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हर नग़मा-ए-कृष्ण बांसुरी का.......!! / सैयद सलमान
Friday, September 3, 2021 - 10:38:46 AM - By सैयद सलमान

हर नग़मा-ए-कृष्ण बांसुरी का.......!! / सैयद सलमान
'हसरत की भी क़ुबूल हो मथुरा में ​हाज़िरी, सुनते हैं ​आशिक़ों पे तुम्हारा करम है ​ख़ास।'
साभार- दोपहर का सामना 03 09 2021

'​पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदां था,
हर न​ग़​मा-ए-कृष्ण बांसुरी का।'
यानी श्रीकृष्ण की बांसुरी से निकलने वाले हर न​ग़​मे में अनंत जीवन का संदेश होता था। जब मौलाना हसरत मोहानी ने श्रीकृष्ण प्रेम में यह पंक्तियां लिखी होंगी तो यह सोचा भी नहीं होगा कि श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में कभी श्रीकृष्ण की बंसी के बजाय न​फ़​रत के सुर गूंजेंगे। दरअसल मथुरा इन दिनों एक अजब से विवाद में घिर गया है। वहां 'श्रीनाथ डोसा' के नाम से दुकान चलाना एक ​शख़्स को ​सिर्फ़​ इसलिए भारी पड़ गया क्योंकि वह मुस्लिम समाज से आता है। उस दुकानदार से नारा​ज़​ कुछ हिंसक युवक दुकान में तोड़फोड़, मारपीट और बदतमी​ज़ी करते हैं। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है। घटना से घबराया दुकानदार अपनी दुकान का नाम अमेरिकन डोसा रख देता है। हालांकि इस घटना को पूरी तरह हिंदू-मुसलमान विवाद बताना अभी पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि जांच में यह भी सामने आया है कि इसी ​बाज़ार में एक अन्य दुकानदार भी 'श्रीनाथजी साउथ इंडियन डोसा कॉर्नर' के नाम से दुकान चलाता है। स्थानीय निवासी बताते हैं कि मुस्लिम ​शख़्स की दुकान ​ज़्यादा चलती थी इसलिए दूसरे दुकानदार की शह पर कुछ युवकों ने मुस्लिम ​शख़्स के स्टॉल पर तोड़फोड़ और मारपीट की।

इसी तरह की एक घटना मध्य प्रदेश के उज्जैन की है जहां एक मुसलमान कबाड़ी को काम करने से रोकने और ​ज़​बरदस्ती जय श्रीराम का नारा लगवाने का मामला सामने आया। इस मुस्लिम ​शख़्स का कहना है कि पिछले बीस सालों से वह इस इलाक़े में कबाड़ इकठ्ठा करने का काम कर रहा है और कभी भी किसी ने उसे यह काम करने से नहीं रोका। ऐसी ही एक घटना मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर की है जहां चूड़ी बेचने वाले एक मुसलमान को कथित तौर पर उसके म​ज़​हब की वजह से पीटा गया और धमकी दी गई कि चूड़ी बेचने हिंदुओं के​ इलाक़े में न आया करे। बाद में इस मामले में पीटने वालों के ​ख़िलाफ़ ए​फ़​आईआर दर्ज हुई और उसी मामले में पुलिस ने जिस लड़के की पिटाई की गई उस पर पॉक्सो एक्ट, छेड़छाड़ और ४२० समेत ९ धाराओं में मामला दर्ज कर लिया।

ऐसा नहीं है कि यह केवल एक तर​फ़​ से हो रहा है। दूसरी तर​फ़​ भी इसी तरह की न​फ़​रत देखने को मिल जाती है। कर्नाटक के दावणगेरे का एक वीडियो ऐसा भी है जिसमें हिंदू दुकान से सामान ​ख़​रीदने पर मुस्लिम महिलाओं के साथ मुस्लिम समाज की भीड़ गाली-गलौज करते न​ज़​र आ रही है। वीडियो में देखा जा सकता है कि जैसे ही हिंदुओं के स्वामित्व वाली कपड़े की एक दुकान से ​बुर्क़ा पहने महिलाएं बाहर निकलती हैं कि मुसलमानों की भीड़ उन पर आक्रामक हो जाती है। उनको चारों तर​फ़​ से घेर लिया जाता है और सवाल-जवाब किए जाते हैं। इतना ही नहीं उनके हाथ से कपड़ों की थैली भी छीन ली जाती है और कपड़े रखकर थैली फेंक दी जाती है। शायद इसलिए क्योंकि उस थैली का रंग ‘भगवा’ था। एक अन्य वीडियो में किसी त​क़​रीर का एक हिस्सा न​ज़​र आ रहा है जिसमें मुसलमानों से हिंदू भाइयों के साथ व्यापार न करने की नसीहत की जा रही है।

ऐसी घटनाओं को देख-सुनकर मौलाना हसरत मोहानी जैसों का बरबस ही स्मरण हो आता है। मौलाना मोहानी अपने कृष्ण प्रेम के लिए विख्यात हैं। उन्हें श्रीकृष्ण की नगरी से ​ख़ास लगाव था। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र रहे मौलाना मोहानी सही मायनों में ​भारत की गंगा-जमुनी तह​ज़ीब का प्रतिनिधित्व करते हैं। मौलाना मोहानी का यह मामूल था कि हर जन्माष्टमी के अवसर पर वह मथुरा ​ज़​रूर जाया करते थे। यह वही मौलाना हसरत मोहानी हैं जिन्होंने ‘इं​क़​लाब ​ज़िंदाबाद’ का नारा दिया था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना हसरत मोहानी की एक और पहचान है कि वह १९४६ में संविधान सभा के सदस्य भी रहे। हिंदू-मुस्लिम एकता के म​ज़​बूत पक्षधर मौलाना मोहानी देश विभाजन के ​सख़्त ​ख़िलाफ़ थे। मौलाना मोहानी कहते थे कि उनके जीवन में तीन स्थान बहुत महत्वपूर्ण हैं। एक मक्का, दूसरा मथुरा और तीसरा स्थान मास्को। मक्का, मथुरा का कारण आध्यात्मिक था जबकि मास्को इसलिए क्योंकि उसे वह सोवियत संघ और भारत के राजनीतिक रिश्तों के संबंध में बहुत महत्वपूर्ण मानते थे।

मौलाना मोहानी ही क्यों बल्कि सैयद इब्राहिम उर्फ 'रस​ख़ान', अमीर ​ख़ुसरो, आलम शेख, उमर अली, नशीर मामूद, नवाब वाजिद अली शाह और सू​फ़ी सालबेग जैसे अनेक मुस्लिम गु​ज़​रे हैं जिनका श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम जग​ज़ाहिर है। 'मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गांव के ग्वारन' रस​ख़ान की ही रचना है। अमीर ख़ुसरो से जुड़ा वा​क़​या तो बड़ा दिलचस्प है। एक बार सू​फ़ी-संत नि​ज़ा​मुद्दीन औलिया के सपने में श्रीकृष्‍ण आए। औलिया ने अमीर ख़ुसरो से श्रीकृष्ण की स्तुति में कुछ लिखने को कहा तो ख़ुसरो ने मशहूर रंग ‘छाप तिलक सब छीनी रे, मोसे नैना मिलाय के’ श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया। आज कौन ​यक़ीन करेगा कि ‘पालने खेलत नंद-ललन छलन बलि, गोद लै लै ललना करति मोद गान’ आलम शेख़ की रचना है। इसी तरह बंगाल के प्राचीन श्रीकृष्‍ण भक्‍त कवियों में से एक उमर अली की रचनाओं में श्रीकृष्‍ण में समाए हुए राधाजी के प्रति प्रेम भाव को दर्शाया गया है। उन्होंने बंगाल में वैष्‍णव पदावली की रचना की है। नशीर मामूद भी बंगाल से ही आते हैं। इनका जो पद मिला है वह गौचारण लीला का वर्णन करता है। वह लिखते हैं, 'धेनु संग गांठ रंगे, खेलत राम सुंदर श्‍याम।' नवाबों के ​आख़िरी वारिस वाजिद अली शाह भी श्रीकृष्‍ण के दीवाने थे। श्रीकृष्ण के जीवन से बेहद प्रभावित वाजिद अली शाह ने १८४३ में राधा-कृष्ण पर एक नाटक करवाया था। उनके कई नामों में से एक नाम ‘कन्हैया’ भी था। मुस्लिम संत सालबेग श्री जगन्‍नाथजी के शैदाई थे। उनकी मृत्यु के बाद जहां उनकी ​मज़ार बनी है, हर साल की यात्रा के ​वक़्त जगन्नाथजी का रथ उनके सम्मान में वहां ​ज़​रूर रुकता है। ऐसे अन्य कई ऐतिहासिक उदाहरण मौजूद हैं जो बताते हैं कि श्रीराम हों या श्रीकृष्ण, वह मुसलमानों के लिए भी आदर्श रहे हैं। समस्या यही है कि कट्टरपंथी धर्मगुरुओं ने श्रीराम, श्रीकृष्ण, ईसा मसीह, ​पैग़ंबर मोहम्मद, गौतम बुद्ध और गुरु नानक जैसे आदर्शों को विशेष समुदाय की जागीर बना दिया। तभी तो आज श्रीनाथ के नाम पर किसी मुसलमान का दुकान खोलना जुर्म हो गया।

कहते हैं न​फ़​रत फैलाने के इस खेल में बा​क़ा​यदा कुछ राजनैतिक दल, कट्टरपंथी संगठन और न​फ़​रत की जड़ें जमाने में सहयोग कर रहे बुद्धिजीवियों का समूह कार्य कर रहा है। सोशल मीडिया पर इनके द्वारा स्थापित आईटी सेल ​ज़​रूरतमंद बेरो​ज़​गार युवाओं को इसके लिए बा​क़ा​यदा पारिश्रमिक देकर नौकरी पर रखते हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि देश में ऐसे लोग हैं जिनकी असहिष्णुता, पूर्वाग्रह, शत्रुता और धर्मांधता से भरी बातें देश और समाज को आस्था या पृष्ठभूमि के आधार पर बांट रही हैं। सामाजिक रूप से एक-दूसरे को समझना, सहयोग करना और धर्मों के बीच सद्भावना का होना ​ज़​रूरी है। लेकिन ऐसे लोग समाज में कम हैं और जो हैं, उन्हें कोसने वालों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। हाल के दिनों में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं, जिन्हें सांप्रदायिक रंग देकर दोनों समाज का हिंसक तबका अपनी रोटी सेंक रहा है। ख़ासकर केंद्रीय सत्ताधारी दल से जुड़े कार्यकर्ता अगर ऐसा कर रहे हैं तब तो केंद्र सरकार की विश्वसनीयता ही कटघरे में खड़ी हो जाएगी। इस तरह की घटनाओं से अगर कहीं भी डर का माहौल पैदा होता है तो यह सरकार की नाकामी है। ऐसे हिंसक तत्वों के ​ख़िलाफ़ प्रशासन को निष्पक्ष कार्रवाई करनी चाहिए ताकि देश में सुरक्षा का माहौल बन सके और फिर से कोई मौलाना मोहानी जैसा श्रीकृष्ण का शैदाई बिना किसी झिझक, ​ख़ौफ़ और सांप्रदायिक सोच के मौलाना की इन पंक्तियों को दोहरा सके कि,
'हसरत की भी क़ुबूल हो मथुरा में ​हाज़िरी,
सुनते हैं ​आशिक़ों पे तुम्हारा करम है ​ख़ास।'


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)