मोहम्मद साहब ने उत्तर दिया, “तुम्हारी माता”, उसने पूछा, “फिर कौन?” आपने फिर वही उत्तर दिया कि, “तुम्हारी माता”, उसने पूछा, “फिर कौन?” आपने फिर वही कहा, “तुम्हारी माता”, उसने फिर पूछा “फिर कौन?” इस बार मोहम्मद साहब ने उत्तर दिया कि, “तुम्हारे पिता।” इस घटना से पता चलता है कि माता को पिता की तुलना में तीन गुना अधिक अधिकार प्राप्त है।

एक हदीस में पत्नी की महत्ता को इंगित करते हुए पैग़ंबर मोहम्मद साहब का उद्धरण है कि, “एक पति अपनी पत्नी को बुरा न समझे। यदि उसे उसकी एक आदत अप्रिय होगी तो दूसरी प्रिय होगी।” –(हदीस, मुस्लिम) बेटी के लिए कहा है कि, “जिसने बेटियों के प्रति किसी प्रकार का कष्ट उठाया और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करता रहा तो यह उसके लिए नर्क से पर्दा बन जाएंगी” –(हदीस, मुस्लिम) बहन के रूप में सम्मान देते हुए मोहम्मद साहब ने फ़रमाया, “जिस किसी के पास बेटियां और बहनें हों उनके साथ अच्छा व्यवहार किया तो वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा” –(हदीस, अहमद) इस्लाम ने ख़ाला के रूप में भी महिलाओं को सम्मनित करते हुए उसे मां का दर्जा दिया है। नबी ने फ़रमाया, “ख़ाला माता के समान है।” –(हदीस, बुख़ारी) इस्लाम विधवा महिलाओं के सम्मान की भी नसीहत करता है। इस्लाम ने विधवा महिलाओं की भावनाओं को न सिर्फ़ महत्व दिया बल्कि उनकी देखभाल और उन पर ख़र्च करने को बड़ा पुण्य बताया। मोहम्मद साहब ने फ़रमाया, “विधवाओं और निर्धनों की देखरेख करने वाला ऐसा है मानो वह हमेशा दिन में रोज़ा रख रहा है और रात में इबादत कर रहा है।” –(हदीस, बुख़ारी)

एक दौर था जब अरब की धरती पर लड़कियों को ज़मीन में ही जिंदा दफ़्न कर दिया जाता था। और भी अनेक कुप्रथाएं विश्व के कई देशों में प्रचलित थीं। ऐसी अनेक कुरीतियों का मोहम्मद साहब ने विरोध किया। कोई भी सच्चा धर्म अन्याय, अनीति और कुरीति की शिक्षा नहीं देता। संस्कृत में लिखा एक संदेश है, “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता, यत्रितास्तु न पूज्यंते सर्वस्तत्रपालं क्रिया:।” अर्थात जहां नारी का सम्मान किया जाता है, वहां फ़रिश्ते विराजते हैं, और जहां कभी नारी का अनादर होता है, सभी कार्य चाहे कितने ही श्रेष्ठ क्यों न हों अधूरा ही रहता है। दुनिया में औरत की इज़्ज़त और एहतराम का सबक़ इस्लाम ही नहीं बल्कि सभी धर्मों में है। औरतों की अज़मत से वाक़िफ़ होना हर मर्द के लिए ज़रूरी है। लेकिन देखा यह जा रहा है कि मुस्लिम औरतों पर ज़ुल्म-ओ-सितम का सिलसिला कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। इस बात से तो साफ़ ज़ाहिर होता है कि न तो मुसलमानों ने क़ुरआन की तालीम का सही इस्तेमाल किया है और न ही उसमें बताई बातों पर अमल कर रहे हैं। रज़िया मामले का आरोपी रियाज़ुद्दीन इसका जीता जागता उदाहरण है। ऐसे में अशिक्षा का दंश और अनेक आरोपों को झेल रहे मुस्लिम समाज की महिलाओं के लिए इस्लामी अधिकारों से जुड़ी शिक्षा हासिल करना बहुत ज़रूरी है। इसी के साथ-साथ इस्लाम को बदनाम कर रहे रियाज़ुद्दीन जैसे समाजकंटकों को सज़ा दिलाना भी मुसलमानों की बड़ी ज़िम्मेदारी है।



(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)