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वक़्फ़ और विवाद / सैयद सलमान (Video)
Friday, March 10, 2023 - 9:09:22 AM - By सैयद सलमान

वक़्फ़ और विवाद / सैयद सलमान  (Video)
इस्लामी क़ानून में, वक़्फ़ संपत्ति स्थायी रूप से अल्लाह को समर्पित होती है
साभार- दोपहर का सामना  10 03 2023 

शब-ए-बरात पर पर पिछले दिनों सड़कों पर निकली मुस्लिम समाज की भीड़ और क़ब्रिस्तानों, दरगाहों की तरफ जाते बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफ़िले, दुपहिया वाहनों पर दौड़ लगाते युवा और इबादत के लिए जाते साधारण आम मुसलमानों को देखकर तरह-तरह के ख्याल दिमाग़ में आए। देखकर ख़्याल आया कि कैसे इस्लाम ने इबादत के लिए सबको एक रंग में रंगा है। क्या अमीर, क्या ग़रीब सभी अपने परिजनों, बुज़ुर्गों और सभी मरहूमीन की मज़ारों पर फ़ातिहा पढ़ने और शब बेदारी के लिए निकल पड़ते हैं। उनके हक़ में दुआएं करने के लिए जो अपने साथ कुछ नहीं ले गए। सब कुछ यहीं धरा रह गया। हालांकि हर क़ब्रिस्तानों के बाहर फ़क़ीरों की लंबी क़तारें दिल में बेचैनी पैदा करती हैं। कोई ऐसा निज़ाम नहीं बन सका कि इस ग़रीबी को दूर किया जा सके। जबकि ज़कात, फ़ितरा, सदक़ा जैसी दान की कई व्यवस्था इस्लाम में मौजूद है। यह फ़क़ीर उसी आस में मस्जिदों, मदरसों, दरगाहों पर बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करना हमेशा से इस्लाम के मूलभूत सिद्धांतों में से एक रहा है। इसके लिए पवित्र क़ुरआन और अन्य इस्लामी ग्रंथों में मुसलमानों को अपनी संपत्ति और आय का एक निश्चित हिस्सा दान में देने का आदेश दिया गया है। वक़्फ़ भी इसी का एक रूप है। वक़्फ़ के तहत कोई भी मुसलमान अपनी संपत्ति को धर्मार्थ कार्यों के लिए दान कर सकता है ताकि उसकी संपत्ति का इस्तेमाल मानवता के लिए किया जा सके। वक़्फ़ का अर्थ होता है ख़ुदा के नाम पर अर्पित दान। ऐसे में जब कोई मुसलमान अपनी संपत्ति दान करता है तो वह सरकार द्वारा गठित वक़्फ़ बोर्ड के अंतर्गत आ जाती है। वक़्फ़ बोर्ड को ही वक़्फ़ के तहत दान की गई संपत्ति के अधिग्रहण, प्रबंधन, विनियमन और उपयोग का अधिकार होता है। वक़्फ़ की संपत्ति किसी को भी ट्रांसफ़र करने, बेचने, तोहफ़े के तौर पर देने या लीज़ पर देने की मनाही है। हां, ऐसा तब हो सकता है जब बोर्ड के दो तिहाई सदस्य इसकी मंज़ूरी दें। बोर्ड  में एक अध्यक्ष और बतौर सदस्य २० लोग होते हैं। इनमें से कुछ की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है। विधायक, सांसद आदि भी इसके मनोनीत सदस्य होते हैं।

यही वक़्फ़ बोर्ड अक्सर विवादों में रहता है। चूंकि इस से धन और संपत्ति जुड़ी है तो इसे विवादित होना ही है। वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति को लेकर आए दिन विवाद और चर्चाएं होती रहती हैं। ज्यादातर अवैध क़ब्ज़े को लेकर। बोर्ड पर यह आरोप लगता रहता है कि उसने कई निजी संपत्तियों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया है। अक्सर आरोप लगते रहते हैं कि वक़्फ़ बोर्ड अक्षम और भ्रष्ट तत्वों के गिरोह द्वारा चलाए जा रहे हैं। पूरी प्रणाली एक अशोभनीय गंदगी से प्रेरित है। देशभर में इस समय कुल १ केंद्रीय और ३२ राज्य वक़्फ़ बोर्ड कार्यरत हैं। इन्हीं के अंतर्गत सारी वक़्फ़ संपत्तियां आती हैं। अभी वक़्फ़ के पास ५ लाख संपत्तियां हैं। देश भर में फैली लगभग ६ मिलियन एकड़ वक़्फ़ ज़मीन की संपत्ति दरगाहों, मक़बरों, क़ब्रिस्तानों, ईदगाहों और इमाम बाड़ों में फैली हुई है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार इसकी क़ीमत वर्तमान बाज़ार दर पर तक़रीबन १.२ लाख करोड़ रुपये है। इन संपत्तियों से हर साल १५० करोड़ का राजस्व हासिल होता है। सरकार का मानना है कि अगर इसका सही से इस्तेमाल हो तो यह राजस्व १००० करोड़ तक हो सकता है। वक़्फ़ बोर्ड का काम वक़्फ़ संपत्तियों की देखभाल और उनकी हिफ़ाज़त करना है। हालांकि यह एक 'खुला रहस्य' है कि कुछ वक़्फ़ बोर्ड अवैध क़ब्ज़ाधारियों या उनके संरक्षकों के साथ सांठगांठ में लिप्त रहते हैं। समस्या की असल जड़ है पारदर्शिता की कमी, प्रत्यक्ष दान का राजनीतिकरण और भाई-भतीजावाद की संस्कृति। इन्हीं कारणों के वशीभूत वक़्फ़ बोर्ड चलाने के लिए ज़्यादातर संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले लोगों की नियुक्ति होती है। सख़्त सरकारी निगरानी या नींद में डूबे मुस्लिम समुदाय के दबाव का अभाव ही तो है जो वक़्फ़ नौकरशाही, अनेक चेयरमैन और सीईओ से लेकर संरक्षक तक वक़्फ़ संपत्तियों को अपनी व्यक्तिगत जागीर के रूप में मानने लगे हैं। दरअसल अवैध रूप से वक़्फ़ संपत्तियों को बेचना-ख़रीदना एक फलता-फूलता कारोबार है। इसे भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा मार्ग और साधन कहा जाता है जो शीर्ष तक जाता है। कभी घोटाला नज़र में आया भी तो छोटी मछलियां पकड़ ली जाती हैं, लेकिन बड़ी मछलियां पहुंच से दूर ही रहती हैं।

कुछ साल पहले एक राष्ट्रीय पत्रिका की जांच में वक़्फ़ संपत्ति से जुड़े मामलों को 'भारत का सबसे बड़ा भूमि घोटाला' के रूप में वर्णित किया गया था। वक़्फ़ का काम अपने मातहत आने वाली संपत्तियों का रखरखाव है। इसमें क़ब्रिस्तान, कुछ मस्जिदें, मक़बरे या वह ज़मीनें शामिल हैं जो दान की गई हैं। इन संपत्तियों का इस्तेमाल धार्मिक उद्देश्यों के लिए ही किया जा सकता है। इस्लामी क़ानून में, वक़्फ़ संपत्ति स्थायी रूप से अल्लाह को समर्पित होती है। एक बार जब संपत्ति वक़्फ़ हो जाती है तो फिर वो मालिक के पास वापस नहीं लौट सकती है। इसमें चल, अचल और अन्य संपत्तियों का समावेश है। चल संपत्ति वक़्फ़ के अंतर्गत, कोई भी व्यक्ति अपनी चल संपत्ति जैसे कि धन, कंपनी के शेयर या इसी प्रकार की किसी चल संपत्ति को दान दे सकता है। अचल संपत्ति वक़्फ़ के अंतर्गत, मुस्लिम समाज के लिए अपनी अचल संपत्ति जैसे कि अपनी ज़मीन, घर, बिल्डिंग या इसी प्रकार की अचल संपत्तियों को दान करने का प्रावधान भी किया गया है। अन्य वक़्फ़ के अंतर्गत, मुस्लिम समाज को अपने उपयोग में लायी गई अन्य प्रकार की वस्तुओं को भी वक़्फ़ के अंतर्गत दान करने की सुविधा प्रदान की गयी है जैसे कि कोई व्यक्ति अपनी पुस्तकें दान कर सकता है जिससे अधिकतर लोग इसका लाभ ले सकें। इसी प्रकार कोई व्यक्ति अपने द्वारा उपयोग किए गए किसी वाहन को भी सामाजिक कार्यों के उपयोग के लिए दान दे सकता है।

लेकिन यह दान जाता कहां है? अधिकांश बड़े लोगों की झोली में। जबकि इस संपत्ति से कई सामाजिक कार्य हो सकते हैं। वक़्फ़ संपत्तियों का इस्तेमाल पूरा समाज कर सकता है। वक़्फ़ संपत्तियों का उपयोग मदरसों और अस्पताल बनाने आदि में किया जाए तो कितना बेहतर होता। वक़्फ़ संपत्तियों पर खोले गए स्कूल, मदरसे, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, अनाथ आश्रम या अस्पताल से समाज के हर तबक़े के लोग फ़ायदा हासिल कर सकते हैं। लेकिन ज़िम्मेदाराना को शायद इसका एहसास नहीं है। वक़्फ़ बोर्ड के जिम्मे क़ब्रगाह और मस्जिद भी होते हैं जिनका नियमानुसार रखरखाव सुनिश्चित किया जाना चाहिए और उनकी ग़ैर उपयोगी ज़मीन का समाज के हित में इस्तेमाल होना चाहिए। इसके लिए वक़्फ़ बोर्ड के ज़रिए अल्पसंख्यक वर्ग को सशक्त बनाने के लिए उन्हें सरकार की योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ दिलाया जा सकता है। अगर इन जगहों पर मूलभूत सुविधाओं को विकसित किया जाए और सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना से कार्य करते हुए वक़्फ़ विभाग अपने उद्देश्यों की पूर्ति करे तो मुस्लिम समाज में काफ़ी कुछ बदलाव लाया जा सकता है। मुस्लिम समाज के सर्वांगीण विकास के लिए मदरसा शिक्षा को बेहतर बनाते हुए मदरसों का आधुनिकीकरण किया जा सकता है। इसके ज़रिए मदरसों में पठन-पाठन नियमित रूप से और गुणवत्तापूर्वक हो और अल्पसंख्यक वर्ग के विद्यार्थियों के लिए रचनात्मक और करियर काउंसलिंग के कार्यक्रम चलाए जाएं तो एक सशक्त शिक्षित मुस्लिम समाज बन सकेगा। वरना मुस्लिम समाज यूँ ही राजनीतिक फ़ुटबॉल बना रहेगा, पिछड़ेपन का रोना रोता रहेगा और वक़्फ़ बोर्ड बस विवाद और भ्रष्टाचार के ही काम आएगा।।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)