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धर्म का मर्म समझो ! ज़ायरा का दायरा और नुसरत की हसरत / सैयद सलमान
Friday, July 5, 2019 10:11:13 AM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 05 07 2019

अख़बार, मीडिया, सोशल मीडिया और मुस्लिम समाज के बीच पिछले दिनों दो नाम ​ज़​बरदस्त चर्चा में रहे। एक, पश्चिम बंगाल की मॉडल-एक्ट्रेस और अब सांसद नुसरत जहां और दूसरी, बॉलीवुड में धमाकेदार एंट्री कर वाहवाही बटोरने वाली ​ज़ायरा वसीम। दोनों के कारण अलग-अलग भले हों लेकिन चर्चा के केंद्र में रहा उनका धर्म। आप सार्वजनिक जीवन में अगर हैं तो चर्चा भी होगी, नसीहतें भी मिलेंगी, ट्रोल भी होंगे, तारी​फ़​​ भी होगी और गालियां भी मिलेंगी। जिसकी जितनी समझ होगी, उतनी समझ के अनुसार प्रतिक्रिया। ​ज़ाहिर है कट्टरपंथियों की प्रतिक्रिया नुसरत को लेकर क्या हो सकती है और ज़ायरा को लेकर क्या, यह सभी जानते हैं।

बात करते हैं मायानगरी में ​ज़​बरदस्त एंट्री करने के साथ अपनी पहली ही ​फ़िल्म 'दंगल' में बेहतरीन अदाकारी से अवार्ड जीतने वाली एक्ट्रेस ज़ायरा वसीम की। 'दंगल गर्ल' के नाम से मशहूर हुई बाल कलाकार ज़ायरा वसीम ने ​काफ़ी कम उम्र और कम समय में ही अपनी दमदार ​एक्टिंग से बॉलिवुड में अपनी अलग पहचान बनाई। अब ज़ायरा लगभग १९ वर्ष की हैं। आने वाले दिनों में वह सोनाली बोस की फिल्म 'द स्काई इ​ज़​ पिंक' में पर्दे पर न​ज़​र आएंगी। इस बीच सोशल मीडिया पर उनकी रुपहले परदे से अलग होने का ऐलान करने वाली पोस्ट ने उनके ​फ़ैन्स के बीच हलचल मचा दी। उनके बॉलिवुड छोड़ने की घोषणा ने सबको चौंका दिया। ज़ायरा​ ​ने सोशल मीडिया पर ६ पृष्ठ की चिट्ठी लिखी, जिसमें ​उन्होंने लिखा कि ​फ़िल्मों के कारण वह अपने धर्म और ईमान से दूर हो रही थीं, इस वजह से वह अब ​फ़िल्म इंडस्ट्री का हिस्सा नहीं रहना चाहतीं। उनका कहना है कि ग्लैमर का रास्ता उन्हें अल्लाह से दूर कर रहा है। ज़ायरा वसीम ने​ ​लिखा 'उन्हें एहसास हुआ कि भले ही मैं यहां सही तरीके से ​फ़िट हो जाऊं लेकिन मैं इस जगह के लिए नहीं बनी हूँ।' हालांकि सोशल मीडिया पर ​फ़ैन्स के बीच यह भी चर्चा है कि ज़ायरा की यह पोस्ट किसी दबाव में भी लिखी गई हो सकती है। कुछ लोग ज़ायरा के समर्थन में सामने आए तो कई लोगों ने इस मामले को मुस्लिम महिलाओं के शोषण से जोड़कर देखा। कई लोगों का कहना है कि यह ज़ायरा की अपनी पसंद का मामला है, वह जो भी करना चाहें बिना किसी दबाव में करें। जब उसने ​ख़ुद अपनी राह चुन ली है तो भला उस पर किसी को क्यों ऐतरा​ज़​ होना चाहिए।

ज़ायरा वसीम की अगर बात करें तो एक रोचक संयोग नजर आएगा। ज़ायरा की अब तक दो ​फ़िल्में रिलीज़ हुई हैं, 'दंगल' और 'सीक्रेट सुपरस्टार'। ​ग़ौर कीजिए, दोनों ​फ़िल्में महिला केंद्रित और महिला सशक्तिकरण पर आधारित थीं। दंगल में वह सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ कर आगे बढ़ने वाली एक बेबाक निडर बेटी के किरदार में न​ज़​र आई थीं। जबकि, सीक्रेट सुपरस्टार में वह एक मुस्लिम पिता की दकियानूसी सोच के खिलाफ लड़ने वाली एक महत्वाकांक्षी और प्रतिभाशाली लड़की के किरदार में थीं। इस ​फ़िल्म में एक लड़की कैसे अपने पिता की दकियानूसी सोच के ​ख़िलाफ़ लड़कर ग्लैमर जगत में प्रवेश करते हुए सफलता की इबारत लिखती है, इसे ​ख़ूबसूरती से दर्शाया गया था। लेकिन आज उसी ज़ायरा ने न जाने क्यों अपना कॅरियर दांव पर लगा दिया है। दरअसल ज़ायरा अगर यूँ ही ऐलान कर इंडस्ट्री छोड़ देतीं तो इतना बवाल न मचता। उनका अपने ईमान, अल्लाह और ​क़ुरआन का ​ज़िक्र करना ही विवादों की वजह बना। यह दोनों ​तरफ़ के कट्टरपंथियों को बहस-मुबाहिसे की ​ख़ुराक देने के लिए ​काफ़ी था।

अब बात करते हैं मॉडल और एक्ट्रेस से सांसद बनी नुसरत जहां की। नुसरत ने जब तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर १७वीं लोकसभा का चुनाव जीता था तब मुस्लिम समाज ने जमकर उनकी प्रशंसा की थी। मुस्लिम सांसदों की सूचि में उनके नाम को प्राथमिकता के साथ दर्शाया जा रहा था। लेकिन नुसरत जब साड़ी, सिंदूर और मंगलसूत्र पहनकर संसद में शपथ लेने पहुंचीं तो उनके ​ख़िलाफ़ ​फ़​तवा जारी कर दिया गया। अजीब बात है कि यह ​फ़तवा बिना किसी के मांगे जारी किया गया जिसमें नुसरत के बिंदी लगाने और मंगलसूत्र पहनने को हराम बताया गया। बता दें कि २९ साल की नुसरत के जैन धर्म को मानने वाले पति निखिल की टेक्सटाइल चेन है, जिनके साथ काम करने के दौरान उनकी मुला​क़ात हुई और इस जोड़े ने अपने ​क़​रीबी रिश्तेदारों और दोस्तों की मौजूदगी में शादी कर ली। इस शादी के बाद बिंदी, मंगलसूत्र, सिंदूर वगैरह से किसी मुस्लिम मौलवी का भला क्या संबंध? इस बेवजह के ​फ़तवे ने समाज में नकारात्मक बहस को और भी बढ़ावा देने का काम किया। हालांकि, नुसरत ने कट्टरपंथियों की आलोचना को ही अपना हथियार बनाया और अपने ट्वीट में लिखा, 'मैं संयुक्त भारत की प्रतिनिधि हूं, जो धर्म, जाति और पंथ से परे है। कट्टरपंथियों के बयानों पर ध्यान देने का मतलब घृणा और हिंसा को जन्म देना है। इतिहास इसका गवाह रहा है।'

क्या यह सच नहीं कि आस्था परिधानों से परे और बहुत आगे की ची​ज़​ है? आस्था का मतलब विश्वास है जो अपने रब से होता है। इसमें उन अनमोल सिद्धांतों का पालन करना होता है जिसकी शिक्षा सही इस्लाम और ​क़ुरआन में दी गई है। विश्व भर के मुस्लिम समाज में एक जैसे पहनावे देखने को नहीं मिलते। अरब, एशियाई, ​अफ़्रीकी या फिर यूरोपीय देशों के मुसलमानों के परिधान एक दूसरे से अलग होते हैं जो वहां की भौगोलिक संरचनाओं, स्थितियों और संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। खुद हमारे देश के मुसलमानों का कश्मीरी पहनावा, उत्तर भारत, मध्य भारत या फिर दक्षिण भारत का पहनावा एक दूसरे से भिन्न है तो क्या कोई कम या ​ज़्यादा मुसलमान कहलाएगा? हाँ, नुसरत के धर्म परिवर्तन पर बोलना ही था तो दूसरे धर्म से इस्लाम धर्म में आई लड़कियों पर भी बोलना ​ज़रुरी होता है यह बात इन मौलवियों को समझनी होगी। आप 'मीठा-मीठा गप्प और कड़वा-कड़वा कड़वा थू' तो नहीं कर सकते। ​ख़ास कर तब जब आप किसी साझी विरासत वाले मुल्क में रह रहे हों।

एक बात ग़ौर करने की है, जहां ​ज़ायरा के फिल्म इंडस्ट्री छोड़ने की घोषणा का मुसलमानों के बड़े तब​क़े ने स्वागत किया है वहीं इसी तब​क़े​ ने नुसरत पर तीखी टिप्पणियां की हैं। दूसरी तरफ़ जिन लोगों ने ज़ायरा को कट्टरपंथ की ओर बढ़ती हुई सोच बताकर कटघरे में किया है, उन्हीं लोगों को नुसरत से सहानुभूति है। यानी ज़ायरा और नुसरत दो इंसान न होकर इस्लाम-​ग़ैर-इस्लाम, कट्टरपंथ और समाज का वह उदहारण हो गईं, जिसके दम पर आने वाली नस्लों के भविष्य की इबारत लिखी जानी है। दोनों की अपनी सोच, उनके अपने विचार, उनकी खुद की स्वतंत्र आशाएं-अभिलाषाएं, सपने कोई मायने नहीं रखते। मुस्लिम समाज के उलेमा इस मामले में ​फ़​तवेबाजी और बयानबाजी करके मुस्लिम समाज को और भी विवादों में घसीट लाए। दो लड़कियों के बहाने पूरा मुस्लिम समाज कट्टरपंथी बना दिया गया। ज़ायरा का इस्लाम की शिक्षा को अपनाकर ग्लैमर की दुनिया का छोड़ना और नुसरत का मुस्लिम धर्म से अलग जैन धर्मावलंबी के साथ विवाह करना जैसे मुस्लिम समाज का सबसे अहम् और राष्ट्रीय मुद्दा हो गया। चिंतन करना चाहिए इस पर, कि ​आख़िर ऐसे मुद्दे हवा में क्यों उछाले जाते हैं। न जाने कितनी सिने तारिकाएं फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं, न जानी कितनी लड़कियों ने गैर-मुस्लिमों से विवाह किया है​,​ उन सभी पर इतनी चर्चा क्यों नहीं हुई? क्योंकि ज़ायरा और नुसरत के बहाने फ़िल​​वक़्त धर्म के ठेकेदारों को अपनी दुकान चमकाने का मौ​क़ा​ जो मिल गया। ​ख़ुदा के वास्ते इस तरह ​फ़िल्म, चूड़ी, सिंदूर, मंगलसूत्र, बिछुए तक में इस्लाम को न घसीटिये। इस्लाम इस से कहीं आगे की सीख देता है। कथित इस्लामी कट्टरपंथी छवि अगर आपको जंचती है तो बेशक उसे आप अपनाइए, लेकिन सच्चे मुसलमानों को इस से ​बख़्श दीजिए। आम मुसलमानों को सही और आधुनिक शिक्षा, अच्छा रो​ज़​गार, सर पर छत और सही इस्लाम की नुमाइंदगी करने में अगर हो सके तो मदद कीजिए। और आपसे अगर यह नहीं हो सकता तो ज़ायरा और नुसरत के बहाने ​ख़ुद भी कभी आइना निहार लीजिए कि आप कहाँ खड़े हैं और मुसलमानों के लिए आपने क्या किया है। लेकिन ​ख़ुदारा अपने छुपे एजेंडे में पूरे मुस्लिम समुदाय को शामिल मत कीजिए। मुस्लिम मौलवियों को चाहिए कि अनावश्यक विवादों में पड़ने के बजाय मुस्लिम समाज को सही​-ग़​लत की पहचान बताने और शांतिप्रिय समाज बनाने में मदद करें न कि इस तरह के विवाद में आम मुसलमानों को घसीट कर उनके प्रति और भी न​फ़​रत को बढ़ावा देनी वाली मुहिम का जाने अनजाने हिस्सा बनें।