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कमाल की क़ौमी एकता / सैयद सलमान
Friday, October 9, 2020 10:17:48 AM - By सैयद सलमान / साभार- दोपहर का सामना

हर मरकज़ और इदारे से एकता की बात किये जाने और उसे आम जान तक पहुँचाने की ज़रूरत है
■ यूपी में मस्जिद, पहला चंदा हिंदू का

■ बिहार में हिंदू-सिखों ने बनाई मस्जिद


उत्तरप्रदेश से इन दिनों लगातार नकारात्मक ख़बरें आ रही हैं जो विवादों में रहते हुए लोगों को उद्वेलित कर रही हैं। उसी उत्तरप्रदेश की एक सकारात्मक ख़बर न जाने क्यों नकारात्मक ख़बरों के बीच दब कर रह गई। यह तो सभी को पता है कि उत्तर प्रदेश के अयोध्या में वर्षों तक चले मंदिर-मस्जिद विवाद का हल हो गया है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी आबंटित जगहों पर अपने-अपने धार्मिक स्थल बनाने में जुट गए हैं। इस बीच जिस ख़बर ने राहत पहुंचाई वह यह रही कि गंगा जमुनी-तहज़ीब का उदाहरण पेश करते हुए अयोध्या में बन रही मस्जिद के लिए सबसे पहला चंदा एक हिंदू नागरिक की तरफ़ से दिया गया। इंडो-इस्लामिक कल्चरल फ़ाउंडेशन के हवाले से यह ख़बर मंज़र-ए-आम पर आई कि, लखनऊ यूनिवर्सिटी में कार्यरत रोहित श्रीवास्तव ने मस्जिद कॉम्पलेक्स के लिए सबसे पहला योगदान किया है। बलात्कार, दंगे, आंदोलन, लाठीचार्ज, जाति-धर्म की राजनीति और नफ़रत भरी अन्य ख़बरों के बीच रोहित श्रीवास्तव का यह योगदान बहुत मायने रखता है। उन्होंने अपने योगदान से अयोध्या में पांच एकड़ आबंटित भूमि पर मस्जिद परिसर के निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त करने वालों का न सिर्फ़ हौसला बढ़ाया है बल्कि समाज को आपसी संबंधों की अटूट डोर में बांधने की पहल की है। सांप्रदायिकता की रोटी सेंकने वालों को रोहित श्रीवास्तव ने इस देश की सार्वभौमिकता का असल संदेश देकर दुनिया को भी दिखा दिया है कि पूरे विश्व में क्यों हमारा देश सबसे अलग, सबसे जुदा है।

मस्जिद निर्माण से जुड़े पदाधिकारियों ने भी इस बात पर ख़ुशी का इज़हार किया है और अपने बयान में रोहित श्रीवास्तव के योगदान को ख़ुशी का पल बताते हुए दान स्वीकार करने की बात कही है। रोहित श्रीवास्तव का यह बड़प्पन लखनऊ और अवध की गंगा-जमुनी तहज़ीब का एक आदर्श उदाहरण कहा जाएगा। यह बेहद महत्वपूर्ण योगदान है और यह योगदान मील का पत्थर साबित होगा। इस बीच बताते चलें कि इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन की अगुआई में आबंटित की गई भूमि पर अस्पताल का निर्माण और अन्य सुविधाओं के लिए काम पूरी गति से चल रहा है। ट्रस्ट की योजना है कि देश की इंडो-इस्लामिक संस्कृति के लंबे इतिहास को प्रदर्शित करने और अतीत में दो समुदायों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को उजागर करने के लिए उसी तर्ज़ पर काम जारी रहे। अयोध्या में पांच एकड़ भूमि में मस्जिद के निर्माण और अन्य सुविधाओं की देखरेख के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड द्वारा इंडो-इस्लामिक कल्चरल फ़ाउंडेशन की स्थापना की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में अपने फैसले में यूपी सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए ज़मीन दी है।

दरअसल उत्तरप्रदेश की धरती पर ऐसी कई मिसालें हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि वहां की क़ौमी एकता पूरे देश के लिए एक मिसाल बनाई जा सकती है, बशर्ते नकारात्मक ख़बरों की भीड़ में वहां का सकारात्मक पहलू भी सामने लाया जाए। उदहारण के तौर पर बरेली के आलमगीरी गंज में मौजूद बुध वाली मस्जिद वर्षों से हिंदू-मुस्लिम एकता की निशानी बनी हुई है। मुराद पूरी होने पर करीब ३०० वर्ष पहले एक ब्राह्मण ने चंदा इकठ्ठा कर इस मस्जिद का निर्माण कराया था। आज भी वही ब्राह्मण परिवार मस्जिद की देख-भाल करता है। कहानी कुछ यूँ है कि अपनी मनोकामना पूरी होने पर इलाके के पंडित दासीराम ने इस मस्जिद का निर्माण करीब ३०० साल पहले करवाया था। इसके लिए उन्होंने लोगों से चंदा किया और मस्जिद का निर्माण कराया और मस्जिद की देख रेख का जिम्मा भी ख़ुद संभाला। यह सिलसिला उनकी हयाती तक ही नहीं रुका, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी ये सिलसिला चल रहा है और आज उसी परिवार के पंडित राजेंद्र कुमार शर्मा मस्जिद की देखभाल करते हैं। सुबह फ़ज्र की नमाज़ के लिए आने वाले लोगों के लिए मस्जिद का ताला खोलते हैं और मस्जिद की देखभाल करते हैं। इतना ही नहीं, मस्जिद में बुधवार को सभी धर्म के लोग आते हैं इसलिए मस्जिद का नाम बुध वाली मस्जिद रखा गया है। यहां पर वर्षों से हिंदू-मुस्लिम एक साथ इबादत करते चले आ रहे हैं।

उत्तरप्रदेश ही नहीं बल्कि बिहार में भी हिंदू-मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द की अनेक बड़ी मिसाल देखने को मिलती है। बिहार के पश्चिमी चंपारण स्थित बगहा के रतवल गांव में हिंदू समुदाय के लोगों ने चंदा इकठ्ठा कर मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए मस्जिद का निर्माण कराया है। दरअसल, मुस्लिम समुदाय के लोगों को मस्जिद के आभाव में २ किलोमीटर दूर नमाज़ के लिए जाना पड़ता था। मस्जिद निर्माण के लिए गांव के हिंदू भाइयों ने ही आधारशिला रखी और मस्जिद निर्माण के लिए अपनी पूरी ताक़त लगा दी। मस्जिद निर्माण के लिए उन्होंने पैसे भी दिये और जी तोड़ मेहनत भी की। आज भी यह गांव क़ौमी एकता की मिसाल के लिए आदर्श माना जाता है।

इसी तरह पंजाब के बरनाला जिले में सामाजिक एकता की ऐसी ही एक मिसाल देखने को मिलती है जहाँ के मूम गांव में स्थानीय ब्राह्मणों ने मस्जिद बनाने के लिए ज़मीन दान की है। यही नहीं वहां के सिख समुदाय के लोगों ने निर्माण कार्य के लिए चंदा तक इकट्ठा किया है। मस्जिद बनाने के लिए दो अन्य समुदायों के लोगों ने भी मदद की। लुधियाना ज़िले से सटे हुए इस गांव में मुस्लिम समाज के लोग मस्जिद निर्माण होने तक दो कमरों वाली बाबा मोमिन शाह की दरगाह में प्रार्थना करते थे। उनकी परेशानी को समझते हुए पंडित बिरादरी के लोगों ने ज़मीन दान की, जिसके बाद मस्जिद निर्माण कार्य शुरू हुआ। उन्होंने सिर्फ़ मस्जिद के लिए ज़मीन ही नहीं दी बल्कि निर्माण कार्य में भी सहयोग किया। निर्माण कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हिंदू और सिख भाइयों का मानना है कि मंदिर निर्माण के लिए दान करके उन्होंने अपना फ़र्ज़ निभाया। दरअसल गांव में जब एक शिव मंदिर का निर्माण चल रहा था तब हिंदुओं और सिखों के मन में आया कि गांव में एक मस्जिद भी बनाई जाए। मज़े की बात यह है कि इस गांव में सिख समुदाय के तकरीबन ४ हज़ार लोग रहते हैं, जबकि मुस्लिम और हिंदुओं की संख्या कुल मिलाकर करीब ४०० के आसपास है। यानि केवल १० प्रतिशत। हक़ीक़त में ऐसे ही गांव-घर सामाजिक एकता की सुंदर मिसाल कहलाते हैं।

यह सारे उदाहरण इस देश की एकता और सामाजिक समरसता का वह सरमाया हैं जिनकी ख़ुशबू से हमारा देश रुपी चमन महकता है। यह तो मात्र कुछ ही उदहारण हैं। ऐसे उदहारण देश के हर कोने में मौजूद हैं जिनका सामने लाया जाना इसलिए ज़रूरी है, ताकि हर वर्ग के कट्टरपंथियों की आँखों पर पड़ा नफ़रत का चश्मा हटाया जा सके। इन उदाहरणों को देने का मक़सद यही है कि आने वाली पीढ़ी किसी भी प्रकार की दुर्भावना मन में पाले बिना सिर्फ़ और सिर्फ़ राष्ट्रनिर्माण की ओर अग्रसर हो। मुस्लिम धर्मगुरुओं से विशेष तौर पर उम्मीद की जाती है कि समाज के इस उजले पहलु को मुस्लिम समाज के सामने रखें। देश में मुस्लिम समुदाय द्वारा भी अनेक मंदिरों से जुड़े होने की मिसालें हैं। महाराष्ट्र की गौरवशाली धरती पर एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों गणेशोत्सव मंडलों के पदाधिकारियों में मुस्लिम समाज के समाजसेवकों का नाम प्रमुखता से देखने को मिल जाएगा। गणेशोत्सव मंडलों, नवरात्री मंडलों की साज सज्जा का काम करते मुस्लिम समाज के हज़ारों ज़िम्मेदार और कारीगर देखने को मिल जाएंगे। यही तो इस देश की ख़ूबसूरती है।

आज का मीडिया, कट्टरपंथी नेता, कट्टरपंथी धर्मगुरु ऐसे सद्भावना वाले संदेशों को शायद पसंद नहीं करते। उन्हें लगता है इस से उनकी टीआरपी और लोकप्रियता में कमी आने का ख़तरा हो सकता है। लेकिन समाज का बड़ा वर्ग किसी की परवाह किये बिना अपनी ज़िम्मेदारी बख़ूबी निभा रहा है। दरअसल ऐसे लोग ही इस देश के असली नायक हैं। मुस्लिम समाज इस बात की गहराई को समझे। हर मरकज़ और इदारे से एकता की बात किये जाने और उसे आम जान तक पहुँचाने की ज़रूरत है। एक ग़ैर-मुस्लिम भाई की पहल से उम्मीद की जानी चाहिए कि वर्षों विवाद की मार झेल चुका अयोध्या विवाद अब नए मस्जिद प्रोजेक्ट के संदर्भ में सांप्रदायिक सद्भाव वाली विचार प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ेगा। ज़रूरत है हर धर्म के अनुयायियों के विचारों में लचक पैदा करने की। इस देश के लाखों रोहित श्रीवास्तव कंधे से कंधा मिलाकर एकता का परचम लहराने के लिए तैयार मिलेंगे।