Friday, April 19, 2024

न्यूज़ अलर्ट
1) मल्टी टैलेंटेड स्टार : पंकज रैना .... 2) राहुल गांधी की न्याय यात्रा में शामिल होंगे अखिलेश, खरगे की तरफ से मिले निमंत्रण को स्वीकारा.... 3) 8 फरवरी को मतदान के दिन इंटरनेट सेवा निलंबित कर सकती है पाक सरकार.... 4) तरुण छाबड़ा को नोकिया इंडिया का नया प्रमुख नियुक्त किया गया.... 5) बिल गेट्स को पछाड़ जुकरबर्ग बने दुनिया के चौथे सबसे अमीर इंसान.... 6) नकदी संकट के बीच बायजू ने फुटबॉलर लियोनेल मेस्सी के साथ सस्पेंड की डील.... 7) विवादों में फंसी फाइटर, विंग कमांडर ने भेजा नोटिस....
कोरोना को धार्मिक चश्मे से न देखें ! / सैयद सलमान
Friday, March 20, 2020 11:11:58 AM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 20 03 2020

सोशल मीडिया पर अनेक समूहों में बने रहने के ढेर सारे नुकसान तो हैं, लेकिन बहुत सारे फ़ायदे भी हैं। समाज में घटने वाली घटनाओं पर आप इन समूह की मदद से अपडेट भी रहते हैं। हाँ, इन सोशल मीडिया पर परोसे जा रहे अतिरिक्त और अनर्गल ज्ञान से ख़ुद को बचाए रखना भी एक कड़ी परीक्षा के सामान है। व्हाट्सएप, फ़ेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के माध्यम अब जिहालत वाली एक यूनिवर्सिटी का दर्जा रखते हैं, जिन पर ज़्यादातर झूठ और फ़रेब परोसा जा रहा है। जागरूकता वाली इंद्रियों की सुषुप्तावस्था से ग्रस्त जाहिलों के लिए यहाँ परोसा गया ज्ञान ही पत्थर की लकीर होता है। यह चिंता की बात भी है और ख़तरे की भी, क्योंकि इसी अधकचरे और ज़बरदस्ती ठूंसे गए अतिरिक्त ज्ञान ने अक्सर सामाजिक माहौल को दूषित किया है। कोरोना जैसे वायरस के फैलने के दौरान भी यही स्थिति रही। लेकिन ऐसे माहौल में भी चंद लोगों का सामाजिक विद्वेष को बढ़ावा देना कोफ़्त पैदा करता है।

इस बीच कि जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस को लेकर कोहराम मचा है, कनाडा के एक धर्मगुरु इमाम हुसैन आमेर का एक वीडियो सोशल मीडिया पर ​तेज़ी से वायरल हुआ। इस इमाम ने कोरोना को चीन पर अल्लाह का कहर बताते हुए कहा कि, "मुस्लिम औरतों का ​बुर्क़ा उतारा, ​इज़्ज़त लूटी, अब मरो।" दरअसल चीन के वुहान से शुरू हुए कोरोना वायरस ने आज पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। इमाम ने अपने वीडियो में कहा कि चीन ने जिस तरह से उइगर मुसलमानों को टॉर्चर किया है, उसी का नतीजा है कि चीन में लोग मर रहे हैं। इमाम ने कहा कई चीनी लोग कुछ भी खा लेते हैं। कोरोना की शुरुआत चमगादड़ खाने से हुई है। चीन के नागरिक तो इंसान भी खा जाते हैं। भ्रूण को खाना भी चीन में प्रचलित है। आगे इमाम ने कहा कि चीन के लोग लड़के चाहते हैं इसलिए गर्भ में पल रही लड़कियों के भ्रूण को वो खा जाते हैं। चीन में लोग वो हर चीज खा लेते हैं, जो चलती है। भले ही वो नु​क़​सानदायक हो, ​फ़ायदेमंद हो या ​ज़​हरीला ही क्यों न हो। उन्होंने कहा कि मुस्लिमों के साथ किए गए ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ये अल्लाह का कहर है जो चीन पर बरपा। इमाम ने कहा कि जब मुस्लिम महिला के सिर से हिजाब उतारा जा रहा था और उसकी ​इज़्ज़त लूटी गई, तब चीन को डर नहीं लगा। लेकिन अब चीन को अल्लाह ने सब​क़​ सिखा दिया है। ये जो वायरस है वो चीनी नागरिकों को मुस्लिमों की तकली​फ़​ दिखाने के लिए ​काफ़ी है।

किसी भी धर्म के किसी मज़हबी रहनुमा का इस तरह का बयान क्या किसी तरह से जायज़ ठहराया जा सकता है? हालांकि इस इमाम के वीडियो पर मुस्लिम समाज की तरफ़ से भी काफ़ी नकारात्मक टिप्पणियां आईं। ग़ैर मुस्लिमों ने तो ख़ैर इमाम के बयानों की जमकर आलोचना की। अपशब्दों की भरमार हुई। आलोचना तक तो सही है, लेकिन अपशब्दों में आम मुसलमानों को भी गालियां दी गईं जो ग़लत तो है लेकिन अपशब्द बोलने वालों से ज़्यादा इमाम की बातों की मज़म्मत होनी चाहिए कि उन्होंने इंसानों की मौत को अपनी ख़ुशी का सामान बनाया। अव्वल तो प्राकृतिक आपदा हो, महामारी हो या कोई भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आई आफ़त उसे धर्म से जोड़ना ही मूर्खता है। इस्लाम इस तरह की बकवास को प्रश्रय नहीं देता। यहाँ बात इस्लाम की है, न कि जाहिल मुसलमान की। मुस्लिम समाज ने क़ुरआन से दूरी बनाकर सच्चे इस्लाम का अनुयायी होने का दावा खो दिया है। अल्लाह के इस्लाम पर मौलवी का इस्लाम अब ज़्यादा रायज है। अगर चीन में अल्लाह का अज़ाब है तो आख़िर मुस्लिम देशों में कोरोना का भय क्यों है? आखिर क्यों इस्लामी मुल्कों के मसीहा सऊदी अरब को यह कहना पड़ रहा है कि 'कोरोना वायरस को रोकने के लिए सऊदी अरब भी दुनिया के साथ है।' आख़िर किस इस्लामी क़ानून या शरीयत का सहारा लेकर मुस्लिमों के लिए पवित्र स्थल मक्का और मदीना की यात्रा पर सऊदी अरब ने रोक लगा दी है? मक्का के अलावा सऊदी अरब ने मदीना स्थित पैग़म्बर मोहम्मद साहब की मस्जिद -ए-नबवी की यात्रा पर भी रोक लगा दी है। उमरा पर रोक लगाने पर उन मुसलमानों की क्या प्रतिक्रिया होगी जो इस महामारी को अल्लाह का अज़ाब बता रहे हैं? तेल के मामले में समृद्ध और इस्लामी मान्यतानुसार अंतिम नबी पैग़म्बर मोहम्मद साहब की जन्म व कर्म स्थल सऊदी अरब के इस ​फ़ैसले से पता चलता है कि वह कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर कितना संजीदा है। केवल सऊदी अरब ही नहीं इस्लामी देशों में शक्तिशाली देश का दर्जा प्राप्त ईरान भी कोरोना से प्रभावित है। कोरोना को लेकर ईरान की तबाही जगज़ाहिर है। मध्य पूर्व के देशों में कोरोना संक्रमण के सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं। बांग्लादेश और पाकिस्तान भी इसकी चपेट में हैं। तो क्या कहेंगे इसे, अल्लाह की रहमत या अल्लाह का अज़ाब? अगर चीन, इटली सहित यूरोपीय देशों में कोरोना अज़ाब है, तो कट्टरपंथी मुसलमानों को बताना होगा कि आख़िर इस्लामी मुल्कों में कोरोना वायरस को वह क्या कहेंगे?

अच्छे-अच्छे धुरंधर देश के राष्ट्राध्यक्षों, प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रप्रमुखों के चेहरों पर हवाइयां उड़ रही हैं। बीमारी में भी मज़हब तलाशने वालों को यह समझना होगा कि बीमारी एक बला होती है। यह जितनी जल्दी दूर हो उतना अच्छा है। बीमारी फैलते वक़्त मज़हबी भेद नहीं देखती। वह केवल इंसान देखती है। कोरोना ने और कुछ किया हो या नहीं, धर्मधुरंधरों को इंसान बना दिया है। कुछ महामूर्खों को छोड़कर। महामारी के ऐसे माहौल में भी जो मज़हबी भेदभाव वाली बातें करने वाले इंसान नहीं, बल्कि हैवान हैं। उनके लिए दुआ कीजि​ये। ​​वैसे यह कहना गलत न होगा कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के नाम पर दरकती एकता की दीवार को कम से कम भारत में 'कोरोना वायरस' ने आकर संभाल लिया। कोरोना का भय सभी में है। कहीं विशेष तौर पर अज़ान, नमाज़ और दुआओं का एहतेमाम हो रहा है, कहीं आरती-भजन और प्रार्थनाओं का, कहीं चर्च में विशेष मास और प्रे हो रहा है, कहीं गुरुद्वारों में कीर्तन और शब्दपाठ हो रहे हैं, तो कहीं बुद्धविहारों में विशेष प्रार्थनाएं की जा रही हैं। यानि हर मज़हब के लोग अपने-अपने तईं 'ईश्वर शरणम् गच्छामि' की मुद्रा में हैं। जानते और मानते सब हैं कि कोई एक परम शक्ति है, जो सबको चला रही है। आफ़त-ओ-बला आने पर उसी की शरण में जाते हैं। फिर क्या कारण है कि अपने आप को सुपीरियर मानने के चक्कर में लोग सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने में लग जाते हैं।

कोरोना से मिलकर लड़ने की बात होनी चाहिए। कोरोना से प्रभावित सभी देशों के डॉक्टर्स, प्रशासन, स्वंयसेवी संगठन लोगों की जान बचाने में लगे हैं। कोरोना वायरस के बहाने मरती जा रही इंसानियत को ज़िंदा रखने का यह सुनहरा मौक़ा है। फ़िलहाल ​ज़​रूरी ये है कि मुस्लिम समाज कोरोना को अल्लाह का कहर जैसे ​फ़ालतू बयान देने वाले इमामों के झांसे में न आए। यह महज़ अपनी दूकान को चमकाने का तरीक़ा भर है। कोरोना एक संक्रमण है और सावधानी बरतकर इससे बचा जा सकता है। कोरोना को धार्मिक चश्मे से न देखें। अगर यह अल्लाह का अज़ाब है भी, तो सभी के लिए है। और अगर आप धार्मिक हैं, तो पूरी इंसानियत और विश्व के सभी कोरोना प्रभावित मरीजों के लिए प्रार्थना कीजिए। सच्चा इस्लाम और दुनिया के तमाम मज़हब यही शिक्षा देते हैं। भले ही मौलवियों का इस्लाम कुछ भी कहे लेकिन सही इस्लाम तमाम इंसानियत की भलाई और रहनुमाई करता है, यह तथ्य समझना ​ज़​रूरी है। यह धर्मगुरुओं की मठाधीशी, यह नेताओं के ये तख़्त-ओ-ताज सब धरे के धरे रह जाएंगे, बस मानवता जीवित रहेगी और रहनी भी चाहिए। बस फिलहाल इतना याद रखें, कोरोना से डरने की नहीं बल्कि सावधानी बरतने की ​ज़​रूरत है। अफ़वाहों पर ध्यान न दें, स्वच्छ रहें, स्वस्थ रहें, सतर्क रहें, एकता बनाए रखें।