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शरिया क़ानून से थमेगा व्यभिचार ! / सैयद सलमान
Friday, December 6, 2019 9:37:26 AM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
​साभार- दोपहर का सामना 06 12 2019

हैदराबाद में एक महिला वेटनरी डॉक्टर के साथ बलात्कार की घटना के बाद उसकी नृशंस हत्या से देश दहल गया है। निर्भया कांड के बाद चर्चा में आई यह एक ऐसी घटना है जिसने इस कृत्य के तरीक़ों पर देश को हिलाकर रख दिया। पिशाच प्रवृत्ति के बलात्कारियों ने न सिर्फ़ डॉक्टर का बलात्कार किया बल्कि उसे निर्दयता से जला दिया। यही नहीं, इसके साथ अनेक बलात्कार के मामले अख़बारों की सुर्ख़ियां बन रहे हैं और टीवी समाचारों में बहस का मुद्दा। औरतों के प्रति बढ़ती सैक्‍सुअल हिंसा के लिए सरकार की लापरवाही को बड़ा ज़िम्मेदार बताया जा रहा है। हालांक यह भी सत्य है कि बलात्कार की जितनी घटनाएं हो रही हैं उसका दसवाँ हिस्‍सा भी मीडिया नही दिखाता। कारण अलग-अलग हैं। कभी पीड़ित और कभी पीड़ित के परिजन समाज में बदनामी के डर से सामने नहीं आते, कभी सरकारी दस्तावेजों में ख़ानापूर्ति कर मामले को रफ़ा-दफ़ा कर दिया जाता है। निर्भया केस के बाद कई सामाजिक संगठनों ने मांग की थी कि ऐसा क़ानून बनाए जाए, जिससे ऐसा अपराध न हों। ज्‍़यादातर लोगों की मांग थी कि भातरीय क़ानून को और सख़्त होना चाहिए। अपराधियों को मौत की सज़ा दी जानी चाहिए, जिससे अपराध में कमी आएगी।

वेटनरी डॉक्टर के साथ बलात्कार की घटना के बाद एक बार फिर सदमे और ग़ुस्से से भरे देश के भीतर से बलात्कार के मामलों में तुरंत और कड़ी सज़ा की मांग की जा रही है। इस्लामी शरीयत में बलात्कार के मामले में कड़ी सज़ा का प्रावधान है। बलात्कार के दोषी को सार्वजनिक स्‍थल पर ले जाकर सबके सामने उसका सिर क़लम कर दिया जाता है। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के क़ानून के मुताबिक़ यदि किसी ने व्यभिचार से जुड़ा अपराध किया है तो उसे सात दिनों के अंदर ही फांसी दे दी जाती है। खाड़ी के कुछ देशों में हाथ क़लम करने का भी रिवाज भी प्रचलित है। अफ़गानिस्तान, ईरान, इराक़, पाकिस्तान, सऊदी अरब, सूडान और यमन जैसे देशों में बलात्कार के आरोपियों को शरिया क़ानून के तहत सज़ा दी जाती है। उसी तर्ज़ पर अब हमारे देश में भी सज़ा देने की मांग उठने लगी है। हालांकि शरिया के नाम पर उठाई जा रही आवाज़ को ग़ुस्से में समर्थन तो मिल रहा है, लेकिन उसे यथार्थ में बदल पाना असंभव प्रतीत होता है। इन क़ानूनों को लागू करने की पैरवी करते ही विवाद शुरू हो जाते हैं और धर्मविशेष का क़ानून बताकर विरोध भी किया जाता है।

बलात्कार के दोषी को अलग-अलग देशों में सज़ा देने की अलग-अलग प्रथा है। इराक़ में बलात्कार करने वालों को मौत की सज़ा दी जाती है। रेप के दोषी को तब तक पत्थर मारे जाते हैं, जब तक कि उसकी मौत न हो जाए। उत्तर कोरिया में तो बलात्कार का क़ानून इतना सख़्त है कि वहां बलात्कार के गुनहगार को सीधे सिर में गोली मार दी जाती है। पोलैंड में पहले बलात्‍कार के दोषी को सुअरों से कटवाया जाता है, लेकिन अब नए क़ानून बनने के बाद आरोपी को नपुंसक बना दिया जाता है। इंडोनेशिया में बलात्कारी को नपुंसक बनाने के साथ ही साथ उनमें महिलाओं के हॉर्मोन्‍स डाल दिए जाते हैं। चीन भी उन चुनिंदा देशों में शामिल है जहां बलात्कार के मामले में मौत की सज़ा का प्रावधान है। चीन में बलात्कार के जुर्म की सज़ा बिना किसी ट्रायल के जल्द से जल्‍द दे दी जाती है। मेडिकल जांच में बलात्कार होने की पुष्टि को ही प्रमाण मानकर मृत्यु दंड दे दिया जाता है।

बलात्कार जैसे कृत्य का संबंध किसी धर्म या जाति से हो ही नहीं सकता। यह एक मानसिक विकृति है। यह इंसान के जानवर बनने की वह क्रिया है, जो आख़िर उसे जानवर साबित करके छोड़ती है। इंसान के भीतर छिपा जानवर इस बात को अच्छी तरह से जानता है। इंसानी कमज़ोरी के नाम पर किये गए कृत्य पर इस्लामी शरीयत ने सख़्त सजा मुक़र्रर की है। एक या दोनों पक्षों के अविवाहित आरोपियों को अस्सी-अस्सी कोड़े मारने की और विवाहित होकर भी व्यभिचार अथवा बलात्कार करने वाले को 'संगसार' यानि ‘पत्थर मार-मारकर मार डालने’ की सज़ा का प्रावधान है। लेकिन उस से पहले इस्लाम ने यौन-अनाचार को ‘अपराध’ से ज्यादा, ‘पाप’ बताया है। इसे अल्लाह और ईशदूत हज़रत मोहम्मद साहब की नाफ़रमानी बताया है। सही इस्लाम की विचारधारा ही यह है कि समाज के चरित्रवान होने के लिए व्यक्ति का चरित्रवान होना ज़रूरी है, क्योंकि व्यक्ति की तन्हा कोई हैसियत नहीं और वह समाज की इकाई मात्र है। व्यक्ति के चरित्रवान होने के लिए उसके अंदर के इंसान का चरित्रवान होना निहायत ज़रूरी है। अब यह प्रश्न अलग है कि आज इस्लाम के मानने वाले कितने चरित्रवान हैं। पैग़म्बर मुहम्मद साहब का तो फ़रमान है कि, 'अगर तुम दो चीज़ों की हिफ़ाज़त की ज़मानत दो तो मैं तुम्हारे लिए स्वर्ग की ज़मानत देता हूँ। एक, वह जो तुम्हारे दो जबड़ों के बीच है अर्थात जुबान और दूसरी वह जो तुम्हारी रानों (जांघों) के बीच है अर्थात् गुप्तांग। पैगम्बर मोहम्मद साहब ने अगर छोटे-बड़े अधिकांश पाप जैसे झूठ, गाली-गलौज, दूसरों का अपमान, चुग़ली, परनिंदा, ग़ीबत, ग़लत आरोप, बुरी और गंदी वार्ता, दूसरों का चरित्र हनन आदि काम के लिए जुबान का इस्तेमाल होने पर नापसंदगी ज़ाहिर की है तो यौनाचार, यौन-दुष्कर्म, अनैतिक या अवैध संबंधों और बलात्कार के लिए कितना सख़्त रहे होंगे। एक हदीस के मुताबिक पैग़म्बर मोहम्मद साहब ने फ़रमाया, ‘यौन-वासनावश जिसने किसी पराई स्त्री का शरीर छुआ, परलोक जीवन में, नर्क में उसके शरीर का मांस आग के कंधों से नोचा, भंभोड़ा जाएगा।’

इतनी सख़्ती और पाप-पुण्य की परिभाषा स्पष्ट होने के बावजूद बलात्कार जैसे मामलों में मुसलमानों का शामिल होना दुर्भाग्य, शर्मनाक और निंदनीय ही कहा जाएगा। ऐसे मुसलमानों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए। हालिया घटित हैदराबाद बलात्कार की घटना में भी एक नामधारी मुस्लिम शामिल है। क्या कभी ईमानदारी से इन जैसे बलात्कारियों ने इस्लाम की सही शिक्षा ग्रहण करने की कोशिश की होगी? अगर की होती तो बलात्कार जैसे 'पाप' में शामिल न होते। ग़रीबी, भुखमरी, जिहालत का रोना सब बकवास की बातें इसलिए भी हैं कि यह बेसिक शिक्षा तो घर-परिवार में और शुरूआती दौर में अरबी सीखने के लिए स्थानीय मदरसों में जाते ही मिल जानी चाहिए थी। जिस तरह क़ुरआन की तिलावत और नमाज़ में पढ़ने के लिए अरबी पढ़ना आना ज़रूरी है यह हर मुसलमान को पता है, तो फिर बुराइयों से दूर रहने की शिक्षा क्या वहां नहीं दी जाती होगी? अगर अब तक जहां नहीं दी जाती होगी, वहां ऐसी नैतिक और सामाजिक शिक्षा देना शुरू कर देना चाहिए। अक्सर मुस्लिम समुदाय बलात्कार की किसी भी घटना के बाद शरिया कानून की वकालत करता है। शरिया क़ानून की वकालत करने वाले ऐसे मुसलमानों को चाहिए कि वह आगे आकर कम-अज़-कम मुस्लिम आरोपियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं कि उन्हें तो शरिया क़ानून के तहत सज़ा दी जाए। विवाह, तलाक़, जायदाद जैसे चुनिंदा मामलों को छोड़कर सख़्त सज़ा वाले अपराधों को शरिया क़ानून के तहत लाने पर कभी किसी मुस्लिम संगठन को आगे आते नहीं देखा गया। सचमुच अगर न्यायप्रिय और इस्लामी क़ानून के प्रति मुसलमानों में सम्मान है तो बलात्कार जैसे घृणित मामलों के मुस्लिम आरोपियों को शरिया क़ानून के तहत सज़ा का प्रावधान करवाने की पहल करनी चाहिए। अपराध के लिए इस्लाम में कोई जगह नहीं है। अगर कर दिया तो फिर सज़ा देने और दिलाने के लिए हर रुकावट से भिड़ने का माद्दा मुस्लिम समाज में होना बेहद ज़रूरी है, वरना मोमबत्तियां जलाकर विरोध करने की ख़ानापूर्ति करने से क्या बलात्कार को रोका जा सकता है?